अब नेहा का एक डर ये भी था की आज नहीं तो कल , मोहन को पता चल ही जाएगा
की उसकी वो डायरी और बाकी पेपर उसके कमरे से गायब हैं
और क्योंकि पिछले चार दिनों से वो रूम नेहा के पास था
तो वो जल्द ही ये भी जान जायेगा की अब उसकी वो डायरी किसके पास होगी
नेहा का आज का पूरा दिन ऐसे ही सोचते सोचते निकल गया था
रात गहरी होती जा रही थी ,
और वो लगातार शराब पिये जा रही थी
मोहन की डायरी और सारे फोटो ... पेपर्स ... लेटर्स बिस्तर पर बिखरे पढ़े थे
नेहा खुद एक राइटर थी और दूसरों का लिखा भी बहुत पढ़ती थी
उस स्टैण्डर्ड से परखे तो उस डायरी में लेखन का स्तर बहुत अच्छा था
इधर वो खुद भी पिछले कुछ सालों से अपने निजी जीवन में एक तूफ़ान में घिरी हुयी थी
नेहा को बचपन से लिखने का शौक था
स्कूल कॉलेज में अक्सर उसका लिखा न्यूज़ पेपर्स और मैगज़ीन्स में छपता रहता था
उसका लिखा पहला नॉवल भी काफी अच्छा रहा था ,
पर उसके लिखे पिछले 2 नॉवल की बहुत आलोचना हुयी थी
कुछ क्रिटिक्स ने तो उसके उन दोनों नॉवल्स को रद्दी भी कहा था
कुछ सालों पहले ही उसने अपने पिता सहगल साहब की मर्ज़ी के विरुद्ध रोहित से शादी की थी
और फिर पापा से लड़ झगड़ कर जायजात में अपना हिस्सा भी ले लिया था
पर उसकी और पति रोहित की शराब , गैंबलिंग और बेटिंग की आदत के चलते वो अब अपना सब कुछ गंवा चुकी थी
ये सब हुआ तो रोहित और उसके बीच भी अब रोज झगडे रहने लगे थे
तो आज वो रोहित से भी अलग होकर एक फ्लैट में किराये पर रहती है
और अब वो फिर से रुपयों पैसों के लिए पापा सहगल साहब की दया की मोहताज़ हो गयी थी
अब बड़ी मुश्किल से उसे सहगल साहब की सिफारिश पर उसे एक वेब सीरीज लिखने का काम मिला था
वो पिछले एक महीने में चैनल को अपने लिखे कई रफ़ ड्राफ्ट्स भेज चुकी थी
पर चैनल टीम को उसका लिखा कुछ भी पसंद नहीं आ रहा था
ये काम भी उसके हाथ से बस निकलता सा ही लग रहा था
चैनल ने तो दूसरे writers के साथ बात करना भी शुरू कर दिया था
इसी insecurity के चलते उसकी शराब लगातार बढ़ती जा रही थी और तबियत गिरती जा रही थी
उसका साइकोलॉजिस्ट भी उसे बार बार दिल्ली से दूर किसी हिल स्टेशन पर घूमने
और अपने माहौल को बदलने की बार बार सलाह दे रहा था
इसी पशोपेश में उसने भी लास्ट मिनिट में फॅमिली के बिनसर घूमने के प्रोग्राम में खुद को डाल लिया था
पापा सहगल साहब तो उसके साथ आने से खुश थे ,
पर भैया और भाभी मरे मन से ही उसके साथ बिनसर आये थे
उनकी नेहा के साथ बिलकुल नहीं बनती थी
पर सहगल साहब का विरोध करने की उनमे अभी हिम्मत नहीं आयी थी
तो मन मारकर उन्हें नेहा को झेलना ही पड़ा
नेहा आज रात काफी शराब पी चुकी थी
अब तो रूम में शराब भी ख़त्म हो गयी थी
उसने सोचा किसी वेटर को भेजकर मंगवा ले पर अब इतनी आधी रात को दस किलोमीटर कौन जायेगा
उसने होटल बार में फोन किया तो शराब के रेट सुनकर ही उसकी हिम्मत जवाब दे गयी थी
सहगल साहब उसका ट्रिप का बजट पहले ही बना गए थे
शॉल लपेट कर नेहा होटल के पीछे वाले लॉन में चहलकदमी करने निकल आयी
बाहर निकलते ही हड्डियों को काटने वाली सर्द हवा ने उसका स्वागत किया
वो घबरा कर अपने कमरे की ओर वापिस मुड़ने ही वाली थी की
लॉन में दूर दूसरी तरफ जल रहे अलाव पर उनकी निगाह पड़ी
उस धुंध में भी एक निगाह में ही दो चीज़ें उसे साफ़ साफ़ दिख गयीं थी
एक इंसान जो हाथ में शराब का गिलास लिए अलाव के बहुत नज़दीक बैठा था
और एक ब्लैक लेबल की तीन चौथाई भरी बोतल जो अलाव के पास घास में शान से सीना तान कर खड़ी थी
उस देखते ही नेहा के कदम खुद ही उस बोतल की तरफ खींचने लगे थे
" मैनेजर साहब .. वो किचेन बंद हो गया है क्या ? "
नेहा ने अलाव के पास जाकर एक बहुत ही बेमतलब का सा सवाल किया था
मोहन ने अचकचा कर नज़र उठा कर नेहा को देखा और फिर झटके से खड़ा हो गया और बोला
" नो मैम , किचेन तो सारी रात चलता है "
" हाँ इस वक़्त मेनू लिमिटेड ही होता है "
" आप मुझे बताइये , मैं कोशिश करता हूँ "
" जो बोलेंगी कुछ मिनटों में आपके रूम में आ जायेगा "
नेहा के इस वक़्त वहाँ आने से मोहन असहज हो गया था
वो किसी भी तरह नेहा को यहाँ से जल्दी से जल्दी भेजना चाहता था
पर नेहा को शराब पीनी थी और वो बार में जाकर तो पि नहीं सकती थी
" आप ऐसा कीजिये एक चिल्ली मशरूम और एक तंदूरी आलू करवा दीजिए प्लीज "
" और हाँ , आपको बुरा ना लगे तो मैं कुछ देर यहीं बैठ जाऊँ ? "
नेहा की बात सुनकर मोहन हैरान परेशान सा हो गया था
वो कुछ जवाब देता पर उससे पहले ही उसने देखा की नेहा बगैर मोहन के जवाब का इंतज़ार किये ,
`सामने वाली कुर्सी पर बैठ गयी थी और अलाव पर हाथ तापने लगी थी
मोहन ने बेमन से खड़े खड़े ही walky - talky पर किचेन में नेहा का आर्डर प्लेस किया
और कुछ क्षण ऐसे ही चुपचाप खड़ा इंतज़ार करता रहा की नेहा अब उठकर चली जायेगी
नेहा सब कुछ मह्सूस करके भी अनजान बन रही थी , बैठी रही
कुछ क्षण के इंतज़ार के बाद मोहन भी बेमन से बैठ गया
और चुपके से उसने अपना शराब का गिलास अपनी कुर्सी के पीछे कर दिया था
नेहा ने उसकी ये हरकत देख ली थी , पर उसने ऐसे जताया जैसे कुछ हुआ ही नहीं
" आपका आर्डर आपके रूम में ही भिजवा दिया है मैम ? "
" आप अपने रूम में चलकर रेस्ट कीजिये , यहां ठण्ड बहुत है "
" आप बीमार हो जायेंगी "
मोहन ने फिर से नेहा को वहाँ से टरकाने की नाकाम कोशिश की थी
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