Wednesday, April 15, 2020

वो जामुन का पेड़

वो जामुन का पेड़
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बचपन त्रिनगर (दिल्ली ) में बीता

बोहोत खुशनुमा था :)

साइकिल पे स्कूल , वापिसी के रास्ते में लाला जी की टिक्की टॉस, घर आये तो गली के दोस्त, कंचे, इलेक्शन के दिनों में बिल्ले, लाइट जाने पर गली में दोस्तों का गप्प अड्डा, किराये की कॉमिक्स, प्लास्टिक की बॉल से क्रिकेट, पार्क के नल से पानी, वहीं साइकिल-रेड़ी से छोले कुलचे,सब्जी-कचौरी या फिर आलू टिक्की. टीवी पर बुधवार और शुक्रवार का चित्रहार और संडे सुबह स्पाइडरमैन विद रसना या थम्स -अप और शाम की एक टीवी मूवी।
गर्मियों में छत्त पे पानी का छिड़काव और फोल्डिंग बेड पे चादर को गीला करके कूलर की हवा में सोना।
जन्मदिन पर दोस्तों की पार्टी पाइनएप्पल केक, समोसे, छोटे रसगुल्ले, भुजिया, कोल्ड ड्रिंक-गोल्ड स्पॉट  ,थम्स -अप ,यशिका कैमेरे (36 रोल वाली रील ) से फोटो.
और कभी-कभी सारी रात किराये के कलर टीवी और वीसीआर पे बैक तो बैक 5 मूवी (पुरे मोहल्ले के साथ ) :)

और महीने में एक बार सिनेमा हॉल पर कोई नयी मूवी. और गर्मियों में पापा के साथ उनकी ब्राउन एम्बैस्डर कार में स्विमिंग, वो भी दिल्ली के किसी 5 स्टार होटल में. मसलन अशोक,अकबर....
कुल मिलाकर बेहतरीन समय था :)

घर के बिलकुल पास एक पार्क था , रोज़ गार्डन.
रोज़ तो मैंने कभी वहां देखे नहीं पर हाँ एक जामुन का पेड़ जरूर था
एक दिन सुबह सुबह हम सब दोस्त क्रिकेट खेलने गए तो जामुन तोड़ने के लिए पेड़ में ईंट के टुकड़े मारने लगे
जामुन तो बहुत सारे टूटे पर साथ ही पेड़ पर लगकर एक ईंट नीचे मेरे सर पे गिरी और सर फट गया
एक दोस्त के साथ डॉक्टर के यहाँ गया और पट्टी कराई
२-३ बाद ही मेरा जन्मदिन था, उसकी फोटो में भी मेरे सर पर पट्टी बंधी है और सर पर चोट का निशान आज भी है :)

बरसो बीत गए हैं
वो जामुन का पेड़ आज भी वहीं खड़ा है
कह रहा है-
"तुम वापिस आओ तो सही
मुझे पथ्थर मारो मैं तुम्हे जामुन दूंगा"
वो हम सब दोस्तों के लौटने का इंतज़ार कर रहा है
और हम सब में कोई अमेरिका ,कोई रायपुर, कोई दिल्ली में ही किसी पॉश कॉलोनी में रहने चला गया
अब
हम जामुन का जूस पीते है वो भी पैकेड बहुत सारे प्रेज़रवेटिव केमिकल के साथ
अब हमें घर पर रोटी-सब्जी या दाल चावल से ज्यादा रेस्टॉरेंट का खाना अच्छा लगता है
कपडे आरामदायक हों या नहीं पर फैशन के अनुसार होते हैं
घर बड़ा है पर उसमे रहने का ना समय है ना इच्छा
मॉल ,मूवी ,बाहर का खाना हमारा फेवरेट टाइम पास है.
और जो समय घर पे बीता वो भी टीवी ,मोबाइल, नेटफ्लिक्स_ _

और अब अचानक कोरोना  :(
रोज़ लगता है जैसे ये कोई सपना चल रहा है और अभी नींद खुलेगी और ये गायब हो जाएगा
पर नहीं ये आज का भयानक सच है

मुझे लगता है -
हमें फिर से प्रकृति के साथ जुड़ना होगा
घर में बना ताज़ा खाना
आरामदायक कपड़ें हों चाहे फैशन जो भी हो
घरवालों में आपसी प्यार हो
RAT-RACE से भी निकलना होगा

इतना सब करने पर भी शायद कभी दुःख की ईंट सर पर गिर सकती है
सर फट सकता है
पर धरती से जुड़े रहेंगे तो हर दुःख से उबर जाएंगे

जी पायेंगे:)








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