तेरे मेरे सपने कभी जुदा-जुदा ना थे
जाने क्यों फिर भी "हम" कभी मिल ना सके
मेरी तो फ़क़त बस यही आरज़ू रही
तू ही मेरी हमसफ़र मेरी हमनवा बने
तू ही तो है मेरी मलकियत का वो खुशनुमा हिस्सा
ख्वाब है किसी रोज़ तू मेरी... फ़क़त मेरी ही बने
तेरे मेरे सपने कभी जुदा-जुदा ना थे
जाने क्यों फिर भी "हम" कभी मिल ना सके
तेरा वजूद ना होता तो फिर मैं भी कहाँ ऐसा होता
तू दिखे या ना दिखे...
तू मिले या ना मिले...
तेरे खुशबू तो मेरी साँसों की जागीर बने
ये खुशबु है तो शायद मैं भी कुछ हूँ
वर्ना तो मैं कुछ भी नहीं
कुछ भी नहीं....
तेरे मेरे सपने कभी जुदा-जुदा ना थे
जाने क्यों फिर भी "हम" कभी मिल ना सके
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