ये कविता मैंने 2 -3 साल पहले लिखी थी
(यानि CORONO आने से काफी पहले)
मैं जब भी किसी सार्वजनिक जगह पे होता हूँ तो
अक्सर लोगों के चेहरों को गौर से देखता हूँ
और अधिकतर लोगों को उदास और चिंतित ही पाता हूँ
रेड लाइट पे रुकते ही ये साफ़ दीखता है फिर चाहे कोई महंगी कार चला रहा हो,या फिर टेम्पो या फिर इ-रिक्शा
सबके चेहरे पे चिंता,दुःख,उदासी है और अपने ही में खोये से
जैसे के शरीर से यहाँ होते हुए भी मन से किसी और ही जगह हों ,चिंतित हों
ऐसा ही नज़ारा एयरपोर्ट पे अपनी फ्लाइट का इंतज़ार करते लोगों में भी दिखता है
तो फिर पैसे का कम या ज्यादा होना तो इसका कारण नहीं हो सकता
ये कुछ और ही है
(केवल बच्चे इस प्रभाव से अलग प्रफुल्लित दीखते हैं
तो फिर हमें अपने बचपन को ढूंढ कर मुस्कुराते रहना होगा )
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तेरी आँखों में एक तूफ़ानी नदी दिखती है
जैसे कही दौड़ के पहुंचने की उफन सी है
तू कहाँ देखता है किसी दूसरे के चेहरे को
लगता है तुझे अपने ही चेहरे से नफ़रत सी है
तेरे माथे की शिकन अब ,वाबस्ता लकीरें बन चुकी
हर पल की तेरी सोच इसे और पकाती सी है
एकटक तेरा देखते रहना ,अपने ही मोबाइल में
जैसे किसी बुरी ख़बर को पाने की हड़बड़ी सी है
या उसमें ढूँढते रहना किसी अनजाने को
वो जो तुझे ताक रहा कनखियों से,फिर उसका क्या है :)
क्या खो जाएगा तेरा तू आगे बढ़ बच्चा बनकर
पहल कौन करे वोभी यही सोच रहा अच्छा बनकर
उठ..चल..हाथ बढ़ा..एक मुस्कुराहट तू पहन
सब बन जाएँगे तेरे, तू कर उम्मीद और जतन
ज़्यादा ना सोच..इस पल में जी..जो पल बस अभी बीत रहा
इस पल ही में जीवन है इसके सिवा तो कुछ भी नहीं
तू जैसा है ...जहाँ है ..वही से आगे तू निकल
तू ना जीत सके इतना अजेय तो कुछ भी नहीं
तेरी आँखों में एक तूफ़ानी नदी दिखती है
जैसे कही दौड़ के पहुंचने की उफन सी है।
(यानि CORONO आने से काफी पहले)
मैं जब भी किसी सार्वजनिक जगह पे होता हूँ तो
अक्सर लोगों के चेहरों को गौर से देखता हूँ
और अधिकतर लोगों को उदास और चिंतित ही पाता हूँ
रेड लाइट पे रुकते ही ये साफ़ दीखता है फिर चाहे कोई महंगी कार चला रहा हो,या फिर टेम्पो या फिर इ-रिक्शा
सबके चेहरे पे चिंता,दुःख,उदासी है और अपने ही में खोये से
जैसे के शरीर से यहाँ होते हुए भी मन से किसी और ही जगह हों ,चिंतित हों
ऐसा ही नज़ारा एयरपोर्ट पे अपनी फ्लाइट का इंतज़ार करते लोगों में भी दिखता है
तो फिर पैसे का कम या ज्यादा होना तो इसका कारण नहीं हो सकता
ये कुछ और ही है
(केवल बच्चे इस प्रभाव से अलग प्रफुल्लित दीखते हैं
तो फिर हमें अपने बचपन को ढूंढ कर मुस्कुराते रहना होगा )
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तेरी आँखों में एक तूफ़ानी नदी दिखती है
जैसे कही दौड़ के पहुंचने की उफन सी है
तू कहाँ देखता है किसी दूसरे के चेहरे को
लगता है तुझे अपने ही चेहरे से नफ़रत सी है
तेरे माथे की शिकन अब ,वाबस्ता लकीरें बन चुकी
हर पल की तेरी सोच इसे और पकाती सी है
एकटक तेरा देखते रहना ,अपने ही मोबाइल में
जैसे किसी बुरी ख़बर को पाने की हड़बड़ी सी है
या उसमें ढूँढते रहना किसी अनजाने को
वो जो तुझे ताक रहा कनखियों से,फिर उसका क्या है :)
क्या खो जाएगा तेरा तू आगे बढ़ बच्चा बनकर
पहल कौन करे वोभी यही सोच रहा अच्छा बनकर
उठ..चल..हाथ बढ़ा..एक मुस्कुराहट तू पहन
सब बन जाएँगे तेरे, तू कर उम्मीद और जतन
ज़्यादा ना सोच..इस पल में जी..जो पल बस अभी बीत रहा
इस पल ही में जीवन है इसके सिवा तो कुछ भी नहीं
तू जैसा है ...जहाँ है ..वही से आगे तू निकल
तू ना जीत सके इतना अजेय तो कुछ भी नहीं
तेरी आँखों में एक तूफ़ानी नदी दिखती है
जैसे कही दौड़ के पहुंचने की उफन सी है।
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