Tuesday, March 23, 2021

अखवार का छठा पन्ना



अखवार के स्याह-सफ़ेद छठे पन्ने पर  

कुछ obituary advertisement होते है 

जहाँ कुछ मुस्कुराते ,कुछ गंभीर से चेहरे 

छोटे-बड़े से बॉक्सों में पड़े रहते हैं

लगते तो ज़िंदा हैं ,मगर मुर्दे हैं , गड़े रहते हैं 


वहाँ लिखी रहती हैं ,ढेर सारी सतही ,झूठी ,बेजान 

निरर्थक सी बातें ,कुछ तो "बावजह" कुछ महज़ यूँही

उन जहर सी मीठी बातों का शतांश भर भी 

कहा नहीं गया होगा उम्र भर में , कभी उनसे 

पर आज तो संवेदना इस कदर उमड़ी है की 

ढूंढ-ढूंढ कर किताबें और रिसाले दुनियाभर के 

लिखा गया है इन शब्दों को इस कद्र करीने से के 

शरमा जाए माननीय घड़ियाल जी भी ,अगर कहीं पढ़ ले इनको 


पर मैं पाठक भी कहाँ कम हूँ इन so called लिखने वालों से 

मैं अक्सर उन मुर्दों की उम्र का जोड़-घटा सा करता रहता हूँ 

अपनी उम्र से उनकी उम्र का तुलन सा करता रहता हूँ 

के मैं उस उम्र के कितने पास तक आ गया हूँ आज 

और कहीं उनकी उम्र को भी पार तो नहीं कर गया हूँ आज 

क्या मैं भाग्यशाली हूँ ? के आज भी ज़िंदा हूँ 

या बस कुछ दिन और ,और फिर मुर्दा हो जाऊंगा 

ये सोच के सिहर उठता हूँ, और कुछ कुछ शर्मिन्दा हूँ 


फिर कभी सोचता हूँ की आखिरकार 

क्यों ये विज्ञापन यहाँ छपवायें जाते होंगे

लविंग मेमोरी , unforgettable ,प्रार्थना सभा  

वजह कोई प्यार है या कहीं कोई मजबूरी  

या फिर कोई पारिवारिक/व्यवसायिक साज़िश जरूरी

या फिर अपने को महान दिखाने भर की कोशिश सी है 

या फिर ये केवल अपनी जीत की घोषणा भर सी है 

के देखो आखिर तुम चले ही गए ना और मैं ज़िंदा हूँ 

उम्र भर जिस सरमाये पे इतराये से सीने से लगाए फिरते थे 

लाख मांगने पर भी नहीं देते थे ,सांप से कुण्डलियाये फिरते थे 

साथ नहीं ले जा पाए ना आखिर ?और आज , आज ये सब मेरा है 

तुम्हारा दिन ढल चुका ,पर मेरा सवेरा है

तुम थे तो ये हैसियत कहाँ थी मेरी 

तुम्हारे पैरों में पड़े रहना,बस नियति थी मेरी

भला हुआ तुम खुद ही मर गए वरना....

मैं मार देता तुमको, मेरी मजबूरी


अखवार के स्याह-सफ़ेद छठे पन्ने पर 

कुछ obituary advertisement होते है 

जहाँ कुछ मुस्कुराते और कुछ गंभीर से चेहरे 

कुछ छोटे-बड़े से बॉक्सों में ,पड़े रहते हैं

लगते तो ज़िंदा से हैं ,मगर मुर्दे हैं , गड़े रहते हैं. 

Sunday, March 21, 2021

"माशू"



एक प्यारी से लड़की है और 

नाम है उसका "माशू"

आज वो 13 साल की हुयी तो 

खुशी से आये आँसूँ 

किसी की "मासू जीजी" है वो 

और किसी की "मंटोला" 

किसी का "मेरा बाबू" है वो 

और किसी का "मोटा लाला" 

टीचर्स की वो फेवरेट है 

और उनका सारा काम वो करती 

साहसी इतनी ज्यादा के 

अपनी मम्मी से भी वो नहीं डरती 

उसका प्यारा सपना है के 

टीचर है उसको बनना 

हम सबकी पूरी कोशिश है

उस सपने को पूरा करना 

 ये वादा हमारा,हम देंगे तुझको 

प्यार,आज़ादी और विश्वास 

आगे ही बढ़ते जाना तुझको 

कोई दुःख कभी न आये पास

एक प्यारी से लड़की है और 

नाम है उसका "माशू"

आज वो 13 साल की हुयी तो 

खुशी से आये आँसूँ। 

(मैंने ये कविता मेरी बेटी माशू के 13 वें जन्मदिन पर लिखी थी  ,भूल गया था ,फेसबुक ने याद दिलाया। :)