आखिरकार सहगल साहब के दिल्ली वापिस जाने का दिन भी आ ही गया
ऐसे ही हँसते - खेलते , बिनसर घूमते घामते अगले चार दिन भी बीत गये
उनकी फॅमिली ने यहां बिनसर में अच्छा वक़्त बिताया था , और वो सब बेहद खुश थे
इस बीच सहगल साहब ने दो तीन बार मोहन से बात करने की कोशिश भी की
पर हर बार मोहन ने व्यस्तता दिखाते हुए सम्मानपूर्वक माफ़ी मांग ली
और उन्हें टाल दिया
चेक आउट के टाइम सहगल साहब ने अपना फाइनल बिल देखा ,
उस बिल में रूम नंबर 8 का कोई चार्ज नहीं जुड़ा था
तो वो रिसेप्शनिस्ट सुरभि से बोले
" सुरभि बेटा आप मेरे बिल में वो रूम नंबर 8 का रूम चार्ज भी जोड़ दो "
" इस तरह बगैर बिल दिए .... मुझे ठीक नहीं लग रहा "
सहगल जी की बार सुनकर सुरभि मुस्कुरा दी और बोली
" सर , रूम नंबर -8 तो मोहन सर का अपना पर्सनल रूम था "
" वो तो उस दिन जब आपके साथ मोहन सर का झगड़ा हो गया "
" अब मोहन सर आपको रूम नंबर 7 तो दे नहीं सकते थे "
" मजबूरी आयी तो मोहन सर ने आपको अपना खुद का पर्सनल रूम ही खाली करके आपको दे दिया "
" और पिछले चार दिनों वो खुद स्टाफ क्वार्टर में स्टाफ के साथ रह रहें हैं "
" मैंने आज सुबह आपका बिल बनाते हुए मोहन सर से पूछा भी था ,
की क्या आपके बिल में रूम नंबर 8 का कोई चार्ज जोड़ना है
तो वो बोले थे की
" वो रूम नंबर 8 मेरा पर्सनल रूम है , उसके पैसे लेने का तो सवाल ही नहीं उठता "
सुरभि की बात सुनकर सहगल साहब अब और भी चकरा गए
वो सुरभि से बहुत कुछ पूछना चाहते थे , समझना चाहते थे
पर अब कुछ भी समझने समझाने का समय नहीं बचा था
सुरभि होटल रिसेप्शन पर उनके अलावा कई और टूरिस्ट्स का चेक आउट प्रोसेस कर रही थी
और इधर उन्हें और उनके पूरे परिवार को भी वापिस दिल्ली के लिए निकलना था
सारा सामान उनकी इन्नोवा में लोड हो गया था और ड्राइवर सुभाष उनके इंतज़ार में था
सब जा रहे थे , केवल सहगल साहब की राइटर बेटी नेहा कुछ और दिनों के लिए बिनसर में ही रुक रही थी
नेहा को अपने नए नावेल के लिए कुछ रिसर्च करनी थी
इसी बीच रिसेप्शनिस्ट सुरभि ने सहगल साहब का फाइनल बिल बना दिया
" सर ये आपका आज तक का कम्पलीट बिल है "
" आप प्लीज अपना बिल ठीक से चेक कर लीजिये "
" आपकी बेटी नेहा के लिए आज से मैंने दूसरा रूम अलॉट कर दिया है "
" ताकि मोहन सर अब अपने रूम में फिरसे वापिस रह सकें "
" आप निश्चिन्त रहिएगा सर , नेहा जी यहाँ कोई तकलीफ नहीं होगी "
दिल्ली वापिस लौटते हुए सहगल साहब लगातार मोहन के बारे में ही सोच रहे थे
उनको लग गया था की इस इंसान मोहन की कोई तो इंटरेस्टिंग कहानी है
सहगल साहब की बेटी नेहा , रिसेप्शनिस्ट सुरभि से बात कर रही थी
" सुरभि जी मेरा नया रूम कौनसा है ? "
" PLEASE GIVE ME MY NEW ROOM KEY "
" और हाँ , मैं एक बार रूम नंबर 8 में जाकर चेक कर रही हूँ "
" कहीं हमारा कोई सामान तो नहीं रह गया रूम में "
" मेरी कसिन सुमन बहुत लापरवाह है , हर ट्रिप पर कुछ ना कुछ भूल जाती है "
इतना कहकर नेहा खिलखिलाकर हँस दी
और फिर सुरभि से अपने नए रूम की की लेकर वो रूम नंबर 8 की तरफ बढ़ गयी
नेहा रूम नंबर 8 बहुत ध्यान से चेक कर रही थी
उसे बेडसाइड की ड्रावर में सुमन का मोबाइल चार्जर मिला और बेड के नीचे उसकी नयीं स्लिपर्स
और तो और बाथरूम में उसे सुमन की एक टी - शर्ट और मेकअप का कुछ सामान भी मिला
नेहा मन ही मन गुस्से से बुदबुदा रही थी
" कितनी लापरवाह लड़की है ये यार , ITS TOO BAD .. TOO TOO BAD "
आखिर में नेहा ने रूम की बड़ी अलमारी की ड्रावर को चेक करने के लिए ,
गुस्से में उसे झटके से पूरा ही बाहर निकाल लिया ,
तो पाया की उस ड्रावर में पीछे की तरफ ,
उसे एक बड़ी सी , पुरानी सी मोटी डायरी पड़ी थी ,
जिसके बीच में काफी सारे लूज़ कागज़ और मुड़े तुड़े से कुछ फोटो भी पड़े थे
उस डायरी को देखकर नेहा आश्चर्य चकित रह गयी
ये डायरी उसकी नहीं थी ,
और उसकी कसिन सुमन का तो लिखने - लिखाने से दूर - दूर तक कोई लेना - देना नहीं था
तो ऐसी कोई भी डायरी सुमन की होना तो नामुमकिन सा था
मगर जाने क्यों नेहा ने चुपचाप वो पुरानी डायरी अपने हैंडबैग में डाली
और फटाफट रूम नंबर 8 से बाहर निकल गयी
रात को अपने बिस्तर पर लेटे लेटे नेहा ने उस पुरानी सी डायरी का पहला पन्ना पलटा
पहले पेज पर बीचोबीच लिखा था " JUNGLE CAT "
ये नाम पढ़कर नेहा थोड़ा चौंकी और मन ही मन हँसी
" अरे कहीं इस डायरी में " HOTEL JUNGLE CAT " का डेली का हिसाब - किताब तो नहीं लिखा है "
" और मैं इसे कोई सीक्रेट डायरी समझकर उठा लाई हूँ "
" और अंदर मुझे होटल का आते - दाल - चावल का हिसाब - किताब पढ़ने को मिले "
पर उस डायरी के दो - तीन पन्ने पढ़ते ही नेहा को ये एहसास हो गया की ,
ये डायरी तो किसी बेहतरीन राइटर का नायाब नॉवेल है
नेहा जैसे जैसे उस नॉवेल को पढ़ रही थी ,
वैसे वैसे उसका आश्चर्य बढ़ता जा रहा था
तभी डायरी के बीच से निकलकर एक पुराना मुड़ा तुड़ा सा पन्ना नेहा के बिस्तर पर फिसल गया
नेह ने लपककर उस पन्ने को उठा लिया
उस मुड़े तुड़े से पुराने पन्ने की पहली लाइन में एक नाम पढ़कर नेहा चौंक गयी " मोहन "
" मोहन ... मोहन .... मोहन ... "
नेहा सोच में पड़ गयी की ,
ये "मोहन" कहीं होटल का मैनेजर मोहन है या फिर ये केवल एक इत्तेफ़ाक़ है
नेहा ने उत्सुकता में पूरा लेटर पढ़ डाला
ये लव लेटर किसी गुमनाम लड़की ने मोहन नाम के लड़के को लिखा था
लेटर के आखिर में लिखा था
" तुम्हारी , सिर्फ तुम्हारी
JUNGLE CAT "
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