अक्सर हम सब आपस में बात करते है की
अगर कभी भगवान् स्वयं मिल जाएँ
और अचानक पूछ लें
"बोल सखा क्या चाहता है ,जल्दी बोल
जो भी तू तुरंत अभी बोलेगा ,वही हो जाएगा "
तो मैंने सोचा, कान्हा कभी ना कभी तो मुझे मिलेगें ही ,तो मैं क्या कहूंगा, सोचकर लिख ही लेता हूँ :)
तो ये कविता लिख डाली
प्यार से पढ़िये ,आशा है आपको अच्छी लगेगी

सखा का सखा से निवेदन
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" मैं इतना भारी बनूँ के
"हनु" से भी ना हिल पाऊँ
और इतना हल्का भी के
पंछी संग मैं उड़ जाऊं
इतना गहरा हो जाऊँ के
शीर-सागर भी कम पड़ जाये
और इतना उथला भी के
बालक तैर के पार निकल जाये
इतना ऊँचा हो जाऊँ के
सातवाँ आसमान छू लू तर्जनी उंगली से
और इतना बौना भी के
बच्चों संग कंचे खेलूँ गली में
इतना विस्तृत बनूँ.. नाप दूँ
पूरी धरा एक ही पग में
और इतना सीमित भी के
चैन की नींद सोऊ अपनी छोटी सी कुटिया में
इतना चपल-सुन्दर मैं हो जाऊं
बन जाऊं स्वर्ण मृग मैं
सीता-हरण में भागी बनकर
नवजीवन पाऊँ राम बाण में
ओ रे कान्हा मैं तुझसे
बस इतना ही चाहूँ
बस इतना सा ही की
मैं इतना भारी बनूँ के... "
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हनु= हनुमान
शीर-सागर= विष्णु भगवान् का वास स्थान
उथला- बहुत ही कम गहरा