Saturday, February 3, 2024

JUNGLE CAT | HINDI KAHAANI | PART - 3


सहगल साहब चुपचाप आकर मोहन के बराबर वाली कुर्सी पर बैठ गये 

भयंकर सर्दी , हड्डियां कंपकंपा देनी वाली ठंडी तेज़ हवा , उसपर अलाव की तेज़ गर्म आंच 

और उसपर मोहन के फोन पर बज रही ग़ज़ल 

" अबके हम बिछड़े , तो शायद कभी ख्वाबों में मिलें 

जैसे सूखे हुए कुछ फूल किताबों में मिलें "

अहमद फ़राज़ SAAHAB की शायरी और मेहदी हसन साहब की मखमली आवाज़ 

सहगल साहब सख्त आदमी थे 

पर वहाँ उस माहौल में जाने क्या था की अचानक काफी भावुक हो गये 

उन्होंने पास बैठे मोहन के कंधे पर हाथ रखा और भीगे हुए स्वर में बोले 

" I AM SORRY

REALLY SORRY "

सहगल साहब ने मोहन से माफ़ी क्या मांगी , मोहन तो जैसे खुद पानी - पानी हो गया 

उसने मोबाइल पर बज रही ग़ज़ल की आवाज़ को धीमा किया और वो भर्राये गले से बोला

" सहगल साहब आप प्लीज माफ़ी ना मांगें , आप बड़े हैं ,

कुछ कड़वा कह भी दिया तो कोई बात नहीं "

" वैसे आपकी फॅमिली खुश है ना हमारे होटल में ? '

" कोई तकलीफ हो तो बताइयेगा "

" और हाँ आपको ऐसे ... इतनी सर्दी में बगैर शाल के बाहर नहीं आना चाहिए था ,

आप ये कम्बल ले लीजिये "

और इतना कहते हुए मोहन ने पास रखा एक कम्बल उठाया और उठकर खुद ही सहगल साहब को ओढ़ा दिया 

सहगल साहब सोच रहे थे की ये कैसा इंसान है ?

इसको मैंने इतना जलील किया पर इसने बुरा भी नहीं माना 

और उलटा इतना महँगा रूम फ्री में दे दिया और अब और सेवा पूछ रहा है 

ये इंसान आखिर है क्या ??

सहगल साहब अभी भी जैसे अपनी सोच में ग़ुम थे की मोहन फिर बोल पड़ा 

" सर आप ड्रिंक लेंगे ?? "

" वैसे सर्दी काफी ज्यादा है , तो ब्लैक लेबल ठीक रहेगा "

सहगल साहब ने हाँ में गर्दन हिला दी

और मोहन ने WALKY - TALKY पर अंदर होटल किचेन में शेफ को और गर्म स्नैक्स लाने के लिए बोल दिया 

और होटल बार को सहगल साहब के लिए ड्रिंक्स लाने के लिए 

" आप अच्छे इंसान हैं मोहन जी "

सहगल साहब की इस बात पर मोहन ने शरारती अंदाज़ में बस इतना कहा 

" जी मुझे मालूम है  "

मोहन के इतना कहने से ही जैसे उन दोनों के बीच की वो सर्द बर्फ पिघल गयी हो 

वो दोनों देर तक इस बात पर ठठ्ठा कर हँसते रहे 

और फिर ड्रिंक , गरमागरम स्नैक्स और बातों का वो दौर उस रात अगले दो घंटे चला 


अगले दिन सुबह सहगल साहब नाश्ते के बाद होटल लॉबी आकर बैठ गए थे 

पूरी लॉबी टूरिस्ट्स से खचाखच भरी हुयी थी 

कोई हनीमून कपल , तो कोई उनकी तरह के बूढ़े लोग 

कोई बहुत ही शांत लोग तो कोई एकदम लाऊड 

किसी का चेक इन , तो किसी का चेक आउट 

किसी का बिल पेमेंट , तो किसी का " मेरे बिल में एक रोटी के पैसे ज्यादा लगे हैं " वाला हसाउ आर्गुमेंट 

तो किसी का खुद आगे बढ़कर बताना की उनका बिल ज्यादा होना चाहिए , शायद कुछ जुड़ने से छूट गया है 

हर ग्रुप हर परिवार की अलग ही स्टोरी थी यहाँ 

उनकी खुद की पूरी फॅमिली आज ट्रैकिंग करने चली गयी थी 

पर वो खुद होटल में ही रुक गए थे 

पिछली सारी रात से लेकर अब तक वो यही सोचते रहे थे की इस इंसान मोहन की कोई तो कहानी है 

कुछ तो अलग हुआ है इसकी लाइफ में 

रात को ड्रिंक करते करते भी उसने घुमा - फिरा कर कई बार मोहन को कुरेदने की कोशिश की थी 

पर मोहन हर बात को मज़ाक में टालता रहा था 

तभी उन्हें ख़याल आया की रात को उनकी ड्रिंक का बिल उन्होंने साइन नहीं किया है 

तो जैसे ही होटल काउंटर कुछ खाली हुआ तो वो काउंटर पर पहुँच गये और बोले 

" देखिये मेरा कल रात का 4 लार्ज ब्लैक लेबल ड्रिंक्स और स्नैक्स का बिल होगा "

" दे दीजिये साइन कर देता हूँ "

काउंटर पर कड़ी एक नौजवान लड़की ने अपने कंप्यूटर पर कुछ चेक किया और बोली 

" सर आप सहगल सर हैं क्या ? "

सहगल साहब ने मुस्कुराकर हां में गर्दन हिलाई 

" अरे सर आपके इस बिल के चक्कर में आज सुबह सुबह बहुत डाँट खाई मैंने "

इतना कहकर वो लड़की खुलकर मुस्कुराई 

" नहीं बेटे आपको डाँट क्यों पड़ेगी , कल रात काफी हो गयी थी "

" किसी ने मुझे बिल दिया भी नहीं , वरना मैं तो रात को ही साइन कर देता "

" और चलो अब तो मैं आ ही गया हूँ , आप अभी साइन करा लो "

सहगल साहब ने इतना कहा तो अब तो वो रिसेप्शनिस्ट लड़की और तेज हॅसने लगी 

" अरे नहीं सर , आप गलत समझ रहें हैं "

" डाँट तो मुझे सुबह पड़ चुकी 

पर बिल साइन ना कराने के लिए नहीं , बल्कि आपका बिल बनाने के लिए "

" मैं तो रोज सुबह आती हूँ तो बार का हिसाब चेक करती हूँ और बिल बनाती हूँ "

" आज आते ही मैंने आपका बिल बनाया और आपसे साइन कराने बस अभी वेटर को भेज ही रही थी 

की सर आ गए "

" और फिर वो जो चिल्लाये हैं मुझपर ... " 

" गज़ब ...

दो सालों से यहाँ " JUNGLE CAT " में काम कर रही हूँ ,

मैंने तो आज सुबह पहली बार सर को इतने गुस्से में देखा है "

" कहने लगे -

उन्होंने मेरे साथ ड्रिंक किया है ना , तो वो मेरे मेहमान हुए ना  ,

तो तुमने उनके नाम में बिल क्यों बनाया , तुम उनका बिल भी मेरे अकाउंट में लिखो "

" मैंने कहा भी - सर 4800 /- का बिल है , आप क्यों अपने अकाउंट में लेते हो ..... "

इतना कहते कहते अब वो रिसेप्शनिस्ट रुक गयी 

शायद उसे लगा की वो कुछ ज्यादा बोल गयी है और उसे कहीं और डाँट ना पड़ जाये 

" सर आपके लिए कुछ चाय - कॉफ़ी मँगवाऊं ? "

वो फिर धीरे से बोली 

सहगल साहब ने उस रिसेप्शनिस्ट का नेमटेग देखा " सुरभि नौटियाल "

" थैंक्स सुरभि "

और वो फिर आकर होटल लॉबी के उसी सोफे पर बैठ गये और आते जाते टूरिस्ट्स को ताकने लगे 


 

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