अगर कभी भगवान् स्वयं मिल जाएँ
और अचानक पूछ लें
" बोल सखा क्या चाहता है ,जल्दी बोल
जो भी तू तुरंत अभी बोलेगा ,वही पूरा हो जाएगा "
तो मैंने सोचा, कान्हा कभी ना कभी तो मुझे मिलेगें ही , तो मैं उनसे क्या कहूंगा,
सोचकर आज ही लिख ही लेता हूँ :)
तो ये कविता लिख डाली
प्यार से पढ़िये ,आशा है आपको अच्छी लगेगी :)
-----------------------------
" मैं इतना भारी बनूँ के ,
"हनु" से भी ना हिल पाऊँ
और इतना हल्का भी के ,
पंछी संग मैं उड़ जाऊं
इतना गहरा हो जाऊँ के ,
शीर-सागर भी कम पड़ जाये
और इतना उथला भी के ,
बालक तैर के पार निकल जाये
इतना ऊँचा हो जाऊँ के ,
सातवाँ आसमान छू लू तर्जनी उंगली से
और इतना बौना भी के ,
बच्चों संग कंचे खेलूँ गली में
इतना विस्तृत बनूँ.. नाप दूँ ,
पूरी धरा एक ही पग में
और इतना सीमित भी के ,
चैन की नींद सोऊ अपनी छोटी सी कुटिया में
इतना चपल-सुन्दर मैं हो जाऊं ,
बन जाऊं स्वर्ण मृग मैं
सीता-हरण में भागी बनकर ,
नवजीवन पाऊँ राम बाण में
ओ रे कान्हा मैं तुझसे
बस इतना ही चाहूँ
बस इतना सा ही की
मैं इतना भारी बनूँ के ,
"हनु" से भी ना हिल पाऊँ
और इतना हल्का भी के ,
पंछी संग मैं उड़ जाऊं .
----------------------------
हनु = हनुमान
शीर-सागर = विष्णु भगवान् का वास स्थान
उथला - बहुत ही कम गहरा
( मनोज गुप्ता )
#man0707
manojgupta0707.blogspot.com
No comments:
Post a Comment