Saturday, February 3, 2024

JUNGLE CAT | HINDI KAHANI | PART - 9

नेहा की बात सुनकर अब मोहन जी अपना आपा खो बैठे 

और चिल्लाकर बोले 

" यू प्लीज गेट आउट फ्रॉम माय केबिन "

और नेहा रोते हुए उनके केबिन से बाहर निकल गयी 


" सहगल सर आप तुरंत बिनसर आ जाइये "

मोहन ने सहगल साहब को फ़ोन मिलाकर तुरंत से बिनसर आने को कहा था 

असल में कल रात नेहा ने खूब सारी शराब के साथ नींद की गोलियाँ खा ली थी 

और सुबह जब रूम क्लीन करने के लिए क्लीनर उनके रूम पर गयी तो रूम का गेट खुला हुआ मिला

और नेहा अपने बिस्तर पर बेसुध पड़ी थी 

मोहन ने तुरंत उसे पास के हॉस्पिटल में शिफ्ट कराया और सहगल साहब को फोन कर दिया 


सात घंटे बाद ही सहगल साहब बिनसर में थे 

मोहन को हैरानी हुयी थी क्योंकि वो अपने ड्राइवर के साथ अकेले ही आये थे

जबकि उसने उन्हें बता दिया था की नेहा ने आत्महत्या की कोशिश की है 

फिर भी सहगल साहब का कोई और परिवार वाला यहाँ तक की नेहा का भाई या पति भी उनके साथ नहीं आये थे 

" मोहन जी , आपका बहुत बहुत शुक्रिया "

" वो पुलिस केस तो नहीं .....  "

सहगल साहब बार- बार मोहन जी का शुक्रिया कर रहे थे 

" सर यहाँ कुछ तो जान पहचान है ,

तो मैंने डॉक्टर सोनल को मना लिया की वो अगर वो suiside का नहीं बल्कि फ़ूड poisioning का केस बना सके "

" और इंस्पेक्टर प्रकाश ने भी अब तक कोई ऑफिसियल डॉक्यूमेंट नहीं बनाया है "

" पर अगर होश में आने के बाद नेहा ने कोई हरकत फिरसे की तो पुलिस केस जरूर बन ही जाएगा "

" आखिर डॉक्टर और पुलिस दोनों को भी अपनी पोजीशन को सेव करना है "

" और हाँ उन दोनों को ही कुछ तो कम्पनसेट करना पडेगा "

" आप तो जानते ही है की कैसे चलता है "


कुछ दिनों की भाग दौड़ के बाद सब सेटल हो गया था 

इंस्पेकटर प्रकाश को अपनी फी मिल गयी थी और डॉक्टर सोनल को उनके प्राइवेट हॉस्पिटल का मोटा बिल 

अब तक नेहा को भी होश आ चुका था 

सहगल साहब हर पल उसके साथ ही थे 

मोहन भी रोज हॉस्पिटल तो आता था पर नेहा से नहीं मिलता था , बाहर सहगल साहब से मिलकर ही चला जाता था 

पर एक दिन सहगल साहब ने ही मोहन को रिक्वेस्ट किया की नेहा उनसे मिलना चाहती है 

तब मोहन को ना चाहते हुए भी नेहा से मिलने जाना ही पड़ा 


" आपने मुझे याद किया था , नेहा जी "

मोहन ने मुस्कुराते हुए नेहा के कमरे में प्रवेश किया और साथ लाये खूबसूरत सफ़ेद फूलों का बुके उसकी ओर बढ़ा दिया 

" जी हाँ , मोहन सर , वो मुझे आपका शुक्रिया अदा करना था "

" आपने मेरी जान बचाई और मेरी इस बेवकूफी को छुपाया भी "

" thanks from bottom of my heart "

इतना कहकर नेहा ने वो मोहन का लाया सफ़ेद फूलों का बुके अपने सीने पर रख लिया था 

इसके बाद उन दोनों के बीच यहाँ वहाँ की बातें होती रही 

मोहन ने कई बार उठाने की कोशिश भी की थी 

पर नेहा ने हर बार कुछ न कुछ कहकर उसे रोक लिया था 

मोहन बार बार सोच रहा था की उसका फोन बजे , या कोई रूम में आये और वो वहाँ से निकले 

पर ऐसा कुछ नहीं हुआ 

आखिरकार मोहन के भाग्य से नर्स ने कमरे में प्रवेश किया 

वो नेहा को स्पॉन्ज देना चाहती थी 

पर नेहा ने उसको भी आधे घंटे बाद आने का कहकर टाल दिया था 

अब तक मोहन समझ गया था की कुछ है जो नेहा उससे कहना चाहती पर कह नहीं पा रही है 

" देखिये नेहा जी अगर आप कुछ कहना चाहती हैं तो साफ़ साफ़ कहिये "

" मुझे अब होटल जाना होगा , बहुत सारे काम पेंडिंग पड़े हैं "

अब तक मोहन का धैर्य जवाब दे चुका था 

" मैं आपका नॉवेल चाहती हूँ "

नेहा ने बगैर किसी लाग-लपेट के झटके से सीधा कहा 

नेहा की ये बात सुनकर मोहन सन्न रह गया 

पर कुछ क्षण शांत रहकर वो उठा और बगैर कुछ कहे बाहर जाने के लिए तेजी से गेट की तरफ बढ़ गया 

" सर आप ऐसे नहीं जा सकते 

आप जायेंगें , मैं पुलिस को बयान दे दूंगी की आपने मुझे आत्महत्या के लिए मज़बूर किया था "

नेहा की ये चीख सुनकर मोहन के कदम वहीँ जड़ हो गए 

घृणा से उसका चेहरा तमतमा गया , वो खड़ा खड़ा गुस्से से कांपने लगा था 

वो बहुत कुछ कहना चाहता था , पर चुप रह गया था 

उसे डर था की कहीं कोई गन्दी बात उसके मुँह से ना निकल जाये 

नेहा ही फिरसे बोलने लगी 

" मेरे पास कोई और रास्ता नहीं है सर 

मुझे ये करना ही पड़ेगा "

" या तो खुद मरना पड़ेगा या फिर जीने का एक चांस लेने के लिए आपको मजबूर करना पड़ेगा "

" अब आप ही बताओ आप क्या चुनते ??? "

" खुद की ज़िन्दगी को या मोरालिटी को "

भय , घृणा , क्रोध , मजबूरी , बेबसी 

ऐसे ही जाने कितने ही भाव लिए मोहन धीरे धीरे कदमों से चलता आया और फिरसे नेहा के सामने आकर बैठ गया 

वो गौर से देख रहा था उस लड़की को ,

जो इतनी एहसान फरामोश थी की अपनी ही जान बचाने वाले को झूठे केस में फँसाना चाहती थी 

जो इंसानियत और अच्छाई को बिलकुल भूल चुकी थी 

और इतनी स्वार्थी की बस अपने ही बारे में सोच रही थी 

अगले कुछ क्षण उस कमरे में एक मातम सा छा गया था , जैसे कोई मर गया हो 

" तुम्हे मेरी कहानी चाहिए ना "

" ले लो "

" पर मेरी एक शर्त ....  "

इतना बोलकर मोहन चुप हो गया था 

" आप कहिये मुझे आपकी हर शर्त मंजूर है "

नेहा ने मोहन का वाक्य ख़त्म भी नहीं होने दिया और बोल पड़ी 

मोहन कुछ क्षण तक शांत रहा और फिर उसने कहा 

" तुम्हें मेरे साथ सोना पड़ेगा " , मोहन गुर्राया 

" डन "  नेहा ने एक पल भी सोचे बिना जवाब दिया और मुस्कुराने लगी 

उसकी ये मुस्कराहट मोहन के दिल में शूल की तरह चुभ रही थी 




 

No comments:

Post a Comment