बात उन दिनों की है
जब हम त्रिनगर रहा करते थे और शरीर और आँखों दोनों की सेहत बनाने रोज़ सुबह तड़के,
दोस्तों का सारा लाव-लश्कर लेकर लारेन्स रोड के हथौड़ा राम पार्क जाया करते थे
हम कोई ग्यारहवीं-बाहरवीं कक्षा में रहे होंगे
सो बात होगी करीब 1990 के आस-पास की
वैसे ये हथौडाराम पार्क हमारे घर से ज्यादा से ज्यादा कोई दो-तीन किलोमीटर ही दूर रहा होगा
पर साहब पैदल कौन चले
सो स्कूटर ,मोटर साइकिल जो भी मिले ,उसी पर सवारी होती थी
हेलमेट अमूमन होता नहीं था
होता भी होगा तो हमसे लगाया नहीं जाता था
अरे यार हेलमेट लगाने से हमारा चार्मिंग चेहरा छुप जाता था ना :)
और स्कूटर/मोटर साइकिल को लॉक करके खड़ा करना भी हमारी शान के खिलाफ था
तो एक भले दिन तड़के भोर ही मैं ,भारत ,लाला ...
( अब हम तीनो तो थे ही ,एक दो जन और भी जरूर रहे होंगे पर अब याद नहीं कौन-कौन और था )
पहुंच गए हथोड़ाराम पार्क
स्कूटर खड़ा किया पार्क के गेट के बाहर
और अपन सब तो मस्त चले गए पार्क में मटरगश्ती करने
एक घंटे बाद बाहर आते है तो
देखते क्या हैं की
एक चोर हमारा स्कूटर स्टार्ट कर बस भागने की फ़िराक में ही है
हम सारे तो ये भागे और वो भागे
और जा पकड़ा साले को
और फिर हम चारों -पाँचो ने मिलकर उसका जो कुटापा उतारा है की
ये साला चोर बार-बार कुछ बोलना चाहता था
पर हमने साले की इतनी पूजा की कि उसकी बोलती ही बंद कर दी
उस चोर की भरपूर पूजा के बाद
अब सलाह ये बनी की इस साले चोर को थाने में दे दिया जाए
तो अच्छा शहरी होने का फ़र्ज़ भी पूरा हो जाए
और पुलिस की शाबासी भी मिले
तो साहब उस चोर को सबने मिलकर ऐसे जकड़ा जैसे ऑक्टोपस अपनी अनगिनत भुजाओ से अपने शिकार को जकड़ता है
और पहुंच गए पुलिस थाना लॉरेंस रोड
सबके कॉलर ऊँचे थे
अरे क्यों ना हो इतना नेक काम जो किया था
एक चोर पकड़ा था
अभी जैसे ही हम थाने के गेट के अंदर पहुंचे
एक पुलिस सिपाही भागता हुआ हमारी तरफ ही आया
हम सब समझ गए वो हमें शाबासी देने आ रहा है :)
हमारे कॉलर और हमारी गर्दन कुछ और तन गयी
पास आते ही वो पुलिस सिपाही उस चोर से बोला
"रे सतबीर यो के होया रे
किसने मारा तने ?
तू तो आज हथोड़ाराम पार्क रोड पे ड्यूटी पे था
अरे बोल ना के होया "
इतना सुनना था
हम सबकी सांस ऊपर की ऊपर
नीचे की नीचे
ऑक्टोपस की मजबूत पकड़ एकदम से ढीली पड़ गयी
कॉलर और गर्दन ही नहीं
बल्कि हमारी वो मूंछे जो अभी ठीक से उगी भी नहीं थी
यू शेप से एकदम से एन शेप हो गयी :)
असल में वो चोर कोई चोर नहीं बल्कि पुलिस सिपाही सतबीर था
जो उस दिन हथोड़ाराम पार्क रोड पे सादी वर्दी में ड्यूटी पे था
उस रोड पे कई गर्ल्स स्कूल थे
तो सुबह सुबह आवारा लड़कों का एक हुजूम स्कूटर और मोटर-साइकिल पर स्कूल जाने वाली लड़कियों को छेड़ने आया करता था
उस दिन अपनी ड्यूटी के दौरान ही सिपाही सतबीर ने हमारा स्कूटर चेक किया
अब जैसा की मैंने पहले ही बताया की हेलमेट के साथ-साथ स्कूटर में लॉक लगाना भी हमारी शान के खिलाफ था
सो सादी वर्दी में ड्यूटी पे तैनात सिपाही सतबीर हमारे बिना लॉक वाले आवारा खड़े स्कूटर को थाने ले जा रहा था
जब हमने उसे चोर समझ कर पकड़ा और उसकी खूब पूजा कर दी :)
वैसे थाने में पूजा तो हम सबकी भी खूब हुयी :)
थानेदार साब कहने रहे
"रे सतबीर छोड दे
बालक हैं "
पर सतबीर सिपाही ने तो ना थानेदार की एक सुनी न हमारी दो
उसने तो उस दिन अपनी बरसों की तमन्ना खूब तबीयत से पूरी की
और उस दिन भरपूर पूजा के बाद ही हमसब को घर जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ
और यकीन मानिये
वो दिन है और आज का दिन है
हम सब ने कभी फिर कोई चोर नहीं पकड़ा :))
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