अक्सर हम कहते हैं की
"आगे बढ़ना है "
" नए शिखर छूने हैं "
" चलना ही जीवन है और रुकना मौत "
और ऐसी ही कुछ बहुत सारी बातें :)
बढ़ना है,
जीतना है
ये सबको पता है
पर मुझे किस और बढ़ना है ?
मुझे किसको जीतना है ?
क्या सही में हमको ये पता है
जबकि यही पता करना तो सबसे ज्यादा जरूरी है
अन्य सभी लोगों की तरह
जीवन में मैंने भी लोगों से खूब इर्षा की है
लोगों को आगे बढ़ते देख,
खूब पैसा कमाते देख
मैं भी जला हूँ, कुढ़ा हूँ :)
(और इस जलन और कुढ़न की एक बहुत बुरी बात ये है की
अक्सर ये अपने आस-पास के लोगों से ही सबसे ज्यादा होती है
जैसे दोस्त, नज़दीकी रिश्तेदार, पड़ोसी आदि आदि
अब मुझे या आपको मुकेश अम्बानी से तो जलन नहीं होती ना :) )
मेरे साथ भी जीवन में ऐसा कम से कम दो बार तो हुआ है
जब अपने ही किसी बहुत पास के व्यक्ति से मुझे ये ईर्ष्या हुयी ही है
एक शख्स से तो मेरे पापा मुझे कम्पेयर करते थे
और बार-बार याद दिलाते थे
की वो कितना कामयाब है और मैं कितना नाकामयाब :)
दुसरे शख्स से मैं खुद ही अपने आप को कम्पेयर करने लगा
और उसकी कामयाबी देखकर परेशान रहने लगा
वो पापा के एक गहरे दोस्त का बेटा था
पापा और उनके वो दोस्त रोज़ शाम को मिलकर ताश खेला करते
और घर-परिवार की , दीन-दुनिया की बातें कर अपना समय बिताते
जब भी मुझे सुबह-सुबह तलब कर ये समझाया जाता की मैं कितना नाकारा हूँ
मैं समझ जाता की पापा के दोस्त के उस बेटे ने फिर कोई नयी तरक्की की है
जिसका दुःख और जलन पापा के मन में है
और उस दुःख की छाया में
मेरा मन , मेरा आत्मविश्वास , मेरा स्वाभिमान
सब बिखर जाता और मैं पापा को कभी ये समझा नहीं पाता की
मैं भी कोशिश कर रहा हूँ, अपनी पूरी क्षमता के साथ
आज पापा के दोस्त का वो बेटा दुर्भाग्य से इस दुनिया में नहीं है
अभी कुछ ही साल पहले उसने स्वयं अपना जीवन ख़त्म कर लिया था
ये दुखभरा कदम लेने से पहले शायद उसने अति-आत्मविश्वास में कुछ ऐसे काम भी किये की
अपने परिवार की पूरी जायदाद से भी दो गुना क़र्ज़ मरते समय उसके सर पर था
जिसे चुकाना उसे असंभव लगा
और उसने अपना जीवन समाप्त कर लिया
दूसरे केस में मैंने खुद अपने को अपने एक पुराने स्कूल सहपाठी से कम्पेयर करना शुरू कर दिया
मेरा वो सहपाठी स्कूल के दिनों में पढ़ाई में मुझसे कोसों पीछे था
पर अब मेरे ही बिज़नेस में , मुझसे मीलों आगे
वो जब-जब मुझसे बिज़नेस मीटिंग्स में मिलता
तो उसकी तरक्की और उड़ान देखकर मुझे हमेशा ईर्ष्या होती
मुझे हमेशा लगता की जब मैं पढ़ाई में उससे इतना आगे था तो ,
आज भी मैं आगे क्यों नहीं हूँ ?
जब मैं पढ़ाई आगे था तो मतलब मेरा दिमाग उससे ज्यादा है
तो फिर आज मैं पीछे क्यों हूँ ?
दुःख की बात है की आज वो सहपाठी भी इस दुनिया में नहीं है
अभी कोरोना काल में उसका देहांत हुआ
कोई कहता है कोरोना से देहांत हुआ ,
कोई कहता है ज्यादा शराब पीने से लिवर पहले ही खराब था
कारण कुछ भी रहा हो पर सचाई ये है की उसके जीवन की दौड़ का अंत हो गया
इस दोनों घटनाओं को बताने का तात्पर्य केवल इतना सा है की
हम किसी दूसरे की सफलता देख कर उस व्यक्ति से अपनी तुलना करने लगते हैं
हमें नहीं पता के उस व्यक्ति सफलता जो दिख रही है ,
उसकी नीव कितनी मजबूत है
उस व्यक्ति ने उस सफलता को पाने के लिए जीवन की क्या कीमत दी है
शायद अपना स्वास्थय ,
शायद अपना पारिवारिक सुख-शांति ,
या फिर शायद अपना चरित्र ही
हो सकता है उसकी ये चमक-दमक दिखावा हो
या हो सकता है
सच में उस व्यक्ति ने हमसे ज्यादा शारीरिक और मानसिक श्रम किया हो
और वाकई वो हमसे बेहतर जीवन का का योग्य पात्र हो
हम इस सब में से कुछ भी तो नहीं जानते
और इन सब बातों पर हमारा कण्ट्रोल भी कहाँ है ?
हमारा कण्ट्रोल तो बस हमारे स्वयं के आचरण पर है
सच कहें तो
हमारे हाथ में केवल हमारा कर्म है
और उसका फल भी हमारे वश में नहीं है
फल मिलेगा
कब मिलेगा , कितना मिलेगा , या मिलेगा भी या नहीं
कौन जानता है
आने वाले कल में क्या छुपा है हमें नहीं पता
और हम बेवजह किसी दूसरे के जीवन से अपना जीवन कम्पेयर कर-कर के
अपनी जान हलकान करते रहते हैं
जबकि हमें उस दूसरे व्यक्ति के जीवन,
उसके जीवन-संघर्ष के बारे में कुछ भी नहीं पता
मुझे तो लगता है की
मेरे हाथ में सिर्फ मेरा कर्म है , और कुछ भी नहीं
तो मेरा द्वन्द भी सिर्फ खुद से है और किसी से नहीं
मुझे हर आने वाले दिन में स्वयं को , जो मैं आज हूँ उससे बेहतर बनाना है ,
हर रोज़
" मेरा द्वन्द भी सिर्फ खुद से है "
यही जीवन-मंत्र है
#मन7 #जीवन #jeewan #jiwan manojgupta0707.blogspot.com
"आगे बढ़ना है "
" नए शिखर छूने हैं "
" चलना ही जीवन है और रुकना मौत "
और ऐसी ही कुछ बहुत सारी बातें :)
बढ़ना है,
जीतना है
ये सबको पता है
पर मुझे किस और बढ़ना है ?
मुझे किसको जीतना है ?
क्या सही में हमको ये पता है
जबकि यही पता करना तो सबसे ज्यादा जरूरी है
अन्य सभी लोगों की तरह
जीवन में मैंने भी लोगों से खूब इर्षा की है
लोगों को आगे बढ़ते देख,
खूब पैसा कमाते देख
मैं भी जला हूँ, कुढ़ा हूँ :)
(और इस जलन और कुढ़न की एक बहुत बुरी बात ये है की
अक्सर ये अपने आस-पास के लोगों से ही सबसे ज्यादा होती है
जैसे दोस्त, नज़दीकी रिश्तेदार, पड़ोसी आदि आदि
अब मुझे या आपको मुकेश अम्बानी से तो जलन नहीं होती ना :) )
मेरे साथ भी जीवन में ऐसा कम से कम दो बार तो हुआ है
जब अपने ही किसी बहुत पास के व्यक्ति से मुझे ये ईर्ष्या हुयी ही है
एक शख्स से तो मेरे पापा मुझे कम्पेयर करते थे
और बार-बार याद दिलाते थे
की वो कितना कामयाब है और मैं कितना नाकामयाब :)
दुसरे शख्स से मैं खुद ही अपने आप को कम्पेयर करने लगा
और उसकी कामयाबी देखकर परेशान रहने लगा
वो पापा के एक गहरे दोस्त का बेटा था
पापा और उनके वो दोस्त रोज़ शाम को मिलकर ताश खेला करते
और घर-परिवार की , दीन-दुनिया की बातें कर अपना समय बिताते
जब भी मुझे सुबह-सुबह तलब कर ये समझाया जाता की मैं कितना नाकारा हूँ
मैं समझ जाता की पापा के दोस्त के उस बेटे ने फिर कोई नयी तरक्की की है
जिसका दुःख और जलन पापा के मन में है
और उस दुःख की छाया में
मेरा मन , मेरा आत्मविश्वास , मेरा स्वाभिमान
सब बिखर जाता और मैं पापा को कभी ये समझा नहीं पाता की
मैं भी कोशिश कर रहा हूँ, अपनी पूरी क्षमता के साथ
आज पापा के दोस्त का वो बेटा दुर्भाग्य से इस दुनिया में नहीं है
अभी कुछ ही साल पहले उसने स्वयं अपना जीवन ख़त्म कर लिया था
ये दुखभरा कदम लेने से पहले शायद उसने अति-आत्मविश्वास में कुछ ऐसे काम भी किये की
अपने परिवार की पूरी जायदाद से भी दो गुना क़र्ज़ मरते समय उसके सर पर था
जिसे चुकाना उसे असंभव लगा
और उसने अपना जीवन समाप्त कर लिया
दूसरे केस में मैंने खुद अपने को अपने एक पुराने स्कूल सहपाठी से कम्पेयर करना शुरू कर दिया
मेरा वो सहपाठी स्कूल के दिनों में पढ़ाई में मुझसे कोसों पीछे था
पर अब मेरे ही बिज़नेस में , मुझसे मीलों आगे
वो जब-जब मुझसे बिज़नेस मीटिंग्स में मिलता
तो उसकी तरक्की और उड़ान देखकर मुझे हमेशा ईर्ष्या होती
मुझे हमेशा लगता की जब मैं पढ़ाई में उससे इतना आगे था तो ,
आज भी मैं आगे क्यों नहीं हूँ ?
जब मैं पढ़ाई आगे था तो मतलब मेरा दिमाग उससे ज्यादा है
तो फिर आज मैं पीछे क्यों हूँ ?
दुःख की बात है की आज वो सहपाठी भी इस दुनिया में नहीं है
अभी कोरोना काल में उसका देहांत हुआ
कोई कहता है कोरोना से देहांत हुआ ,
कोई कहता है ज्यादा शराब पीने से लिवर पहले ही खराब था
कारण कुछ भी रहा हो पर सचाई ये है की उसके जीवन की दौड़ का अंत हो गया
इस दोनों घटनाओं को बताने का तात्पर्य केवल इतना सा है की
हम किसी दूसरे की सफलता देख कर उस व्यक्ति से अपनी तुलना करने लगते हैं
हमें नहीं पता के उस व्यक्ति सफलता जो दिख रही है ,
उसकी नीव कितनी मजबूत है
उस व्यक्ति ने उस सफलता को पाने के लिए जीवन की क्या कीमत दी है
शायद अपना स्वास्थय ,
शायद अपना पारिवारिक सुख-शांति ,
या फिर शायद अपना चरित्र ही
हो सकता है उसकी ये चमक-दमक दिखावा हो
या हो सकता है
सच में उस व्यक्ति ने हमसे ज्यादा शारीरिक और मानसिक श्रम किया हो
और वाकई वो हमसे बेहतर जीवन का का योग्य पात्र हो
हम इस सब में से कुछ भी तो नहीं जानते
और इन सब बातों पर हमारा कण्ट्रोल भी कहाँ है ?
हमारा कण्ट्रोल तो बस हमारे स्वयं के आचरण पर है
सच कहें तो
हमारे हाथ में केवल हमारा कर्म है
और उसका फल भी हमारे वश में नहीं है
फल मिलेगा
कब मिलेगा , कितना मिलेगा , या मिलेगा भी या नहीं
कौन जानता है
आने वाले कल में क्या छुपा है हमें नहीं पता
और हम बेवजह किसी दूसरे के जीवन से अपना जीवन कम्पेयर कर-कर के
अपनी जान हलकान करते रहते हैं
जबकि हमें उस दूसरे व्यक्ति के जीवन,
उसके जीवन-संघर्ष के बारे में कुछ भी नहीं पता
मुझे तो लगता है की
मेरे हाथ में सिर्फ मेरा कर्म है , और कुछ भी नहीं
तो मेरा द्वन्द भी सिर्फ खुद से है और किसी से नहीं
मुझे हर आने वाले दिन में स्वयं को , जो मैं आज हूँ उससे बेहतर बनाना है ,
हर रोज़
" मेरा द्वन्द भी सिर्फ खुद से है "
यही जीवन-मंत्र है
#मन7 #जीवन #jeewan #jiwan manojgupta0707.blogspot.com
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