" जब पहल- पहल देखा उसको
हसीन गुलाब सी थी वो ,
फलक ( आसमान) पे मुस्कुराता हुआ
महताब ( चाँद ) सी थी वो
लोग कहते रहे मुझको
इतनी कमाल कहाँ है वो *मन* ?
*मन* ये कहता रहा के
शब्दकोष भी कम है जो उसे परिभाषित करे
तू क्या जाने के
सारी कायनात की जद्दोजहद में बस है वो
कैसे कहूँ , पर क्यों ना कहूँ
के सारी कायनात है वो
जब पहल- पहल देखा उसको
तो हसीन गुलाब सी थी वो ,
फलक (आसमान) पे मुस्कुराता हुआ
महताब ( चाँद ) सी थी वो "
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