Tuesday, July 22, 2014

हर गुफ्तगू के पहर (sher)


हर गुफ्तगू के पहर,
तुम्हारा वो झूठा गुस्सा

"तुमने ऐसा क्यूँ कहा ? "
"तुमने ऐसा क्यूँ किया  ? "
"अब फिर से क्यूँ ? "
"आज के बाद तो कभी नहीं "


मैं हर हुक्म बजा लाता तेरा ,
खुदा जान के 
तुम क्यूँ नहीं बन गयी थी ,
रहबर मेरी
तुम साथ तो चलती बनकर ,
हमसफर मेरी।

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