" सोचता था की बहुत महान हूँ मैं
अपनी इस सोच में ही परेशान हूँ मैं
जिनसे ज़िन्दगी गुलज़ार है मेरी
आज उनसे ही पशेमान (सॉरी ) हूँ मैं
उम्र भर फूल बिछाये जिसने , मेरी राहों में
रात दिन का सुकून पाया मैंने , जिनके सायों में
जिनको पलकों पर सजाना था मुझको
उनको ही हर बार गिराया है मैंने
तुमने नाहक ही इंसान समझा था मुझको
इंसान नहीं " एनिमल " हूँ मैं
आज पशेमान (सॉरी ) हूँ कल फिर बदल जाऊंगा
इंसान नहीं " एनिमल " हूँ .. शैतान हूँ मैं
सोचता था की बहुत महान हूँ मैं
अपनी इस सोच में ही परेशान हूँ मैं
जिनसे ज़िन्दगी गुलज़ार है मेरी
आज उनसे ही पशेमान (सॉरी ) हूँ मैं "
लेखक - मनोज गुप्ता
#man0707
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