एक ज़माना बीत गया
जलते जलते ...
अब जाके उसने आह सुनी
जलते जलते ...
अब जाके उसने आह सुनी
जब मैंने कहा..."अलविदा"
चलते चलते
चलते चलते
बहुत कुछ बाकी रह गया
जो कहना था जो सुनना था
कुछ तो मेरी दीवानगी और उस पर तुर्रा की आवारा तबियत
कुछ उसका भी दम्भ-इ-खूबसूरती और कुछ बेपरवाह तबियत
No comments:
Post a Comment