Sunday, June 28, 2020

स्वप्निल-पंख


कपडे पुराने हैं तो क्या
दिल में नए अरमान हैं
रास्ते पथरीले ,पैर नंगे
मेरे हौसलों चट्टान हैं

कदम दर कदम आगे बढूँगी मैं
बढ़ना पडेगा कायनात को साथ
ये बेदर्द जालिम जख्म मिले जो
मेरे स्वप्निल-पंख समान हैं

एक बार जो परवाज़ भरी अब मैंने
छू लूँगी यूहीं आसमान को तेरे
मेरा इरादा उससे भी कहीं आगे
मेरा बुलंद स्वाभिमान है

कपडे पुराने हैं तो क्या
दिल में नए अरमान हैं
रास्ते पथरीले ,पैर नंगे
मेरे हौसलों की उड़ान है।

#बचपन #bachpan , manojgupta0707.blogspot.com
Writer- Manoj Gupta









Tuesday, June 23, 2020

विधवा ,( कहानी ), 10


"अनुज आपने ये क्या किया ?
ये आपने माँ को क्या बोल दिया
माँ का फोन आया था
बहुत दुखी थी वो
अनुज बरसों बाद शायद मेरी जिंदगी में कुछ अच्छा होने को है
अंकुर मुझसे शादी करना चाहता है
क्या आप मुझे खुश नहीं देखना चाहते ?
आपकी जिंदगी सुनहरी है अनुज
उसमे मेरे विधवा जीवन का दाग मत लगाइये
लाखो लडकियां आएंगी आपके लिए
कुंवारी,सुन्दर
आपके काबिल "
सरला फोन पर लगातार बोले जा रही थी

अनुज चुपचाप सुने जा रहा था
सरला का एक-एक शब्द दर्द में डूबा हुआ था
और फिर सरला ने फोन रख दिया

उस दिन की बातचीत के बाद सरला ने अनुज का फोन उठाना ही बंद कर दिया था
अनुज की बेचैनी बढ़ती जा रही थी
तो एक दिन उसने गाड़ी उठाई और पहुंच गया गुरूजी के आश्रम में
सरला उसे अचानक आया देख हैरान थी
और अनुज का हुलिया देख वो और भी परेशान हो गयी थी
दाढ़ी बढ़ी हुयी थी
कपडे बेमेल थे
चेहरा उतरा हुआ
"अनुज आप    आप ठीक तो हैं ?
ये क्या हाल बना रखा है आपने
आप बीमार हैं क्या ? "
बेचैनी से पूछा था सरला

"नहीं सरला मैं तुम्हारे बिना बिलकुल ठीक नहीं हूँ "
"तुम मान जाओ ना "
"मैं खुश रखूंगा तुम्हें "- बेचारगी के अंदाज़ में बोल रहा था अनुज

"अनुज आखिर आपने मुझे मजबूर कर दिया है
अपने जीवन का वो काला सच बताने के लिए
ये सुनने के बाद आप खुद मुझसे नफरत करने लगोगे "
"मैंने ये सच आज तक किसी को नहीं बताया
आपको बता रहीं हूँ "

"मैं एक अनाथ हूँ
मुझे नहीं पता मेरे माँ बाप कौन थे
अनाथाश्रम में पली
वहां सब लड़कियों के साथ व्यभिचार होता था
मेरे साथ भी हुआ
सरला नीचीं नज़रें किये धीरे-धीरे बोले जा रही थी
और अनुज का दिल डूबता जा रहा था
"अठारह की हुयी तो एक सामूहिक विवाह उत्सव में मेरी भी शादी कर गयी
पति उम्र में काफी बड़े थे
पर अच्छे थे
पर शराब और हर तरह के नशे के आदी थे
मैंने बहुत समझाया ,
नहीं मानते थे
एक दिन शराब के नशे में सड़क दुर्घटना में मारे गए
मैं एक बार फिर बेघर हो गयी
और फिर गुरूजी के इस विधवाश्रम में आ गयी
यहीं माँ से मुलाकात हुयी थी
और वो मुझे आपके घर ले आईं थी "

सरला और अनुज दोनों खामोश अपने में ही गुम थे
कुछ देर बाद सरला उठी और अपने कमरे की ओर चलने लगी
मन शांत था
चेहरे पे मुस्कराहट थी
जो वो पता करना चाहती थी
पता चल गया था
आखिर बड़ी मुश्किल से तो वो बंधनों से आज़ाद हुयी थी
अब क्यों बंधें वो किसी नए बंधन में ?
जिसमे उसे बस देना ही देना है
वो भी सामने वाले के आदेश पर
रहमोकरम पर
यहाँ कोई उससे कुछ नहीं पूछता
उसको उसके अतीत के हिसाब से जज नहीं करता
यहाँ सबकी अपनी ही एक दुःख भरी कहानी है
और फिर
आज यहां सब कुछ तो है उसके पास
रहने को घर, संगी-साथी और सबसे बढ़कर
"आज़ादी "
अपने मन से जीने की
मन का करने की

और रहा शरीर का सुख
तो उसका क्या है
जब मन चाहा
जरा हाथ बढ़ाया और ले लिया

और फिर सरला ने कभी पीछे मुड़ के नहीं देखा।

Writer-  Manoj Gupta , manojgupta0707.blogspot.com



विधवा ,( कहानी ), 9


कुछ दिनों से शारदा जी अनुज में अजीब सा बदलाव नोटिस कर रहीं थीं
ना वो ठीक से खा रहा था
ना हँसता खिलखिलाता था
बस गुमसुम सा अपने कमरे में घुसा रहता
बात करने से बात तो करता पर बस हाँ-हूँ वाली बातचीत
शारदा जी से रहा न गया
एक दिन उन्होंने पूछ ही लिया
"अनुज सच-सच बता ये क्या है ?
कहीं तू कोई ड्रग्स वगैराह .... "

अनुज फीकी सी हंसी हँसा था
"क्या माँ आप भी ना
नहीं माँ कोई ड्रग्स-फ्रूग्स नहीं करता "
"आपका बेटा हूँ
आपको इतना भी विश्वास नहीं है क्या "

"फिर क्या बात है ?"
शारदा जी आज छोड़ने वाली नहीं थीं

"माँ मुझे सरला से प्यार है ? "
धीरे से बोलै अनुज ने

"तुझे
तुझे सरला से
तुझे पता है क्या कह रहा है तू ? "
शारदा जी चिंतित स्वर में बोली थी
अनुज चुप ही रहा
वो दोनों कुछ देर चुपचाप बैठे रहे
कुछ देर बाद भी सरला जी ही बोली
"अनुज वो विधवा है
किसी की पत्नी थी वो
मालूम है ना ? "
कुँवारी नहीं है वो "

"तो माँ मैं भी कहाँ कुंवारा हूँ "
अनुज ने धीरे से कहा था

"क्या
क्या कहा तूने ?
फिर खुद ही जाने क्या समझते हुए शारदा जी बोली थी
"अनुज तू लड़का है
तुझे सब माफ़ है
पर वो किसी और की बीवी थी
झूठी थाली है वो "

अनुज का मन तो चाहा की माँ को बता दे के उस थाली को आपके बेटे ने भी चखा है माँ
पर शर्म कहें या अपना अपराध कहने से बचना ,
अनुज इस बात पर चुप ही रहा
"सब जान कर भी मैं सरला से शादी करना चाहता हूँ माँ "

"तू पागल हो गया है अनुज
ये शादी नहीं हो सकती "
"कभी नहीं हो सकती "
सरला जी गुस्से में उठकर अपने कमरे में चली गयी
और उन्होंने उसी गुस्से में सरला को फोन मिलाया।

Writer-Manoj Gupta,   manojgupta0707.blogspot.com





Monday, June 22, 2020

विधवा ,( कहानी ), 8


"अनुज,
अक्सर कोई देहलीज का पत्थर भी ,
जो हमारे घर के बाहर
बरसों,
यूहीं उपेक्षित सा पड़ा रहता है
हम नज़र भर के उस पत्थर को देखते भी नहीं 
पर जैसे ही कोई और आकर कह दे की 
"मैं ये पत्थर ले लूँ "
तो तुरंत हमें सारे जहां की खूबियां उसी पत्थर में दिखाई देने लगती हैं 
बस यही आपके साथ हुआ है "
दुखी मन से सरला ने फोन पर कहा 
अनुज हतप्रत सा रह गया , वो गुस्से में बोला
"क्या कहना चाहती हो तुम सरला साफ़-साफ़ कहो "
"साफ़ बात ये है की
आज आप मुझे कह रहे हो की मैं अंकुर से शादी से इंकार कर दूँ
पर क्यों ?
सरला ने सीधा सवाल किया था
"क्युकी
क्युकी मैं
मैं तुमसे प्यार करता हूँ सरला
हाँ मैं तुमसे प्यार करता हूँ "
अनुज ने इतना कहकर जैसे राहत की सांस ली थी
ये वो बात थी जो अनुज खुद भी ना तो समझ पा रहा था
ना ही खुद से भी कह पा रहा था

"क्युकी आप मुझसे प्यार करते हो ?
प्यार ?
अरे अनुज पर जब में आपके घर में थी
आप ने तो ठीक से बात तक नहीं की मुझसे
प्यार तो बहुत बड़ी बात है
प्यार का मतलब भी मालूम है आपको ?
केवल घर का काम करना
शरीरों का मिल जाना प्यार नहीं होता
प्यार बहुत पवित्र चीज़ होती है
कहना बहुत आसान है ,
प्यार
पर निभाना ........."
इतना कहकर सरला ने फोन काट दिया था
अनुज वहीं खड़ा देर तक सरला की बातों का मतलब सोचता रहा

 Writer- Manoj Gupta,  manojgupta0707.blogspot.com

विधवा ,( कहानी ), 7


"अनुज ,
मैं आश्रम वापिस जा रही हूँ
रात जो हुआ
तुम खुद को दोष मत देना
शायद मैं ही सालों से उपेक्षित थी
तुमने ज़रा सा सहारा क्या दिया....
पर अब इस घर में मेरा रहना ठीक नहीं
सो मैं जा रही हूँ
-सरला "

अनुज देर से सोकर उठा था
टेबल पे उसका नाश्ता रखा था
और सरला की ये चिठ्ठी
माँ आने वाली थी तो
उसने जल्दी से चिठ्ठी को जेब में रखा
सरला को फोन मिलाया
बंद था
अनुज ने फटाफट नाश्ता किया
और माँ की प्रतीक्षा करने लगा

"पर अनुज वो अचानक कैसे चली गयी ?
वो भी अकेली
मेरे आने की वेट भी नहीं की उसने
मुझसे तो मिल कर जाती "
आते ही शारदा जी चिंचित स्वर में बोल रही थी
"अब माँ ये तुम उसी से फोन करके पूछ लो
मुझसे तो सुबह-सुबह बोली की
आश्रम की,
गुरूजी की बहुत याद आ रही है
जा रही हूँ
माँ जाने नहीं देंगीं
इसलिए बिना मिले जा रही हूँ "
अनुज ने एक सांस में कई झूठ बनाये
और शारदा जी को निरुत्तर कर दिया

शारदा जी गहन सोच में पड़ गयी थी
सरला का फोन मिलाया, बंद था
आश्रम में फोन किया तो पता चला सरला अभी वहाँ पहुँची नहीं थी
फिर शारदा जी सफर से थकी आईं थी
तो आराम करने अपने कमरे में चली गयी

शाम को सरला ने  शारदा जी को फोन किया
"माफ़ कीजियेगा माँ
पर अचानक मन उजाड़ सा हो गया था
सो चली आयी
हफ्ते-दस दिन  में आ जाउँगीं
आप मेरी चिंता ना करे "
शारदा जी के बहुत मनाने-समझाने के बाद भी सरला तुरंत आने को नहीं मानी

और अगले दिन से शारदा जी के तो सारे घर के व्यवस्था ही जैसे बिगड़ गयी थी
उन्हें ना कोई रसोई का सामान जगह पर मिल रहा था
न घर का कोई काम हो पा रहा था
खाना फिर वही पहले की तरह कच्चा-पक्का बन रहा था
दस-पंद्रह दिनों में ही घर पहले की ही तरह बिखरा-बिखरा सा हो गया था
साफ़ दिख रहा था की कोई बहुत ही गुणी व्यक्ति घर से चला गया है
सरला का सेवा-भाव,
उसकी मेहनत ,
उसका प्यार ,
उसकी साधना
शारदा जी और अनुज दोनों पर अलग-अलग असर डाल रही थी
सरला की कमी दोनों को खूब खल रही थी
सरला जी तो हर समय ये बात अनुज से कहती ही रहती थी की
सरला ऐसी थी,
सरला वैसी थी ,
तू उसे जाकर ले आ
पर अनुज,
अनुज तो कुछ कह भी नहीं सकता था
जब तक सरला थी
अनुज ने ढंग से कभी सरला से बात भी नहीं की थी
और जाते-जाते जो हुआ था
उसके बारे में अनुज बिलकुल भी समझ नहीं पा रहा था की वो क्या था ?
क्या वो बस जिस्म था
या उसमे कहीं कोई आत्मा भी थी
या कोई प्यार भी था
अनुज को नहीं पता चल रहा था
बस इतना था की वो बेचैन था सरला के जाने से
इधर सरला को गए एक पूरा महीना हो गया था
घर फिर साफ़ रहने लगा था
अच्छा खाना बनाने वाले एक महाराज भी मिल गए थे
जिंदगी पहले की तरह हो गयी थी
पर अनुज के मन की ये बेचैनी थी की ख़त्म ही नहीं हो रही थी

और एक दिन
शारदा जी ने अनुज को बताया की पड़ोस की उनकी सहेली शान्ति जी सरला के बारे में पूछ रहीं थी
"अब ये शांति आंटी को सरला का क्या पूछना है ?"
अनुज ने खाना कहते-कहते माँ से पुछा था
"अनुज वो शांति चाहती है की अंकुर और सरला का ...."
शारदा जी ने बात अधूरी छोड़ दी थी
अनुज के हाथ का कौर हाथ में ही रह गया
"माँ आपको पता है वो अंकुर कैसा है ?"
"वो ठीक नहीं है सरला के लिए "
"उसका चरित्र ठीक नहीं है "
अंकुर गुस्से में आपा खो बैठा था
और खाना बीच में ही छोड़कर गुस्से में अपने कमरे में चला गया
शारदा जी सोच रही थी की अगर अंकुर में कुछ कमी-बेशी है भी तो क्या
लड़का है और थोड़ी-बहुत कमी-बेशी तो लड़कों में चलती है
और सरला भी कौन दूध की धुली है
विधवा है
अंकुर तो एहसान ही करेगा सरला पर।

Writer- Manoj Gupta , manojgupta0707.blogspot.com

रेखा ,दा मिरांडा क़्वीन (short story)



रेखा ,दा मिरांडा क़्वीन
अब ये तो पता नहीं की उसका असली नाम रेखा था या कुछ और
पर इतना जरूर है की पूरा मिरांडा कॉलेज उसे रेखा ही बुलाता था
क्युकी फिल्म स्टार रेखा उन दिनों खूबसूरती का दूसरा नाम थी, (यूँ तो आज भी हैं :) )
और इधर अपनी रेखा के भी कॉलेज में खूबसूरती और जहानत के जबरदस्त चर्चे थे
जहाँ एक ओर रेखा गज़ब की खूबसूरत थी
वही दूसरी ओर पढ़ाई , स्टेज, ड्रामा, म्यूजिक सबमे अव्वल
उसका नाम किसी स्पर्धा में होने पर नहीं बल्कि ना होने पे सबको आश्चर्य होता था
हर तरह के म्यूजिक फेस्टिवल्स,कॉम्पिटिशंस, इंटरकॉलेज डिबेट्स ,
मतलब की हर वो एक्टिविटी जो 1975 के मिरांडा कॉलेज और दिल्ली युनिवेर्सिटी में होती थी
उसमे रेखा का होना जैसे लाज़मी था
और जीतना भी


इधर "नेशनल म्यूजिक फेस्टिवल" आनेवाला था
इस बार "मिरांडा हाउस" कॉलेज ने दिल्ली युनिवेर्सिटी को रिप्रेजेंट करना था
तो कॉलेज म्यूजिक टीचर मिसेज शेरोन ने रेखा और उसके पूरे ग्रुप को हिदायत दी थी की
इस बार ये कॉम्पिटिशन उन्हें ही दिल्ली के लिए यानि उनकी मिरांडा कॉलेज टीम को ही जीतना है
रेखा और उसके ग्रुप की लडकियां जी-जान से इस कॉम्पिटिशन की तैयारियों में लग गए
दिन-रात म्यूजिक रेहर्सल्स चल रही थी
गाने बनाये जा रहे थे
फुल ऑन तैयारियां थी
तभी एक दिन एक टीम मेंबर रागिनी ने रेखा को खबर दी की
इस बार हरियाणा की टीम बहुत जबरदस्त है
रेखा पहले तो हँसी
"हरियाणा की टीम और म्यूजिक"
"अच्छा मज़ाक है "
पर जब रेखा ने उस टीम के कुछ म्यूजिक पीस सुने तो वो चौंकी
"यार ये इतना अच्छा म्यूजिक हरियाणा टीम का , कैसे ? "
"यार एक लड़का है करन ,
लंदन से म्यूजिक पढ़ के आया है
उसी ने ये म्यूजिक बैंड बनाया है
मतलब कमाल ही कर दिया है "- रागिनी उत्साह से बोली थी
"ए रागिनी तू हमारी टीम  में है या उस गंवार करन की टीम में "
"कुछ भी बोलती है "- रेखा ने चिढ़ के जवाब दिया था

और फिर "नेशनल म्यूजिक फेस्टिवल" का दिन भी आ गया
दिल्ली का परफॉरमेंस लाजवाब था
देर तक तालियां और वन्स मोर ,वन्स मोर का शोर हो रहा था
अचानक एक अनजान हैंडसम लड़का स्टेज पर चढ़ा
और रेखा से हाथ मिलाते हुए बोला
"यू आर दा मोस्ट ब्यूटीफुल थिंग ऑन दिस स्टेज "

रेखा मंत्रमुग्ध सी उसे देखती हुयी स्टेज से नीचे उतर गयी
अब हरियाणा का परफॉरमेंस था
और तब रेखा को पता चला की ये तो वही था
लंदन रिटर्न हरियाणा बॉय "करन "


अगले दिन कॉलेज में चर्चा ये नहीं था की कॉम्पिटिशन किस टीम ने जीता
बल्कि इस बात का चर्चा था की
फेस्टिवल ख़त्म होने के बाद सबने रेखा और करन को हाथों में हाथ डाले
फेस्टिवल ऑडोटोरियम से बाहर निकलते देखा था
मिरांडा हाउस हार्ट थ्रोब रेखा और लंदन रिटर्न हरियाणा बॉय करन
एक नयी प्रेम कहानी की शुरुआत हो गयी थी


रेखा और करन अब रोज़ मिलने लगे थे
कभी कॉलेज कैंपस में
कभी बोट क्लब
कभी बुद्धा गार्डन
कभी किसी मूवी हॉल में
उनका प्यार , उनका साथ बढ़ता जा रहा था





कॉलेज का फाइनल ईयर चल रहा था
अब बस कुछ ही दिन का कॉलेज बाकी था
रेखा और करन बुद्धा गार्डन में बैठे थे
दोनों चुप थे
कुछ उदास से भी थे
अचानक करन बोल पड़ा
"तुम मेरे छोटे शहर में एडजस्ट कर पाओगी ? "
रेखा ने हैरानी से उसकी तरफ देखा था
और हंसकर बोली थी
"हाँ , पर क्या तुम मेरे बड़े से नखरे उठा पाओगे ? "
फिर दोनों खिलखिला के हॅंस दिए थे



और फिर शुरू हुआ वही सोशल ड्रामा
जो हर प्रेम कहानी में होता है
घरवालों का इंकार
परिवारों में तकरार
रोना-धोना
भूख हड़ताल
घर से निकाल देने की धमकी
भाग कर शादी ना कर लें का डर
इत्यादि इत्यादी
पर सब व्यर्थ
ना उन्हें मानना था ना वो दोनों माने

और फिर सब कुछ सुन्दर,सुखद शांत हो गया
सारे तूफ़ान जैसे थम से गए थे
और वो ही हुआ जैसा रेखा और करन चाहते थे



और फिर जून 1977 की एक शाम
रेखा और करन अपने हनीमून के लिए
श्रीनगर डल लेख पर एक शिकारे "कश्मीर की कली " में बैठे थे
करन ने बनारसी साड़ी में सजी,
अपनी दुल्हन बनी रेखा की फोटो खींचते हुए फिर से कहा था

"रेखा देअर इज सो मच ब्यूटी हेयर
बट यू आर दा मोस्ट ब्यूटीफुल थिंग हेयर ,इन दिस मोमेंट "

और रेखा और करन  एक दूसरे की आँखों में देख कर मुस्कुरा दिए थे।

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विधवा ,( कहानी ), 6


"सरला बेटी ,
बेटी मुझे आज रात यहीं आश्रम में रुकना पड़ेगा
अरे वो गुरूजी आज पूरा दिन व्यस्त रहे
उनके दर्शन नहीं हो पाये
फिर आज रात यहां भजन संध्या भी है
अब ये सब साथ गयीं पड़ोसनें हैं ना
ये कह रहीं हैं की
सुबह गुरु जी के दर्शन करके ही वापिस लौटेंगें "
"ठीक है ना बेटी ? "
शारदा जी ने फोन पर सरला से कहा

" कोई बात नहीं माँ आप निश्चिन्त रहें
आप सुबह आराम से आ जाइये
और गुरूजी को मेरा भी प्रणाम कह देना माँ "
सरला ने इतना कहकर फोन रख दिया
और रात के खाने की तैयारी में जुट गयी
अक्सर तो वो रोज़ एक सब्जी माँ की पसंद की
और एक सब्जी अनुज की पसंद की बनाती थी
पर अब माँ नहीं थी तो
आज पूरा खाना ही अनुज की पसंद का ही बना दिया
अनुज को फोन किया तो पता चला की वो भी आज थोड़ा लेट आएगा
शायद आज सरला कुछ थकी थी तो
टीवी देखते-देखते कब उसकी आँख लग गयी
उसे होश ही नहीं रहा
उसकी आँख खुली घंटी की लगातार तेज़ आवाज़ से
सरला हड़बड़ा के भागी और जल्दी से दरवाज़ा खोला
ये अनुज ही था , झल्लाया सा बोला था
"कितनी देर से बैल बजा रहा हूँ "
"वो आँख लग गए थी "
"आपका खाना लगाऊँ ? "
सरला सकुचाते हुए बोली थी
"नहीं पहले दो गिलास एकदम चिल्ड ठंडा पानी दे दो "
और हाँ खाने में क्या है ? -अनुज बोला
"जी मंचूरियन  और फ्राइड राइस "
सरला का ये बोलना था की अनुज तो बहुत खुश हो गया
वो हँसकर बोला
" अरे फिर तो जल्दी लाओ बहुत भूख लगी है "
अनुज का बच्चो सा उतावलापन देख सरला भी मुस्कुरा भर दी
खाना टेबल पे लगा के वो अपने कमरे में जाने लगी तो अनुज बोला
"तुम भी यहीं खा लो "
"जी मैंने खा लिया आप खा लीजिये  "- सरला कहकर अपने कमरे में चली गयी
"अजीब लड़की है
इसे कभी खाना खाते ही नहीं देखा
पता नहीं कब खाती है ,क्या खाती है "
अनुज मन ही मन बुदबुदाया
फिर उसने टीवी पे मनपसंद मूवी लगाईं
जेब से व्हीस्की क्वार्टर निकाला ,
ठन्डे पानी में मिलाया और फिर इत्मीनान से
आनंद से
मूवी, मंचूरियन , फ्राइड राइस ,व्हीस्की
वो देर तक पीता रहा था

अचानक सरला शायद पानी लेने बाहर आयी थी
या फिर टीवी की तेज़ आवाज़ सुनकर
"आज आप फिर पी रहे हैं ? "
"आपको ये शोभा नहीं देता अनुज "
"ये शराब आपकी सेहत, कर्रिएर , परिवार सब ख़त्म कर देगी
आपके बिना माँ का क्या होगा ? "
सरला बड़े ही दुखी स्वर में लगातार बोले जा रही थी
और अब इतना चिल्लाकर सरला वहीं बैठकर रोने भी लगी थी
अनुज हैरान सा सरला को देख रहा था
इतना तो कभी नहीं बोलती थी सरला
तो आज क्या हुआ
और इसमें रोने वाली कौनसी बात है
अनुज रोती  हुयी सरला के पास आ बैठा
और उसकी पीठ सहलाने लगा
उसके बाल ठीक करने लगा
सरला फिर से बोले जा रही थी
"एक बार उजड़ चुकी हूँ
इस शराब का भयानक सच देखा है मैंने
फिर नहीं देख पाउंगी
मैं चली जाउंगी
वापिस
वहीं आश्रम में "
अनुज उसे सांत्वना देने के लिए बोलने लगा
"तुम ठीक कहती हो
आज के बाद नहीं पियूँगा
बस तुम अब चुप हो जाओ "
अनुज ने प्यार से सरला के बालों को चूमा
फिर माथे को
और फिर जैसे भावनाओ का एक तूफ़ान सा बह निकला
अनुज बेतहाशा चूमे जा रहा था सरला को
जैसे ही सरला को होश आया
सरला ने मनुहार करना शुरू किया
"ये आप क्या कर रहे है अनुज
ये ठीक नहीं है
ये गलत है
प्लीज ये ना करें
नहीं अनुज "
पर अनुज ने महसूस कर लिया था की सरला की बातों में
विरोध कम था झिझक ज्यादा थी
उसका शरीर कुछ और चाह रहा है
मन कुछ और
और सोच-समझ सरला से कुछ और बुलवा रही है
तो अनुज बिना रुके सरला को लगातार चूमता रहा
सहलाता रहा
इधर सरला का विरोध भी धीमा और धीमा होता गया था
अब सरला ने जैसे समर्पण कर दिया था
बरसों की प्यासी नदी थी
और समंदर खुद मिलने आया था
तो वो भी बह गयी
निर्बाध .....

राइटर-मनोज गुप्ता , manojgupta0707.blogspot.com










"वो" चन्दा-सूरज तो तुम्हें पहले ही दे बैठा है

" "वो" चन्दा-सूरज  तो तुम्हें पहले ही दे बैठा है
बस एक "सरस्वती" है जो उसके पास अब शेष बची

यहाँ इन दिनों "तुम्हे" (हेमंत और लोतिका को )
रस्म- ए ,
मौका भी है ,
फुर्सत भी है ,
दस्तूर भी है
मिलकर ज़रा जतन तो करो
तुम्हारे ही घर आ जाएगी वो "सरस्वती बच्ची"

"वो" सूरज-चन्दा तो तुम्हें पहले ही दे बैठा है
बस एक "सरस्वती" है जो उसके पास अब शेष बची "

राइटर- मनोज गुप्ता , manojgupta0707.blogspot.com

एक शिशु ध्रुव-तारा

एक शिशु ध्रुव-तारा चमका
हमारे प्यारे परिवार में
नन्हा सा है ..मुन्ना सा है
वो इस सुंदर संसार में
परिवार की पाती उसको मिले
समाज में ख्याति उसको मिले
सभ्य सुसंस्कृत शालीन बने वो
तन ही नहीं मन भी सुंदर हो
यही दुआ हम सब करते है
कान्हा के दरबार में
एक शिशु ध्रुव-तारा चमका
हमारे प्यारे परिवार में
नन्हा सा है ..मुन्ना सा है
वो इस सुंदर संसार में।

Sunday, June 21, 2020

विधवा ,( कहानी ), 5


"सरला कल रात का
माँ को मत बोलना "
अनुज सुबह नाश्ते की टेबल पे धीरे से सरला से बोला था
"नहीं कहूंगी "
"पर ये इतनी शराब पीना क्या.... ? "
सरला का इतना कहना था की अनुज ने गुस्से से सरला को बुरी तरह घूरा
वो शायद कुछ कहता भी पर उतने में ही शारदा जी वहां आ गयी
और अनुज के बाल सहलाते हुए बोली
"कल रात बहुत देर से आया रे तू "
"हाँ माँ वो देर हो गयी थी
आया तो देखा आप सो चुकी थी "
तबीयत तो ठीक थी ना आप की "
अनुज ने फटाफट बात बदली
"हाँ रे
अब तो मेरी तबीयत पहले से बहुत बेहतर रहती है
सरला बहुत ख़याल रखती है मेरा "
शारदा जी ने मुस्कुरा कर सरला को देखा
सरला की तारीफ सुनकर अनुज कुछ अचकचा सा गया
"चलो अच्छा है
आपको आराम मिल रहा है "
कहता हुआ अनुज कॉलेज के लिए निकल गया

कॉलेज में गार्डन में पीछे की तरफ
हमेशा की तरह बॉयज़ की बियर पार्टी विद डर्टी टॉक चल रही थी
सब लड़के बता रहे थे की
किसने कहाँ , कब  , कैसे
अपनी गर्ल फ्रेंड
या फिर ऐसे ही किसी रैंडम लड़की, महिला को पटाया
रिश्ता बनाया
फिर निपटाया
कोई दूर की रिश्तेदार थी
तो कोई पड़ोस की भाभी
तो कोई काम वाली बाई ही "
अनुज अक्सर इस तरह की टॉक में चुप ही रहता था
वो दिखने में साधारण सा और पढ़ाई में भी औसत दर्जे का था
कभी किसी लड़की से भी कोई नज़दीकी वाली दोस्ती भी कभी नहीं हुयी थी
उसने कई बार लड़कियों से ऐसी दोस्ती करने की कोशिश की थी
पर बात कभी शारीरिक रिश्ते तक नहीं पहुंच पायी थी
अचानक उसके पड़ोस में ही रहने वाला शेखर पूछ बैठा
"साले अनुज वो खूबसूरत लड़की कौन है जो तेरे घर रहने आयी है बे "
शेखर की बात सुनकर सब का ध्यान अब अनुज पे चला गया
और फिर सब अनुज से पूछने लगे
"बता ना भाई कौन है ? "
"अरे अनुज भाई तू तो सन्यासी है
भाई मेरी ही सेटिंग करा दे "
"बोल ना भाई "
अनुज के तनबदन में आग लग गयी
वो चिल्ला कर बोला
"सालों वो मेरी दूर की रिश्तेदार है
कज़न है मेरी
कुछ तो शर्म कर शेखर "
शेखर को काटो तो खून नहीं
 वो रुआंसा सा बोल पड़ा
"सॉरी भाई गलती हो गयी
पता नहीं था
माफ़ कर दे "
और सब लड़के भी झूठे-सच्चे को शेखर की लानत-मलानत करने लगे
और अनुज को बहलाने के लिए बोलने लगे
"छोड़ यार अनुज ये शेखर तो पागल है साला
ले तू बियर पी भाई "
बियर पीते हुए अनुज मन में खुश हो रहा था की
आज उसे भी इन सब पे चिल्लाने का मौक़ा मिला
जब शेखर ने भी सरला को देख कर खूबसूरत कहा है तो
मतलब सरला वाकई खूबसूरत लड़की है
आज उसे ऐसा लगने लगा की
उसके पास तो इतना अच्छा मौका है
"एक अनजान , बेसहारा विधवा को घर में सहारा दिया हुआ है 
उस पर इतना एहसान किया है
तो कुछ तो रिटर्न में उसे भी मिलना ही चाहिए  
इतना तो बनता ही है ना "

अब तो अनुज घर में जब-जब सरला को देखता
उसके मन में दोस्तों की वही कहानियाँ फिल्म बनकर चलने लगती
जिनमे लड़का वो खुद और लड़की की जगह उसे सरला दिखाई देती
अब सरला जब भी उसके कमरे में आती
और वो बाथरूम में होता तो वो जानबूझ कर टॉवल में ही रूम में आ जाता
और फिर वही कुछ ढूंढ़ने का बहाना करता , वहीं रुका रहता
कुछ सामान या नाश्ते की प्लेट लेते-देते
या आते-जाते
अब वो जान-बूझ कर सरला को छूता
पर सरला जैसे इन सब बातों से अनजान बस अपनी ही धुन में रहती
ना वो अनुज की तरफ देखती थी
और ना ही अनुज के छूने पर कोई भी अच्छी या बुरी प्रतिक्रिया देती थी
बिलकुल निर्लिप्त हो जैसे

इधर अनुज के मन की आग धधकती जा रही थी
और एक रात .......

to be continue..

(writer-manoj gupta , manojgupta0707.blogspot.com )





Saturday, June 20, 2020

विधवा ,( कहानी ), 4


"सरला ,
सरला , माँ सो गयी ना ?
मैं 15 मिनिट में घर आ रहा हूँ
दरवाज़े पे आकर फिर फोन करूंगा
धीरे से गेट खोल देना "
और फोन कट गया था
सरला को कुछ सेकंड के बाद एहसास हुआ की
ये अनुज था
रात के ग्यारह बज रहे थे
सरला अपने कमरे में लेटी टीवी देख रही थी
सरला ने कमरे से बाहर आकर देखा
शारदा जी के कमरे की लाइट बंद थी
इसका मतलब वो सो गयीं थीं

लगभग आधे घंटे बाद सरला का फोन फिर बजा
" सरला दरवाज़ा खोलो "
ये अनुज ही था
सरला ने धीरे से ,बगैर कोई आवाज़ किये दरवाज़ा खोल दिया
अनुज के अंदर आते ही एक तेज़ बदबू का गुबार भी अंदर आया
अनुज ड्राइंग रूम के सोफे पे आकर बैठ गया था
सरला ने उसे पानी लाकर दिया
अनुज एक बार में ही पूरा गिलास पी गया
सरला एक गिलास पानी और ले आयी और बोली
"खाना खाएंगे ?"
"हाँ "- अनुज ने जवाब दिया
सरला देख रही थी की अनुज अपने को बहुत सँभालने की कोशिश कर रहा है
पर साफ़ पता चल रहा था की वो बहुत ज्यादा नशे में है
सरला ने खाना गर्म किया और लाकर रख दिया
अनुज खाने लगा था
अनुज इतनी बुरी तरह खा रहा था की आधा खाना वो गिरा रहा था
सरला चुपचाप वहीं खड़ी रही
" और लाऊँ "
सरला ने पूछा था
"नहीं"
और अपनी कमीज की ब्याह से अपना मुँह पोंछता अनुज
झूलता सा अपने कमरे की बढ़ चला
झूठे बर्तन उठाकर सरला भी किचन जाने को मुड़ी ही थी की
पीछे से अनुज की आवाज़ आयी
"यू आर टू गुड सरला "
सरला हैरान सी ,
झूठे बर्तन हाथ में लिए वहीँ खड़ी रह गयी


विधवा ,( कहानी ), 3


"अनुज
अनुज वो पैसे मिले ? "
शारदा जी ने अगले दिन सुबह ही अनुज को जगाते हुए पूछा
"पैसे,  कौनसे पैसे ? "
नींद में भरे अनुज को कुछ याद कहाँ था
"अरे वो तेरे पांच हज़ार , जो कल खो गए थे ?? "
शारदा जी अब गुस्से में बोली थीं
"हाँ हाँ   मिल गए , मिल गए "
और अनुज चादर ओढ़ कर फिर सो गया
शारदा जी हैरान सी कुछ देर वहीं खड़ी सोचती रहीं की
ये माजरा क्या है

उसके बाद शारदा जी ने फिर कई बार
अलग-अलग मौकों पे अनुज से उन खोये पैसो के बारे में पूछा
पर अनुज ने हमेशा गोल-मोल जवाब ही दिया
शारदा जी , चाहकर भी सरला से अब ये बात पूछ नहीं पा रहीं थी
उनको डर  था की सरला बुरा मानेगी
तो कुछ दिन बाद ये बात आयी-गयी हो गयी 

एक दिन अचानक सुबह तड़के
किसी चीज़ के गिरने की आवाज़ से अनुज की नींद टूटी
अनुज को लगा जैसे कोई चोर घर में घुस आया है
वो दबे पाँव कमरे से बाहर आया तो देखा
बाहर कॉमन बाथरूम के बाहर
सरला फर्श पर बैठी कुछ चुन रही थी
शायद वो अभी नहा कर बाहर निकली थी
और बाथरूम के बाहर की साइड टेबल पर रखा
कांच का कोई बर्तन गिर कर टूट गया था
वो कांच के छोटे-छोटे टुकड़े बड़ी ही सावधानी से चुन रही थी
अनुज ने शायद पहली बार उसे गौर से देखा था
इतनी भी बुरी नहीं थी वो देखने में
बल्कि सुन्दर ही थी
अनुज चुपचाप चोरों की तरह वहीँ खड़ा
एकटक उसे तब तक देखता रहा
जब तक वो एक-एक कांच का टुकड़ा बीनकर
अपने कमरे में वापिस चली नहीं गयी
उस रात अपने बिस्तर पर लेटा अनुज यही सोच रहा था
"साली है गज़ब की सुन्दर "

हर सुबह की तरह अगली सुबह भी सरला रसोई में ही थी
उसने अनुज का नाश्ता टेबल पे रख दिया था
अचानक अनुज ने आवाज़ लगाईं
" माँ कहाँ हैं ? "
अनुज के इस सवाल से चौक सी गयी थी सरला
क्युकी अनुज तो उससे कभी कुछ बोलता ही नहीं था
"जी सुमन आंटी जी के यहाँ "
सरला ने रसोई से बाहर आकर धीरे से जवाब दिया
"माँ को बोल देना आज मैं देर से आऊंगा
कॉलेज के बाद एक दोस्त की बर्डे पार्टी है "
और मुस्कुराता हुआ अनुज जल्दी से घर के बाहर निकल गया
अनुज के आज के बर्ताव पे सरला सोच में पड़ गयी थी
ये क्या था
पहले तो कभी .....
तभी कुकर की सीटी बजी और सरला वापिस किचन में दौड़ी।






विधवा ,( कहानी ), 2


सरला के घर आ जाने से
शारदा जी का तो जैसे पूरा जीवन ही बदल गया
पिछले २२ साल से सारे घर का काम खुद अकेले करते हुए
उन्हें खुद को कभी कहाँ आराम मिला था
अब सरला के आने के बाद
शारदा जी को उनकी दवाइयां समय पे मिलती
मनचाहे समय-असमय
हलवा, चाय, सैंडविच
और भी जो वो खाना चाहें खाने को मिलता
रोज़ रात को पैर दबवाने का सुख मिलता
और घर तो हमेशा ऐसा चमका-दमका दिखता,
जैसा पहले कभी दिखा ही नहीं
सरला ने खुद ही शारदा जी से कहकर खाना बनाने वाली बाई को हटवा दिया था
अब सारा खाना सरला ही बनाती थी

यूँ तो सरला के इन गुणों का बराबर फायदा अनुज को भी हो रहा था
अब अनुज को भी अपनी पसंद का खाना मिलने लगा था
ताज़ा, गर्म , उसके कॉलेज से घर आते ही
अनुज को अपना कमरा हमेशा व्यवस्थित मिलता
सारे कपडे हमेशा प्रेस किये हुए सलीके से अलमारी में टंगे मिलते
वो जब रात को स्टडी करने बैठता तो
उसे अपना कॉफ़ी-थर्मस भरा हुआ
बिलकुल वही मिलता,
स्टडी टेबल पर , फ्लावर वास के पास
हर रोज़ , पता नहीं कैसे
वो रोज़ कुकीज़ खाता
पर उसका कूकीज जार उसे हमेशा भरा ही मिलता
और एक दिन .....

" मेरा कुछ था उस ड्रावर में
अब मिल नहीं रहा
तूने देखा क्या ? "
सरला को अपने कमरे में बुलाकर बड़ी बदतमीज़ी से बोला था अनुज
"जी वो सिगरेट का पैकेट ?
वो मैंने फेंक दिया "
सर झुका कर धीरे से जवाब दिया था सरला ने
"तूने फेंक दिया ?
क्यों ?
जलती हुयी निगाहों से सरला को देखते हुए जोर से चिल्लाया था अनुज
इतना जोर से ,
के बराबर के कमरे से शारदा जी भागती सी आईं
"क्या हुआ ?
क्या हुआ अनुज ?
तू इतना चिल्ला क्यों रहा है "

माँ को सामने देख अनुज अब बौखला गया था
दो महीने पहले ही शारदा जी ने उसे सिगरेट पीते हुए पकड़ा था
और अनुज को अपनी कसम दी थी की वो अब कभी सिगरेट नहीं पियेगा
अनुज दर सा गया और बौखलाहट में बोल बैठा
"मेरे पैसे थे यहाँ ड्रावर में ,
नहीं मिल रहे "

"अरे कितने पैसे थे ?
 शारदा जी चिंतित हो गयी थी
"पांच हज़ार "
"जरूर इसी ने लिए है "
अनुज ने एक और झूठ बोला

"सरला ,
बेटी देख अगर तूने पैसे लिए हैं
तो बता दे
मैं कुछ नहीं कहूंगी ? "
शारदा जी की ये बात सुनकर सरला तो जैसे अवाक
उसने डबडबाई कातर आँखों से शारदा जी से बस इतना कहा
"माँ आप चाहो तो मेरे सामान की तलाशी ले लो
मैं चोर नहीं हूँ
मैं चोर नहीं हूँ माँ "

सरला की आवाज़ की दयनीयता से शारदा जी का मन पिघल गया था
उन्होंने अनुज को कमरा फिर से चेक करके पैसे ढूंढ़ने आदेश दिया
और सरला को पुचकारते हुए अपने साथ बाहर ले आईं
उधर अनुज मन ही मन सोच रहा था
"साली है बड़ी नाटकबाज़"
"कितनी जल्दी टेसुए बहाएं हैं ".






हम भारतीय (kavita)


हम (भारतीय) ना ज़िद्दी हैं 
ना कोई ईगो रखतें हैं 
अब ज़्यादा क्या कहें 
हम तो दोस्तों में जीते हैं 
और हमेशा दोस्ती में मरते हैं 

दुखता है जब सही होकर भी
ग़लत ठहराये जाते हैं 
तब अक्सर दुश्मनों पर कम 
रीढ़विहीन दोस्तों पर ग़ुस्सा ज्यादा करते हैं 

पर अब बस बहुत हुआ 
अब हमें और नहीं सहना है 
अब तो बस दिल की सुनना है
पर दिमाग से कहना है


तेरी आँख में आँख डाल हम 
बराबरी से बात करेंगे दोस्त मेरे
तू जो समझता हो समझ 
हम करेंगें वही, जो हो देशहित में मेरे 

अरे ये पथ्थर गिरा तो फिर देख 
तू भी कहाँ बच पायेगा 
मेरा घर जलाने का सोचा भी तो 
पहले तू अपने हाथ जलाएगा 

ये जंगें ताक़त की कम 
सियासत की ज्यादा होती है प्यारे 
हर तरफ से घिरे हैं तो क्या 
निकलेंगें हम जीत चक्रव्यूह सारे  

हमें शांति से मनन कर 
हर कदम फूंक-फूंक के धरना होगा 
अब अपने ही अश्रु-रक्त-स्वेद का 
स्वाद हमें चखना होगा 

हम (भारतीय) ना ज़िद्दी हैं 
ना कोई ईगो रखतें हैं 
अब ज़्यादा क्या कहें 
हम तो दोस्तों में जीते हैं 
और हमेशा दोस्ती में मरते हैं। 

#भारत  #चीन  #Galwan
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Friday, June 19, 2020

विधवा ,( कहानी ), 1


"माँ आप भी कमाल करती हो ?
आप ऐसे ही रास्ते से किसी को भी उठा लाईं "

अनुज चिल्लाया था शारदा जी पर
उसने ये भी ध्यान नहीं किया की वो वहीं सामने खड़ी थी
और उसकी बात सुनकर और सहम गयी थी
बहुत समझाने के बाद भी जब अनुज नहीं माना
तो शारदा जी ने अपना फैसला सुना ही दिया

"देख अनुज कान खोल के सुन ले
सरला को मैं लाईं हूँ
अब वो यहीं रहेगी "

अनुज पैर पटकता हुआ
गाड़ी की चाबी लेकर घर से बाहर निकल गया

अब क्या बताती शारदा जी अनुज को
वो खुद भी तो लगभग सरला की उम्र में ही विधवा हो गयीं थी
तब अनुज एक साल का था
पति के अलावा उसका पहले से ही कोई ख़ास रिश्तेदार था नहीं तो
तब बिलकुल अकेली रह गयी थी वो
पति की दूकान चलाने में असफल रहने के बाद
आखिरकार उन्होंने दुकान बेच दी
पैसा बैंक में डाल  दिया
और पिछले बीस साल से विधवा जीवन ही बिता रही थी

पिछले महीने शारदा जी गुरूजी के वार्षिक समारोह में वृन्दावन गयी थीं
सरला उनको पहली नज़र में ही भा गयी थी
नाम के जैसे ही सरल थी वो
गुरूजी के विधवा आश्रम में रहती थी
सरला जी के कमरे में सेवा की उसकी ड्यूटी थी
सरला ने पिछले एक महीने में शारदा जी की बेटी की तरह सेवा की थी
हालांकि पाँव दबाना उसकी ड्यूटी का हिस्सा नहीं था मगर
एक दिन शारदा जी को दर्द में देख सरला ने खुद ही रोज़
शारदा जी के पैर दबाने शुरू कर दिए थे

सरला को साथ लाने का ख्याल शारदा जी को खुद नहीं आया था
वो तो एक दिन साथ गयीं उनकी पड़ोसन शांति जी बोलीं थी

"शारदा देख कितनी प्यारी बच्ची है ये सरला 
कहाँ होती हैं आजकल की लड़कियां ऐसी ?
ये विधवा ना होती तो 
अपने अंकुर से ब्याह लेती मैं इसे "
(जैसे विधवा होने भर से सरला के सारे गुण ,अवगुण बन गए हों )

पहली बार शारदा जी ने आज सरला को गौर से देखा था
दिखने में भी ठीक ही थी वो
और सेवाभाव तो शारदा जी पहले ही देख चुकी थी

" अक्सर ही ऐसा होता है के 
हमारे पास पड़ी किसी किसी चीज़ या व्यक्ति के गुण या अहमियत हमें 
दूसरों के बताने पर ही ध्यान आतें हैं "

शान्ति जी की बात से एक ख्याल शारदा जी के मन में आ गया

और गुरूजी से आज्ञा लेकर वापिसी में वो सरला को अपने साथ
अपने घर ले आईं।


Thursday, June 18, 2020

कुछ तो रहम कीजे





कुछ तो रहम कीजे
एक पल को मूँद लीजिये
इन नीमबाज़ आँखों को
इन शराब से भरे सांचों को

के कुछ तो होश आये
चाहे फिर एक पल को ही सही
ज़रा सांस तो आये
चाहे रुकी-रुकी सी ही सही

मैं तो बस आपकी ,
इन आँखों की शराब में डूबा जाता हूँ
लोग कहते हैं की रिन्द है, मयकश है
या खुदा मैं तो छूता भी नहीं,
सो हँसा जाता हूँ


कुछ तो रहम कीजे ,
एक पल को मूँद लीजिये
इन नीमबाज़ आँखों को
इन शराब से भरे सांचों को।

#मन7  #नीमबाज़ आँखें  #हिंदी कविता
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Tuesday, June 16, 2020

दीपू-नीति (कविता )



एक लड़का था , थोड़ा "दीपू" सा
हँसमुख , प्यारा , सुशील-संस्कारी

एक लड़की थी , थोड़ी "नीति" सी
खूबसूरत , इंटेलीजेंट , पागल-मतवारी

दोनों का कोई मेल ना था
पर किस्मत का कोई खेल ही था

दोनों की जब आँख मिली
भृकुटी सारी दुनिया की तनी 

आंधी-तूफ़ान थे राह खड़े
पर दोनों जिद ,बिंदास अड़े

बादल गरज़-गरज़ हुए पानी
दोनों ने बस दिल की मानी

हुआ वही जो दोनों थे चाहते
प्यार , शादी और खूबसूरत रास्ते

उनकी बगिया एक फूल खिला
प्यारी को नाम "नविका" मिला

आज उनका सफर छह साल हुआ
हमारा पूरा परिवार खुशहाल हुआ

एक लड़का था , थोड़ा "दीपू" सा
हँसमुख ,प्यारा , सुशील-संस्कारी

एक लड़की थी , थोड़ी "नीति" सी
खूबसूरत , इंटेलीजेंट , पागल-मतवारी। 

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Sunday, June 14, 2020

"गंगा" सब को जाना है



पल दो पल का जीवन है
फिर "गंगा" सब को जाना है
पर जाने के पहले सबको
अपना किरदार निभाना है

जीवन क्या है ?,नाटक है

अरे जीवन क्या है ? नाटक है
और मृत्यु अंतिम  "फाटक" है
फाटक से आना फाटक को जाना
बीच में सारा पागल खाना
उस फाटक के पार है क्या कुछ
किसने आज तक जाना है

पर जान भी लेते , क्या कर लेते ?

अरे भाई जान भी लेते , क्या कर लेते ?
जान के और भी जल्दी मरते
इस जान-अजान में क्या रख्खा है
जीवन ही काशी,जीवन ही मक्का है
इस जीवन की तख्ती पर कुछ
कुछ ऐसा लिख के जाना है
के लाख मिटायें समय-चक्र पर
जो ना कभी मिट पाना है

पल दो पल का जीवन है ये
फिर "गंगा" सब को जाना है
पर जाने के पहले सबको
अपना किरदार निभाना है।

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कुछ ऐसा लिख पाऊँ मैं (कविता )



कुछ ऐसा लिख पाऊँ मैं
इस पल-दो-पल के जीवन में
इस जीवन की तख्ती पे
के रह जाऊं मैं याद तुम्हें
जाने के भी बाद मेरे
इस जीवन की गंगा में।

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वो चुड़ैल-21

नीना और मुरुगन की शादी भी अपने आप में एक अजूबा ही थी
जो भी मेहमान उस शादी में आया  ,
पंडाल में घुसते ही हैरान रह गया था
कुछ तो मुँह छिपा कर हँस भी रहे थे
उस शादी में शामिल मेहमान दो बिलकुल ही अलैदा किस्मों के लोग थे

जहाँ नीना की तरफ से आये हुए सारे मेहमान रंग-बिरंगे कपड़ों में सजे-संवरें थे
महिलाएं डायमंड ज्वेलरी ,मॉडर्न वेस्टर्न ड्रेसेस और बोल्ड मेकअप के साथ आयी थी
और ज्यादातर पुरुष डार्क कलर टू-पीस , थ्री-पीस सूट में थे

वहीँ मुरुगन की तरफ से आये सभी मेहमान पुरुष झक सफ़ेद कपड़ों में
बिलकुल सादा शर्ट-धोती , माथे पे चन्दन का टीका ,पैरों में चप्पल
पहने हुए थे
महिलायें बोल्ड गहरे कलर्स  की साउथ इंडियन साड़ी और ट्रेडिशनल गोल्ड जेवेलरी पहने
पारम्परिक परिधान में थी

और ये दो मुक्तलिफ़ लोगों के दो समूह
अलग-अलग कोने में खड़े अचरज से एक-दूसरे को देख रहे थे
पर इन सब बातों से दूर मुरुगन और नीना अपने ख़ास दिन को एन्जॉय कर रहे थे

नीना और मुरुगन दोनों बेहद खुश थे

Saturday, June 13, 2020

120,NOT OUT



दोस्तों ,आज पूरी दुनिया में जितनी भी वैज्ञानिक रिसर्च हो रही है
उनमे से 50 प्रतिशत से भी ज्यादा रिसर्चों का विषय बस एक ही है

"किस तरह मानव शरीर को कम से कम 120 साल उम्र तक 
स्वस्थ और निरोगी जीवन जीने योग्य बनाया जा सकता है "

वैज्ञानिक रिसर्चों में जो बात निकल कर सामने आईं है
वो ये है की
किसी भी बीमारी फिर वो चाहे कोरोना हो या कोई भी और
वायरस से फैलने वाली बीमारी ,
सब बीमारियों से लड़ने में हमारी सबसे पहली रक्षक दीवार है
हमारा अपना इम्यून सिस्टम या शारीरिक प्रतिरोधक क्षमता

उनके अनुसार एक विशिष्ट जीवनशैली हमें
अपने 120 साल उम्र तक स्वस्थ और निरोग जीवन जीने के सपने के पास पहुंचा सकती है
और किसी भी तरह की गंभीर बीमारी को हराने के लिए
हमारे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को विकसित कर सकती है
ऐसी विशिष्ट जीवनशैली की कुछ वैज्ञानिक बातें मैं आपके साथ सांझा कर रहा हूँ

-हल्का शारीरिक श्रम
रोज़ थोड़ा सा किसी भी प्रकार का हल्का शारीरिक श्रम करना बेहद जरूरी है
10 हज़ार कदम अपनी गति से पैदल चलना , सबसे आसान है
हम सब कर सकते हैं

-भरपूर गहरी नींद
रोज़ रात को कम से कम सात घंटे की भरपूर गहरी नींद लेना
(हमारा शरीर इसी गहरी नींद के समय में हमारे पूरे दिन में शरीर को हुए शय को पुनर्नवा करता है
 भरपूर नींद लेने से ही ये पुनर्नवा काम ठीक से हो पाता है
और शरीर की उम्र बढ़ती जाती है )

-धूप 
रोज़ शाम को थोड़ी देर उतरते सूरज की धूप में बैठना/टहलना शरीर में विटामिन D को पूरा करती है

-हमारा भोजन 
जहाँ कुछ चीज़ें हमारी प्रतिरोधक्  क्षमता को घटाती है
वही कुछ चीज़ें हमारी प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती है
ओवरवेट , शुगर या दिल की बीमारी से पीड़ित ,
छोटे बच्चे,
बुजुर्ग
आम तौर पर ऐसे लोगों का इम्युनिटी सिस्टम यानि शारीरिक प्रतिरोधक क्षमता कम होती है

वैज्ञानिक ये भी कहते हैं की शारीरिक प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए एक और महत्वपूर्ण बात है
अपना हाजमा अच्छा रखना
जिन लोगों को कब्ज की शिकायत रहती है
उनकी भी शारीरिक प्रतिरोधक क्षमता कम होती है
वैज्ञानिक आगे कुछ खाने की ऐसी चीज़ें भी बताते है
जिनके सेवन से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है

-दही - दही का सेवन बहुत फायदेमंद होता है
भरपूर फायदे के लिए सुबह नाश्ते और दोपहर के भोजन के साथ दही खाना अच्छा है।

-लहसुन - लहसुन का सेवन भी इसमें बहुत फायदेमंद होता है
( लहसुन को खाना खाने के बाद सेवन करें )
लहसुन के छोटे-छोटे पीस करे ,
कुछ देर हवा लगने दे ,
( हवा लगने से लहसुन में कुछ ऐसे पदार्थ पैदा होते है जो स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छे हैं )
फिर पानी के साथ निगल लीजिये
25 -30 दिन के प्रयोग के बाद आप के शरीर में से लहसुन की गंध आने लगेगी ,
मतलब है की आपके शरीर में लहसुन की मात्रा अब पूरी हो गयी है ,
तब लहसुन का उपयोग रोक दें ,
कृपया ध्यान रहे की लहसुन हर किसी को आसानी से हजम नहीं होता
तो आप पहले छोटी मात्रा से शुरू करें
धीरे-धीरे मात्रा बढ़ाएं।

-अदरक - का सेवन भी इसमें बहुत सहायक होता है
अदरक पेट से अतिरिक्त हवा को बाहर निकलता है
इम्मून सिस्टम को ठीक करता है
उम्र बढ़ना रोकता है (एंटी-एजिंग )
इसको उपयोग करने के लिए
4 कप पानी में एक छोटी गांठ अदरक कद्दूकस करके डाल दे ,
उबलने दें  ,जब आधा रह जाए तो इस काढ़े को ठंडा करके पी लें
ये काढ़ा खून को भी पतला करता है , दिल की बीमारों को बहुत फायदा देगा

लोंग - रोज़ 2 लौंग अपने काढ़े  में ही डाल ले ,काढ़ा पी लें और बाद में इन 2 लौंग को चबा के खा ले।

जैतून के पत्ते- इनका सेवन काढ़े के रूप में भी किया जा सकता है
या फिर जैतून के पत्तो को सुखा कर रख लें और हर रोज़ आधा चम्मच पाउडर पानी के साथ ले लें

हल्दी-  में कुर्कुमिन नाम का एक चमत्कारिक पदार्थ होता है
जो मोटापा कम करता है ,हल्दी को दूध में डाल के उबाल ले
क्योकि हल्दी में से कुकुर्मिन निकलने के लिए फैट होना बहुत जरूरी है
इसलिए हल्दी को दूध में ही लेना होगा

दाल-चीनी-  का सेवन भी इसमें बहुत सहायक होता है
दाल-चीनी मोटापा भी कम करता है

मुलैठी- का सेवन भी इसमें बहुत सहायक होता है

चुकुन्दर - ये एक बहुत ही बेहतरीन वजन घटाने वाला, शुगर कण्ट्रोल करने वाला ,एंटी-एजिंग सब्जी है 
हम चुकुन्दर का जूस पी सकते है या इसको उबाल कर खा सकते हैं

वैज्ञानिक कहते हैं की हमारी प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए
हमारे शरीर में विटामिन A और विटामिन D का
सही मात्रा में होना भी बहुत आवश्यक है
इसके लिए हम खाएं

ऑरेंज खुबानी- 
( ये थोड़ी फीकी होती है, पर विटामिन A का भरपूर सोर्स है ,
हो सके तो इसकी गुठली को भी खा ले  ),

आम- 
आम भी विटामिन A का प्रचुर सोर्स होता है
( पर शुगर से पीड़ित लोग आम ना खायें )

ज़िंक- 
ज़िंक के लिए काजू ,खुश्क मेवे , घोंघे , कैवियार,समुंद्री मछली खाएं

हमें अपने जीवन में से खाने की कुछ चीज़ों को बिलकुल हटाना होगा , जैसे 

सफ़ेद चीनी, मैदा ,सफ़ेद चावल ,सफ़ेद ब्रेड , पैक्ड फ़ूड , रिफाइंड आयल, नूडल्स, अधपका मीट इत्यादी। 

घर में फर्श पर फिनाइल का पोछा , मच्छर केमिकल रेपलेंट का उपयोग भी 
हमारी प्रतिरोधक क्षमता को अच्छा ख़ासा नुक्सान पहुँचाता है  

दोस्तों इस लेख की सभी बातें केवल वैज्ञानिक/डॉक्टर्स की रिसर्च पर आधारित है
और रिसर्च ये बतातीं हैं की
इन सब बातों पे अमल करके हम रोग-मुक्त लंबा और खुशहाल जीवन जी सकते है।

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वो चुड़ैल-20

"नीना तेरा दिमाग खराब हो गया है क्या ?
तेरी शादी मुरुगन से ??
कहाँ तू , कहाँ वो मद्रासी
उसकी कोई पर्सनालिटी भी है
तू इतनी स्मार्ट, खूबसूरत
इंटेलीजेंट मॉडर्न लड़की
और वो ?
क्या है वो ?
तुम दोनों का कोई मेल भी है  ? "

SHO साब चिल्लाये थे

"हां पापा कोई मेल नहीं है
सच में कोई मेल नहीं है
वो इतना इंटेलीजेंट,
स्कॉलर,
बी टेक , MBA LONDON
इतनी अच्छी नौकरी
मैं केवल MBA,
और इतने बुरे मार्क्स लिए हैं मैंने की
कोई भी नौकरी मिलना मुश्किल है "

"पापा लुक्स ही सब कुछ नहीं होते
और सच कहूं तो लुक्स भी उसके मुझसे अच्छे है
हाँ बस रंग मेरा गोरा है "
नीना बोलते-बोलते हँस पडी थी

नीना को बच्चों की तरह हँसता देख
अब SHO साब भी कुछ नरम पड़ गए थे
"पर नीना बेटे
हम पंजाबी
वो मद्रासी
रीत-रिवाज
कल्चर कितना फ़र्क़ है बेटे
सारे रिश्तेदारी में क्या मुँह दिखाऊंगा मैं  ? "

"पापा आप ये कह रहे हैं ?
आप  ?
आप कब से रिश्तेदारों की इतनी परवाह करने लगे
हम दो बहनें थीं
सब रिश्तेदारों ने आपको कितना कहा
एक बेटा तो होना चाहिए और बच्चे करो
आपने सब को चुप कराया
आप ही तो फख्र से कहते हो, मेरे दो बेटी हैं
पर तुम सब के सौ बेटों पर भारी हैं मेरी बेटियां
आपकी बेटी ने ये फैसला बहुत सोच-समझ कर किया है
पापा , आप मुझ पर विश्वास करो
मैं खुश रहूँगी
वो बहुत अच्छा है पापा
मान जाओ ना
मेरे अच्छे पापा "
नीना बच्चो की तरह पापा के गले में झूल गयी
जैसे बचपन में करती थी

नीना कहना तो और भी बहुत कुछ चाहती थी के पापा

" इन पिछले छे महीनों में ,
मैं और मुरुगन एक-दूसरे के बहुत करीब आ गए है
पिछले तीन महीने से तो हम दोनों साथ रह भी रहे हैं
तो ये फैसला हम बहुत देख-समझ कर कर रहें हैं
कोई जल्दबाज़ी में नहीं
बहुत प्यार करता है मुरुगन मुझसे
और मैं भी उसे जी-जान से चाहती हूँ
वो मुझे खुश रखेगा "

पर कहाँ कह पायी नीना इतना सब पापा से
वो खुद को कितना भी मोड्रन समझ ले पर आज भी
भारत में लडकियां कहाँ इतना खुल के माँ-बाप के सामने अपना मन खोल पाती हैं
पर नीना ने घुमा-फिर के ही सही
अपना पासा तो फेंक दिया था

और इस राम बाण का SHO साब के पास कोई तोड़ नहीं था

"ओके मेरी चुड़ैल "

हँसते हुए SHO साब ने हार मानते हुए कहा था
( SHO साब नीना को बचपन से ही वो प्यार से छेड़ते थे , चुड़ैल बोलकर )

"पापा आपने दोबारा चुड़ैल कहा ना तो मैंने कभी आपसे बात नी करनी  "

नीना ने झटके से SHO साब की गर्दन छोड़ी
और नकली गुस्से से पैर पटकते हुए बोली

और फिर दोनों बाप-बेटी हॅसते हुए गले लग गए
"मेरी प्यारी चुड़ैल "
"मेरे प्यारे पापा "

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वो चुड़ैल-19

"हैलो "
नीना ने नींद में ही फोन उठा कर
झुंझला कर बोला था
"हैलो नीना मैं मुरुगन "
नीना झटके से बिस्तर पे बैठ गयी थी
"मुरुगन तुम इतने सालों बाद "
मुरुगन खुलकर हॅंस कर बोला
"नीना तुम अभी भी नींद में हो
तुमने खुद मुझे कल देर रात पेज किया था "
"आ सॉरी "- नीना सर पे हाथ मारकर हँसी
"एंड व्हाट्स न्यू "
मुरुगन फिर हँसा
"हर क्षण नया है नीना "
और फिर वो दोनों दो घंटे लगातार बस
यहाँ की,  वहाँ की
पुराने मोहल्ले की
बचपन से दोस्तों की
अपने घर वालों की
फिर अपने-अपने कॉलेज
अपने चैलेंजेज
अपने अचीवमेंट्स
अपने सपने
मतलब सारे जहाँ की बातें बस किये जा रहे थे
समय रुक सा गया था
डोरबेल की कर्कश आवाज़ से नीना होश में आयी
फिर फटाफट तय हुआ की दो दिन बाद संडे को
ब्रेकफास्ट पर "मवाली " में मिलते हैं

शनिवार शाम से ही नीना बैचैन थी
क्या ड्रेस पहनू
कौनसी स्लीपर्स या जूते
क्या ज्वेल्लेरी
वो खुद पर हैरान थी की वो तो ऐसे बर्ताव कर रही है
जैसे वो कोई डेट पे जा रही हो
आखिरकार जैसे-तैसे तैयार होकर वो
धड़कते दिल से वो "मवाली"पहुंच ही गयी
नीना ने समय देखा वो 15 मिनिट पहले ही पहुंच गयी थी
नीना को खुद पर गुस्सा आ रहा था
अभी उसने गाड़ी पार्क की ही थी की
किसे ने धीरे से उसका दरवाज़ा खोला
"हाय नीना "
वो मुरुगन ही था
नीना तो देखती ही रह गयी
बढ़िया बिज़नेस सूट, ब्लैक ग्लासेस
हाथ में सुर्ख गुलाबों का एक बुके
और आज वो उतना भी काला नहीं लग रहा था जितना स्कूल डेज में दिखता था :)
बल्कि
वो ....
वो तो आज गज़ब का हैंडसम लग रहा था

मुरुगन ने हाथ आगे बढ़ा कर नीना को कार से बाहर उतरने में हेल्प की
संडे का दिन था काफी यंग कपल्स थे वहां उस वक़्त
पूरी चहल -पहल थी
नीना ने महसूस किया की पार्किंग से रेस्टॉरेंट तक चलते हुए
लगभग सारे लोग उन दोनों की और ही देख रहे है
लड़कों की आँखों में अपने लिए प्रसंशा
और लड़कियों की आँखों में अपने लिए जलन उसे दिखी
पर हैरानी सबकी आँखों में थी
क्योंकि नीना ठहरी गोरी चिट्टी पंजाबी गर्ल
और मुरुगन
टॉल ,डार्क, हैंडसम विथ साउथी मुस्टैच बॉय

क्यों हम लोग दो अलग-अलग दिखने वाले लोगों के साथ-साथ होने को बहुत ही अजीब नज़रों से देखते है
चाहे फिर दोनों की लम्बाई में फ़र्क़ हो 
या शारीरिक बनावट में 
या लुक्स में 
या फिर उनकी त्वचा के रंग में 

मतलब केवल एक जैसे लोग ही साथ-साथ ...... :)
क्या अजीब रीत है 

नीना और मुरुगन साथ बैठे तो
उनके बीच बरसों का गैप था
फिर से वही पुरानी बातें चल रही थीं की
अचानक मुरुगन ने सारी बात काट कर बीच में बोला

"नीना इससे पहले के मैं हिम्मत खो दूँ
मैं कहना चाहता हूँ की
मैं आज भी तुमसे प्यार करता हूँ
विल यू बी माइन ......."

"फ्रेंड "
नीना मुरुगन की बात को बीच में ही काट कर बोली थी
"हाँ मुरुगन हमें पहले दोस्ती से शुरू करना चाहिए
फिर देखते हैं के ये कहाँ तक पहुँचता है "

मुरुगन प्रशंसा भरी निगाहों से नीना को देख रहा था
कुछ रूककर मुरुगन बोला
"नीना तुम आज भी कितनी समझदार हो "
"नहीं मुरुगन मैं कभी समझदार नहीं  थी
समझदार होती तो तुम्हारे साथ उस समय इतना बुरा व्यवहार .... "
शर्मिंदगी से नज़रें झुका ली थी नीना ने

"नहीं नीना तुम तब भी सही थी
तुम आज भी सही हो "
"क्या था मैं उस समय ??
फर्स्ट ईयर में
तुम्हारे प्यार में पड़ने से मेरा मन पढ़ाई से हट गया था
बहुत बुरे मार्क्स आये थे मेरे
उस रिजेक्शन बाद मेरे मन में एक फायर पैदा हुयी थी की
मुझे तुम्हारे लायक बनना है
और मैं पढता गया, बढ़ता गया "
"मेरे मन में
मैं तुम्हारे साथ जुड़ा हुआ था तो कभी
कोई और भटकाव आया ही नहीं जीवन में
तो बस मंज़िलें मिलती गयी
रास्ते आसान होते गए
"आज मैं जो कुछ हूँ नीना
तुम्हारी वजह से , तुमसे प्यार करने की वजह से "
- मुरुगन कहीं सोचता सा गुम सा बोले जा रहा था

"सच"- नीना ने भावुक होकर मुरुगन का हाथ थाम लिया था
"बिलकुल सच 100 %"- खुलकर हॅसा था मुरुगन

नीना सोच रही थी
"ये मुरुगन भी कितना अच्छे दिल वाला लड़का है
इसने मेरे बुरे बर्ताव को भी इतने अच्छे से हैंडल किया
अगर प्यार लोगों को इतना अच्छा इंसान बना देता है
तो मुझे भी कम से कम एक बार तो प्यार करके देखना ही चाहिए "

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Friday, June 12, 2020

MEER TAQI MEER (SHER)



नाज़ुकी उसके लब की क्या कहिये 
पंखुड़ी इक गुलाब की सी है 
मीर उन नीमबाज़ आँखों में 
सारी मस्ती शराब की सी है। 

Meer Taqi Meer ने ये शेर आपके लिए ही लिखा होगा 
कुछ बस 270 साल पहले ही  :)

"सात्विक-संयमित जीवनशैली" (MINIMALISM)


MINIMALISM 
शब्द का हिंदी में अर्थ तो मुझे अभी ठीक से मालूम नहीं है
पर अगर मैं अर्थ को शब्दों में बाँधने की कोशिश करूँ तो
इसका अर्थ हगा

एक ऐसी जीवनशैली जिसमे जीवन की खुशी 
ज्यादा पैसे,लम्बी कार,बहुत बड़ा मकान,लेटेस्ट मोबाइल फोन 
और बहुत सारी अन्य चीज़ों पर आश्रित नहीं होती 
क्योंकि खुशी चीज़ों में है ही नहीं
बल्कि लोगों के साथ में है 
मतलब  
"सात्विक-संयमित जीवनशैली"

आज हम नयी लेटेस्ट कार खरीद लाते है, तो बहुत खुश होते है
नया लेटेस्ट मोबाइल लाते हैं, तो हम फूले नहीं समाते  
और जैसे ही हमारा कोई पड़ोसी , मित्र या रिश्तेदार हमसे बेहतर कार या मोबाइल ले आता है 
या उसी कार या मोबाइल का नया/बेहतर वर्ज़न आ जाता है 
हम दुखी हो जाते है
आपको क्या लगता है
ये मोबाइल कंपनियां हर 2 -3 महीने में ही अपने प्रोडक्ट्स का नया वर्ज़न क्यों ले आती है 
या पिछले वर्ज़न को ऑउटडेट घोषित क्यों कर देती है ?

" बिना हमारी जरुरत के हमें एक और उत्पाद बेचने के लिए "

हम और बड़ा घर खरीदते हैं क्योंकि 
हमें ज्यादा और ज्यादा अलमारियां चाहिए ,
और ज्यादा जगह चाहिए 
क्यों ?
क्योंकि हर तीज-त्यौहार ,शादी ब्याह के मौसम में 
टीवी,मोबाइल,न्यूज़ पेपर,हर रास्ते पे लगा होर्डिंग 
हमें यही बताता है की

हमें और ,और कुछ,बहुत कुछ और खरीदना है

हमारी अलमारियाँ कपडे,जूते,जेवेलरी  और ना जाने किस-किस सामान से भरी पडी है 
शोरूम और ब्रांड्स की दो पर तीन फ्री टाइपो स्कीम्स हमें और प्यासा बनाती है 
और हम एक शर्ट या साड़ी खरीदने गए होते हैं
और ये स्कीम्स हमें तीन-चार खरीदवा देती है 
ये स्कीम्स बनायी ही जाती है मानव के मष्तिष्क को पढ़ कर 
जो आज AI (आर्टिफिशल इंटेलिजेंस) की मदद से सारे ब्रांड्स और कम्पनियाँ कर रही हैं 
उनकी पूरी कोशिश है की हमारी जेब का एक-एक रुपया निकलवा लिया जाये 
इतना ही नहीं क्रेडिट कार्ड और इन्सटॉलमेंट स्कीम्स के जरिये ये ब्रांड्स और कंपनियां 
हमारे आने वाले बीस-तीस वर्षों तक की कमाई को भी आज ही अपने नाम कर लेते है

" फिर उसी दिन के बाद से हम अपने लिए नहीं बल्कि 
   बैंक, इन ब्रांड्स और कंपनियों के लिए कमा रहे होते हैं "

एक-एक,दो-दो बार पहने हुए अनगिनत कपडे ,जूते और सामान हो सकते है 
हमारे घर की अलमारियों में

मेरे पापा अक्सर कहते थे की
" जिस वस्तु को आपने पिछले पूरे एक पूरे साल में यूज़ नहीं किया  , 
   99 % संभावना है की 
  आपको उस वस्तु की जीवन में कभी भी जरुरत नहीं पड़ेगी,
   वो वस्तु फ़ालतू है आपके लिए 
   अच्छा होगा आप उस वस्तु को बेच दो
   या 
   दान दे दो "

उनका मतलब था एक पूरे साल में सारे मौसमों के सीजन निकल गए 
सर्दी,गर्मी,बरसात ,जब पूरे साल में उस वस्तु की जरुरत नहीं पडी
तो अब भविष्य में भी कभी नहीं पड़ेगी 

बड़ा घर ,मतलब ज्यादा जगह ,मतलब ज्यादा कीमत ,ज्यादा बड़ा बैंक लोन, बड़ी मंथली इन्सटॉलमेंट,मतलब ज्यादा पैसे कमाने के लिए दिन-रात काम करो
और बड़ा घर तो ज्यादा साफ़-सफाई-मेन्टेन्स कॉस्ट , मतलब साफ़-सफाई करने वाले ज्यादा लोग , मतलब हमारी प्राइवेसी में ज्यादा लोगों की एंट्री , मतलब कई तरह की मुसीबतें , मतलब ज्यादा घर-खर्च- सैलरी, घर से कैश और छोटी चीज़ों की रोज़ाना चोरी,कहीं  घर के बच्चों का यौन-शोषण और कहीं बाल-मज़दूरी कराने से गरीब बच्चो का शोषण इत्यादी 

हम घर में बड़ी पार्किंग बनाते है
पर कार हमने बाहर रोड पर ही खड़ी करनी है
घर की बड़ी गाड़ियां जैसे BMW/ऑडी महीने में एक-दो बार ही चलती हैं 
क्योंकि ना उसे चलाने के लिए शहर में अच्छे रोड है और ना ही हमारी जेब में उसे चलाने लायक खर्चा 
इन कारों का एक बार का कार सर्विस का बिल ही लाख रूपये का आता है  

पुराने भारत में लोग 
"सादा जीवन उच्च विचार " 
के सिद्धांत पर जीवन जीते थे 
जो आज हम ये सब भूल गए है 
आज हमारे 
" खर्चे अनापशनाप , तो कमाने के अनापशनाप तरीके,
तो बच्चे और सारे घरवालों की अनापशनाप जीवनशैली,
तो अनापशनाप स्वास्थय और आदतें   
फिर मन के अनापशनाप भय और डर , तो अनापशनाप बीमारियाँ ,
तो फिर से हम वहीँ पहुंच गए वापिस वहीँ 
खर्चे अनापशनाप , तो कमाने के अनापशनाप तरीके "

मैंने आपको इस विषय का कुछ आईडिया देने की कोशिश की है 
बाकी आप नेटफ्लिक्स पर मूवी "MINIMALISM " देखो 
शायद जीवन की एक नयी राह मिल जाए 

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Thursday, June 11, 2020

जीवन,कोविड के बाद (लेख)

दोस्तों मुझे लगता है
आज की कड़वी सच्चाई ये है की 
इस कोविड महामारी के की वजह से 
हमारे जीवन और समाज पर बहुत ही दूरगामी प्रभाव पड़ने वाले है
कुछ प्रभाव तो आज दिखाई भी दे रहे है 
पर कुछ प्रभाव आने वाले एक साल में 
और कुछ अगले बीस सालों तक दिखाई देते रहेंगे  
सरकार ने भी शायद इसीलिए 
हमें आत्मनिर्भर बनने को कह दिया है

मैं समझता हूँ की हम सब जो यहां हैं 
कम से कम अपने दैनिक खाने-पीने की व्यवस्था करने लायक तो सक्षम हैं 
पर हमारे देश की एक बहुत बड़ी आबादी इतनी भी खुशकिस्मत नहीं है
चाहे-अनचाहे ,जाने-अनजाने या किसी मजबूरीवश 
हम सभी ने अपने किसी नौकर,ड्राइवर या अन्य कर्मचारियों को या तो काम से हटा दिया है 
या उसकी सैलरी कम कर दी है
इससे हुआ ये है की समाज का आर्थिक संतुलन जो पहले ही खराब था,
अब और बहुत ही खराब हो जाएगा
इससे समाज में छीना-झपटी,चोरी-डकैती ,फ्रॉड,अपहरण,वैश्यावृति,बच्चों का शारीरिक शोषण 
बहुत तजी से बढ़ेगा 
कुछ तो अपराधी तत्व या गैंग इस समय में विवश लोगों को अपने साथ मिलाने को प्रलोभन देंगे 
और कुछ लोग मजबूरीवश स्वयं भी पेट की आग के वशीभूत 
इन अपराधों में लिप्त होने पे मजबूर हो जायेंगें 
ये एक बहुत ही गंभीर स्तिथि है
इस स्तिथि को सरकार को देखना था पर शायद साधनों की कमी से वो ऐसा नहीं कर पाई है
  
मुझे लगता है की हमें अपने लिए तुरंत प्रभाव से कुछ फैसले लेने चाहिए 

-यथाशक्ति जितना ज्यादा से ज्यादा हो सके गरीब लोगों की सहायता करनी चाहिए

-हमें अपने घर,ऑफिस,फैक्ट्री,गोदाम,कार,लाकर,ऑनलाइन बैंक अकाउंट के ताले/कोड तुरंत बदलने चाहिए
और उसकी पहुंच कम से कम लोगों तक हो
सिक्योरिटी कैमरा होने चाहिए   

-अपने फॅमिली हेल्थ इन्शुरन्स को कम से कम बीस लाख साल सालाना का करने की कोशिश करें
( कोविड का हॉस्पिटल बिल आज करीब 12 लाख रूपये आता है )

-घर में कमाने वाला हर सदस्य अपना कम से कम एक करोड़ रूपये या और भी ज्यादा का लाइफ इन्शुरन्स भी लेने की कोशिश करे
और घर के बाकी सदस्य कमाने वाले सदस्यों को मानसिक शक्ति-शांति  देते रहें
(कृपया ध्यान दें की उस व्यक्ति पर आज कई तरीके के अतिरिक्त दबाव भी हैं )

-हम घर से बाहर निकलते समय कोई भी कीमती ज्वेलरी ना पहने और ना ही कैश साथ लेकर चले
और ना ही ज्वेलरी और कैश घर में रखें
रखना ही है तो बैंक लॉकर में रखें 
ठन्डे दिमाग से सोचे और इस ज्वेलरी पहनने की झूठी शान से ही बचें

अगर हम समर्थ है तो हम आर्टिफिशल भी पहनेंगे तो लोगों को असली लगेगा
और अगर हम इतने सामर्थ्यवान नहीं है तो चाहे कितना भी सोना -हीरा पहन लेना,
लोगों को नकली ही लगेगा 
तो दोनों ही केस में हमको असली सोना-हीरा पहने का कोई औचित्य ही नहीं है 

ये सोना-हीरा और कैश केवल बस हमारी जान को जोखिम में डालेगा

हम हिम्मत करें,
और अपनी सारी ज्वेलरी को बेच दें
और सारे पैसे को अपने ऊपर चल रहे 
-पुराने लोन(होम,कार,बिज़नेस,पर्सनल,क्रेडिट कार्ड इत्यादि ) को चुकाने में
-बैंक फिक्स्ड डिपाजिट कराने में 
-प्रॉपर्टी खरीदने में लगा देना चाहिए 

(आज वही व्यक्ति सबसे ज्यादा दुखी है,
जिस पर किसी भी प्रकार के लोन,ब्याज और किराया देने का भार है

और वो व्यक्ति सबसे ज्यादा सुखी है
जिसे किराया,ब्याज ,डिविडेंड आदि ऐसी ही किसी भी तरह की आमदनी आती है )

-हमें शोशेबाज़ी के हर खर्चे से बचना चाहिए  ,
या कम से कम लोन लेकर ये खर्चे करने से तो हर हालत में बचना चाहिए 


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वो चुड़ैल,-18

अब युहीं तो नहीं लिखा ग़ालिब ने

"ये इश्क़ नहीं आसान
इतना समझ लीजे
एक आग का दरिया है
डूब के जाना है "

सो गौरव, नाज़, सुरेंदर, शिल्पी और नीना
सब इस आग के दरिया में जल रहे थे
परेशान थे
बाकी चारों का कारण तो इश्क़ था
पर नीना का कारण था दोस्ती
और अपने दोस्तों
गौरव और नाज़ के लिए उसकी केयर,
उसकी फ़िक्र

पर कहते है ना की
"टाइम इज़ ए बेस्ट हीलर "
तो कुछ दिन में ये सब उलझने भी खुदबखुद सुलझ गयीं
तस्वीर साफ़ हो गयी थी
सुरेंदर और शिल्पी की गलतफहमी दूर हो गयी थी
और सुरेंदर ने जाने कैसे
पर नाज़ को भी कन्विंस कर लिया था
अब अब सुरेंदर और नाज़ फिर से साथ थे
और ये होने से गौरव की रही-सही उम्मीद भी ख़त्म हो गयी
तो वो भी दिल पे पथ्थर रखकर
बस पढ़ाई में डूब गया

इस पूरे वाकये के बाद नीना को जीवन में पहली बार ये एहसास हुया की
हम सब आखिरकार बस लुक्स पे ही तो मरते हैं
नाज़ ने गौरव को अच्छी तरह से जानते के बाद भी के
गौरव कितना हम्बल ,कितना सेंसिबल,
कितना सबका ख़याल करने वाला था गौरव 
और कितना काइंड हार्टेड है
पर नाज़ ने गौरव को के ऊपर प्लेबॉय सुरेंदर को चुना था
क्यों ?
क्योंकि वो हैंडसम ज्यादा है
क्योंकि उसकी गर्लफ्रेंड बन जाने में
नाज़ को पूरे कॉलेज में ज्यादा अटेंशन मिलती
बस अच्छे लुक्स और दुनिया की अटेन्शन
इसके अलावा क्या और कुछ मैटर ही नहीं करता क्या ?

पर नीना खुद भी कहाँ इस लुक्स फोबिआ से अछूती थी
बरसों पहले उसने भी तो बिलकुल यही किया था
जो आज नाज़ ने किया है
जब उसके पड़ोस में रहने वाले चेन्नई बॉय "मुरुगन" ने
नीना को फ्रेंडशिप के लिए प्रपोस किया था
कितना हँसी थी नीना उसके प्रपोजल पे
उसके नाम का भी बहुत मज़ाक बनाया था उसने
"मुरगन :) "
और उसके लुक्स की तो जो कॉमेडी फिल्म बनाई उसने
बाकी पड़ोस के फ्रेंड्स के साथ मिलके
जबकि मुरुगन का कॉम्प्लेक्शन ही बस डार्क था
वो स्मार्ट था और पढ़ाई में हमेशा स्कॉलर
मुरगन ने तभी दिल्ली आईआईटी में बी.टेक. क्रैक किया था
बहुत बड़ी बात थी ये
और नीना ने टेंथ बोर्ड में बस पासिंग मार्क्स लिए थे
पर अपनी खूबसूरती के दम्भ में
उसने बिना एक पल सोचे मुरुगन को रिजेक्ट कर दिया था
मुरुगन कितना निराश हुआ था अपने रिजेक्शन पे
पर अपनी सब पड़ोस के दोस्तों के सामने हुयी इंसल्ट के बाद भी वो
डबडबायी आँखों से बस मुस्कुराता रहा था

आज भी मुरुगन नीना के हर बर्थडे पर कार्ड जरूर भेजता था
और साथ में एक नोट भी
" के वो अब कहाँ है
क्या कर रहा है "
नीना से रहा नहीं गया
उसने अपना मैजिक बॉक्स निकाला
जिसमे नीना अपने सारे लेटर्स,कार्ड्स ,गिफ्ट्स संभाल के रखती थी
उसे मुरुगन का भेजा आख़िरी ग्रीटिंग कार्ड मिल ही गया
इतने बरसों में पहली बार नीना ने मुरुगन का कार्ड ठीक से पढ़ा था
वर्ना तो वो बस ऐसे ही बॉक्स में डाल देती थी
"डिअर नीना ,
हैप्पी बर्थडे
लास्ट मंथ ही ट्रेनिंग पे जर्मनी आया हूँ
बहुत ठण्ड है यहाँ
और अभी तो जनवरी तक यहीं रहना है
फिर मेरी पहली जॉब के लिए बंगलौर में ही पोस्टिंग है
पता चला था की तुम भी बंगलौर में ही पढ़ रही हो
मेरा पेजर नंबर 9999996029 है
अगर कभी बात करना चाहो तो .......
-मुरुगन "

अब तो फरवरी चल रहा था
मतलब मुरुगन अब यहीं बंगलौर में ही होगा
वो कार्ड पढ़कर
नीना उस सारी रात सो नहीं पायी थी
हज़ारों ख़याल मन में थे
"क्या मुरुगन आज भी मुझ से....
"क्या मुझे फोन करना चाहिए ...
"कहीं मुरगन ये ना सोचे की ...

हज़ारों क्यों,कहीं ,कैसे चल रहे थे नीना के मन में

आखिरकार जब नीना से रहा ना गया तो
नीना ने फोन उठाया
पेजर कंपनी में मैसेज छोड़ा
"मुरुगन
मेरा बंगलौर पीजी का लैंडलाइन नम्बर है 7777777
कभी चाहो तो फोन करना
-नीना "

अब जाने क्या नया होने वाला था
इश्क़ में पूर्वाभास करना तो नामुमकिन है ना :)

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