Thursday, November 27, 2014

तू मुझे कर रही अनदेखा....

तू मुझे कर रही अनदेखा
तेरी बेरुखी का मुझे गम नहीं
मेरे लिए तो प्यार जिंदगी है
तुझे दूर से ही सही....
प्यार करता रहू
ये इनायत भी कुछ कम नहीं.
--मन--

Wednesday, November 26, 2014

और बेइंतहा तन्हाईयाँ.....

जिस दिल में गूंजती थी कभी ...
प्यार की शहनाईयां.
आज वहा बस एक  सुनसान है...
ग़ुरबत है...
और बेइंतहा तन्हाईयाँ.
--सु--

Wednesday, November 19, 2014

वो आये मेरे ख्वाब में...

आज की सुबह बेहद  हसीं है क्युकी
उनका दीदार हो गया.
वो आये मेरे ख्वाब में...
बोले......
मुझे भी प्यार हो गया.
मै क्यों जानू के इन..
सुबह के ख्वाबो की हक़ीक़त क्या है.?
मै क्यों जानू के इन..
सुबह के ख्वाबो की हक़ीक़त क्या है.?
बन्दे का तो कुछ और साल जीने का..
आधार हो गया.
--मन--

Saturday, November 15, 2014

कनखियों से मुझे देख-देख....

कनखियों से मुझे देख-देख....
कब तक जियेगी तू?
कनखियों से मुझे देख-देख....
कब तक जियेगी तू?
कमबख्त एक बार नज़र भर के ही देख ले
तू भी जी पाएगी
मै भी मर पाउँगा।
--मन--

Thursday, November 13, 2014

मै जब तब सांस भी लू ...

खुदा करे के मोहब्बत में वो मकाम आये
मै जब तब सांस भी लू ...
तेरा ही नाम आये.
तू जिंदगी में शामिल हों पाये तो अच्छा ..
ना हों पाये तोभी ..कोई बात नहीं.
पर मेरी मौत के बाद ....
हर दिन तेरा सलाम आये.

--मन--

इश्क़ की आग...

इश्क़ की आग ने इस कदर तपाया मुझको
खरा सोना भी बना...
फिर फ़क़त कोयला ही बन सका.
--मन--

तेरी चाहत में......

तेरी चाहत में इस कदर रूहानी हों रहा हू
दीन से ...दुनिया से बेमानी हों रहा हू
*मै* तो बदस्तूर खत्म हों रहा मेरा
खुदा बनने को ..... हों रहा हू.
--मन--

फ़क़त एक ही ख्वाइश है तेरे दीवाने की

फ़क़त एक ही ख्वाइश है तेरे दीवाने की
के तू हो रूबरू....
और हों कुछ तनहा सुकून के पल
वर्ना तो क्या ये सारे जहाँ की दौलत?
और क्या ये खुदा का मिल जाना?

--मन--

Friday, November 7, 2014

फाकामस्ती...

अच्छा हुआ वो चले गए
जो केवल पैसा समझते है
ये दिलवालो की बस्ती है
जहां रूहानी ख़ुशी
पर..... फाकामस्ती है

मै तुझसे फिर मिलूंगा ( कविता )

(  मैं पहले ही ये कह दूँ की मेरी ये कविता अमृता प्रीतम जी की कविता से प्रेरित है
मैं खुद को रोक ही नहीं पाया इस कविता के साये में अपने जज्बात व्यक्त करने को  )
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मै तुझसे फिर मिलूंगा
कब...कहाँ......
किस तरह.....
पता नहीं .

शायद तेरी क्लास का बैकबेंचेर स्टूडेंट बनके
तुझको टीज़ करूंगा
या फिर तेरे ब्लैकबोर्ड के कोने में एक अधमिटा चित्र रहके
तुझको खामोश तकता रहूंगा.
पता नहीं किस तरह ...
और कैसे..
पर मै तुझसे जरूर मिलूंगा.

जब सुबह को तू सैर को निकलेगी
मै ठंडी हवा बनके तेरे गालों को छू लूँगा
या फिर नरम नरम घास बनके तेरे कदमो का चुम्बन लूँगा
मुझको खुद पता नहीं कैसे,
और कहाँ ...
पर मै मिलूंगा.... जरूर मिलूंगा.

सर्दियों की रातों में जब तू अलाव जलायेगी
मै एक तपिश बनके तेरी हथेलियों के बीच पिसता रहूँगा
या फिर एक बेरहम अंगारा उड़ के तेरी शाल में एक छेद बनूँगा
मै सच में नहीं जानता कहा और कैसे..
पर इतना जानता हु के मै तुझ से मिलूंगा
जरूर मिलूंगा

ये जिस्म ख़तम होता है
तो सबकुछ ख़त्म नहीं हो जाता
यादो के मीठे जख्म कायनात तक साथ रहते है
मै उन जख्मो के मीठे दर्द को हमेशा पोसता रहूँगा.
और कभी न कभी तुझसे जरूर मिलूंगा
पर पता नहीं कैसे..
कब..
और कहा...
पर जरूर मिलूंगा..

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Tuesday, November 4, 2014

उनकी बेरुखी

उनकी बेरुखी को सहना मुश्किल,
और मौत में आसानी लगती है
वो तो खुश है अपनी जिंदगानी में
हमको अपनी ही जिंदगी बेमानी लगती है.
--मन--

उनकी आँखों के ये दो ख़ूबसूरत मदहोश चराग

उनकी आँखों के ये दो ख़ूबसूरत मदहोश चराग
जलते है...
तो दुनिया ये रोशन सी लगे
मेरे मौला तू रौशनी इनकी..
बढ़ा और बढ़ा..
के इस बे-नूर के जीवन में..
कुछ तो नूर आ पाये.
--मन--

तेरी मेरी प्रेम कहानी ...

तेरी मेरी प्रेम कहानी का अंजाम होगा क्या?
खुदा जाने
मै तो बस इश्क़ किये जा रहा हू
बेख़ौफ़,
बेपरवाह,
बेपनाह.....
बे-मुर्रवत
तुझसे....

बरसो बाद भी

मेरी आँखे तो सदा बरसती रही,
पर तेरी आँखों में
कभी नमी ना हुई

मेरी वफ़ा में...
तेरी बेरुखी में
बरसो बाद भी
कहीं कोई कमी ना हुई.

गुस्ताखी....

ज़रूर मैंने ही कोई गुस्ताखी कर दी होगी
वर्ना ज़माना तो कहे के -तू आमिर(शाह) है
इसीलिए जहा ज़माना मस्त है तेरी दिलदारी में
तेरा आशिक़ ही बेजान सुनसान सा है
अपनों में रहता है पर अनजान सा है
हर शै में तुझे ढूँढता बियाबान सा है