थको ... रुको ... आराम करो
और फिरसे उड़ो
जीवन बहने का नाम है
ना पत्थर बन , तुम पड़ो
पत्थर बनोगे तो
चारों ओर खरपतवार उग जायेगी
धंसते जाओगे और भी गहरे
नियति तुम्हारा स्वाभिमान भी ले जायेगी
फिर एक दिन ऐसा भी आएगा
के लोग सिक्का फेंकतें आगे बढ़ जायेंगे
और तुम यूँहीं आँखें मूंदे पड़े रहोगे
इंसान से कीड़ा बन जाओगे
माना के पंख टूट गयें हैं
और मन भी दरक गया है
जिनको कभी अपने पंखों पर उठाये उड़े थे
वो उड़ना सीखते ही विपरीत दिशा में सरक गया है
मगर तुम फिर भी उठो
टूटे पंखों को अपने पसीने से सीलो
सांतवा नहीं तो पहला आसमान ही सही
उड़ चलो और नये पंछियों से मिलो
थको ... रुको ... आराम करो
और फिरसे उड़ो
जीवन बहने का नाम है
ना पत्थर बन , तुम पड़ो
( लेखक - मनोज गुप्ता )
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