इक दिन यूँही भोर यकायक
दुख ने मुझको आकर घेरा
तब घबरा कर ढूँढा मैंने
कहाँ सखा (कान्हा) का रैन-बसेरा।
सखा ने मुझको यूँ बतलाया
ये दुःख मैंने नहीं लाया
ये तो तूने रास-रंग में
काम किए जो..उनसे आया
चलना था..ना चलना सीखा
उड़ा मगर..आकाश ना दीखा
इसलिए अब तू डूब रहा है
मन ही मन में सिसक रहा है।
मालूम मुझको तू है कमज़ोर
तो दूँगा दुःख उतना ही तुझको
जितने में तू डूब ना जाए
बस थोड़ी सी शामत आए
आगे से तू चलना सीखे
और बाद में उड़ान उड़ायें।
रहता कहाँ है कोई भी दुःख
उतनी दूर जितना है जीवन
आया है तो जाना भी है
दुख हो चाहे जीव या जीवन।
इक दिन यूँही भोर यकायक
दुख ने मुझको आकर घेरा
तब घबरा कर ढूँढा मैंने
कहाँ सखा(कान्हा) का रैन-बसेरा।।
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कृपया आप मेरी और भी कहानियाँ और कवितायें पढ़ने के लिए मेरे ब्लॉग पर आये :)
manojgupta707.blogspot.com
दुख ने मुझको आकर घेरा
तब घबरा कर ढूँढा मैंने
कहाँ सखा (कान्हा) का रैन-बसेरा।
सखा ने मुझको यूँ बतलाया
ये दुःख मैंने नहीं लाया
ये तो तूने रास-रंग में
काम किए जो..उनसे आया
चलना था..ना चलना सीखा
उड़ा मगर..आकाश ना दीखा
इसलिए अब तू डूब रहा है
मन ही मन में सिसक रहा है।
मालूम मुझको तू है कमज़ोर
तो दूँगा दुःख उतना ही तुझको
जितने में तू डूब ना जाए
बस थोड़ी सी शामत आए
आगे से तू चलना सीखे
और बाद में उड़ान उड़ायें।
रहता कहाँ है कोई भी दुःख
उतनी दूर जितना है जीवन
आया है तो जाना भी है
दुख हो चाहे जीव या जीवन।
इक दिन यूँही भोर यकायक
दुख ने मुझको आकर घेरा
तब घबरा कर ढूँढा मैंने
कहाँ सखा(कान्हा) का रैन-बसेरा।।
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