Wednesday, December 23, 2020

कूबकू (गली-मोहल्ले में ) आम हुआ इश्क़ मेरा



कूबकू (गली-मोहल्ले में ) आम हुआ इश्क़ मेरा
तो क्या
तुझको ही खबर ना हुयी क्यूँकर
तो क्या

ये मेरा है, बिलकुल ,केवल और सिर्फ मेरा 
तुझको क्या 

कूबकू (गली-मोहल्ले में ) आम हुआ इश्क़ मेरा
तो क्या
तुझको ही खबर ना हुयी क्यूँकर
तो क्या।

झीलों जैसी आँखों वाली



झीलों जैसी आँखों वाली
तुम बेहद गहरी लगती हो

तुम ये कहती हो 
तुम वो कहती हो 
जो कहती हो अच्छी लगती हो 

कितनी गहरी हो तुम ,बस तुम खुद जानती हो 

कितने तूफ़ान ,कितनी इच्छायें ,कितना अनकहा ,कितना सपना 

छुपा है अंतर में तेरे ,बस तुम खुद जानती हो 

झीलों जैसी आँखों वाली
तुम बेहद गहरी लगती हो.



Sunday, October 11, 2020

जब हमने चोर पकड़ा




बात उन दिनों की है 

जब हम त्रिनगर रहा करते थे और शरीर और आँखों दोनों की सेहत बनाने रोज़ सुबह तड़के,

दोस्तों का सारा लाव-लश्कर लेकर लारेन्स रोड के हथौड़ा राम पार्क जाया करते थे 

हम कोई ग्यारहवीं-बाहरवीं कक्षा में रहे होंगे 

सो बात होगी करीब 1990 के आस-पास की 

वैसे ये हथौडाराम पार्क हमारे घर से ज्यादा से ज्यादा कोई दो-तीन किलोमीटर ही दूर रहा होगा 

पर साहब पैदल कौन चले 

सो स्कूटर ,मोटर साइकिल जो भी मिले ,उसी पर सवारी होती थी 

हेलमेट अमूमन होता नहीं था 

होता भी होगा तो हमसे लगाया नहीं जाता था 

अरे यार हेलमेट लगाने से हमारा चार्मिंग चेहरा छुप जाता था ना :)

और स्कूटर/मोटर साइकिल को लॉक करके खड़ा करना भी हमारी शान के खिलाफ था 

तो एक भले दिन तड़के भोर ही मैं ,भारत ,लाला ... 

( अब हम तीनो तो थे ही ,एक दो जन  और भी जरूर रहे होंगे पर अब याद नहीं कौन-कौन और था )

पहुंच गए हथोड़ाराम पार्क 

स्कूटर खड़ा किया पार्क के गेट के बाहर

और अपन सब तो मस्त चले गए पार्क में मटरगश्ती करने 

एक घंटे बाद बाहर आते है तो 

देखते क्या हैं की  

एक चोर हमारा स्कूटर स्टार्ट कर बस भागने की फ़िराक में ही है 

हम सारे तो ये भागे और वो भागे 

और जा पकड़ा साले को 

और फिर हम चारों -पाँचो ने मिलकर उसका  जो कुटापा उतारा है की 

ये साला चोर बार-बार कुछ बोलना चाहता था 

पर हमने साले की इतनी पूजा की कि उसकी बोलती ही बंद कर दी 

उस चोर की भरपूर पूजा के बाद  

अब सलाह ये बनी की इस साले चोर को थाने में दे दिया जाए 

तो अच्छा शहरी होने का फ़र्ज़ भी पूरा हो जाए 

और पुलिस की शाबासी भी मिले 

तो साहब उस चोर को सबने मिलकर ऐसे जकड़ा जैसे ऑक्टोपस अपनी अनगिनत भुजाओ से अपने शिकार को जकड़ता है 

और पहुंच गए पुलिस थाना लॉरेंस रोड 

सबके कॉलर ऊँचे थे 

अरे क्यों ना हो इतना नेक काम जो किया था 

एक चोर पकड़ा था 

अभी जैसे ही हम थाने के गेट के अंदर पहुंचे  

एक पुलिस सिपाही भागता हुआ हमारी तरफ ही आया 

हम सब समझ गए वो हमें शाबासी देने आ रहा है :)

हमारे कॉलर और हमारी गर्दन कुछ और तन गयी 

पास आते ही वो पुलिस सिपाही उस चोर से बोला 

"रे सतबीर यो के होया रे 

किसने मारा तने ?

तू तो आज हथोड़ाराम पार्क रोड पे ड्यूटी पे था 

अरे बोल ना के होया "

इतना सुनना  था 

हम सबकी सांस ऊपर की ऊपर 

नीचे की नीचे 

ऑक्टोपस की मजबूत पकड़ एकदम से ढीली पड़ गयी

कॉलर और गर्दन ही नहीं 

बल्कि हमारी वो मूंछे जो अभी ठीक से उगी भी नहीं थी 

यू शेप से एकदम से एन शेप हो गयी  :)

असल में वो चोर कोई चोर नहीं बल्कि पुलिस सिपाही सतबीर था 

जो उस दिन हथोड़ाराम पार्क रोड पे सादी वर्दी में ड्यूटी पे था 

उस रोड पे कई गर्ल्स स्कूल थे 

तो सुबह सुबह आवारा लड़कों का एक हुजूम स्कूटर और मोटर-साइकिल पर स्कूल जाने वाली लड़कियों को छेड़ने आया करता था 

उस दिन अपनी ड्यूटी के दौरान ही सिपाही सतबीर ने हमारा स्कूटर  चेक किया 

अब जैसा की मैंने पहले ही बताया की हेलमेट के साथ-साथ स्कूटर में लॉक लगाना भी हमारी शान के खिलाफ था 

सो सादी वर्दी में ड्यूटी पे तैनात सिपाही सतबीर हमारे बिना लॉक वाले आवारा खड़े स्कूटर को थाने ले जा रहा था 

जब हमने उसे चोर समझ कर पकड़ा और उसकी खूब पूजा कर दी :)

वैसे थाने में पूजा तो हम सबकी भी खूब हुयी  :)

थानेदार साब कहने रहे 

"रे सतबीर छोड दे 

बालक हैं "

पर सतबीर सिपाही ने तो ना थानेदार की एक सुनी न हमारी दो 

उसने तो उस दिन अपनी बरसों की तमन्ना खूब तबीयत से पूरी की  

और उस दिन भरपूर पूजा के बाद ही हमसब को घर जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ 

और यकीन मानिये 

वो दिन है और आज का दिन है 

हम सब ने कभी फिर कोई चोर नहीं पकड़ा :))


Friday, August 28, 2020

तुम आज भी उतनी ही हसीन हो

मुझको मालूम है 
तुम आज भी उतनी ही हसीन हो
ये तो मेरी नज़र है 
जो धुंधलाई है 
समय बदलता है 
पर भला चाँद,तारे,नज़ारे 
भी कभी बदले है 
मैं इंसान हूँ ,सो बदला हूँ
मेरी बौनाई है 


मुझको मालूम है 
तुम आज भी उतनी ही हसीन हो.


 

Saturday, July 18, 2020

मेरा द्वन्द स्वयं से है

अक्सर हम कहते हैं की
"आगे बढ़ना है "
" नए शिखर छूने हैं "
" चलना ही जीवन है और रुकना मौत "
और ऐसी ही कुछ बहुत सारी बातें :)

बढ़ना है,
जीतना है
ये सबको पता है
पर मुझे किस और बढ़ना है ?
मुझे किसको जीतना है ?
क्या सही में हमको ये पता है
जबकि यही पता करना तो सबसे ज्यादा जरूरी है

अन्य सभी लोगों की तरह
जीवन में मैंने भी लोगों से खूब इर्षा की है
लोगों को आगे बढ़ते देख,
खूब पैसा कमाते देख
मैं भी जला हूँ, कुढ़ा हूँ :)
(और इस जलन और कुढ़न की एक बहुत बुरी बात ये है की
अक्सर ये अपने आस-पास के लोगों से ही सबसे ज्यादा होती है
जैसे दोस्त, नज़दीकी रिश्तेदार, पड़ोसी आदि आदि
अब मुझे या आपको मुकेश अम्बानी से तो जलन नहीं होती ना :) )

मेरे साथ भी जीवन में ऐसा कम से कम दो बार तो हुआ है
जब अपने ही किसी बहुत पास के व्यक्ति से मुझे ये ईर्ष्या हुयी ही है
एक शख्स से तो मेरे पापा मुझे कम्पेयर करते थे
और बार-बार याद दिलाते थे
की वो कितना कामयाब है और मैं कितना नाकामयाब :)
दुसरे शख्स से मैं खुद ही अपने आप को कम्पेयर करने लगा
और उसकी कामयाबी देखकर परेशान रहने लगा

वो पापा के एक गहरे दोस्त का बेटा था
पापा और उनके वो दोस्त रोज़ शाम को मिलकर ताश खेला करते
और घर-परिवार की , दीन-दुनिया की बातें कर अपना समय बिताते
जब भी मुझे सुबह-सुबह तलब कर ये समझाया जाता की मैं कितना नाकारा हूँ
मैं समझ जाता की पापा के दोस्त के उस बेटे ने फिर कोई नयी तरक्की की है
जिसका दुःख और जलन पापा के मन में है
और उस दुःख की छाया में
मेरा मन , मेरा आत्मविश्वास , मेरा स्वाभिमान
सब बिखर जाता और मैं पापा को कभी ये समझा नहीं पाता की
मैं भी कोशिश कर रहा हूँ, अपनी पूरी क्षमता के साथ

आज पापा के दोस्त का वो बेटा दुर्भाग्य से इस दुनिया में नहीं है
अभी कुछ ही साल पहले उसने स्वयं अपना जीवन ख़त्म कर लिया था
ये दुखभरा कदम लेने से पहले शायद उसने अति-आत्मविश्वास में कुछ ऐसे काम भी किये की
अपने परिवार की पूरी जायदाद से भी दो गुना क़र्ज़ मरते समय उसके सर पर था
जिसे चुकाना उसे असंभव लगा
और उसने अपना जीवन समाप्त कर लिया

दूसरे केस में मैंने खुद अपने को अपने एक पुराने स्कूल सहपाठी से कम्पेयर करना शुरू कर दिया
मेरा वो सहपाठी स्कूल के दिनों में पढ़ाई में मुझसे कोसों पीछे था
पर अब मेरे ही बिज़नेस में , मुझसे मीलों आगे
वो जब-जब मुझसे बिज़नेस मीटिंग्स में मिलता
तो उसकी तरक्की और उड़ान देखकर मुझे हमेशा ईर्ष्या होती
मुझे हमेशा लगता की जब मैं पढ़ाई में उससे इतना आगे था तो ,
आज भी मैं आगे क्यों नहीं हूँ ?
जब मैं पढ़ाई आगे था तो मतलब मेरा दिमाग उससे ज्यादा है
तो फिर आज मैं पीछे क्यों हूँ ?
दुःख की बात है की आज वो सहपाठी भी इस दुनिया में नहीं है
अभी कोरोना काल में उसका देहांत हुआ
कोई कहता है कोरोना से देहांत हुआ ,
कोई कहता है ज्यादा शराब पीने से लिवर पहले ही खराब था
कारण कुछ भी रहा हो पर सचाई ये है की उसके जीवन की दौड़ का अंत हो गया


इस दोनों घटनाओं को बताने का तात्पर्य केवल इतना सा है की
हम किसी दूसरे की सफलता देख कर उस व्यक्ति से अपनी तुलना करने लगते हैं
हमें नहीं पता के उस व्यक्ति सफलता जो दिख रही है ,
उसकी नीव कितनी मजबूत है
उस व्यक्ति ने उस सफलता को पाने के लिए जीवन की क्या कीमत दी है
शायद अपना स्वास्थय ,
शायद अपना पारिवारिक सुख-शांति ,
या फिर शायद अपना चरित्र ही
हो सकता है उसकी ये चमक-दमक दिखावा हो
या हो सकता है
सच में उस व्यक्ति ने हमसे ज्यादा शारीरिक और मानसिक श्रम किया हो
और वाकई वो हमसे बेहतर जीवन का का योग्य पात्र हो

हम इस सब में से कुछ भी तो नहीं जानते
और इन सब बातों पर हमारा कण्ट्रोल भी कहाँ है ?
हमारा कण्ट्रोल तो बस हमारे स्वयं के आचरण पर है
सच कहें तो
हमारे हाथ में केवल हमारा कर्म है
और उसका फल भी हमारे वश में नहीं है
फल मिलेगा
कब मिलेगा , कितना मिलेगा , या मिलेगा भी या नहीं
कौन जानता है
आने वाले कल में क्या छुपा है हमें नहीं पता
और हम बेवजह किसी दूसरे के जीवन से अपना जीवन कम्पेयर कर-कर के
अपनी जान हलकान करते रहते हैं
जबकि हमें उस दूसरे व्यक्ति के जीवन,
उसके जीवन-संघर्ष के बारे में कुछ भी नहीं पता
मुझे तो लगता है की

मेरे हाथ में सिर्फ मेरा कर्म है , और कुछ भी नहीं 
तो मेरा द्वन्द भी सिर्फ खुद से है और किसी से नहीं 
मुझे हर आने वाले दिन में स्वयं को , जो मैं आज हूँ उससे बेहतर बनाना है ,
हर रोज़ 
" मेरा द्वन्द भी सिर्फ खुद से है "
यही जीवन-मंत्र है

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Monday, July 13, 2020

मनु और सूसू

दोस्ती और इश्क़
एक जैसे होते हैं :)
कभी तो ये पहली नज़र में ही हो जाते हैं
और कभी इसे होने में बरसों लग जाते हैं :)
मनु और सुशील की मुलाकात तो कोई 30 साल पुरानी है
पर उनकी दोस्ती भी कोई पहली बार में ही मिलते ही नहीं हुयी
दोनों की दोस्ती होने में भी सालों लगे :)


असल में गलती मनु की ही थी
मनु था ही इतना नकचढ़ा
और हमेशा दूसरों में कमियां निकलने वाला
मनु पढ़ने में थोड़ा अच्छा था
दिखता भी अच्छा था
तो मनु अपने सामने कहाँ किसी को कुछ समझता था ?
वहीँ सुशिल उस समय
थोड़ा मोटू-गब्दू और मोटा चश्मा लगाने वाला लड़का था
पर हमेशा हसने-हँसाने वाला
और गज़ब का हाजिरजवाब :)

मनु और सुशिल को
मनु के पड़ोस के दोस्त भारत ने मिलवाया
सुशिल और भारत एक ही स्कूल में पढ़ते थे
तो सुशिल अक्सर कभी भारत से वैसे ही मिलने ,
कभी क्रिकेट खेलने मनु और भारत की गली में आता रहता था

सुशिल अक्सर कोशिश करता मनु से बात करने की
पर मनु जाने किन हवाओं में रहता था
वो सुशिल से बात तो करता
पर गहरी दोस्ती जैसा कोई व्यवहार कहाँ करता था ?

मनु बहुत हैरान हुआ था
जब सुशिल ने मनु को अपने जन्मदिन पर अपने घर बुलाया
उस पार्टी में मनु को छोड़कर सारे बस सुशिल के स्कूल के दोस्त थे
उसी दिन सुशिल को घर में अपना अलग से एक कमरा भी मिला था
सुशिल बहुत खुश था
उसने कमरे को सजाया था
( यहाँ में ये बता दूँ की मनु और सुशिल में एक चीज़ थी
जो COMMON थी
वो थी "पूजा भट्ट "
मनु और सुशिल दोनों की फिल्म स्टार "पूजा भट्ट " के लिए दीवानगी :) )
पूजा भट्ट 1991 में अपनी मूवी "दिल है के मानता नहीं " के बाद
उस समय की सबसे मशहूर स्टार थी )


अपने 18 th जन्मदिन पर सुशिल ने अपने कमरे में
" पूजा भट्ट " का एक पोस्टर लगाया था
और आश्चर्यजनक रूप से उस पोस्टर का इनोग्रेशन कराया मनु से
सारे दोस्त हैरान थे :)
खुद मनु भी :)
क्युकी तब तक ना तो मनु और सुशिल में कोई गहरी दोस्ती थी
और उस पार्टी में सुशिल के बहुत पुराने और गहरे कई दोस्त मौजूद थे
इस बात से मनु को खुशी तो हुयी
पर तब भी मनु ने कोई ख़ास इंटरेस्ट नहीं दिखाया सुशिल से दोस्ती बढ़ाने में

समय बीता
कोइन्सिडेंट था की मनु और सुशिल को एक ही कॉलेज सत्यवती में दाखिला मिला
जहाँ सुशिल ने कोम्मेर्से में अच्छे मार्क्स लिए थे
वहीँ मनु ने साइंस में बहुत बुरे मार्क्स :)
तो मनु को साइंस में कहीं दाखिला नहीं मिला तो
मनु को भी कॉलेज में कॉमर्स ही लेना पड़ा
और अब अलग-अलग स्कूल
और अलग-अलग सब्जेक्ट पढ़ने वाले ये दोनों बन्दे
मनु और सुशिल
एक ही कॉलेज के एक ही कोर्स में
और यहाँ तक की एक ही सेक्शन में थे
यहाँ भी दोनों में दोस्ती तो थी
पर फिर वही बात
इतनी गहरी दोस्ती अब भी ना थी :)

मनु को फर्स्ट ईयर कॉलेज में भी खुद पे बहुत दम्भ था
उसे लगता था ये कॉलेज उसके लायक नहीं है
और इस कॉलेज के लड़के-लड़कियां तो बिलकुल उसके स्टैण्डर्ड के नहीं हैं
यहाँ तक की जब एक अच्छी, खूबसूरत लड़की ने
खुद मनु को आगे से प्रोपोज़ किया
पर वो भी मनु को अपने स्तर की नहीं लगी :)
और उसने मन कर दिया था :)
इतना बड़ा भोंदू था मनु :)
और अपनी झूठी शान में घिरा :)

पर वैसे कुछ भी कहें मनु थोड़ा शार्प तो था
तो पहले कभी भी कोम्मेर्से,अकाउंट्स
ना पढ़े होने के बावजूद मनु ने फर्स्ट ईयर में बहुत अच्छे मार्क्स लाये
यहाँ तक की " हिंदी " में उसने कॉलेज टॉप किया
और सेकंड ईयर में मनु का माइग्रेशन
मनु के मनपसंद शिवाजी कॉलेज में हो गया :)
अरे पर ये क्या सुशिल भी अच्छे मार्क्स लाया था
और सुशिल का माइग्रेशन भी शिवाजी कॉलेज में हो गया था :)

अब शिवाजी कॉलेज में
मनु और सुशिल की दोस्ती ढंग से शुरू हुयी
अब मनु ने जाना के
सुशिल आखिर बन्दा क्या है :)
सुशिल इतना हाज़िरजवाब ,
हसने-हसाने वाला
शरारती इतना के एक बार शर्त लगने पर
चलती हुयी क्लास में ,
जहाँ प्रोफेसर पढ़ा रहे थे
उसने धड़ाम से गेट खोला और एक सिक्का प्रोफेसर को खींच के मारा
वो सिक्का दो मिनिट तक फर्श चूमता हुआ आवाज़ करता रहा
और प्रोफेसर हैरान के ये क्या हुआ :)
और सारे स्टूडेंट्स का हँस-हँस के बुरा हाल :)

और दूसरी घटना में
मनु और सुशिल की क्लास की लड़कियों ने
एक खाली पड़ी क्लासरूम को ही अपना गर्ल्स अड्डा बना लिया था
वो रोज़ आती और उस क्लासरूम में अंदर जाकर अंदर से कुंडी लगा लेती
कई दिन ऐसे ही बीत गए
मनु,सुशिल और कई लड़के परेशान
के भाई ऐसे हम इन लड़कियों से कैसे बात करेंगें ,
दोस्ती करेंगें ,
और कैसे पटायेंगें :)
अगर ये रोज़ ऐसे ही एक कमरे के अंदर बंद रहेंगी तो :)
अब इसका भी तोड़ निकाला सुशिल ने ही :)
अगले दिन लड़कियां कॉलेज आईं
उस कमरे के अंदर गयीं
हैरान :)
कमरा बंद कैसे करें :)
क्युँकी किसी ने पूरा दरवाज़ा ही उतार कर गायब कर दिया था :)
ये भी शरारती सुशिल का काम था
लड़कियों ने हँस-हँस कर इस कारनामे की पूछताछ की :)
और इसी बातचीत में अब शिवाजी कॉलेज की सारी खूबसूरत लड़कियां
सुशिल और मनु के ग्रुप में थी
अब अच्छी दोस्त बन गयीं :)
( यहां तक की आज तक अच्छी दोस्त हैं :) )

साहसी भी गज़ब था सुशिल :)
एक बार
कॉलेज के दो गुंडों ने सुशिल को भरे कॉलेज में सीढ़ियों में रोका
एक ख़ास लड़की का नाम लेकर धमकाया
" तू आज के बाद उस लड़की से मिला तो ......      "
पर सुशिल तो आखिर सुशिल था :)
अगले दिन फिर सुशिल "अमेरिकनों रेस्त्रो " में उसी लड़की से मिलने गया :)
उसके साथ कॉफ़ी पी
वो दोनों गुंडे वहां आये
उन्होंने सुशिल को फिर धमकाया
पर सुशिल भाई तो फिर सुशिल भाई है :)
वो फिर भी तस से मस नहीं हुआ :)
गज़ब का हिम्मती, गज़ब का हसोड़ :)

कब कैसे मनु का गहरा दोस्त बनता चला गया था सुशिल
मनु को पता ही नहीं चला
दोनों साथ हँसे
कभी-कभी साथ दुखी भी हुए :)
अब तो बस जैसे-जैसे समय बीतता जा रहा है
और मनु और सुशिल की दोस्ती बढ़ती जा रही है
मनु को आज भी ये कहने में शर्म नहीं की इसका सारा श्रेय
सुशिल को जाता है
क्युकी मनु तो आज भी नहीं बदला
वैसा ही है
दम्भी और एरोगेंट :)


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Saturday, July 11, 2020

अंडा-करी


बात यूहीं कोई 1992 की है 
जी हाँ यही कोई बस 28 साल पहले की
पर मनु को आज भी याद है
मनु ने तभी नया-नया शिवाजी कॉलेज में सेकंड ईयर में एडमिशन लिया था
वैसे माइग्रेशन लिया था कहें ,
तो ज्यादा ठीक होगा  :)

अब उन दिनों कॉलेज में माइग्रेशन वाले स्टूडेंट्स को दूसरे दर्जे का समझा जाता था
जो स्टूडेंट्स पहले से कॉलेज में होते थे वो
इन माइग्रेशन वाले स्टूडेंट्स से ना तो बात करते थे
ना ही उन्हें अपने ग्रुप में एंट्री देते थे
मनु और उसके तीन दोस्तों ने एक साथ शिवाजी कॉलेज में माइग्रेशन लिया था
पर अब वो चारों कॉलेज में खुद को बड़ा आउट ऑफ़ प्लेस महसूस कर रहे थे
बहुत कोशिश करने के बाद भी
उनकी पुराने बने ग्रुप्स में कोई एंट्री ही नहीं हो पा रही थी
कई तिकड़म लगाए पर सब फ़ैल
बड़ी मुश्किल से अभी दो दिन पहले
भारती नाम की एक लड़की से बस सतही सी बातचीत हुयी थी

और मनु को हैरानी तब हुयी जब भारती ने अपने जन्मदिन (26 नवंबर ) के लिए
मनु और मनु के तीनों दोस्तों सुशिल,जीतू और महेश को अपने घर इन्वाइट कर लिया
इन चारों का तो खुशी और आश्चर्य से बुरा हाल था
पाँव ही धरती पर नहीं पड़ रहे थे
पहली बार कॉलेज की किसी लड़की ने उन्हें इस काबिल समझा था की
अपने घर ,
अपनी जन्मदिन की पार्टी में बुलाया था
भारती के घर जाने से पहले दिन चारों की एक स्पेशल मीटिंग हुयी
अजेंडा था-
पार्टी में क्या पहना जाएगा ,?
क्या गिफ्ट लेकर जाना है  ?
कौन किसको पिक करेगा ?

खैर तय समय धड़कता दिल लिए
अपने बेस्ट कपडे पहनकर
मनु और उसके तीनों दोस्त भारती के घर पहुँच गए थे
वहाँ भारती ही नहीं बल्कि
भारती की मम्मी, भाई और बहन ने
जब वहाँ चारों को अच्छे से अटेंड किया
तब जाकर मनु की जान में जान आयी
वरना तो एक डर ये भी था की कहीं ये उन चारों को नीचा दिखाने का कोई प्रैंक ना हो :)

बर्थडे पार्टी वास् जस्ट फैंटास्टिक :)
भारती ने अपने और भी कई दोस्तों को बुलाया हुआ था
कुछ कॉलेज के
कुछ स्कूल से
कुछ मोहल्ले से
ये मनु के लिए बिलकुल ही नया सा अनुभव था
किसी लड़की दोस्त के घर जाने का
और एक बर्थडे पार्टी अटेंड करने का
पार्टी ,म्यूजिक ,हँसी ,बेतकल्लुफ मौहोल
उससे भी अच्छा था वो प्यार
वो अपनापन
जिस तरह भारती ने मनु को उस पार्टी में ट्रीट किया :)

खाना वास् जस्ट ओसम :)
खासकर अंडा-करी :)
अब वेज फॅमिली से आनेवाले मनु ने पहली बार कोई नॉनवेज डिश खाई थी 
और भी इतनी टेस्टी की आज 28 साल बाद भी स्वाद याद है 
पता नहीं मनु ने कितनी बार अंडा-करी ली और खाई 


इतने साल बीत गए
मनु ने चौथाई दुनिया घूम ली
इतने इंटरनेशनल कुज़ीन खाये पर
वो अंडा-करी आज भी याद आती है
पता नहीं उस खाने में कुछ ख़ास था या
भारती और उसके प्यार-व्यवहार में

भारती आज भी ऐसी ही है
सॉफ्ट, बेतकल्लुफ, बेहतरीन इंसान
बेहतरीन दोस्त 
और अपनी अंडा-करी की तरह
अपने ऑर्बिट में आये हर व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक स्वाद और महक घोलती हुयी :)

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Tuesday, July 7, 2020

जीवन नदी में अक्सर

जीवन नदी में अक्सर
मुश्किल लहरें भी आती है
पर गौरतलब है आखिरकार
ये भी तो लौट जाती हैं

इन्हे शिद्दत से महसूस करना
कुछ घायल हो जाना
कुछ उदास भी शायद
और बस जाने देना इन लहरों को

इनसे दिल लगाना तो
इनके साथ बह जाना होगा
और जो बह जाते हैं
वो फिर कभी किनारे कहाँ पाते हैं?
वो तो फिर गहरे और गहरे
समंदर में डूबे जाते हैं  

जीवन नदी में अक्सर
मुश्किल लहरें भी आती है
पर गौरतलब है आखिरकार
ये भी तो लौट जाती हैं।

#मन7
#लाइफ #जीवन #life #jeewan  manojgupta0707.blogspot.com
(ये कविता सनी ,जो खुद एक बेहतरीन पोएट हैं ,के एक सन्देश से जन्मी है
तो इस कविता का सारा श्रेय मेरे दोस्त और बेटे "सनी गोयल" को :) )


Sunday, June 28, 2020

स्वप्निल-पंख


कपडे पुराने हैं तो क्या
दिल में नए अरमान हैं
रास्ते पथरीले ,पैर नंगे
मेरे हौसलों चट्टान हैं

कदम दर कदम आगे बढूँगी मैं
बढ़ना पडेगा कायनात को साथ
ये बेदर्द जालिम जख्म मिले जो
मेरे स्वप्निल-पंख समान हैं

एक बार जो परवाज़ भरी अब मैंने
छू लूँगी यूहीं आसमान को तेरे
मेरा इरादा उससे भी कहीं आगे
मेरा बुलंद स्वाभिमान है

कपडे पुराने हैं तो क्या
दिल में नए अरमान हैं
रास्ते पथरीले ,पैर नंगे
मेरे हौसलों की उड़ान है।

#बचपन #bachpan , manojgupta0707.blogspot.com
Writer- Manoj Gupta









Tuesday, June 23, 2020

विधवा ,( कहानी ), 10


"अनुज आपने ये क्या किया ?
ये आपने माँ को क्या बोल दिया
माँ का फोन आया था
बहुत दुखी थी वो
अनुज बरसों बाद शायद मेरी जिंदगी में कुछ अच्छा होने को है
अंकुर मुझसे शादी करना चाहता है
क्या आप मुझे खुश नहीं देखना चाहते ?
आपकी जिंदगी सुनहरी है अनुज
उसमे मेरे विधवा जीवन का दाग मत लगाइये
लाखो लडकियां आएंगी आपके लिए
कुंवारी,सुन्दर
आपके काबिल "
सरला फोन पर लगातार बोले जा रही थी

अनुज चुपचाप सुने जा रहा था
सरला का एक-एक शब्द दर्द में डूबा हुआ था
और फिर सरला ने फोन रख दिया

उस दिन की बातचीत के बाद सरला ने अनुज का फोन उठाना ही बंद कर दिया था
अनुज की बेचैनी बढ़ती जा रही थी
तो एक दिन उसने गाड़ी उठाई और पहुंच गया गुरूजी के आश्रम में
सरला उसे अचानक आया देख हैरान थी
और अनुज का हुलिया देख वो और भी परेशान हो गयी थी
दाढ़ी बढ़ी हुयी थी
कपडे बेमेल थे
चेहरा उतरा हुआ
"अनुज आप    आप ठीक तो हैं ?
ये क्या हाल बना रखा है आपने
आप बीमार हैं क्या ? "
बेचैनी से पूछा था सरला

"नहीं सरला मैं तुम्हारे बिना बिलकुल ठीक नहीं हूँ "
"तुम मान जाओ ना "
"मैं खुश रखूंगा तुम्हें "- बेचारगी के अंदाज़ में बोल रहा था अनुज

"अनुज आखिर आपने मुझे मजबूर कर दिया है
अपने जीवन का वो काला सच बताने के लिए
ये सुनने के बाद आप खुद मुझसे नफरत करने लगोगे "
"मैंने ये सच आज तक किसी को नहीं बताया
आपको बता रहीं हूँ "

"मैं एक अनाथ हूँ
मुझे नहीं पता मेरे माँ बाप कौन थे
अनाथाश्रम में पली
वहां सब लड़कियों के साथ व्यभिचार होता था
मेरे साथ भी हुआ
सरला नीचीं नज़रें किये धीरे-धीरे बोले जा रही थी
और अनुज का दिल डूबता जा रहा था
"अठारह की हुयी तो एक सामूहिक विवाह उत्सव में मेरी भी शादी कर गयी
पति उम्र में काफी बड़े थे
पर अच्छे थे
पर शराब और हर तरह के नशे के आदी थे
मैंने बहुत समझाया ,
नहीं मानते थे
एक दिन शराब के नशे में सड़क दुर्घटना में मारे गए
मैं एक बार फिर बेघर हो गयी
और फिर गुरूजी के इस विधवाश्रम में आ गयी
यहीं माँ से मुलाकात हुयी थी
और वो मुझे आपके घर ले आईं थी "

सरला और अनुज दोनों खामोश अपने में ही गुम थे
कुछ देर बाद सरला उठी और अपने कमरे की ओर चलने लगी
मन शांत था
चेहरे पे मुस्कराहट थी
जो वो पता करना चाहती थी
पता चल गया था
आखिर बड़ी मुश्किल से तो वो बंधनों से आज़ाद हुयी थी
अब क्यों बंधें वो किसी नए बंधन में ?
जिसमे उसे बस देना ही देना है
वो भी सामने वाले के आदेश पर
रहमोकरम पर
यहाँ कोई उससे कुछ नहीं पूछता
उसको उसके अतीत के हिसाब से जज नहीं करता
यहाँ सबकी अपनी ही एक दुःख भरी कहानी है
और फिर
आज यहां सब कुछ तो है उसके पास
रहने को घर, संगी-साथी और सबसे बढ़कर
"आज़ादी "
अपने मन से जीने की
मन का करने की

और रहा शरीर का सुख
तो उसका क्या है
जब मन चाहा
जरा हाथ बढ़ाया और ले लिया

और फिर सरला ने कभी पीछे मुड़ के नहीं देखा।

Writer-  Manoj Gupta , manojgupta0707.blogspot.com



विधवा ,( कहानी ), 9


कुछ दिनों से शारदा जी अनुज में अजीब सा बदलाव नोटिस कर रहीं थीं
ना वो ठीक से खा रहा था
ना हँसता खिलखिलाता था
बस गुमसुम सा अपने कमरे में घुसा रहता
बात करने से बात तो करता पर बस हाँ-हूँ वाली बातचीत
शारदा जी से रहा न गया
एक दिन उन्होंने पूछ ही लिया
"अनुज सच-सच बता ये क्या है ?
कहीं तू कोई ड्रग्स वगैराह .... "

अनुज फीकी सी हंसी हँसा था
"क्या माँ आप भी ना
नहीं माँ कोई ड्रग्स-फ्रूग्स नहीं करता "
"आपका बेटा हूँ
आपको इतना भी विश्वास नहीं है क्या "

"फिर क्या बात है ?"
शारदा जी आज छोड़ने वाली नहीं थीं

"माँ मुझे सरला से प्यार है ? "
धीरे से बोलै अनुज ने

"तुझे
तुझे सरला से
तुझे पता है क्या कह रहा है तू ? "
शारदा जी चिंतित स्वर में बोली थी
अनुज चुप ही रहा
वो दोनों कुछ देर चुपचाप बैठे रहे
कुछ देर बाद भी सरला जी ही बोली
"अनुज वो विधवा है
किसी की पत्नी थी वो
मालूम है ना ? "
कुँवारी नहीं है वो "

"तो माँ मैं भी कहाँ कुंवारा हूँ "
अनुज ने धीरे से कहा था

"क्या
क्या कहा तूने ?
फिर खुद ही जाने क्या समझते हुए शारदा जी बोली थी
"अनुज तू लड़का है
तुझे सब माफ़ है
पर वो किसी और की बीवी थी
झूठी थाली है वो "

अनुज का मन तो चाहा की माँ को बता दे के उस थाली को आपके बेटे ने भी चखा है माँ
पर शर्म कहें या अपना अपराध कहने से बचना ,
अनुज इस बात पर चुप ही रहा
"सब जान कर भी मैं सरला से शादी करना चाहता हूँ माँ "

"तू पागल हो गया है अनुज
ये शादी नहीं हो सकती "
"कभी नहीं हो सकती "
सरला जी गुस्से में उठकर अपने कमरे में चली गयी
और उन्होंने उसी गुस्से में सरला को फोन मिलाया।

Writer-Manoj Gupta,   manojgupta0707.blogspot.com





Monday, June 22, 2020

विधवा ,( कहानी ), 8


"अनुज,
अक्सर कोई देहलीज का पत्थर भी ,
जो हमारे घर के बाहर
बरसों,
यूहीं उपेक्षित सा पड़ा रहता है
हम नज़र भर के उस पत्थर को देखते भी नहीं 
पर जैसे ही कोई और आकर कह दे की 
"मैं ये पत्थर ले लूँ "
तो तुरंत हमें सारे जहां की खूबियां उसी पत्थर में दिखाई देने लगती हैं 
बस यही आपके साथ हुआ है "
दुखी मन से सरला ने फोन पर कहा 
अनुज हतप्रत सा रह गया , वो गुस्से में बोला
"क्या कहना चाहती हो तुम सरला साफ़-साफ़ कहो "
"साफ़ बात ये है की
आज आप मुझे कह रहे हो की मैं अंकुर से शादी से इंकार कर दूँ
पर क्यों ?
सरला ने सीधा सवाल किया था
"क्युकी
क्युकी मैं
मैं तुमसे प्यार करता हूँ सरला
हाँ मैं तुमसे प्यार करता हूँ "
अनुज ने इतना कहकर जैसे राहत की सांस ली थी
ये वो बात थी जो अनुज खुद भी ना तो समझ पा रहा था
ना ही खुद से भी कह पा रहा था

"क्युकी आप मुझसे प्यार करते हो ?
प्यार ?
अरे अनुज पर जब में आपके घर में थी
आप ने तो ठीक से बात तक नहीं की मुझसे
प्यार तो बहुत बड़ी बात है
प्यार का मतलब भी मालूम है आपको ?
केवल घर का काम करना
शरीरों का मिल जाना प्यार नहीं होता
प्यार बहुत पवित्र चीज़ होती है
कहना बहुत आसान है ,
प्यार
पर निभाना ........."
इतना कहकर सरला ने फोन काट दिया था
अनुज वहीं खड़ा देर तक सरला की बातों का मतलब सोचता रहा

 Writer- Manoj Gupta,  manojgupta0707.blogspot.com

विधवा ,( कहानी ), 7


"अनुज ,
मैं आश्रम वापिस जा रही हूँ
रात जो हुआ
तुम खुद को दोष मत देना
शायद मैं ही सालों से उपेक्षित थी
तुमने ज़रा सा सहारा क्या दिया....
पर अब इस घर में मेरा रहना ठीक नहीं
सो मैं जा रही हूँ
-सरला "

अनुज देर से सोकर उठा था
टेबल पे उसका नाश्ता रखा था
और सरला की ये चिठ्ठी
माँ आने वाली थी तो
उसने जल्दी से चिठ्ठी को जेब में रखा
सरला को फोन मिलाया
बंद था
अनुज ने फटाफट नाश्ता किया
और माँ की प्रतीक्षा करने लगा

"पर अनुज वो अचानक कैसे चली गयी ?
वो भी अकेली
मेरे आने की वेट भी नहीं की उसने
मुझसे तो मिल कर जाती "
आते ही शारदा जी चिंचित स्वर में बोल रही थी
"अब माँ ये तुम उसी से फोन करके पूछ लो
मुझसे तो सुबह-सुबह बोली की
आश्रम की,
गुरूजी की बहुत याद आ रही है
जा रही हूँ
माँ जाने नहीं देंगीं
इसलिए बिना मिले जा रही हूँ "
अनुज ने एक सांस में कई झूठ बनाये
और शारदा जी को निरुत्तर कर दिया

शारदा जी गहन सोच में पड़ गयी थी
सरला का फोन मिलाया, बंद था
आश्रम में फोन किया तो पता चला सरला अभी वहाँ पहुँची नहीं थी
फिर शारदा जी सफर से थकी आईं थी
तो आराम करने अपने कमरे में चली गयी

शाम को सरला ने  शारदा जी को फोन किया
"माफ़ कीजियेगा माँ
पर अचानक मन उजाड़ सा हो गया था
सो चली आयी
हफ्ते-दस दिन  में आ जाउँगीं
आप मेरी चिंता ना करे "
शारदा जी के बहुत मनाने-समझाने के बाद भी सरला तुरंत आने को नहीं मानी

और अगले दिन से शारदा जी के तो सारे घर के व्यवस्था ही जैसे बिगड़ गयी थी
उन्हें ना कोई रसोई का सामान जगह पर मिल रहा था
न घर का कोई काम हो पा रहा था
खाना फिर वही पहले की तरह कच्चा-पक्का बन रहा था
दस-पंद्रह दिनों में ही घर पहले की ही तरह बिखरा-बिखरा सा हो गया था
साफ़ दिख रहा था की कोई बहुत ही गुणी व्यक्ति घर से चला गया है
सरला का सेवा-भाव,
उसकी मेहनत ,
उसका प्यार ,
उसकी साधना
शारदा जी और अनुज दोनों पर अलग-अलग असर डाल रही थी
सरला की कमी दोनों को खूब खल रही थी
सरला जी तो हर समय ये बात अनुज से कहती ही रहती थी की
सरला ऐसी थी,
सरला वैसी थी ,
तू उसे जाकर ले आ
पर अनुज,
अनुज तो कुछ कह भी नहीं सकता था
जब तक सरला थी
अनुज ने ढंग से कभी सरला से बात भी नहीं की थी
और जाते-जाते जो हुआ था
उसके बारे में अनुज बिलकुल भी समझ नहीं पा रहा था की वो क्या था ?
क्या वो बस जिस्म था
या उसमे कहीं कोई आत्मा भी थी
या कोई प्यार भी था
अनुज को नहीं पता चल रहा था
बस इतना था की वो बेचैन था सरला के जाने से
इधर सरला को गए एक पूरा महीना हो गया था
घर फिर साफ़ रहने लगा था
अच्छा खाना बनाने वाले एक महाराज भी मिल गए थे
जिंदगी पहले की तरह हो गयी थी
पर अनुज के मन की ये बेचैनी थी की ख़त्म ही नहीं हो रही थी

और एक दिन
शारदा जी ने अनुज को बताया की पड़ोस की उनकी सहेली शान्ति जी सरला के बारे में पूछ रहीं थी
"अब ये शांति आंटी को सरला का क्या पूछना है ?"
अनुज ने खाना कहते-कहते माँ से पुछा था
"अनुज वो शांति चाहती है की अंकुर और सरला का ...."
शारदा जी ने बात अधूरी छोड़ दी थी
अनुज के हाथ का कौर हाथ में ही रह गया
"माँ आपको पता है वो अंकुर कैसा है ?"
"वो ठीक नहीं है सरला के लिए "
"उसका चरित्र ठीक नहीं है "
अंकुर गुस्से में आपा खो बैठा था
और खाना बीच में ही छोड़कर गुस्से में अपने कमरे में चला गया
शारदा जी सोच रही थी की अगर अंकुर में कुछ कमी-बेशी है भी तो क्या
लड़का है और थोड़ी-बहुत कमी-बेशी तो लड़कों में चलती है
और सरला भी कौन दूध की धुली है
विधवा है
अंकुर तो एहसान ही करेगा सरला पर।

Writer- Manoj Gupta , manojgupta0707.blogspot.com

रेखा ,दा मिरांडा क़्वीन (short story)



रेखा ,दा मिरांडा क़्वीन
अब ये तो पता नहीं की उसका असली नाम रेखा था या कुछ और
पर इतना जरूर है की पूरा मिरांडा कॉलेज उसे रेखा ही बुलाता था
क्युकी फिल्म स्टार रेखा उन दिनों खूबसूरती का दूसरा नाम थी, (यूँ तो आज भी हैं :) )
और इधर अपनी रेखा के भी कॉलेज में खूबसूरती और जहानत के जबरदस्त चर्चे थे
जहाँ एक ओर रेखा गज़ब की खूबसूरत थी
वही दूसरी ओर पढ़ाई , स्टेज, ड्रामा, म्यूजिक सबमे अव्वल
उसका नाम किसी स्पर्धा में होने पर नहीं बल्कि ना होने पे सबको आश्चर्य होता था
हर तरह के म्यूजिक फेस्टिवल्स,कॉम्पिटिशंस, इंटरकॉलेज डिबेट्स ,
मतलब की हर वो एक्टिविटी जो 1975 के मिरांडा कॉलेज और दिल्ली युनिवेर्सिटी में होती थी
उसमे रेखा का होना जैसे लाज़मी था
और जीतना भी


इधर "नेशनल म्यूजिक फेस्टिवल" आनेवाला था
इस बार "मिरांडा हाउस" कॉलेज ने दिल्ली युनिवेर्सिटी को रिप्रेजेंट करना था
तो कॉलेज म्यूजिक टीचर मिसेज शेरोन ने रेखा और उसके पूरे ग्रुप को हिदायत दी थी की
इस बार ये कॉम्पिटिशन उन्हें ही दिल्ली के लिए यानि उनकी मिरांडा कॉलेज टीम को ही जीतना है
रेखा और उसके ग्रुप की लडकियां जी-जान से इस कॉम्पिटिशन की तैयारियों में लग गए
दिन-रात म्यूजिक रेहर्सल्स चल रही थी
गाने बनाये जा रहे थे
फुल ऑन तैयारियां थी
तभी एक दिन एक टीम मेंबर रागिनी ने रेखा को खबर दी की
इस बार हरियाणा की टीम बहुत जबरदस्त है
रेखा पहले तो हँसी
"हरियाणा की टीम और म्यूजिक"
"अच्छा मज़ाक है "
पर जब रेखा ने उस टीम के कुछ म्यूजिक पीस सुने तो वो चौंकी
"यार ये इतना अच्छा म्यूजिक हरियाणा टीम का , कैसे ? "
"यार एक लड़का है करन ,
लंदन से म्यूजिक पढ़ के आया है
उसी ने ये म्यूजिक बैंड बनाया है
मतलब कमाल ही कर दिया है "- रागिनी उत्साह से बोली थी
"ए रागिनी तू हमारी टीम  में है या उस गंवार करन की टीम में "
"कुछ भी बोलती है "- रेखा ने चिढ़ के जवाब दिया था

और फिर "नेशनल म्यूजिक फेस्टिवल" का दिन भी आ गया
दिल्ली का परफॉरमेंस लाजवाब था
देर तक तालियां और वन्स मोर ,वन्स मोर का शोर हो रहा था
अचानक एक अनजान हैंडसम लड़का स्टेज पर चढ़ा
और रेखा से हाथ मिलाते हुए बोला
"यू आर दा मोस्ट ब्यूटीफुल थिंग ऑन दिस स्टेज "

रेखा मंत्रमुग्ध सी उसे देखती हुयी स्टेज से नीचे उतर गयी
अब हरियाणा का परफॉरमेंस था
और तब रेखा को पता चला की ये तो वही था
लंदन रिटर्न हरियाणा बॉय "करन "


अगले दिन कॉलेज में चर्चा ये नहीं था की कॉम्पिटिशन किस टीम ने जीता
बल्कि इस बात का चर्चा था की
फेस्टिवल ख़त्म होने के बाद सबने रेखा और करन को हाथों में हाथ डाले
फेस्टिवल ऑडोटोरियम से बाहर निकलते देखा था
मिरांडा हाउस हार्ट थ्रोब रेखा और लंदन रिटर्न हरियाणा बॉय करन
एक नयी प्रेम कहानी की शुरुआत हो गयी थी


रेखा और करन अब रोज़ मिलने लगे थे
कभी कॉलेज कैंपस में
कभी बोट क्लब
कभी बुद्धा गार्डन
कभी किसी मूवी हॉल में
उनका प्यार , उनका साथ बढ़ता जा रहा था





कॉलेज का फाइनल ईयर चल रहा था
अब बस कुछ ही दिन का कॉलेज बाकी था
रेखा और करन बुद्धा गार्डन में बैठे थे
दोनों चुप थे
कुछ उदास से भी थे
अचानक करन बोल पड़ा
"तुम मेरे छोटे शहर में एडजस्ट कर पाओगी ? "
रेखा ने हैरानी से उसकी तरफ देखा था
और हंसकर बोली थी
"हाँ , पर क्या तुम मेरे बड़े से नखरे उठा पाओगे ? "
फिर दोनों खिलखिला के हॅंस दिए थे



और फिर शुरू हुआ वही सोशल ड्रामा
जो हर प्रेम कहानी में होता है
घरवालों का इंकार
परिवारों में तकरार
रोना-धोना
भूख हड़ताल
घर से निकाल देने की धमकी
भाग कर शादी ना कर लें का डर
इत्यादि इत्यादी
पर सब व्यर्थ
ना उन्हें मानना था ना वो दोनों माने

और फिर सब कुछ सुन्दर,सुखद शांत हो गया
सारे तूफ़ान जैसे थम से गए थे
और वो ही हुआ जैसा रेखा और करन चाहते थे



और फिर जून 1977 की एक शाम
रेखा और करन अपने हनीमून के लिए
श्रीनगर डल लेख पर एक शिकारे "कश्मीर की कली " में बैठे थे
करन ने बनारसी साड़ी में सजी,
अपनी दुल्हन बनी रेखा की फोटो खींचते हुए फिर से कहा था

"रेखा देअर इज सो मच ब्यूटी हेयर
बट यू आर दा मोस्ट ब्यूटीफुल थिंग हेयर ,इन दिस मोमेंट "

और रेखा और करन  एक दूसरे की आँखों में देख कर मुस्कुरा दिए थे।

writer-manoj gupta , manojgupta0707.blogspot.com

विधवा ,( कहानी ), 6


"सरला बेटी ,
बेटी मुझे आज रात यहीं आश्रम में रुकना पड़ेगा
अरे वो गुरूजी आज पूरा दिन व्यस्त रहे
उनके दर्शन नहीं हो पाये
फिर आज रात यहां भजन संध्या भी है
अब ये सब साथ गयीं पड़ोसनें हैं ना
ये कह रहीं हैं की
सुबह गुरु जी के दर्शन करके ही वापिस लौटेंगें "
"ठीक है ना बेटी ? "
शारदा जी ने फोन पर सरला से कहा

" कोई बात नहीं माँ आप निश्चिन्त रहें
आप सुबह आराम से आ जाइये
और गुरूजी को मेरा भी प्रणाम कह देना माँ "
सरला ने इतना कहकर फोन रख दिया
और रात के खाने की तैयारी में जुट गयी
अक्सर तो वो रोज़ एक सब्जी माँ की पसंद की
और एक सब्जी अनुज की पसंद की बनाती थी
पर अब माँ नहीं थी तो
आज पूरा खाना ही अनुज की पसंद का ही बना दिया
अनुज को फोन किया तो पता चला की वो भी आज थोड़ा लेट आएगा
शायद आज सरला कुछ थकी थी तो
टीवी देखते-देखते कब उसकी आँख लग गयी
उसे होश ही नहीं रहा
उसकी आँख खुली घंटी की लगातार तेज़ आवाज़ से
सरला हड़बड़ा के भागी और जल्दी से दरवाज़ा खोला
ये अनुज ही था , झल्लाया सा बोला था
"कितनी देर से बैल बजा रहा हूँ "
"वो आँख लग गए थी "
"आपका खाना लगाऊँ ? "
सरला सकुचाते हुए बोली थी
"नहीं पहले दो गिलास एकदम चिल्ड ठंडा पानी दे दो "
और हाँ खाने में क्या है ? -अनुज बोला
"जी मंचूरियन  और फ्राइड राइस "
सरला का ये बोलना था की अनुज तो बहुत खुश हो गया
वो हँसकर बोला
" अरे फिर तो जल्दी लाओ बहुत भूख लगी है "
अनुज का बच्चो सा उतावलापन देख सरला भी मुस्कुरा भर दी
खाना टेबल पे लगा के वो अपने कमरे में जाने लगी तो अनुज बोला
"तुम भी यहीं खा लो "
"जी मैंने खा लिया आप खा लीजिये  "- सरला कहकर अपने कमरे में चली गयी
"अजीब लड़की है
इसे कभी खाना खाते ही नहीं देखा
पता नहीं कब खाती है ,क्या खाती है "
अनुज मन ही मन बुदबुदाया
फिर उसने टीवी पे मनपसंद मूवी लगाईं
जेब से व्हीस्की क्वार्टर निकाला ,
ठन्डे पानी में मिलाया और फिर इत्मीनान से
आनंद से
मूवी, मंचूरियन , फ्राइड राइस ,व्हीस्की
वो देर तक पीता रहा था

अचानक सरला शायद पानी लेने बाहर आयी थी
या फिर टीवी की तेज़ आवाज़ सुनकर
"आज आप फिर पी रहे हैं ? "
"आपको ये शोभा नहीं देता अनुज "
"ये शराब आपकी सेहत, कर्रिएर , परिवार सब ख़त्म कर देगी
आपके बिना माँ का क्या होगा ? "
सरला बड़े ही दुखी स्वर में लगातार बोले जा रही थी
और अब इतना चिल्लाकर सरला वहीं बैठकर रोने भी लगी थी
अनुज हैरान सा सरला को देख रहा था
इतना तो कभी नहीं बोलती थी सरला
तो आज क्या हुआ
और इसमें रोने वाली कौनसी बात है
अनुज रोती  हुयी सरला के पास आ बैठा
और उसकी पीठ सहलाने लगा
उसके बाल ठीक करने लगा
सरला फिर से बोले जा रही थी
"एक बार उजड़ चुकी हूँ
इस शराब का भयानक सच देखा है मैंने
फिर नहीं देख पाउंगी
मैं चली जाउंगी
वापिस
वहीं आश्रम में "
अनुज उसे सांत्वना देने के लिए बोलने लगा
"तुम ठीक कहती हो
आज के बाद नहीं पियूँगा
बस तुम अब चुप हो जाओ "
अनुज ने प्यार से सरला के बालों को चूमा
फिर माथे को
और फिर जैसे भावनाओ का एक तूफ़ान सा बह निकला
अनुज बेतहाशा चूमे जा रहा था सरला को
जैसे ही सरला को होश आया
सरला ने मनुहार करना शुरू किया
"ये आप क्या कर रहे है अनुज
ये ठीक नहीं है
ये गलत है
प्लीज ये ना करें
नहीं अनुज "
पर अनुज ने महसूस कर लिया था की सरला की बातों में
विरोध कम था झिझक ज्यादा थी
उसका शरीर कुछ और चाह रहा है
मन कुछ और
और सोच-समझ सरला से कुछ और बुलवा रही है
तो अनुज बिना रुके सरला को लगातार चूमता रहा
सहलाता रहा
इधर सरला का विरोध भी धीमा और धीमा होता गया था
अब सरला ने जैसे समर्पण कर दिया था
बरसों की प्यासी नदी थी
और समंदर खुद मिलने आया था
तो वो भी बह गयी
निर्बाध .....

राइटर-मनोज गुप्ता , manojgupta0707.blogspot.com










"वो" चन्दा-सूरज तो तुम्हें पहले ही दे बैठा है

" "वो" चन्दा-सूरज  तो तुम्हें पहले ही दे बैठा है
बस एक "सरस्वती" है जो उसके पास अब शेष बची

यहाँ इन दिनों "तुम्हे" (हेमंत और लोतिका को )
रस्म- ए ,
मौका भी है ,
फुर्सत भी है ,
दस्तूर भी है
मिलकर ज़रा जतन तो करो
तुम्हारे ही घर आ जाएगी वो "सरस्वती बच्ची"

"वो" सूरज-चन्दा तो तुम्हें पहले ही दे बैठा है
बस एक "सरस्वती" है जो उसके पास अब शेष बची "

राइटर- मनोज गुप्ता , manojgupta0707.blogspot.com

एक शिशु ध्रुव-तारा

एक शिशु ध्रुव-तारा चमका
हमारे प्यारे परिवार में
नन्हा सा है ..मुन्ना सा है
वो इस सुंदर संसार में
परिवार की पाती उसको मिले
समाज में ख्याति उसको मिले
सभ्य सुसंस्कृत शालीन बने वो
तन ही नहीं मन भी सुंदर हो
यही दुआ हम सब करते है
कान्हा के दरबार में
एक शिशु ध्रुव-तारा चमका
हमारे प्यारे परिवार में
नन्हा सा है ..मुन्ना सा है
वो इस सुंदर संसार में।

Sunday, June 21, 2020

विधवा ,( कहानी ), 5


"सरला कल रात का
माँ को मत बोलना "
अनुज सुबह नाश्ते की टेबल पे धीरे से सरला से बोला था
"नहीं कहूंगी "
"पर ये इतनी शराब पीना क्या.... ? "
सरला का इतना कहना था की अनुज ने गुस्से से सरला को बुरी तरह घूरा
वो शायद कुछ कहता भी पर उतने में ही शारदा जी वहां आ गयी
और अनुज के बाल सहलाते हुए बोली
"कल रात बहुत देर से आया रे तू "
"हाँ माँ वो देर हो गयी थी
आया तो देखा आप सो चुकी थी "
तबीयत तो ठीक थी ना आप की "
अनुज ने फटाफट बात बदली
"हाँ रे
अब तो मेरी तबीयत पहले से बहुत बेहतर रहती है
सरला बहुत ख़याल रखती है मेरा "
शारदा जी ने मुस्कुरा कर सरला को देखा
सरला की तारीफ सुनकर अनुज कुछ अचकचा सा गया
"चलो अच्छा है
आपको आराम मिल रहा है "
कहता हुआ अनुज कॉलेज के लिए निकल गया

कॉलेज में गार्डन में पीछे की तरफ
हमेशा की तरह बॉयज़ की बियर पार्टी विद डर्टी टॉक चल रही थी
सब लड़के बता रहे थे की
किसने कहाँ , कब  , कैसे
अपनी गर्ल फ्रेंड
या फिर ऐसे ही किसी रैंडम लड़की, महिला को पटाया
रिश्ता बनाया
फिर निपटाया
कोई दूर की रिश्तेदार थी
तो कोई पड़ोस की भाभी
तो कोई काम वाली बाई ही "
अनुज अक्सर इस तरह की टॉक में चुप ही रहता था
वो दिखने में साधारण सा और पढ़ाई में भी औसत दर्जे का था
कभी किसी लड़की से भी कोई नज़दीकी वाली दोस्ती भी कभी नहीं हुयी थी
उसने कई बार लड़कियों से ऐसी दोस्ती करने की कोशिश की थी
पर बात कभी शारीरिक रिश्ते तक नहीं पहुंच पायी थी
अचानक उसके पड़ोस में ही रहने वाला शेखर पूछ बैठा
"साले अनुज वो खूबसूरत लड़की कौन है जो तेरे घर रहने आयी है बे "
शेखर की बात सुनकर सब का ध्यान अब अनुज पे चला गया
और फिर सब अनुज से पूछने लगे
"बता ना भाई कौन है ? "
"अरे अनुज भाई तू तो सन्यासी है
भाई मेरी ही सेटिंग करा दे "
"बोल ना भाई "
अनुज के तनबदन में आग लग गयी
वो चिल्ला कर बोला
"सालों वो मेरी दूर की रिश्तेदार है
कज़न है मेरी
कुछ तो शर्म कर शेखर "
शेखर को काटो तो खून नहीं
 वो रुआंसा सा बोल पड़ा
"सॉरी भाई गलती हो गयी
पता नहीं था
माफ़ कर दे "
और सब लड़के भी झूठे-सच्चे को शेखर की लानत-मलानत करने लगे
और अनुज को बहलाने के लिए बोलने लगे
"छोड़ यार अनुज ये शेखर तो पागल है साला
ले तू बियर पी भाई "
बियर पीते हुए अनुज मन में खुश हो रहा था की
आज उसे भी इन सब पे चिल्लाने का मौक़ा मिला
जब शेखर ने भी सरला को देख कर खूबसूरत कहा है तो
मतलब सरला वाकई खूबसूरत लड़की है
आज उसे ऐसा लगने लगा की
उसके पास तो इतना अच्छा मौका है
"एक अनजान , बेसहारा विधवा को घर में सहारा दिया हुआ है 
उस पर इतना एहसान किया है
तो कुछ तो रिटर्न में उसे भी मिलना ही चाहिए  
इतना तो बनता ही है ना "

अब तो अनुज घर में जब-जब सरला को देखता
उसके मन में दोस्तों की वही कहानियाँ फिल्म बनकर चलने लगती
जिनमे लड़का वो खुद और लड़की की जगह उसे सरला दिखाई देती
अब सरला जब भी उसके कमरे में आती
और वो बाथरूम में होता तो वो जानबूझ कर टॉवल में ही रूम में आ जाता
और फिर वही कुछ ढूंढ़ने का बहाना करता , वहीं रुका रहता
कुछ सामान या नाश्ते की प्लेट लेते-देते
या आते-जाते
अब वो जान-बूझ कर सरला को छूता
पर सरला जैसे इन सब बातों से अनजान बस अपनी ही धुन में रहती
ना वो अनुज की तरफ देखती थी
और ना ही अनुज के छूने पर कोई भी अच्छी या बुरी प्रतिक्रिया देती थी
बिलकुल निर्लिप्त हो जैसे

इधर अनुज के मन की आग धधकती जा रही थी
और एक रात .......

to be continue..

(writer-manoj gupta , manojgupta0707.blogspot.com )





Saturday, June 20, 2020

विधवा ,( कहानी ), 4


"सरला ,
सरला , माँ सो गयी ना ?
मैं 15 मिनिट में घर आ रहा हूँ
दरवाज़े पे आकर फिर फोन करूंगा
धीरे से गेट खोल देना "
और फोन कट गया था
सरला को कुछ सेकंड के बाद एहसास हुआ की
ये अनुज था
रात के ग्यारह बज रहे थे
सरला अपने कमरे में लेटी टीवी देख रही थी
सरला ने कमरे से बाहर आकर देखा
शारदा जी के कमरे की लाइट बंद थी
इसका मतलब वो सो गयीं थीं

लगभग आधे घंटे बाद सरला का फोन फिर बजा
" सरला दरवाज़ा खोलो "
ये अनुज ही था
सरला ने धीरे से ,बगैर कोई आवाज़ किये दरवाज़ा खोल दिया
अनुज के अंदर आते ही एक तेज़ बदबू का गुबार भी अंदर आया
अनुज ड्राइंग रूम के सोफे पे आकर बैठ गया था
सरला ने उसे पानी लाकर दिया
अनुज एक बार में ही पूरा गिलास पी गया
सरला एक गिलास पानी और ले आयी और बोली
"खाना खाएंगे ?"
"हाँ "- अनुज ने जवाब दिया
सरला देख रही थी की अनुज अपने को बहुत सँभालने की कोशिश कर रहा है
पर साफ़ पता चल रहा था की वो बहुत ज्यादा नशे में है
सरला ने खाना गर्म किया और लाकर रख दिया
अनुज खाने लगा था
अनुज इतनी बुरी तरह खा रहा था की आधा खाना वो गिरा रहा था
सरला चुपचाप वहीं खड़ी रही
" और लाऊँ "
सरला ने पूछा था
"नहीं"
और अपनी कमीज की ब्याह से अपना मुँह पोंछता अनुज
झूलता सा अपने कमरे की बढ़ चला
झूठे बर्तन उठाकर सरला भी किचन जाने को मुड़ी ही थी की
पीछे से अनुज की आवाज़ आयी
"यू आर टू गुड सरला "
सरला हैरान सी ,
झूठे बर्तन हाथ में लिए वहीँ खड़ी रह गयी


विधवा ,( कहानी ), 3


"अनुज
अनुज वो पैसे मिले ? "
शारदा जी ने अगले दिन सुबह ही अनुज को जगाते हुए पूछा
"पैसे,  कौनसे पैसे ? "
नींद में भरे अनुज को कुछ याद कहाँ था
"अरे वो तेरे पांच हज़ार , जो कल खो गए थे ?? "
शारदा जी अब गुस्से में बोली थीं
"हाँ हाँ   मिल गए , मिल गए "
और अनुज चादर ओढ़ कर फिर सो गया
शारदा जी हैरान सी कुछ देर वहीं खड़ी सोचती रहीं की
ये माजरा क्या है

उसके बाद शारदा जी ने फिर कई बार
अलग-अलग मौकों पे अनुज से उन खोये पैसो के बारे में पूछा
पर अनुज ने हमेशा गोल-मोल जवाब ही दिया
शारदा जी , चाहकर भी सरला से अब ये बात पूछ नहीं पा रहीं थी
उनको डर  था की सरला बुरा मानेगी
तो कुछ दिन बाद ये बात आयी-गयी हो गयी 

एक दिन अचानक सुबह तड़के
किसी चीज़ के गिरने की आवाज़ से अनुज की नींद टूटी
अनुज को लगा जैसे कोई चोर घर में घुस आया है
वो दबे पाँव कमरे से बाहर आया तो देखा
बाहर कॉमन बाथरूम के बाहर
सरला फर्श पर बैठी कुछ चुन रही थी
शायद वो अभी नहा कर बाहर निकली थी
और बाथरूम के बाहर की साइड टेबल पर रखा
कांच का कोई बर्तन गिर कर टूट गया था
वो कांच के छोटे-छोटे टुकड़े बड़ी ही सावधानी से चुन रही थी
अनुज ने शायद पहली बार उसे गौर से देखा था
इतनी भी बुरी नहीं थी वो देखने में
बल्कि सुन्दर ही थी
अनुज चुपचाप चोरों की तरह वहीँ खड़ा
एकटक उसे तब तक देखता रहा
जब तक वो एक-एक कांच का टुकड़ा बीनकर
अपने कमरे में वापिस चली नहीं गयी
उस रात अपने बिस्तर पर लेटा अनुज यही सोच रहा था
"साली है गज़ब की सुन्दर "

हर सुबह की तरह अगली सुबह भी सरला रसोई में ही थी
उसने अनुज का नाश्ता टेबल पे रख दिया था
अचानक अनुज ने आवाज़ लगाईं
" माँ कहाँ हैं ? "
अनुज के इस सवाल से चौक सी गयी थी सरला
क्युकी अनुज तो उससे कभी कुछ बोलता ही नहीं था
"जी सुमन आंटी जी के यहाँ "
सरला ने रसोई से बाहर आकर धीरे से जवाब दिया
"माँ को बोल देना आज मैं देर से आऊंगा
कॉलेज के बाद एक दोस्त की बर्डे पार्टी है "
और मुस्कुराता हुआ अनुज जल्दी से घर के बाहर निकल गया
अनुज के आज के बर्ताव पे सरला सोच में पड़ गयी थी
ये क्या था
पहले तो कभी .....
तभी कुकर की सीटी बजी और सरला वापिस किचन में दौड़ी।






विधवा ,( कहानी ), 2


सरला के घर आ जाने से
शारदा जी का तो जैसे पूरा जीवन ही बदल गया
पिछले २२ साल से सारे घर का काम खुद अकेले करते हुए
उन्हें खुद को कभी कहाँ आराम मिला था
अब सरला के आने के बाद
शारदा जी को उनकी दवाइयां समय पे मिलती
मनचाहे समय-असमय
हलवा, चाय, सैंडविच
और भी जो वो खाना चाहें खाने को मिलता
रोज़ रात को पैर दबवाने का सुख मिलता
और घर तो हमेशा ऐसा चमका-दमका दिखता,
जैसा पहले कभी दिखा ही नहीं
सरला ने खुद ही शारदा जी से कहकर खाना बनाने वाली बाई को हटवा दिया था
अब सारा खाना सरला ही बनाती थी

यूँ तो सरला के इन गुणों का बराबर फायदा अनुज को भी हो रहा था
अब अनुज को भी अपनी पसंद का खाना मिलने लगा था
ताज़ा, गर्म , उसके कॉलेज से घर आते ही
अनुज को अपना कमरा हमेशा व्यवस्थित मिलता
सारे कपडे हमेशा प्रेस किये हुए सलीके से अलमारी में टंगे मिलते
वो जब रात को स्टडी करने बैठता तो
उसे अपना कॉफ़ी-थर्मस भरा हुआ
बिलकुल वही मिलता,
स्टडी टेबल पर , फ्लावर वास के पास
हर रोज़ , पता नहीं कैसे
वो रोज़ कुकीज़ खाता
पर उसका कूकीज जार उसे हमेशा भरा ही मिलता
और एक दिन .....

" मेरा कुछ था उस ड्रावर में
अब मिल नहीं रहा
तूने देखा क्या ? "
सरला को अपने कमरे में बुलाकर बड़ी बदतमीज़ी से बोला था अनुज
"जी वो सिगरेट का पैकेट ?
वो मैंने फेंक दिया "
सर झुका कर धीरे से जवाब दिया था सरला ने
"तूने फेंक दिया ?
क्यों ?
जलती हुयी निगाहों से सरला को देखते हुए जोर से चिल्लाया था अनुज
इतना जोर से ,
के बराबर के कमरे से शारदा जी भागती सी आईं
"क्या हुआ ?
क्या हुआ अनुज ?
तू इतना चिल्ला क्यों रहा है "

माँ को सामने देख अनुज अब बौखला गया था
दो महीने पहले ही शारदा जी ने उसे सिगरेट पीते हुए पकड़ा था
और अनुज को अपनी कसम दी थी की वो अब कभी सिगरेट नहीं पियेगा
अनुज दर सा गया और बौखलाहट में बोल बैठा
"मेरे पैसे थे यहाँ ड्रावर में ,
नहीं मिल रहे "

"अरे कितने पैसे थे ?
 शारदा जी चिंतित हो गयी थी
"पांच हज़ार "
"जरूर इसी ने लिए है "
अनुज ने एक और झूठ बोला

"सरला ,
बेटी देख अगर तूने पैसे लिए हैं
तो बता दे
मैं कुछ नहीं कहूंगी ? "
शारदा जी की ये बात सुनकर सरला तो जैसे अवाक
उसने डबडबाई कातर आँखों से शारदा जी से बस इतना कहा
"माँ आप चाहो तो मेरे सामान की तलाशी ले लो
मैं चोर नहीं हूँ
मैं चोर नहीं हूँ माँ "

सरला की आवाज़ की दयनीयता से शारदा जी का मन पिघल गया था
उन्होंने अनुज को कमरा फिर से चेक करके पैसे ढूंढ़ने आदेश दिया
और सरला को पुचकारते हुए अपने साथ बाहर ले आईं
उधर अनुज मन ही मन सोच रहा था
"साली है बड़ी नाटकबाज़"
"कितनी जल्दी टेसुए बहाएं हैं ".






हम भारतीय (kavita)


हम (भारतीय) ना ज़िद्दी हैं 
ना कोई ईगो रखतें हैं 
अब ज़्यादा क्या कहें 
हम तो दोस्तों में जीते हैं 
और हमेशा दोस्ती में मरते हैं 

दुखता है जब सही होकर भी
ग़लत ठहराये जाते हैं 
तब अक्सर दुश्मनों पर कम 
रीढ़विहीन दोस्तों पर ग़ुस्सा ज्यादा करते हैं 

पर अब बस बहुत हुआ 
अब हमें और नहीं सहना है 
अब तो बस दिल की सुनना है
पर दिमाग से कहना है


तेरी आँख में आँख डाल हम 
बराबरी से बात करेंगे दोस्त मेरे
तू जो समझता हो समझ 
हम करेंगें वही, जो हो देशहित में मेरे 

अरे ये पथ्थर गिरा तो फिर देख 
तू भी कहाँ बच पायेगा 
मेरा घर जलाने का सोचा भी तो 
पहले तू अपने हाथ जलाएगा 

ये जंगें ताक़त की कम 
सियासत की ज्यादा होती है प्यारे 
हर तरफ से घिरे हैं तो क्या 
निकलेंगें हम जीत चक्रव्यूह सारे  

हमें शांति से मनन कर 
हर कदम फूंक-फूंक के धरना होगा 
अब अपने ही अश्रु-रक्त-स्वेद का 
स्वाद हमें चखना होगा 

हम (भारतीय) ना ज़िद्दी हैं 
ना कोई ईगो रखतें हैं 
अब ज़्यादा क्या कहें 
हम तो दोस्तों में जीते हैं 
और हमेशा दोस्ती में मरते हैं। 

#भारत  #चीन  #Galwan
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Friday, June 19, 2020

विधवा ,( कहानी ), 1


"माँ आप भी कमाल करती हो ?
आप ऐसे ही रास्ते से किसी को भी उठा लाईं "

अनुज चिल्लाया था शारदा जी पर
उसने ये भी ध्यान नहीं किया की वो वहीं सामने खड़ी थी
और उसकी बात सुनकर और सहम गयी थी
बहुत समझाने के बाद भी जब अनुज नहीं माना
तो शारदा जी ने अपना फैसला सुना ही दिया

"देख अनुज कान खोल के सुन ले
सरला को मैं लाईं हूँ
अब वो यहीं रहेगी "

अनुज पैर पटकता हुआ
गाड़ी की चाबी लेकर घर से बाहर निकल गया

अब क्या बताती शारदा जी अनुज को
वो खुद भी तो लगभग सरला की उम्र में ही विधवा हो गयीं थी
तब अनुज एक साल का था
पति के अलावा उसका पहले से ही कोई ख़ास रिश्तेदार था नहीं तो
तब बिलकुल अकेली रह गयी थी वो
पति की दूकान चलाने में असफल रहने के बाद
आखिरकार उन्होंने दुकान बेच दी
पैसा बैंक में डाल  दिया
और पिछले बीस साल से विधवा जीवन ही बिता रही थी

पिछले महीने शारदा जी गुरूजी के वार्षिक समारोह में वृन्दावन गयी थीं
सरला उनको पहली नज़र में ही भा गयी थी
नाम के जैसे ही सरल थी वो
गुरूजी के विधवा आश्रम में रहती थी
सरला जी के कमरे में सेवा की उसकी ड्यूटी थी
सरला ने पिछले एक महीने में शारदा जी की बेटी की तरह सेवा की थी
हालांकि पाँव दबाना उसकी ड्यूटी का हिस्सा नहीं था मगर
एक दिन शारदा जी को दर्द में देख सरला ने खुद ही रोज़
शारदा जी के पैर दबाने शुरू कर दिए थे

सरला को साथ लाने का ख्याल शारदा जी को खुद नहीं आया था
वो तो एक दिन साथ गयीं उनकी पड़ोसन शांति जी बोलीं थी

"शारदा देख कितनी प्यारी बच्ची है ये सरला 
कहाँ होती हैं आजकल की लड़कियां ऐसी ?
ये विधवा ना होती तो 
अपने अंकुर से ब्याह लेती मैं इसे "
(जैसे विधवा होने भर से सरला के सारे गुण ,अवगुण बन गए हों )

पहली बार शारदा जी ने आज सरला को गौर से देखा था
दिखने में भी ठीक ही थी वो
और सेवाभाव तो शारदा जी पहले ही देख चुकी थी

" अक्सर ही ऐसा होता है के 
हमारे पास पड़ी किसी किसी चीज़ या व्यक्ति के गुण या अहमियत हमें 
दूसरों के बताने पर ही ध्यान आतें हैं "

शान्ति जी की बात से एक ख्याल शारदा जी के मन में आ गया

और गुरूजी से आज्ञा लेकर वापिसी में वो सरला को अपने साथ
अपने घर ले आईं।


Thursday, June 18, 2020

कुछ तो रहम कीजे





कुछ तो रहम कीजे
एक पल को मूँद लीजिये
इन नीमबाज़ आँखों को
इन शराब से भरे सांचों को

के कुछ तो होश आये
चाहे फिर एक पल को ही सही
ज़रा सांस तो आये
चाहे रुकी-रुकी सी ही सही

मैं तो बस आपकी ,
इन आँखों की शराब में डूबा जाता हूँ
लोग कहते हैं की रिन्द है, मयकश है
या खुदा मैं तो छूता भी नहीं,
सो हँसा जाता हूँ


कुछ तो रहम कीजे ,
एक पल को मूँद लीजिये
इन नीमबाज़ आँखों को
इन शराब से भरे सांचों को।

#मन7  #नीमबाज़ आँखें  #हिंदी कविता
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Tuesday, June 16, 2020

दीपू-नीति (कविता )



एक लड़का था , थोड़ा "दीपू" सा
हँसमुख , प्यारा , सुशील-संस्कारी

एक लड़की थी , थोड़ी "नीति" सी
खूबसूरत , इंटेलीजेंट , पागल-मतवारी

दोनों का कोई मेल ना था
पर किस्मत का कोई खेल ही था

दोनों की जब आँख मिली
भृकुटी सारी दुनिया की तनी 

आंधी-तूफ़ान थे राह खड़े
पर दोनों जिद ,बिंदास अड़े

बादल गरज़-गरज़ हुए पानी
दोनों ने बस दिल की मानी

हुआ वही जो दोनों थे चाहते
प्यार , शादी और खूबसूरत रास्ते

उनकी बगिया एक फूल खिला
प्यारी को नाम "नविका" मिला

आज उनका सफर छह साल हुआ
हमारा पूरा परिवार खुशहाल हुआ

एक लड़का था , थोड़ा "दीपू" सा
हँसमुख ,प्यारा , सुशील-संस्कारी

एक लड़की थी , थोड़ी "नीति" सी
खूबसूरत , इंटेलीजेंट , पागल-मतवारी। 

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Sunday, June 14, 2020

"गंगा" सब को जाना है



पल दो पल का जीवन है
फिर "गंगा" सब को जाना है
पर जाने के पहले सबको
अपना किरदार निभाना है

जीवन क्या है ?,नाटक है

अरे जीवन क्या है ? नाटक है
और मृत्यु अंतिम  "फाटक" है
फाटक से आना फाटक को जाना
बीच में सारा पागल खाना
उस फाटक के पार है क्या कुछ
किसने आज तक जाना है

पर जान भी लेते , क्या कर लेते ?

अरे भाई जान भी लेते , क्या कर लेते ?
जान के और भी जल्दी मरते
इस जान-अजान में क्या रख्खा है
जीवन ही काशी,जीवन ही मक्का है
इस जीवन की तख्ती पर कुछ
कुछ ऐसा लिख के जाना है
के लाख मिटायें समय-चक्र पर
जो ना कभी मिट पाना है

पल दो पल का जीवन है ये
फिर "गंगा" सब को जाना है
पर जाने के पहले सबको
अपना किरदार निभाना है।

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कुछ ऐसा लिख पाऊँ मैं (कविता )



कुछ ऐसा लिख पाऊँ मैं
इस पल-दो-पल के जीवन में
इस जीवन की तख्ती पे
के रह जाऊं मैं याद तुम्हें
जाने के भी बाद मेरे
इस जीवन की गंगा में।

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वो चुड़ैल-21

नीना और मुरुगन की शादी भी अपने आप में एक अजूबा ही थी
जो भी मेहमान उस शादी में आया  ,
पंडाल में घुसते ही हैरान रह गया था
कुछ तो मुँह छिपा कर हँस भी रहे थे
उस शादी में शामिल मेहमान दो बिलकुल ही अलैदा किस्मों के लोग थे

जहाँ नीना की तरफ से आये हुए सारे मेहमान रंग-बिरंगे कपड़ों में सजे-संवरें थे
महिलाएं डायमंड ज्वेलरी ,मॉडर्न वेस्टर्न ड्रेसेस और बोल्ड मेकअप के साथ आयी थी
और ज्यादातर पुरुष डार्क कलर टू-पीस , थ्री-पीस सूट में थे

वहीँ मुरुगन की तरफ से आये सभी मेहमान पुरुष झक सफ़ेद कपड़ों में
बिलकुल सादा शर्ट-धोती , माथे पे चन्दन का टीका ,पैरों में चप्पल
पहने हुए थे
महिलायें बोल्ड गहरे कलर्स  की साउथ इंडियन साड़ी और ट्रेडिशनल गोल्ड जेवेलरी पहने
पारम्परिक परिधान में थी

और ये दो मुक्तलिफ़ लोगों के दो समूह
अलग-अलग कोने में खड़े अचरज से एक-दूसरे को देख रहे थे
पर इन सब बातों से दूर मुरुगन और नीना अपने ख़ास दिन को एन्जॉय कर रहे थे

नीना और मुरुगन दोनों बेहद खुश थे

Saturday, June 13, 2020

120,NOT OUT



दोस्तों ,आज पूरी दुनिया में जितनी भी वैज्ञानिक रिसर्च हो रही है
उनमे से 50 प्रतिशत से भी ज्यादा रिसर्चों का विषय बस एक ही है

"किस तरह मानव शरीर को कम से कम 120 साल उम्र तक 
स्वस्थ और निरोगी जीवन जीने योग्य बनाया जा सकता है "

वैज्ञानिक रिसर्चों में जो बात निकल कर सामने आईं है
वो ये है की
किसी भी बीमारी फिर वो चाहे कोरोना हो या कोई भी और
वायरस से फैलने वाली बीमारी ,
सब बीमारियों से लड़ने में हमारी सबसे पहली रक्षक दीवार है
हमारा अपना इम्यून सिस्टम या शारीरिक प्रतिरोधक क्षमता

उनके अनुसार एक विशिष्ट जीवनशैली हमें
अपने 120 साल उम्र तक स्वस्थ और निरोग जीवन जीने के सपने के पास पहुंचा सकती है
और किसी भी तरह की गंभीर बीमारी को हराने के लिए
हमारे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को विकसित कर सकती है
ऐसी विशिष्ट जीवनशैली की कुछ वैज्ञानिक बातें मैं आपके साथ सांझा कर रहा हूँ

-हल्का शारीरिक श्रम
रोज़ थोड़ा सा किसी भी प्रकार का हल्का शारीरिक श्रम करना बेहद जरूरी है
10 हज़ार कदम अपनी गति से पैदल चलना , सबसे आसान है
हम सब कर सकते हैं

-भरपूर गहरी नींद
रोज़ रात को कम से कम सात घंटे की भरपूर गहरी नींद लेना
(हमारा शरीर इसी गहरी नींद के समय में हमारे पूरे दिन में शरीर को हुए शय को पुनर्नवा करता है
 भरपूर नींद लेने से ही ये पुनर्नवा काम ठीक से हो पाता है
और शरीर की उम्र बढ़ती जाती है )

-धूप 
रोज़ शाम को थोड़ी देर उतरते सूरज की धूप में बैठना/टहलना शरीर में विटामिन D को पूरा करती है

-हमारा भोजन 
जहाँ कुछ चीज़ें हमारी प्रतिरोधक्  क्षमता को घटाती है
वही कुछ चीज़ें हमारी प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती है
ओवरवेट , शुगर या दिल की बीमारी से पीड़ित ,
छोटे बच्चे,
बुजुर्ग
आम तौर पर ऐसे लोगों का इम्युनिटी सिस्टम यानि शारीरिक प्रतिरोधक क्षमता कम होती है

वैज्ञानिक ये भी कहते हैं की शारीरिक प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए एक और महत्वपूर्ण बात है
अपना हाजमा अच्छा रखना
जिन लोगों को कब्ज की शिकायत रहती है
उनकी भी शारीरिक प्रतिरोधक क्षमता कम होती है
वैज्ञानिक आगे कुछ खाने की ऐसी चीज़ें भी बताते है
जिनके सेवन से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है

-दही - दही का सेवन बहुत फायदेमंद होता है
भरपूर फायदे के लिए सुबह नाश्ते और दोपहर के भोजन के साथ दही खाना अच्छा है।

-लहसुन - लहसुन का सेवन भी इसमें बहुत फायदेमंद होता है
( लहसुन को खाना खाने के बाद सेवन करें )
लहसुन के छोटे-छोटे पीस करे ,
कुछ देर हवा लगने दे ,
( हवा लगने से लहसुन में कुछ ऐसे पदार्थ पैदा होते है जो स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छे हैं )
फिर पानी के साथ निगल लीजिये
25 -30 दिन के प्रयोग के बाद आप के शरीर में से लहसुन की गंध आने लगेगी ,
मतलब है की आपके शरीर में लहसुन की मात्रा अब पूरी हो गयी है ,
तब लहसुन का उपयोग रोक दें ,
कृपया ध्यान रहे की लहसुन हर किसी को आसानी से हजम नहीं होता
तो आप पहले छोटी मात्रा से शुरू करें
धीरे-धीरे मात्रा बढ़ाएं।

-अदरक - का सेवन भी इसमें बहुत सहायक होता है
अदरक पेट से अतिरिक्त हवा को बाहर निकलता है
इम्मून सिस्टम को ठीक करता है
उम्र बढ़ना रोकता है (एंटी-एजिंग )
इसको उपयोग करने के लिए
4 कप पानी में एक छोटी गांठ अदरक कद्दूकस करके डाल दे ,
उबलने दें  ,जब आधा रह जाए तो इस काढ़े को ठंडा करके पी लें
ये काढ़ा खून को भी पतला करता है , दिल की बीमारों को बहुत फायदा देगा

लोंग - रोज़ 2 लौंग अपने काढ़े  में ही डाल ले ,काढ़ा पी लें और बाद में इन 2 लौंग को चबा के खा ले।

जैतून के पत्ते- इनका सेवन काढ़े के रूप में भी किया जा सकता है
या फिर जैतून के पत्तो को सुखा कर रख लें और हर रोज़ आधा चम्मच पाउडर पानी के साथ ले लें

हल्दी-  में कुर्कुमिन नाम का एक चमत्कारिक पदार्थ होता है
जो मोटापा कम करता है ,हल्दी को दूध में डाल के उबाल ले
क्योकि हल्दी में से कुकुर्मिन निकलने के लिए फैट होना बहुत जरूरी है
इसलिए हल्दी को दूध में ही लेना होगा

दाल-चीनी-  का सेवन भी इसमें बहुत सहायक होता है
दाल-चीनी मोटापा भी कम करता है

मुलैठी- का सेवन भी इसमें बहुत सहायक होता है

चुकुन्दर - ये एक बहुत ही बेहतरीन वजन घटाने वाला, शुगर कण्ट्रोल करने वाला ,एंटी-एजिंग सब्जी है 
हम चुकुन्दर का जूस पी सकते है या इसको उबाल कर खा सकते हैं

वैज्ञानिक कहते हैं की हमारी प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए
हमारे शरीर में विटामिन A और विटामिन D का
सही मात्रा में होना भी बहुत आवश्यक है
इसके लिए हम खाएं

ऑरेंज खुबानी- 
( ये थोड़ी फीकी होती है, पर विटामिन A का भरपूर सोर्स है ,
हो सके तो इसकी गुठली को भी खा ले  ),

आम- 
आम भी विटामिन A का प्रचुर सोर्स होता है
( पर शुगर से पीड़ित लोग आम ना खायें )

ज़िंक- 
ज़िंक के लिए काजू ,खुश्क मेवे , घोंघे , कैवियार,समुंद्री मछली खाएं

हमें अपने जीवन में से खाने की कुछ चीज़ों को बिलकुल हटाना होगा , जैसे 

सफ़ेद चीनी, मैदा ,सफ़ेद चावल ,सफ़ेद ब्रेड , पैक्ड फ़ूड , रिफाइंड आयल, नूडल्स, अधपका मीट इत्यादी। 

घर में फर्श पर फिनाइल का पोछा , मच्छर केमिकल रेपलेंट का उपयोग भी 
हमारी प्रतिरोधक क्षमता को अच्छा ख़ासा नुक्सान पहुँचाता है  

दोस्तों इस लेख की सभी बातें केवल वैज्ञानिक/डॉक्टर्स की रिसर्च पर आधारित है
और रिसर्च ये बतातीं हैं की
इन सब बातों पे अमल करके हम रोग-मुक्त लंबा और खुशहाल जीवन जी सकते है।

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