तो अब उसने अपना मास्टरस्ट्रोक भी चल दिया
" मैनेजर साहब आपके पास ब्रांडी होगी "
" मुझे ठण्ड लगती है ना , तो बस ब्रांडी से ही आराम आता है "
नेहा की बात सुनकर मोहन असहज हो गया था और बोला
" मैम , ब्रांडी तो नहीं है , हाँ होटल बार में कुछ व्हिस्की ब्रांड्स होंगें ,
अगर आप को ठीक लगे तो "
" देखिये अगर आपके पास ब्लैक लेबल हो तो आप एक पेग मंगवा दीजिये "
नेहा ने ऐसे जताया ,
जैसे उसके पैरों के बिलकुल पास रखी ब्लैक लेबल की बोतल उसने देखी ही नहीं थी
उसका ऐसा व्यवहार मोहन को और भी असहज कर रहा था
उसे कहना ही पड़ा
" मैम , ब्लैक लेबल तो यहाँ भी है
पर आप अपने रूम में चलिए
आपका स्नैक्स वहाँ पहुँच ही रहा होगा "
" मैं आपके लिए गर्म पानी में ब्लैक लेबल भी वहीँ भिजवाता हूँ "
" यहां तो आपको और भी ठण्ड लग जायेगी "
अब तब नेहा वहाँ कम्फ़र्टेबल हो गयी थी , तो वो बोली
" नहीं आप यहीं सर्व करवा दीजिये "
" और मेरा खाना भी यहीं मंगवा दीजिए "
" यहाँ ठण्ड तो है पर मुझे अच्छा लग रहा है "
नेहा ने अपने दोनों हाथो को आग में तापते हुए धीरे स कहा
मोहन मरे मन से होटल बार और किचेन को walky talky पर निर्देश देने लगा
कुछ ही देर में नेहा के लिए ड्रिंक और उसका स्नैक्स वहीँ सर्व हो गया
उसके बाद मोहन वहाँ से जाने लगा तो नेहा ने उसे रोक लिया , वो बोली
" मैनेजर साहब प्लीज एक मिनट और बैठिये
मुझे आपसे कुछ जरूरी बात करनी थी "
मोहन को बेमन से फिर बैठना पड़ा और नेहा फिर से बोलने लगी
" वैसे ये आपके होटल का नाम ..... JUNGLE CAT क्यों है ? "
नेहा ने एक ही सांस में पूरा गिलास शराब ख़त्म करते हुए कहा था
मोहन हैरानी से उसकी इस हरकत को देखा
" नहीं वैसे ही ख़याल आया था की आपके होटल का नाम ये JUNGLE CAT .....
कुछ अजीब नहीं है ? "
मोहन पहले तो नेहा की बात सुनकर कुछ चकराया , पर फिर संभल कर बोलने लगा
" जी मैम वो यहां पहाड़ों में ये एक ख़ास तरह की बिल्ली पायी जाती है , जिसकी टाँगे काफी लम्बी होती हैं
ये बहुत ही खतरनाक होती है , उसी को JUNGLE CAT कहते हैं "
" तो शायद होटल ओनर ने इसी लिए होटल का नाम JUNGLE CAT रख दिया होगा "
मोहन किसी भी तरह बस नेहा से पीछा छुड़ाना चाहता था
" हूँ ...... बिल्ली के नाम पर , होटल का नाम "
" अचछा है ... बहुत अच्छा है "
इतना कहकर नेहा ने अब खुद ही नीचे रखी शराब की बोतल से ,
अपना गिलास आधा गिलास भर लिया और बाकी पानी मिला लिया
मोहन उसकी इस हरकत से विचलित हो गया था
पर नेहा तो जैसे अब इस स्तिथि का अब तक मज़ा लेने लगी थी
उसने अपना एक हाथ तापते तापते फिर बोलना शुरू किया
" आप भी पीजिये ना , देखिये वो ....... आपका गिलास टेढ़ा सा हो रहा है , गिर जायेगा "
नेहा अपनी ऊँगली से मोहन के गिलास की ओर इशारा करते हुए कहा
मोहन ने आश्चर्य से अपनी चेयर के पीछे रखे ग्लास को देखा और फिर बेमन से उठा लिया
" वैसे मैनेजर साहब एक बात बताइये
ये बिनसर में ....... मुझे एक अच्छी कहानी कहाँ मिलेगी "
( नेहा तो ऐसे पूछ रही थी ,
जैसे किसी हेंडीक्राफ्ट आइटम के बारे में पूछ रही हो की वो पहाड़ की किस दुकान पर मिलेगी )
" अरे मैं तो आपको बताना ही भूल गयी
इंट्रो भी नहीं दिया
" I AM NEHA , NEHA सहगल , THE WRITER "
नेहा ने हाथ मिलाने के लिए आगे बढ़ा दिया
मोहन को भी मजबूरी में हाथ मिलाते हुए कहना ही पड़ा
" जी मैं मोहन ... मोहन गुप्ता "
मोहन ने महसूस किया की नेहा के हाथ पर कुछ खाना लगा था , जो अब हाथ मिलाते हुए अब मोहन के हाथ पर भी लग गया था
मोहन ने मुँह बनाते हुए टिशू से अपना हाथ पोंछा तो नेहा जोर जोर हँसने लगी
" सॉरी ... सॉरी ... सॉरी मोहन जी "
" I AM REALLY वैरी सॉरी "
वो मैं हाथ से खाती हूँ ना , तो मेरा हाथ गंदा था , सॉरी मैंने ध्यान नहीं दिया "
" माफ़ कर दीजिये "
मोहन को " जी कोई बात नहीं " कहना पड़ा
" वैसे मैनेजर साहब मैं ना एक बड़ी राइटर हूँ "
" एक वेब सीरीज की कहानी लिख रही हूँ "
" इसी लिए आपके बिनसर में आयी हूँ "
" पर छे दिन हो गए हैं एक शब्द नहीं लिख पायी DAMMIT "
" आप कुछ आईडिया दीजिये , आप भी तो राइटर हैं ना "
" कुछ हेल्प कीजिये एक दूसरे राइटर की "
नेहा की ये "आप भी तो राइटर हो " वाली बात से मोहन जैसे हथ्थे से ही उखड़ गया
वो एकदम स खड़ा हो गया और आवेश में बोलने लगा
" जी आपको किसी ने बिलकुल गलत कहा है ,
मैं कोई राइटर - वाइटर नहीं हूँ
मैं तो बस बिनसर जैस एक टुच्चे से हिल स्टेशन के टुच्चे से होटल का टुच्चा सा मैनेजर हूँ "
" और दिखिए रात काफी हो गयी है , तो अब आप मुझे माफ़ कीजिये "
" और आप भी अब अपने रूम में जाकर आराम कीजिये "
इतना कहकर मोहन बिना नेहा के किसी जवाब का इंतज़ार किये , तेज़ क़दमों से होटल के अंदर चला गया
नेहा , मोहन के इस व्यवहार से बिलकुल विचलित नहीं हुयी और वहीँ बैठी रही
उसने अपना तीसरा पेग भी सुकून से खत्म किया
और फिर खाने का सामन और बची हुयी शराब की बोतल बगल में दबाये लड़खड़ाती हुयी अपने कमरे में आ गयी
इधर मोहन परेशान सा अपने कमरे में चक्कर लगा रहा था
जिस राज़ को इतने सालों तक उसने अपने सीने में छुपाये रखा था
वो ये छे दिन से होटल में आयी एक अनजान टूरिस्ट नेहा को कैसे पता चल गया
ये उसे बिलकुल समझ नहीं आ रहा था
मोहन ने धड़कते मन से अपनी अलमारी की दराज़ खोली और अपनी डायरी निकालने के लिए हाथ बढ़ाया
पर ... वहाँ कोई डायरी नहीं थी
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