Wednesday, January 10, 2024

मैं इतना भारी बनूँ


अगर कभी भगवान् स्वयं मिल जाएँ
और अचानक पूछ लें
 " बोल सखा क्या चाहता है ,जल्दी बोल
जो भी तू तुरंत अभी बोलेगा ,वही पूरा हो जाएगा "

तो मैंने सोचा, कान्हा कभी ना कभी तो मुझे मिलेगें ही , तो मैं उनसे क्या कहूंगा,

सोचकर आज ही लिख ही लेता हूँ :)

तो ये कविता लिख डाली

प्यार से पढ़िये ,आशा है आपको अच्छी लगेगी :)
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" मैं इतना भारी बनूँ के ,
"हनु" से भी ना हिल पाऊँ
और इतना हल्का भी के ,
पंछी संग मैं उड़ जाऊं

इतना गहरा हो जाऊँ के ,
शीर-सागर भी कम पड़ जाये
और इतना उथला भी के ,
बालक तैर के पार निकल जाये

इतना ऊँचा हो जाऊँ के ,
सातवाँ आसमान छू लू तर्जनी उंगली से
और इतना बौना भी के ,
बच्चों संग कंचे खेलूँ गली में

इतना विस्तृत बनूँ.. नाप दूँ ,
पूरी धरा एक ही पग में
और इतना सीमित भी के ,
चैन की नींद सोऊ अपनी छोटी सी कुटिया में

इतना चपल-सुन्दर मैं हो जाऊं ,
बन जाऊं स्वर्ण मृग मैं
सीता-हरण में भागी बनकर ,
नवजीवन पाऊँ राम बाण में

ओ रे कान्हा मैं तुझसे
बस इतना ही चाहूँ
बस इतना सा ही की

मैं इतना भारी बनूँ के ,
"हनु" से भी ना हिल पाऊँ
और इतना हल्का भी के ,
पंछी संग मैं उड़ जाऊं  .
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हनु = हनुमान
शीर-सागर = विष्णु भगवान् का वास स्थान
उथला - बहुत ही कम गहरा 

( मनोज गुप्ता )

#man0707

manojgupta0707.blogspot.com


 

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