ये एक खूबसूरत इत्तेफ़ाक़ ही तो था की
वो भी उसी कॉलेज में बीकॉम पास सेकंड ईयर में माइग्रेशन लेकर आयी थी
जिसमे मनु आया था
वर्ना तो पूरे 52 कॉलेज थे दिल्ली में
वो कहीं और भी तो जा सकती थी ना :)
दिखने में बहुत सुन्दर थी वो
(पर उसका मन तो और भी ज्यादा सुन्दर है ये मनु को समय के साथ पता चलता गया था )
कुछ ख़ास था उसमे
जो अनायास ही अपनी और आकर्षित करता था
पतला लम्बा कद,छोटे स्टाइलिश बाल और उसपे एक बालों की लट,
जो बार बार उसके गाल पर आ जाती थी
और फिर उस लट को फिर से कान के पीछे करने की जहमत ,
उसे उठानी पड़ती थी
उसका औरा ऐसा था की
उससे सीधे-सीधे इंट्रो करने की हिम्मत मनु की नहीं हुयी
अब पहला चैलेंज था उसका नाम पता करने का
सो किसी और लड़की से पता लगवाया गया
खबर मिली की उसका नाम " नाज़ डिसूजा " है
अब ये उसके नाम की वजह से था या फिर उस चेन की वजह से ,
जो वो हर रोज़ गले में पहनती थी
जिसमें क्रॉस जैसा कुछ पैंडेंट रहता था
मनु को लगा की वो क्रिस्चियन है
पर बाद में पता चला की वो कोई क्रिस्टियन नहीं है
और उसका सरनेम भी डिसूजा नहीं है
हां नाम ठीक "नाज़ " ही था :)
वैसे धर्म या जाति वाली तो कोई बात कभी नहीं थी
ये तो ये बताना था की
जब किसी से सामने से बात नहीं की जाती ,
और पूरे जहाँ से उसके बारे में पूछ-ताछ की जाती है तो
किस-किस तरह की गलतफहमियां हो सकती है,
(अब इधर-उधर से माँगी हुयी इन्फो तो चंडूखाने से ही आएगी ना :) )
कॉलेज में ग्रुप बातचीत के दौरान वो अक्सर चुप ही रहती थी
कुछ ज्यादा ही कम बोलती थी वो
लगता था जैसे सबको बहुत ध्यान से सुन रही हो और
सबकुछ अच्छे से अपने मन की गहराइयों में उतारती जा रही है
और किसी महान दिन उस ज्ञान के सागर में से कुछ मोती छांट कर
हम सब को प्रसाद में देगी :)
वैसे उन ग्रुप चर्चाओं में उसने एक बार भी मनु की और नहीं देखा था ,
ऐसा मनु को लगा था
और एक मनु था ,जो उसके मोहपाश में निरंतर बंधता जा रहा था
वैसे मनु में वैसा कुछ ख़ास था भी नहीं शायद
जो किसी लड़की को पहली नज़र में ही आकर्षित कर लेता है
वो एक औसत कद का ,औसत लुकिंग लड़का था
अब से पहले जीवन में अब तक कुल 1 ही बार ऐसा हुआ था की
किसी लड़की ने मनु को अच्छे से देखा हो
और उस बार भी मनु कोई कमाल नहीं कर पाया था :)
वैसे उन दिनों मनु का आत्मविश्वास भी कुछ अच्छा खासा सा ही डाँवाडोल था
एक स्टम्मेरेर साइंस स्टूडेंट ,जिसने 12 वीं में बहुत बुरे मार्क्स लिए थे
जिसके लिए ग्यारवी और बाहरवीं के वो 2 साल भयानक सपने जैसे थे
और जो फर्स्ट ईयर में एक बदनाम से इवनिंग कॉलेज में बीकॉम पास में एडमिशन मिलने पर भी
सुकून में था
और अब जाकर जब उसे इस ठीक-ठाक से कॉलेज में सेकंड ईयर में माइग्रेशन मिला था,
तो सातवें आसमान पे था
मनु के जीवन में पहली बार कुछ ऐसा हो रहा था जो
मनु को एक क्रिएटिव इंसान बना रहा था
वो मनु के ख्यालो पर इस कदर छा गयी थी की कॉलेज से घर आते ही
उसकी कोई छवि कागज़ पर उकेरना
जैसे उसका कर्त्वय बन गया था
हालांकि जीवन में इससे पहले कभी भी किसी का स्केच उसने बनाया हो ,
उसे याद नहीं था
पर नाज़ के सामने अपनी भावनाओं का इज़हार करना मनु के लिए असंभव सा था
मनु को लगता था की नाज़ कोई ऐसी शै है
जो उसके मयार से बहुत ऊपर है
पर एक दिन पता नहीं वो क्या था जो मनु को इतनी शक्ति दे गया की
कॉलेज ख़त्म होने के बाद बस स्टैंड पे
मनु अचानक नाज़ के सामने पहुँच गया था
(जबकि उससे पहले कभी मनु ने नाज़ को सामने से ठीक से हेलो भी नहीं किया था )
मनु के हाथ में सुर्ख गुलाब और एक ग्रीटिंग कार्ड था
नाज़ ने आश्चर्य से मनु की और देखा
मनु सकपकाया
कार्ड और गुलाब उसकी और बढ़ाते हुए बस इतना ही कह पाया
"मुझसे दोस्ती करोगी "
नाज़ बोली "मैं तो आपको जानती भी नहीं "
"मैं म.... आपकी ही क्लॉस में तो हूँ "
वो हसी, बोली "पता है ,मेरा मतलब था की मैं आपको अच्छे से नहीं जानती "
"पर मैं तो आपसे दोस्ती करना चाहता हूँ " मनु मिमिआया
अब वो थोड़ा और जोर से हसी, "दोस्त तो हम है ही ,एक ही क्लास में पढ़ते हैं "
अब मन में कुछ सुकून हुआ
मनु ने गुलाब और कार्ड उसकी और बढ़ाया
"ये मैं नहीं ले सकती ,कम से कम अभी तो नहीं "-
नाज़ मुस्कुराते हुए बोली थी
मनु को ऐसा लगा जैसे वो कहीं सातवे आसमान पे है
नाज़ के शब्द "कम से कम अभी तो नहीं" से
एक नन्ही सी उम्मीद उग आयी थी
मनु के मन में
तभी नाज़ की बस आ गयी
नाज़ ने मनु की तरफ एक छोटी सी मुस्कान उछाली
और बस में चढ़ गयी
और मनु मंत्रमुग्ध सा देर तक
नाज़ की बस को जाते हुए देखता रहा।
वो भी उसी कॉलेज में बीकॉम पास सेकंड ईयर में माइग्रेशन लेकर आयी थी
जिसमे मनु आया था
वर्ना तो पूरे 52 कॉलेज थे दिल्ली में
वो कहीं और भी तो जा सकती थी ना :)
दिखने में बहुत सुन्दर थी वो
(पर उसका मन तो और भी ज्यादा सुन्दर है ये मनु को समय के साथ पता चलता गया था )
कुछ ख़ास था उसमे
जो अनायास ही अपनी और आकर्षित करता था
पतला लम्बा कद,छोटे स्टाइलिश बाल और उसपे एक बालों की लट,
जो बार बार उसके गाल पर आ जाती थी
और फिर उस लट को फिर से कान के पीछे करने की जहमत ,
उसे उठानी पड़ती थी
उसका औरा ऐसा था की
उससे सीधे-सीधे इंट्रो करने की हिम्मत मनु की नहीं हुयी
अब पहला चैलेंज था उसका नाम पता करने का
सो किसी और लड़की से पता लगवाया गया
खबर मिली की उसका नाम " नाज़ डिसूजा " है
अब ये उसके नाम की वजह से था या फिर उस चेन की वजह से ,
जो वो हर रोज़ गले में पहनती थी
जिसमें क्रॉस जैसा कुछ पैंडेंट रहता था
मनु को लगा की वो क्रिस्चियन है
पर बाद में पता चला की वो कोई क्रिस्टियन नहीं है
और उसका सरनेम भी डिसूजा नहीं है
हां नाम ठीक "नाज़ " ही था :)
वैसे धर्म या जाति वाली तो कोई बात कभी नहीं थी
ये तो ये बताना था की
जब किसी से सामने से बात नहीं की जाती ,
और पूरे जहाँ से उसके बारे में पूछ-ताछ की जाती है तो
किस-किस तरह की गलतफहमियां हो सकती है,
(अब इधर-उधर से माँगी हुयी इन्फो तो चंडूखाने से ही आएगी ना :) )
कॉलेज में ग्रुप बातचीत के दौरान वो अक्सर चुप ही रहती थी
कुछ ज्यादा ही कम बोलती थी वो
लगता था जैसे सबको बहुत ध्यान से सुन रही हो और
सबकुछ अच्छे से अपने मन की गहराइयों में उतारती जा रही है
और किसी महान दिन उस ज्ञान के सागर में से कुछ मोती छांट कर
हम सब को प्रसाद में देगी :)
वैसे उन ग्रुप चर्चाओं में उसने एक बार भी मनु की और नहीं देखा था ,
ऐसा मनु को लगा था
और एक मनु था ,जो उसके मोहपाश में निरंतर बंधता जा रहा था
वैसे मनु में वैसा कुछ ख़ास था भी नहीं शायद
जो किसी लड़की को पहली नज़र में ही आकर्षित कर लेता है
वो एक औसत कद का ,औसत लुकिंग लड़का था
अब से पहले जीवन में अब तक कुल 1 ही बार ऐसा हुआ था की
किसी लड़की ने मनु को अच्छे से देखा हो
और उस बार भी मनु कोई कमाल नहीं कर पाया था :)
वैसे उन दिनों मनु का आत्मविश्वास भी कुछ अच्छा खासा सा ही डाँवाडोल था
एक स्टम्मेरेर साइंस स्टूडेंट ,जिसने 12 वीं में बहुत बुरे मार्क्स लिए थे
जिसके लिए ग्यारवी और बाहरवीं के वो 2 साल भयानक सपने जैसे थे
और जो फर्स्ट ईयर में एक बदनाम से इवनिंग कॉलेज में बीकॉम पास में एडमिशन मिलने पर भी
सुकून में था
और अब जाकर जब उसे इस ठीक-ठाक से कॉलेज में सेकंड ईयर में माइग्रेशन मिला था,
तो सातवें आसमान पे था
मनु के जीवन में पहली बार कुछ ऐसा हो रहा था जो
मनु को एक क्रिएटिव इंसान बना रहा था
वो मनु के ख्यालो पर इस कदर छा गयी थी की कॉलेज से घर आते ही
उसकी कोई छवि कागज़ पर उकेरना
जैसे उसका कर्त्वय बन गया था
हालांकि जीवन में इससे पहले कभी भी किसी का स्केच उसने बनाया हो ,
उसे याद नहीं था
पर नाज़ के सामने अपनी भावनाओं का इज़हार करना मनु के लिए असंभव सा था
मनु को लगता था की नाज़ कोई ऐसी शै है
जो उसके मयार से बहुत ऊपर है
पर एक दिन पता नहीं वो क्या था जो मनु को इतनी शक्ति दे गया की
कॉलेज ख़त्म होने के बाद बस स्टैंड पे
मनु अचानक नाज़ के सामने पहुँच गया था
(जबकि उससे पहले कभी मनु ने नाज़ को सामने से ठीक से हेलो भी नहीं किया था )
मनु के हाथ में सुर्ख गुलाब और एक ग्रीटिंग कार्ड था
नाज़ ने आश्चर्य से मनु की और देखा
मनु सकपकाया
कार्ड और गुलाब उसकी और बढ़ाते हुए बस इतना ही कह पाया
"मुझसे दोस्ती करोगी "
नाज़ बोली "मैं तो आपको जानती भी नहीं "
"मैं म.... आपकी ही क्लॉस में तो हूँ "
वो हसी, बोली "पता है ,मेरा मतलब था की मैं आपको अच्छे से नहीं जानती "
"पर मैं तो आपसे दोस्ती करना चाहता हूँ " मनु मिमिआया
अब वो थोड़ा और जोर से हसी, "दोस्त तो हम है ही ,एक ही क्लास में पढ़ते हैं "
अब मन में कुछ सुकून हुआ
मनु ने गुलाब और कार्ड उसकी और बढ़ाया
"ये मैं नहीं ले सकती ,कम से कम अभी तो नहीं "-
नाज़ मुस्कुराते हुए बोली थी
मनु को ऐसा लगा जैसे वो कहीं सातवे आसमान पे है
नाज़ के शब्द "कम से कम अभी तो नहीं" से
एक नन्ही सी उम्मीद उग आयी थी
मनु के मन में
तभी नाज़ की बस आ गयी
नाज़ ने मनु की तरफ एक छोटी सी मुस्कान उछाली
और बस में चढ़ गयी
और मनु मंत्रमुग्ध सा देर तक
नाज़ की बस को जाते हुए देखता रहा।
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