Thursday, May 18, 2017

पल पल लड़ता हूँ ख़ुद से मगर

पल पल लड़ता हूँ ख़ुद से मगर 
हार जाता हूँ

सोचता हूँ कुछ बेरुख़ी मैं भी ओढ़ूँ
मेरी बात मनवाने की जानिब पर...
कर नहीं पाता हूँ

तुम ना मानते हो ना हठ छोड़ते हो
उलटा मेरा ही दर्द बढ़ता जाता है


कभी कभी...तुम भी.. चाहे झूठा ही सही
कुछ तो....कभी तो..चाहे थोड़ा ही सही


इतना तो ध्यान करो ज़ाना मेरी
सदियाँ से जल रहा है दीवाना तेरा...निरंतर...

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