जिस्म की ख्वाइश
तो ना तब थी
और ना अब है
अरे ये तो निरा,
कोरा सच है
के अब जिस्म
कहाँ रहा
मेरा -तुम्हारा,
तुम्हारा-मेरा,
अब तो फकत
रूह की प्यास है
सो वो कल भी थी
सो वो आज भी है
क्यों नहीं
एक दिन तो तू
आके यूहीं
छू लेती मुझको
क्यों नहीं एक दिन तो तू
आके युहीं
छू लेती मुझको
जिस्म से नहीं......
बस रूह से ही
आखिर आना तो होता ही है
हर नदी को सागर के करीब
फना हो जाने से पहले
खुदबखुद सागर मे
खुदबखुद सागर मे ही।
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कृपया आप मेरी और भी कहानियाँ और कवितायें पढ़ने के लिए मेरे ब्लॉग पर आये :)
manojgupta707.blogspot.com
तो ना तब थी
और ना अब है
अरे ये तो निरा,
कोरा सच है
के अब जिस्म
कहाँ रहा
मेरा -तुम्हारा,
तुम्हारा-मेरा,
अब तो फकत
रूह की प्यास है
सो वो कल भी थी
सो वो आज भी है
क्यों नहीं
एक दिन तो तू
आके यूहीं
छू लेती मुझको
क्यों नहीं एक दिन तो तू
आके युहीं
छू लेती मुझको
जिस्म से नहीं......
बस रूह से ही
आखिर आना तो होता ही है
हर नदी को सागर के करीब
फना हो जाने से पहले
खुदबखुद सागर मे
खुदबखुद सागर मे ही।
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