" अंतर मन में जल रहा हूँ
थका टूटा सा चल रहा हूँ
आग में घिरता जा रहा हूँ
फिर भी वहीँ बिचल रहा हूँ
किसको समझाऊँ और कैसे समझाऊँ
अंतर की टूटन किसको दिखलाऊँ
तन .. मन .. आत्मा सब सुलग रहें है
मरहम का फाहा किससे लगवाऊँ
सब अपनी खुद की आगों में घिरें हैं
हसरत से मुझको ताक रहें हैं
उनको लगता है मैं निकालूँगा उन्हें
तो अब मैं .. खुद को किससे निकलवाऊँ
अंतर मन में जल रहा हूँ
थका टूटा सा चल रहा हूँ
आग में घिरता जा रहा हूँ
फिर भी वहीँ बिचल रहा हूँ "
( लेखक - मनोज गुप्ता )
#man0707
manojgupta0707.blogspot.com
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