एक घंटे बाद तो नहीं पर शाम की चाय तक सहगल फॅमिली को उनको तीसरा रूम भी मिल गया था
तब कहीं जाकर सहगल साहब ने चैन की सांस ली
उन्होंने अपनी बेटी नेहा और भतीजी सुमन को उस नए मिले रूम में चेक इन करा दिया
पर जब वो दोनों बच्चियों से मिलने उनके रूम पर गए तो हैरान रह गए की ये वो रूम नहीं था ,
जो उन्होंने सुबह देखा था
उन्होंने मन ही मन मोहन को एक और मोटी गाली दी
" साला , भेंचो कितना झूठा है
ये तो रूम नंबर -8 है , मैं तो सुबह इसके सामने वाला रूम नंबर -7 देखा था
इसका मतलब सुबह दो रूम खाली थे और ये इतना नाटक कर रहा था
की जैसे सारा होटल ही फुल है "
उन्होंने चेक किया तो पाया की रूम नंबर -7 अब बंद पड़ा था
"साले ने उस रूम को बेच दिया होगा दुगने - तिगने दामों में किसी और को "
पर फिर उन्हें ये समझ नहीं आ रहा था ,
की अगर ऐसा था तो फिर मोहन ने उन्हें तीसरा रूम ON THE HOUSE ( फ्री ) में क्यों दिया ?
वो उनको भी रूम ज्यादा पैसे लेकर दे सकता था
उन्होंने कौनसा रूम फ्री में माँगा था , वो तो ज्यादा पैसे देने को तैयार थे
" अजीब पागल आदमी है साला ये मोहन "
सहगल साहब मन ही मन बुदबुदाये
रात को डिनर लाउन्ज में सहगल साहब ने मोहन को दूर से देखा था
वो अब सामान्य लग रहा था और डिनर कर रहे टूरिस्ट्स से बात कर रहा था
सहगल साहब से नज़र मिलते ही मोहन असहज सा हो गया
उसने फीकी मुस्कान के साथ सर झुका कर सहगल साहब को विश किया
और पास खड़े स्टाफ को काम समझा कर तेजी से लाउन्ज से बाहर गार्डन में निकल गया
ये पहेली क्या है , सहगल साहब को कुछ समझ नहीं आ रहा था
तभी उन्हें दूर वेटर रामदीन दूसरे टूरिस्ट्स को खाना सर्व करते दिखा
उन्होंने इशारे से रामदीन को लाउन्ज के एक कोने में बुलाया
" रूम ठीक है ना सर ? "
रामदीन खुशामती स्वर में बोल रहा था
" रूम तो ठीक है , पर ये वो रूम तो नहीं है , जो तुमने सुबह दिखाया था "
" वो तो रूम नंबर 7 था , हमें तो रूम नंबर 8 मिला है "
सहगल साहब ने 500 का नोट रामदीन की ऊपर वाली जेब में ठूँसते हुए पूछा
" सर क्या 7 नंबर क्या 8 नंबर , आपको रूम चाहिए था , मिल गया ना "
" आज आपका काम करने के चक्कर में मैंने अपनी नौकरी दाँव पर लगाईं है "
" तो 500 के एक नोट से काम नहीं चलेगा कम से कम 5000 रूपये दीजिये सर
वैसे भी आपको तो 30 - 35 हजार का फायदा हो गया
चार दिन के लिए सुइट रूम फ्री में ... आपकी तो चांदी हो गयी सर "
सहगल साहब ने घूरकर रामदीन को देखा
और फिर रूककर कुछ सोचते हुए 500 के 3 और नोट निकाले और रामदीन की जेब में ठूँस दिये
और बोले " ज्यादा लालच अच्छा नहीं होता , अब भागो यहाँ से "
सहगल साहब का कड़ा स्वर सुनकर रामदीन का मुँह बन गया था
पर वो मरता क्या न करता , अब उसके हाथ में था भी क्या
तो वो बुरा सा मुँह बनाते हुए जाने लगा
" अच्छा सुनो वो रूम नंबर 7 कितने में चढ़ा ?? "
सहगल साहब से जब रहा ना गया तो आखिरकार उन्होंने दूर जाते रामदीन से पूछ ही लिया
" सर वो रूम नंबर 7 तो अब भी खाली है , वो तो हमेशा ही खाली रहता है "
" अब मैं जाता हूँ सर , कहीं मोहन सर ने मुझे आपके साथ देख लिया तो मेरी नौकरी तो जानी ही जानी है "
रामदीन को पता था की सहगल साहब अब खाली पीली कुछ ना कुछ पूछते ही रहेंगे
पर उसका अपना काम तो हो चुका था
अब किसी दूसरे टूरिस्ट् की जीहजूरी की जाये तो कुछ और पैसे बनें
इसलिए रामदीन वापिस डिनर लाउन्ज में लौट आया
डिनर करने के दौरान भी सहगल साहब असमंजस में ही रहे
परिवार के बाकी सदस्य बीच बीच में कुछ पूछ लेते तो वो हां ना में जवाब दे देते
पर मन उनका बार - बार इसी पहेली में था की मोहन ने ऐसा किया क्यों ?
ऊपर से रामदीन का ये कहना " सर वो रूम नंबर 7 तो अब भी खाली है , वो तो हमेशा ही खाली रहता है "
उनको और भी हैरान कर रहा था
" आखिर क्यों कोई होटल अपना सबसे महँगा सुइट पूरे साल खाली रखेगा ? "
" आज की दुनिया में जहाँ हर वस्तु हर साधन को ज्यादा से ज्यादा निचोड़ कर
उसकी आखिरी बूँद तक निकाल लेने की होड़ लगी है , ऐसी बेवकूफी ??? "
" क्यों ?? "
आज रात सहगल साहब को नींद नहीं आ रही थी
वो अपने रूम में में अकेले करवटें बदल रहे थे
जाने क्या सोचकर वो बाहर होटल गार्डन में निकल आये
आधी रात में बिनसर , हड्डियों को गला देने की हद तक सर्द हो चुका था
ऊपर से आज तो जानलेवा हवा भी चल रही थी
वो वापिस रूम की तरफ वापिस जा ही रहे थे की उन्हें गार्डन के दूसरे कोने में एक अलाव जलता दिखाई दिया
" ये कौन है , जो इतनी सर्दी में .... "
गौर से देखने पर उन्होंने पहचान लिया था की अलाव की आग के सामने गिलास हाथ में लिए बैठा वो साया मोहन ही था
दूर से मोहन का चेहरा जैसे आग का एक गोला लग रहा था
सहगल साहब के कदम अपने आप ही सम्मोहित से उस ओर चल दिये
" गुड इवनिंग मोहन जी "
सहगल जी ने अचानक मोहन के पास जाकर धीरे से विश किया था
उनको अचानक अपने पास पाकर मोहन अचकचा कर खड़ा हो गया था
जैसे किसी ने उसे चोरी करते पकड़ लिया हो
मोहन को हड़बड़ाते देख सहगल साहब भी कुछ विचलित से हो गए और बोले
" मोहन जी आप प्लीज बैठे रहिये , मैं तो जा रहा हूँ "
" दूर से आपको देखा तो सोचा आपसे माफ़ी मांग लूँ "
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