" जीवन का एक और बरस बीत गया
चुपके से यही कहते कहते
कब तलक इंतज़ार करूँ मैं तेरा
निरुद्देश्यीय यूहीं बहते बहते
ऐसा तो नहीं है की कोई और नहीं मिला मुझको
बीतें बरसों में बीसियों मिले , दसियों दिल को भी लगे ,
एक - दो तो थक गये इकरार .. मुझसे करते करते
पर क्या करूँ ? मेरी रूह तो बेसाख्ता अब भी
बस तुझसे ही लिपटी रहती है
मैं कितना भी चाहूँ , पर ये तो बस
तुझ तक ही सिमटी रहती है
कई बार कोशिश भी की मैंने की मैं
खींचकर अलग कर दूँ इसको .. तुझसे
पर हर बार मेरी ही रूह उधड़ जाती है
मरने लगता हूँ मैं , कोशिश यही करते करते
अब तो लगता है की यही नियति है मेरी
की मैं यूहीं त्रिशंकु रहूँ .. झूलता रहूँ
धरती और अम्बर के बीच में कहीं
लटका रहूँ .. उड़ता रहूँ
ना जिऊ ना मरुँ ,
बस यूहीं अटका रहूँ
प्यार के बिना यूँही रूखा सूखा , रसहीन
जीता रहूँ .. सड़ता रहूँ
जीवन का एक और बरस बीत गया
चुपके से यही कहते कहते
कब तलक इंतज़ार करूँ मैं तेरा
निरुद्देश्यीय यूहीं बहते बहते "
( मनोज गुप्ता )
#man0707
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