सबसे पहले तो मैं ये बता दूँ की
मेरी नीमके वाली अम्माँ का नीम के पेड़ से कोई भी सरोकार नहीं था :)
ये तो चूँकि उनका मायका "नीमका" नाम के गांव में था
तो पहचान के लिए की ,
हम कौनसी वाली अम्माँ की बात कर रहे हैं ,
हम सब बोलते ऐसे थे की नीमके वाली अम्माँ ऐसी थीं ,
अपनी वाली अम्माँ वैसी थीं
अरे यार हमारी चार अम्माँ थीं ना
तो पहचान के लिए कुछ तो अलग बोलना ही था :)
नीमके वाली अम्माँ ,मेरे बाबा (GRAND FATHER ) के छोटे भाई की पत्नी थी
मतलब मेरे छोटे बाबा की पत्नी थीं
मेरे बाबा हर चार भाई थे
जिनमे से मेरे बाबा और उनके दो भाई हमारे गांव जहांगीरपुर में ही ,
करीब-करीब जुड़े हुए मगर तीन अलग-अलग घरों में रहते थे
और मेरे बाबा के तीसरे भाई दूर पहासू नाम के छोटे शहर में रहते थे
नीमके वाली अम्माँ का घर हमारे तीनो घरों में सबसे बड़ा और हवेली के स्टाइल का था
घर के बाहरी हिस्से में बाबा की कपडे की दूकान थी
घर के अंदर जाने के लिए लकड़ी का बहुत ही भारी और जड़ाऊ दरवाज़ा था ,
जिसमे मोटे-मोटे भारी सांकल होते थे
अंदर घुसते ही बहुत बड़ा आँगन था जिसमे एक कोने में हमेशा 1 या कभी-कभी 2-2 भैंसें बंधी होती थी
जो हर अंदर घुसने वाले का रम्भा के स्वागत करती थी
या शायद वो ही अम्माँ को आवाज़ देकर बताती थी की , घर में कोई आ गया है
अम्माँ बोहोत ही मीठा बोलती थी
बहुत ही ज्यादा मीठा
मुझे बहुत प्यार करती थी
मैं जब भी गाँव जाता था नीमके वाली अम्मा से मिलने हमेशा जाता था
नीमके वाली अम्माँ भी देखते ही बहुत खुश हो जाती थी
और हमेशा कुछ ना कुछ खिलाकर ही वापिस जाने देती थी
एक बार कुछ ऐसी बात हुयी की आज तक सोच के हँसी आ जाती है
मैं नीमके वाली अम्माँ के घर गया तो देखा
आँगन में अम्माँ ने चूल्हे पर दूध उबालने रखा है
अम्मा बोली- "दूध पिएगो बेटा ? "
मैं बोला- " अम्माँ दूध नहीं मैं तो चाय पियूँगा "
चाय का नाम सुनते ही अम्माँ तो बहुत नाराज़ हो गयीं
(हमारे गांव में आज भी बच्चों को चाय नहीं पिलाई जाती )
अम्मा तो गुस्सा हो गयी और बोलने लगी-
" लल्ला ये ऐसे-कैसे का सहर के बच्चा है गये ,बच्चन लोग भी कभौ चाय पिया करें "
मैं हँसा,बोला- अम्माँ मोए तो चाय ही पीनो है
(मैंने भी अपने गांव की भाषा में बोलने की कोशिश की :) )
झूठा गुस्सा दिखाते हुए अम्माँ गयी और चाय बना लाई
मैंने चाय का एक बड़ा सा घूँट पिया
यक्क
चाय बहुत ही ज्यादा मीठी थी :)
इतनी मीठी की मेरे होंठ चिपक रहे थे
मैं अभी सोच ही रहा था की क्या करूँ की अम्माँ वापिस आयीं
उनके हाथ में चीनी का मर्तबान था
बड़े भोलेपन से बोलीं-
" लल्ला मो चाय में चीनी कम पिया करुँ तो तोये चाय में भी कमो डारी , तू अपने बाए (लिए) और डार ले "
मुझे तो काटो तो खून नहीं
कभी मैं अम्मा को देखूँ
कभी उनके हाथ में चीनी के बड़े से मर्तबान को
और कभी अपने हाथ के चाय के गिलास को :)
मैंने तो झटके एक घूँट में वो पूरा चायनुमा मीठा शरबत पिया ,
गिलास जमीन पे रखा और
मैं भागा बाहर
वो आवाज़ लगाती रह गयी-
ए बेटा
का भयो
अरे थम मेरो बिटवा :)
मैं तो ऐसा भागा
ऐसा भागा
के सीधा अपने घर आके ही रुका
और हॅसते-हॅसते लोटपोट :)
शायद 10-15 मिनिट बाद ही किसी को कुछ बता पाया की क्या हुआ था :)
असल में हमारे गाँव में सब चीनी बहुत ही तेज़ पीते थे
चाय उनके लिए ऐसी थी जैसे की शहर में हम खाने के बाद कोई मिठाई खाते हैं :)
मुझे याद है मुझे रसगुल्ले खाने का शौक था तो मेरे बाबा ख़ास मेरे लिए रसगुल्ले बनवा के लाते थे
क्युकी तब हमारे गांव के हलवाई पेड़े के अलावा और कोई मिठाई रोज़मर्रा में बनाते ही नहीं थे
आज मेरी नीमके वाली अम्मा नहीं हैं ,
(खैर अभी तो चारों अम्माँ ही नहीं हैं )
पर अम्माँ की सरलता
उनका भोलापन
उनका वो निश्छल प्यार
आज भी जब नीमके वाली अम्माँ के बारे सोचता हूँ तो चेहरे पे मुस्कराहट आ जाती है :)
#बचपन #bachpan , manojgupta0707.blogspot.com
Writer- Manoj Gupta
मेरी नीमके वाली अम्माँ का नीम के पेड़ से कोई भी सरोकार नहीं था :)
ये तो चूँकि उनका मायका "नीमका" नाम के गांव में था
तो पहचान के लिए की ,
हम कौनसी वाली अम्माँ की बात कर रहे हैं ,
हम सब बोलते ऐसे थे की नीमके वाली अम्माँ ऐसी थीं ,
अपनी वाली अम्माँ वैसी थीं
अरे यार हमारी चार अम्माँ थीं ना
तो पहचान के लिए कुछ तो अलग बोलना ही था :)
नीमके वाली अम्माँ ,मेरे बाबा (GRAND FATHER ) के छोटे भाई की पत्नी थी
मतलब मेरे छोटे बाबा की पत्नी थीं
मेरे बाबा हर चार भाई थे
जिनमे से मेरे बाबा और उनके दो भाई हमारे गांव जहांगीरपुर में ही ,
करीब-करीब जुड़े हुए मगर तीन अलग-अलग घरों में रहते थे
और मेरे बाबा के तीसरे भाई दूर पहासू नाम के छोटे शहर में रहते थे
नीमके वाली अम्माँ का घर हमारे तीनो घरों में सबसे बड़ा और हवेली के स्टाइल का था
घर के बाहरी हिस्से में बाबा की कपडे की दूकान थी
घर के अंदर जाने के लिए लकड़ी का बहुत ही भारी और जड़ाऊ दरवाज़ा था ,
जिसमे मोटे-मोटे भारी सांकल होते थे
अंदर घुसते ही बहुत बड़ा आँगन था जिसमे एक कोने में हमेशा 1 या कभी-कभी 2-2 भैंसें बंधी होती थी
जो हर अंदर घुसने वाले का रम्भा के स्वागत करती थी
या शायद वो ही अम्माँ को आवाज़ देकर बताती थी की , घर में कोई आ गया है
अम्माँ बोहोत ही मीठा बोलती थी
बहुत ही ज्यादा मीठा
मुझे बहुत प्यार करती थी
मैं जब भी गाँव जाता था नीमके वाली अम्मा से मिलने हमेशा जाता था
नीमके वाली अम्माँ भी देखते ही बहुत खुश हो जाती थी
और हमेशा कुछ ना कुछ खिलाकर ही वापिस जाने देती थी
एक बार कुछ ऐसी बात हुयी की आज तक सोच के हँसी आ जाती है
मैं नीमके वाली अम्माँ के घर गया तो देखा
आँगन में अम्माँ ने चूल्हे पर दूध उबालने रखा है
अम्मा बोली- "दूध पिएगो बेटा ? "
मैं बोला- " अम्माँ दूध नहीं मैं तो चाय पियूँगा "
चाय का नाम सुनते ही अम्माँ तो बहुत नाराज़ हो गयीं
(हमारे गांव में आज भी बच्चों को चाय नहीं पिलाई जाती )
अम्मा तो गुस्सा हो गयी और बोलने लगी-
" लल्ला ये ऐसे-कैसे का सहर के बच्चा है गये ,बच्चन लोग भी कभौ चाय पिया करें "
मैं हँसा,बोला- अम्माँ मोए तो चाय ही पीनो है
(मैंने भी अपने गांव की भाषा में बोलने की कोशिश की :) )
झूठा गुस्सा दिखाते हुए अम्माँ गयी और चाय बना लाई
मैंने चाय का एक बड़ा सा घूँट पिया
यक्क
चाय बहुत ही ज्यादा मीठी थी :)
इतनी मीठी की मेरे होंठ चिपक रहे थे
मैं अभी सोच ही रहा था की क्या करूँ की अम्माँ वापिस आयीं
उनके हाथ में चीनी का मर्तबान था
बड़े भोलेपन से बोलीं-
" लल्ला मो चाय में चीनी कम पिया करुँ तो तोये चाय में भी कमो डारी , तू अपने बाए (लिए) और डार ले "
मुझे तो काटो तो खून नहीं
कभी मैं अम्मा को देखूँ
कभी उनके हाथ में चीनी के बड़े से मर्तबान को
और कभी अपने हाथ के चाय के गिलास को :)
मैंने तो झटके एक घूँट में वो पूरा चायनुमा मीठा शरबत पिया ,
गिलास जमीन पे रखा और
मैं भागा बाहर
वो आवाज़ लगाती रह गयी-
ए बेटा
का भयो
अरे थम मेरो बिटवा :)
मैं तो ऐसा भागा
ऐसा भागा
के सीधा अपने घर आके ही रुका
और हॅसते-हॅसते लोटपोट :)
शायद 10-15 मिनिट बाद ही किसी को कुछ बता पाया की क्या हुआ था :)
असल में हमारे गाँव में सब चीनी बहुत ही तेज़ पीते थे
चाय उनके लिए ऐसी थी जैसे की शहर में हम खाने के बाद कोई मिठाई खाते हैं :)
मुझे याद है मुझे रसगुल्ले खाने का शौक था तो मेरे बाबा ख़ास मेरे लिए रसगुल्ले बनवा के लाते थे
क्युकी तब हमारे गांव के हलवाई पेड़े के अलावा और कोई मिठाई रोज़मर्रा में बनाते ही नहीं थे
आज मेरी नीमके वाली अम्मा नहीं हैं ,
(खैर अभी तो चारों अम्माँ ही नहीं हैं )
पर अम्माँ की सरलता
उनका भोलापन
उनका वो निश्छल प्यार
आज भी जब नीमके वाली अम्माँ के बारे सोचता हूँ तो चेहरे पे मुस्कराहट आ जाती है :)
#बचपन #bachpan , manojgupta0707.blogspot.com
Writer- Manoj Gupta
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