माना कि तुझसे कुछ पल बे-परवाह रहा हूँ मैं
पर ख़ुद का भी कहाँ हर पल अपना रहा हूँ मैं
तू भी कहाँ कब ..वो शब्द कहती है कभी
ताउम्र ..वो एक शब्द सुनने को
जलता रहा हूँ मैं
माना कि तुझसे कुछ पल बे-परवाह रहा हूँ मैं
पर ख़ुद का भी कहाँ हर पल अपना रहा हूँ मैं।
पर ख़ुद का भी कहाँ हर पल अपना रहा हूँ मैं
तू भी कहाँ कब ..वो शब्द कहती है कभी
ताउम्र ..वो एक शब्द सुनने को
जलता रहा हूँ मैं
माना कि तुझसे कुछ पल बे-परवाह रहा हूँ मैं
पर ख़ुद का भी कहाँ हर पल अपना रहा हूँ मैं।
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