पल पल लड़ता हूँ ख़ुद से मगर
हार जाता हूँ
सोचता हूँ कुछ बेरुख़ी मैं भी ओढ़ूँ
मेरी बात मनवाने की जानिब पर...
कर नहीं पाता हूँ
तुम ना मानते हो ना हठ छोड़ते हो
उलटा मेरा ही दर्द बढ़ता जाता है
कभी कभी...तुम भी.. चाहे झूठा ही सही
कुछ तो....कभी तो..चाहे थोड़ा ही सही
इतना तो ध्यान करो ज़ाना मेरी
सदियाँ से जल रहा है दीवाना तेरा...निरंतर...
हार जाता हूँ
सोचता हूँ कुछ बेरुख़ी मैं भी ओढ़ूँ
मेरी बात मनवाने की जानिब पर...
कर नहीं पाता हूँ
तुम ना मानते हो ना हठ छोड़ते हो
उलटा मेरा ही दर्द बढ़ता जाता है
कभी कभी...तुम भी.. चाहे झूठा ही सही
कुछ तो....कभी तो..चाहे थोड़ा ही सही
इतना तो ध्यान करो ज़ाना मेरी
सदियाँ से जल रहा है दीवाना तेरा...निरंतर...
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