हाँ, स्वीकार मुझे के मैं
एक चूका हुआ प्रेमी हूँ,
प्रेम-सम्प्रेषण को चाह थी
एक विशिष्ट भाषाशैली की
और मेरा शब्दकोश रहा
और मेरा शब्दकोश रहा
सर्वदा सीमित , और
चातुर्य वाक शैली में मरुस्थलीय सूखा
चातुर्य वाक शैली में मरुस्थलीय सूखा
सो मेरे प्रेम में भी तुम्हें
केवल शुष्कता ही दिखी
एक बूँद मीठे पानी को
जैसे चातक ताकता है
वैसे ही ताकता था मैं तुम्हें
बारिश की पहली बूँद की मानिंद
बारिश की पहली बूँद की मानिंद
हाँ, तुम मेरे लिए तुम
बारिश की पहली बून्द ही थी
लेकिन उस बून्द ओर मेरी प्यास में
लेकिन उस बून्द ओर मेरी प्यास में
एक जनम की दूरी थी
चाहकर भी उस दूरी पर मैं
चाहकर भी उस दूरी पर मैं
प्रेम सेतु ना बना पाया
और आज तक उसी सूखे मरुस्थल में
और आज तक उसी सूखे मरुस्थल में
चातक बन तलाशता रहता हूँ
उसी प्रेम की पहली बूँद को
उसी प्रेम की पहली बूँद को
हाँ, स्वीकार मुझे के मैं
एक चूका हुआ प्रेमी हूँ,
पर कहीं तुम भी तो चूक गयी थीं
जो शब्दोँ की साधारणता से रिसती
आत्मिक खूबसूरती को देख ही नहीं पायीं
हम दोनों ही चूक गए
हाँ हम दोनों ही।
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