Saturday, January 20, 2024

ना जाने क्यों | HINDI KAVITA


 


" ना जाने क्यों

आज भी ये यकीन है मुझे 

के किसी ना किसी रोज़

तुम जरूर वापिस आओगी , 


और तब जी उठेगा वो प्रौढ़ हो चुका फूल , 

जो कभी तुमने मुझे दिया था 

और जो आज भी तुम्हारे इंतज़ार में ,

मेरी डायरी के बीच मृतप्राय सा पड़ा है 


जाग उठ्ठेंगे , खिल उठ्ठेंगें 

वो पूरे - अधूरे से स्केच तुम्हारे . 

जो कभी मेरी कल्पना से उब्जे थे 

और जो बरसों बाद

आज भी मेरी स्केच-बुक में बिखरे पड़ें हैं 

बरसों से उनीदें से हैं ....

उदास हैं , सोयें पड़ें हैं

 

और हाँ , तुम्हारा वो रूमाल भी फिर ,

फिर से महक उठेगा

जिसके एक कोने पर तुम्हारे नाम का पहला अक्षर टंका है 

जो कभी मैंने चुरा लिया था 

और जो आज भी करीने से

मेरे दिल के एक कोने में सजा है .. महक रहा है 


वो बेरंग हो चुकी सिनेमा की दो टिकटें भी

फिर से रंगदार हो जायेंगी 

जो बरसों से मुड़ी-तुड़ी सी पड़ी हैं 

ये गवाह हैं की क़भी हम भी अकेले सिनेमा गये थे 

पॉप कॉर्न खाये थे और एक ही स्ट्रॉ से थम्सअप पी थी 


ना जाने क्यों

आज भी ये यकीन है मुझे 

के किसी ना किसी रोज़

तुम जरूर वापिस आओगी 


और तब .........  "

( मनोज गुप्ता )

#man0707

manojgupta0707.blogspot.com





No comments:

Post a Comment