साँवरे की सखी हो तुम
फिर भी ताउम्र ...भट्टे में तपती हो
जन्म लेने को भी एक युद्ध लड़ना पड़ता है
तब कहीं जाकर , बच - बचाकर बचती हो तुम
क्या अपने क्या बेगाने
हरेक नोचता - खसोटता है तुमको
कभी चुप रहती हो , कभी क्षीण प्रतिरोध करती हो
और कभी हलाहल (जहर) पी लेती हो तुम
कभी अपह्रत (kidnap) की जाती हो
और कभी निर्वस्त्र जंघा पर बिठाई जाती हो
सब आँखें सेंकते रहते हैं
सांवरे के आने से बचती हो तुम
पर और कब तक तुम सांवरे के भरोसे रहोगी ?
निरीह अश्रु नेत्रों से बस प्रार्थना करोगी
अगर कभी सांवरा भी बदल गया तो ?
वो भी बस एक आम पुरुष बन गया तो ?
तब क्या तुम अपने को यूँही नग्न होने दोगी
अपने पंखों को नुचवाओगी और पड़ी रहोगी
सोचो , आखिर कब तब तक लम्हा लम्हा मरोगी तुम ??
साँवरे की सखी हो तुम
फिर भी ताउम्र ...भट्टे में तपती हो
जन्म लेने को भी एक युद्ध लड़ना पड़ता है
तब कहीं जाकर , बच - बचाकर बचती हो तुम ।
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