Sunday, March 15, 2020

ना ज़िद्दी हूँ

ना ज़िद्दी हूँ
ना ही ईगो रखता हूँ
ज़्यादा क्या कहूँ
दोस्तों में जीता हूँ ,
दोस्ती में मरता हूँ

दुखता है जब सही होकर भी
ग़लत ठहराया जाता हूँ
तब दुश्मनों पर नहीं
रीढ़विहीन दोस्तों पर ग़ुस्सा करता हूँ

कभी तो आँख में आँख डाल
बराबरी से बात कर दोस्त मेरे
आदेश ना लेना है ना देना है
बस दिल की सुनना है..दिल से कहना है

वो जो आदेश दे रहा 
वो दोस्त कहाँ मानता होगा
कभी सुना है की 
राजा का ग़ुलाम से कोई
बराबरी का वास्ता होगा

ना ज़िद्दी हूँ
ना ही ईगो रखता हूँ
ज़्यादा क्या कहूँ
दोस्तों में जीता हूँ ,
दोस्ती में मरता हूँ।

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