Friday, November 7, 2014

मै तुझसे फिर मिलूंगा ( कविता )

(  मैं पहले ही ये कह दूँ की मेरी ये कविता अमृता प्रीतम जी की कविता से प्रेरित है
मैं खुद को रोक ही नहीं पाया इस कविता के साये में अपने जज्बात व्यक्त करने को  )
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मै तुझसे फिर मिलूंगा
कब...कहाँ......
किस तरह.....
पता नहीं .

शायद तेरी क्लास का बैकबेंचेर स्टूडेंट बनके
तुझको टीज़ करूंगा
या फिर तेरे ब्लैकबोर्ड के कोने में एक अधमिटा चित्र रहके
तुझको खामोश तकता रहूंगा.
पता नहीं किस तरह ...
और कैसे..
पर मै तुझसे जरूर मिलूंगा.

जब सुबह को तू सैर को निकलेगी
मै ठंडी हवा बनके तेरे गालों को छू लूँगा
या फिर नरम नरम घास बनके तेरे कदमो का चुम्बन लूँगा
मुझको खुद पता नहीं कैसे,
और कहाँ ...
पर मै मिलूंगा.... जरूर मिलूंगा.

सर्दियों की रातों में जब तू अलाव जलायेगी
मै एक तपिश बनके तेरी हथेलियों के बीच पिसता रहूँगा
या फिर एक बेरहम अंगारा उड़ के तेरी शाल में एक छेद बनूँगा
मै सच में नहीं जानता कहा और कैसे..
पर इतना जानता हु के मै तुझ से मिलूंगा
जरूर मिलूंगा

ये जिस्म ख़तम होता है
तो सबकुछ ख़त्म नहीं हो जाता
यादो के मीठे जख्म कायनात तक साथ रहते है
मै उन जख्मो के मीठे दर्द को हमेशा पोसता रहूँगा.
और कभी न कभी तुझसे जरूर मिलूंगा
पर पता नहीं कैसे..
कब..
और कहा...
पर जरूर मिलूंगा..

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