Friday, January 26, 2024

तुम आज भी उतनी ही हसीन हो | HINDI KAVITA

 


" मुझको मालूम है ,

तुम आज भी उतनी ही हसीन हो


ये तो मेरी नज़र है जो धुंधलाई है

समय बदलता है पर भला

चाँद,   तारे,   नज़ारे भी कभी बदले है 

मैं इंसान हूँ ,सो बदला हूँ

ये मेरी बौनाई है 


मुझको मालूम है 

तुम आज भी उतनी ही हसीन हो "

( मनोज गुप्ता )

#man0707

manojgupta0707.blogspot.com



JUNGLE CAT | HINDI KAHANI | PART - 2


एक घंटे बाद तो नहीं पर शाम की चाय तक सहगल फॅमिली को उनको तीसरा रूम भी मिल गया था 

तब कहीं जाकर सहगल साहब ने चैन की सांस ली 

उन्होंने अपनी बेटी नेहा और भतीजी सुमन को उस नए मिले रूम में चेक इन करा दिया 

पर जब वो दोनों बच्चियों से मिलने उनके रूम पर गए तो हैरान रह गए की ये वो रूम नहीं था ,

जो उन्होंने सुबह देखा था 

उन्होंने मन ही मन मोहन को एक और मोटी गाली दी 

" साला , भेंचो कितना झूठा है 

ये तो रूम नंबर -8 है , मैं तो सुबह इसके सामने वाला रूम नंबर -7 देखा था 

इसका मतलब सुबह दो रूम खाली थे और ये इतना नाटक कर रहा था

की जैसे  सारा होटल ही फुल है "

उन्होंने चेक किया तो पाया की रूम नंबर -7 अब बंद पड़ा था 

"साले ने उस रूम को बेच दिया होगा दुगने - तिगने दामों में किसी और को "

पर फिर उन्हें ये समझ नहीं आ रहा था ,

की अगर ऐसा था तो फिर मोहन ने उन्हें तीसरा रूम ON THE HOUSE ( फ्री  ) में क्यों दिया ?

वो उनको भी रूम ज्यादा पैसे लेकर दे सकता था 

उन्होंने कौनसा रूम फ्री में माँगा था , वो तो ज्यादा पैसे देने को तैयार थे 

" अजीब पागल आदमी है साला ये मोहन "

सहगल साहब मन ही मन बुदबुदाये 


रात को डिनर लाउन्ज में सहगल साहब ने मोहन को दूर से देखा था 

वो अब सामान्य लग रहा था और डिनर कर रहे टूरिस्ट्स से बात कर रहा था 

सहगल साहब से नज़र मिलते ही मोहन असहज सा हो गया

उसने फीकी मुस्कान के साथ सर झुका कर सहगल साहब को विश किया

और पास खड़े स्टाफ को काम समझा कर तेजी से लाउन्ज से बाहर गार्डन में निकल गया 

ये पहेली क्या है , सहगल साहब को कुछ समझ नहीं आ रहा था 

तभी उन्हें दूर वेटर रामदीन दूसरे टूरिस्ट्स को खाना सर्व करते दिखा 

उन्होंने इशारे से रामदीन को लाउन्ज के एक कोने में बुलाया 

" रूम ठीक है ना सर ? "

रामदीन खुशामती स्वर में बोल रहा था 

" रूम तो ठीक है , पर ये वो रूम तो नहीं है , जो तुमने सुबह दिखाया था "

" वो तो रूम नंबर 7 था , हमें तो रूम नंबर 8 मिला है "

सहगल साहब ने 500 का नोट रामदीन की ऊपर वाली जेब में ठूँसते हुए पूछा 

" सर क्या 7 नंबर क्या 8 नंबर , आपको रूम चाहिए था , मिल गया ना "

" आज आपका काम करने के चक्कर में मैंने अपनी नौकरी दाँव पर लगाईं है "

" तो 500 के एक नोट से काम नहीं चलेगा कम से कम 5000 रूपये दीजिये सर 

वैसे भी आपको तो 30 - 35 हजार का फायदा हो गया 

चार दिन के लिए सुइट रूम फ्री में ... आपकी तो चांदी हो गयी सर "

सहगल साहब ने घूरकर रामदीन को देखा

और फिर रूककर कुछ सोचते हुए 500 के 3 और नोट निकाले और रामदीन की जेब में ठूँस दिये 

और बोले " ज्यादा लालच अच्छा नहीं होता , अब भागो यहाँ से "

सहगल साहब का कड़ा स्वर सुनकर रामदीन का मुँह बन गया था 

पर वो मरता क्या न करता , अब उसके हाथ में था भी क्या 

तो वो बुरा सा मुँह बनाते हुए जाने लगा 

" अच्छा सुनो वो रूम नंबर 7 कितने में चढ़ा ?? "

सहगल साहब से जब रहा ना गया तो आखिरकार उन्होंने दूर जाते रामदीन से पूछ ही लिया 

" सर वो रूम नंबर 7 तो अब भी खाली है , वो तो हमेशा ही खाली रहता है "

" अब मैं जाता हूँ सर , कहीं मोहन सर ने मुझे आपके साथ देख लिया तो मेरी नौकरी तो जानी ही जानी है "

रामदीन को पता था की सहगल साहब अब खाली पीली कुछ ना कुछ पूछते ही रहेंगे 

पर उसका अपना काम तो हो चुका था 

अब किसी दूसरे टूरिस्ट् की जीहजूरी की जाये तो कुछ और पैसे बनें 

इसलिए रामदीन वापिस डिनर लाउन्ज में लौट आया 


डिनर करने के दौरान भी सहगल साहब असमंजस में ही रहे 

परिवार के बाकी सदस्य बीच बीच में कुछ पूछ लेते तो वो हां ना में जवाब दे देते 

पर मन उनका बार - बार इसी पहेली में था की मोहन ने ऐसा किया क्यों ?

ऊपर से रामदीन का ये कहना " सर वो रूम नंबर 7 तो अब भी खाली है , वो तो हमेशा ही खाली रहता है "

उनको और भी हैरान कर रहा था 

" आखिर क्यों कोई होटल अपना सबसे महँगा सुइट पूरे साल खाली रखेगा ? "

" आज की दुनिया में जहाँ हर वस्तु हर साधन को ज्यादा से ज्यादा निचोड़ कर

उसकी आखिरी बूँद तक निकाल लेने की होड़ लगी है , ऐसी बेवकूफी ??? "

" क्यों ?? "


आज रात सहगल साहब को नींद नहीं आ रही थी 

वो अपने रूम में में अकेले करवटें बदल रहे थे 

जाने क्या सोचकर वो बाहर होटल गार्डन में निकल आये 

आधी रात में बिनसर , हड्डियों को गला देने की हद तक सर्द हो चुका था 

ऊपर से आज तो जानलेवा हवा भी चल रही थी 

वो वापिस रूम की तरफ वापिस जा ही रहे थे की उन्हें गार्डन के दूसरे कोने में एक अलाव जलता दिखाई दिया 

" ये कौन है , जो इतनी सर्दी में .... "

गौर से देखने पर उन्होंने पहचान लिया था की अलाव की आग के सामने गिलास हाथ में लिए बैठा वो साया मोहन ही था 

दूर से मोहन का चेहरा जैसे आग का एक गोला लग रहा था 

सहगल साहब के कदम अपने आप ही सम्मोहित से उस ओर चल दिये 


" गुड इवनिंग मोहन जी "

सहगल जी ने अचानक मोहन के पास जाकर धीरे से विश किया था 

उनको अचानक अपने पास पाकर मोहन अचकचा कर खड़ा हो गया था 

जैसे किसी ने उसे चोरी करते पकड़ लिया हो 

मोहन को हड़बड़ाते देख सहगल साहब भी कुछ विचलित से हो गए और बोले 

" मोहन जी आप प्लीज बैठे रहिये , मैं तो जा रहा हूँ "

" दूर से आपको देखा तो सोचा आपसे माफ़ी मांग लूँ "

--------------------------------------------------------------

 

Thursday, January 25, 2024

JUNGLE CAT | HINDI KAHANI | PART - 1


 " Love Peace Happiness "

------------------------------------------

" मैनेजर साहब , आप तो बिलकुल ही झूठे इंसान हैं , यार "

" ऊपर इतना बड़ा रूम खाली है और आप कह रहें हैं की लॉन्ज में कोई रूम खाली नहीं है 

अरे आपको एक्स्ट्रा रूम के ज्यादा पैसे चाहिए तो मांग लीजिये ,

हमारी मजबूरी हैं , हम दे देंगें "

" पर इतना झूठ तो मत बोलो आप "

" मेरे परिवार के सामने मेरी बेइज़्ज़ती तो मत कराओ "

" कितने लोगों को भेजा है मैंने आपके होटल में पहले भी "

" पर आप तो बिलकुल ही पैसे के यार निकले "

इतना कहते कहते ही वो बुजुर्ग सज्जन सहगल साहब गुस्से में कांपते हुए अब हांफ रहे थे 

उनकी ऐसी हालत देखकर मोहन ने तुरंत सहगल साहब को सहारा देकर पास ही सोफे पर बैठाया

और एक वेटर को उनके लिए पानी लाने भेजा 

पानी पी कर अब सहगल साहब ने जब चैन की कुछ साँसें ली तो ,

मोहन ने नज़रें झुकाये , जैसे मन ही मन बुदबुदाते हुए उनसे कहा था 

" सहगल सर , मैं आपसे माफ़ी चाहता हूँ

आप मुझे एक घंटा दीजिये ,

मैं कैसे भी करके आपके लिए एक रूम का इंतज़ाम करता हूँ "

" तब तक आप अपनी फॅमिली के साथ अपने दो रूम में ही चेक इन कीजिये "

" फ्रेश होइए , बुफे लंच लगने वाला है , उसे एन्जॉय कीजिये "

" आपके तीसरे रूम की चिंता आप मुझ पर छोड़ दीजिये "

" एक घंटे में आपके फॅमिली मेंबर्स को तीसरा रूम मिल जाएगा " 

" इस तीसरे रूम का आपको कोई भी चार्ज नहीं देना है , आल फैसिलिटीज विल बी सेम अस पर योर बुकिंग्स "

मोहन की ये बात सुनकर अब सहगल साहब ने चैन की सांस ली और वो सुकून में सोफे पर जैसे ढह गये 

होटल लॉबी में खड़े बाकी टूरिस्ट्स , होटल स्टाफ भी ,

जो अब तक इस तेज आवाज़ में हो रही बातचीत से वहीँ बुत से बने खड़े रह गए थे ,

अपने अपने कामों में फिरसे बिजी हो गए 


मोहन , बड़े शहरों के शोरोगुल से दूर ,

इस छोटे से हिल स्टेशन बिनसर में  " लव पीस हैप्पीनेस " नाम का एक टूरिस्ट होटल चलाता हैं 

और ऐसा बरसों में कभीकभार ही ऐसा होता है की कोई टूरिस्ट उनसे इतनी बदतमीज़ी से बात करे 

टूरिस्ट तो अक्सर मोहन की खातिरदारी और इंसानियत से इतने प्रभावित होते हैं की बार - बार बिनसर आकर " लव पीस हैप्पीनेस " में ही रुकते हैं 

और अपने मित्रों को बिनसर में आकर सिर्फ लव पीस हैप्पीनेस में ही रुकने को कहते हैं 

किसी टूरिस्ट का कोई कीमती सामन वापिसी में होटल में छूट गया हो 

किसी टूरिस्ट के पास बिल में कोई पैसे कम पड़ जाएँ ,

किसी टूरिस्ट ने होटल का कोई नुक्सान कर दिया हो 

चाहे कोई भी बात हो , किसी भी परिस्तिथि में मोहन ने कभी पैसे को तो अहमियत दी ही नहीं 

हर बिगड़े काम को ठीक से निबटाना उनकी खासियत है 

इसीलिए बिनसर में जब नॉन- सीजन में बड़े बड़े होटल खाली होते है " लव पीस हैप्पीनेस " तब भी अक्सर भरा रहता है 

और आज ... आज एक टूरिस्ट ने मोहन को झूठा , बेईमान कहा 

वो भी सबके सामने , टूरिस्टों से भरी लॉबी में 

मोहन को तो जैसे काटो तो खून नहीं 

हालांकि गलती आज भी दिल्ली से आये हुए टूरिस्ट सहगल साहब की ही थी

उनके " लव पीस हैप्पीनेस " में आज से अगले चार दिनों के लिए दो रूम बुक थे ,

पर लास्ट मोमेंट पर उन्होंने आज सुबह दिल्ली से बिनसर के लिए रवाना होते हुए मोहन को फोन किया

और एक एक्स्ट्रा रूम माँगा  ,

शायद उनके कुछ फॅमिली मेंबर जो पहले नहीं आरहे थे वो भी अब बिनसर आना चाहते थे 

मोहन ने तो सुबह ही सहगल साहब को फोन पर साफ़ मना कर दिया था की पीक सीजन है ,

सारे रूम पहले से बुक हैं 

और एक एक्स्ट्रा रूम बिलकुल नहीं हो पायेगा 

पर सहगल साहब ने शायद मोहन की बात को हलके में लिया था ,

उन्होंने सोचा होगा की हमेशा की तरह मोहन कुछ ना कुछ इंतज़ाम तो कर ही देगा 

"हमेशा सबके बिगड़े काम बगैर शिकायत , ठीक कर देने का एक नुक्सान ये भी होता है

की लोग ना को भी हाँ ही सुनते हैं  "

और बिलकुल यही आज हुआ मोहन  की ना के बावजूद भी सहगल साहब ने खुद ही अपने मन में मान लिया की

मोहन है तो मुमकिन है

वो कुछ न कुछ जुगाड़ कर ही देगा 

और बिनसर पहुंचकर जब उन्हें पता चला की होटल फुल है , कोई रूम खाली नहीं है

और अब उनको अपने परिवार के लोगों के सामने शर्मिन्दा होना पड़ेगा , तो फिर ये हंगामा हो गया 


" सर ... मोहन सर .. इस बार मेरी गलती नहीं है "

" वो .. रूम नम्बर - 7 की सफाई चल रही थी और जाने कैसे वो सहगल साहब वहीँ धमक गए "

" और फिर ... और फिर ... "

वेटर रामदीन की ये बात सुनकर मोहन ने घूरकर रामदीन को देखा और बोला 

" आधे घंटे में रूम नंबर - 8  क्लीन करवाओ और सहगल साहब की फॅमिली को चेक इन करा दो "

" सर रूम नंबर -8 तो आपका पर्सनल रूम है ... वो क्यों ? "

" और फिर आप ... आप कहाँ ....  ??????? "

रामदीन घिघियाते हुआ बोला 

मोहन की बात सुनकर रामदीन जैसा घाघ वेटर भी चकरा गया था 

" जैसा कह रहा हूँ , वैसा ही करो , ज्यादा सोचो मत "


मोहन को अच्छे से मालूम था की आज ये जो सब हुआ ,ये सब रामदीन का ही किया हुआ है 

रामदीन को बार - बार इतना समझाने के बाद भी हर साल दो साल में ऐसा होता ही था 

पीक सीजन में जब भी कोई बड़ा ग्रुप लॉन्ज में अपने बुक रूम्स से ज्यादा रूम की डिमांड करता था 

तब तब रामदीन बड़े टिप के लालच में खुद ही ' उस रूम ' के खाली होने की खबर क्लाइंट को दे देता था 

अब मोहन किसी को क्या बताता की

क्यों होटल का वो ऊपर वाला रूम नंबर - 7 , हमेशा खाली रहता है ?

और होटल के फुल होने पर भी क्यों वो रूम कभी किसी को रहने के लिए नहीं दिया जाता ?

( लेखक - मनोज गुप्ता  )


Wednesday, January 24, 2024

आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं


 


यह कविता नोबेल पुरस्कार विजेता स्पेनिश कवि 'पाब्लो नेरुदा (Pablo Neruda)' की कविता

"You Start Dying Slowly" का हिन्दी और इंग्लिश में अनुवाद है.

" आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं, अगर आप 
करते नहीं कोई यात्रा ,
पढ़ते नहीं कोई किताब ,
सुनते नहीं जीवन की ध्वनियाँ को ,
करते नहीं किसी की तारीफ़ . 

आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं, जब आप 
मार डालते हैं अपना स्वाभिमान ,
नहीं करने देते मदद अपनी और न ही करते हैं मदद दूसरों की . 

आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं, अगर आप ,
बन जाते हैं गुलाम अपनी आदतों के ,
चलते हैं रोज़ उन्हीं रोज़ वाले रास्तों पे ,
नहीं बदलते हैं अपना दैनिक नियम व्यवहार ,
नहीं पहनते हैं अलग-अलग रंग , या
आप नहीं बात करते उनसे जो हैं अजनबी अनजान . 

आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं, अगर आप ,
नहीं महसूस करना चाहते आवेगों को ,

और उनसे जुड़ी अशांत भावनाओं को ,

वे जिनसे नम होती हों आपकी आँखें ,

और करती हों तेज़ आपकी धड़कनों को. 

आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं, अगर आप ,
नहीं बदलते अपनी ज़िन्दगी को,

जब हों आप असंतुष्ट अपने प्रेम - जीवन से , अपने काम से ,
अग़र आप अनिश्चित के लिए नहीं छोड़ सकते हों निश्चित को ,
अगर आप नहीं करते हों पीछा किसी स्वप्न का ,
अगर आप नहीं देते हों इजाज़त खुद को ,

अपने जीवन में कम से कम एक बार,

किसी समझदार सलाह से दूर भाग जाने की .
तब आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं  "

English version of Pablo Neruda's Poem "You Start Dying Slowly"

1) You start dying slowly if you do not travel ,if you do not read, If you do not listen to the sounds of life, If you do not appreciate yourself.

2) You start dying slowly When you kill your self esteem; When you do not let others help you.
3) You start dying slowly If you become a slave of your habits, Walking everyday on the same paths…If you do not change your routine, If you do not wear different colors Or you do not speak to those you don’t know.
4) You start dying slowly If you avoid to feel passion And their turbulent emotions; Those which make your eyes glisten And your heart beat fast.
5) You start dying slowly If you do not change your life when you are not satisfied with your job, or with your love, If you do not risk what is safe for the uncertain, If you do not go after a dream, If you do not allow yourself, At least once in your lifetime,

To run away from sensible advice.

-------------------------------------------------------------------------------------

राइटर - पाब्लो नेरुदा 


Tuesday, January 23, 2024

थको ... रुको ... आराम करो



थको ... रुको ... आराम करो

और फिरसे उड़ो 

जीवन बहने का नाम है 

ना पत्थर बन , तुम पड़ो 


पत्थर बनोगे तो

चारों ओर खरपतवार उग जायेगी 

धंसते जाओगे और भी गहरे 

नियति तुम्हारा स्वाभिमान भी ले जायेगी 


फिर एक दिन ऐसा भी आएगा 

के लोग सिक्का फेंकतें आगे बढ़ जायेंगे 

और तुम यूँहीं आँखें मूंदे पड़े रहोगे 

इंसान से कीड़ा बन जाओगे 


माना के पंख टूट गयें हैं 

और मन भी दरक गया है 

जिनको कभी अपने पंखों पर उठाये उड़े थे 

वो उड़ना सीखते ही विपरीत दिशा में सरक गया है 


मगर तुम फिर भी उठो 

टूटे पंखों को अपने पसीने से सीलो 

सांतवा नहीं तो पहला आसमान ही सही 

उड़ चलो और नये पंछियों से मिलो 


थको ... रुको ... आराम करो

और फिरसे उड़ो 

जीवन बहने का नाम है 

ना पत्थर बन , तुम पड़ो 

( लेखक - मनोज गुप्ता )

#hindipoetry #hindiquotes #poetry #hindi #shayari #hindishayari #love #urdupoetry #shayri #lovequotes #shayar #writersofinstagram #quotes #hindipoem #poetrycommunity #hindikavita #hindiwriting #shayarilover #gulzar #instagram #writer #urdu #hindilines #mohabbat #hindipoems #urdushayari #sadshayari #hindiwriter #ishq #man0707 


 

Monday, January 22, 2024

फूल आज भी खिल रहें हैं



" फूल आज भी खिल रहें हैं 

चाँद भी रोज़ आता है 

मतलब के तुम खुश हो कहीं

चहकना अब भी तुम को भाता है 


मगर ये जो हवा में हलकी सी नमी है 

तो डर लगता है के कहीं 

के कुछ है , जो तुम्हारे दिल में 

आज भी उदासी लाता है 


फूल आज भी खिल रहें हैं 

चाँद भी रोज़ आता है 

मतलब के तुम खुश हो कहीं

चहकना अब भी तुम को भाता है "

( लेखक - मनोज गुप्ता )

#man0707

manojgupta0707.blogspot.com



 

Saturday, January 20, 2024

अच्छे हो , सच्चे हो .. तो क्या?


 


" आप अच्छे हो , सच्चे हो .. तो क्या?

दुनिया में आये हो ना  ?

तो दुनियादारी निभाते रहना "


यहाँ अच्छा होने से भी बोहोत ज्यादा जरूरी है

अपने को बार-बार,लगातार अच्छा दिखाते रहना

अपने व्यवहार की लापरवाही को छोड़

ख़ास को ख़ास ,आम को आम जताते रहना


बेहद जरुरी है फिर से उबर आना

किसी भी जानलेवा हादसे के बाद

और खुद को

अपनी ही नज़रो में उठाते रहना


दिल के उस कोने को

कोई खास जहाँ रहता हो

उस कोने को हमेशा पाक..

और पाक बनाते रहना


साधू सा जीवन

अंदर ही जियो तो अच्छा है

बाहर तो लम्बी गाड़ी ,

महँगा मोबाइल , अच्छी सूरत होना

अच्छा कहलाने को बोहोत जरुरी है

तो खुद को हर हाल में चमकाओ और

दुनिया को दिखाते रहना


 " आप अच्छे हो सच्चे हो .. तो क्या ?

दुनिया में आये हो न?

तो दुनियादारी निभाते रहना "

#man0707

manojgupta707.blogspot.com  

ना जाने क्यों | HINDI KAVITA


 


" ना जाने क्यों

आज भी ये यकीन है मुझे 

के किसी ना किसी रोज़

तुम जरूर वापिस आओगी , 


और तब जी उठेगा वो प्रौढ़ हो चुका फूल , 

जो कभी तुमने मुझे दिया था 

और जो आज भी तुम्हारे इंतज़ार में ,

मेरी डायरी के बीच मृतप्राय सा पड़ा है 


जाग उठ्ठेंगे , खिल उठ्ठेंगें 

वो पूरे - अधूरे से स्केच तुम्हारे . 

जो कभी मेरी कल्पना से उब्जे थे 

और जो बरसों बाद

आज भी मेरी स्केच-बुक में बिखरे पड़ें हैं 

बरसों से उनीदें से हैं ....

उदास हैं , सोयें पड़ें हैं

 

और हाँ , तुम्हारा वो रूमाल भी फिर ,

फिर से महक उठेगा

जिसके एक कोने पर तुम्हारे नाम का पहला अक्षर टंका है 

जो कभी मैंने चुरा लिया था 

और जो आज भी करीने से

मेरे दिल के एक कोने में सजा है .. महक रहा है 


वो बेरंग हो चुकी सिनेमा की दो टिकटें भी

फिर से रंगदार हो जायेंगी 

जो बरसों से मुड़ी-तुड़ी सी पड़ी हैं 

ये गवाह हैं की क़भी हम भी अकेले सिनेमा गये थे 

पॉप कॉर्न खाये थे और एक ही स्ट्रॉ से थम्सअप पी थी 


ना जाने क्यों

आज भी ये यकीन है मुझे 

के किसी ना किसी रोज़

तुम जरूर वापिस आओगी 


और तब .........  "

( मनोज गुप्ता )

#man0707

manojgupta0707.blogspot.com





Thursday, January 18, 2024

तुमसे बिछड़ के बरसों में



 " तुमसे बिछड़ के बरसों में ,

थोड़ा - थोड़ा सा हर रोज़ मरा हूँ  मैं . 

लम्हा - लम्हा मरते - मरते भी ,

कहाँ अपने मन का कुछ कर पाया , कभी मैं


कभी संस्कारों ने मुझे रोका ,

तो कभी दुनियादारी ने ,

और कभी जीवन की आपाधापी में

मैं ही तुम्हें भूल गया था , खुद मैं . 


आज जब मौत ने

आँखों में आँखें डालकर कहा ,

" ये तेरा आखिरी मौका है ' जीने का ' " ,

नहीं पायेगा दोबारा ना तू  , ना ही मैं  . 


बहुत हुआ ,

मैं अब और सोचना नहीं चाहता ,

किसी और के बारे में तो बिलकुल ही नहीं , 

अब और नहीं , कभी नहीं सोचूँगा अब मैं . 


इस जहान के बियोंड  , और उस जहान से परे  , एक मधुबन है शून्य में 

जहाँ  ना कुछ सही होता है , ना गलत  , ना कुछ पाप होता है , ना पुण्य 

" वहीँ मिलूँगा तुम्हे , कभी मैं . "


तुमसे बिछड़ के बरसों में ,

थोड़ा-थोड़ा सा हर रोज़ मरा हूँ  मैं . 

लम्हा - लम्हा मरते - मरते भी ,

कहाँ अपने मन का कुछ कर पाया , कभी मैं "

( मनोज गुप्ता )

#man0707

manojgupta0707.blogspot.com


तेरी आँखों में एक तूफ़ानी नदी


 " तेरी आँखों में एक तूफ़ानी नदी दिखती है,

जैसे कही दौड़ के जाने की उफन सी है

तू कहाँ देखता है , किसी दूसरे के चेहरे को

लगता है कहीं अपने ही चेहरे से नफ़रत सी है

माथे की वो शिकनें तो , वाबस्ता लकीरें बन ही चुकी

हर पल की तेरी सोच , इन्हें और पकाती सी है

एकटक तेरा देखते रहना बस अपने ही मोबाइल में

जाने किस बुरी ख़बर के आने की हड़बड़ी सी है


तेरी आँखों में एक तूफ़ानी नदी दिखती है,

जैसे कही दौड़ के जाने की उफन सी है


ढूँढते रहना हमेशा ही , किसी अनजाने-अनजानी को

वो जो तुझे ताक रहा हँस हँस कर , फिर उसका क्या है ?

उठ..चल..हाथ बढ़ा..एक मुस्कुराहट तो पहन

तेरे सब बन जाएँगे , तू ज़रा तो उम्मीद में हो मगन

ज़्यादा ना सोच..बस इस पल में जी..जो पल बस अभी बीत रहा

इस पल ही में जीवन है , इसके सिवा तो कुछ भी नहीं

तू जैसा है ...जहाँ है ..वही से आगे तू निकल

तू ना जीत सके , इतना अजेय तो कुछ भी नहीं

तू ना जीत सके , इतना अजेय तो कुछ भी नहीं


तेरी आँखों में एक तूफ़ानी नदी दिखती है

जैसे कही दौड़ के जाने की उफन सी है "

( मनोज गुप्ता )

#man0707     

Wednesday, January 17, 2024

नीमबाज़ आँखें






 "  कुछ तो रहम कीजे

एक पल को मूँद लीजिये

इन नीमबाज़ आँखों को
इन शराब से भरे सांचों को

के कुछ तो होश आये
चाहे फिर एक पल को ही सही
ज़रा सांस तो आये
चाहे रुकी-रुकी सी ही सही

मैं तो बस आपकी ,
इन आँखों की शराब में डूबा जाता हूँ
लोग कहते हैं की रिन्द है, मयकश है
या खुदा मैं तो छूता भी नहीं,
सो हँसा जाता हूँ


कुछ तो रहम कीजे ,
एक पल को मूँद लीजिये
इन नीमबाज़ आँखों को
इन शराब से भरे सांचों को "

(मनोज गुप्ता )

#man0707


Tuesday, January 16, 2024

हाँ तुम बिलकुल सच कहती हो , के मैं

 " हाँ तुम बिलकुल सच कहती हो , के मैं 

मैं बहुत पुराने ... गुज़रे बीते ज़माने का हूँ 


मुझे आज भी बस ... रफ़ी और किशोर के गाने अच्छे लगतें हैं 

मैं आज भी जब अताउल्ला खान साहब , नुसरत फ़तेह अली खान साहब , मेहदी हसन साहब को सुनता हूँ ,

तो जज्बाती हो जाता हूँ ... होश खो देता हूँ 

और तुम्हे याद करके आज भी ... रोने लगता हूँ 


हाँ तुम बिलकुल सच कहती हो , के मैं 

मैं बहुत पुराने ... गुज़रे बीते ज़माने का हूँ 


आज भी जब बारिश होती है तो मैं ,

मैं आज भी बच्चों की तरह उत्साहित हो जाता हूँ 

और चुपके से , सबसे छुपके ... अकेले में ,

छत्त पर जाकर भीगता हूँ ... और बिंदास खूब नहाता हूँ 

बारिश के मौसम में मैं ,

मैं आज भी रोमांटिक ... बहुत रोमान्टिक हो जाता हूँ 


हाँ तुम बिलकुल सच कहती हो , के मैं 

मैं बहुत पुराने ... गुज़रे बीते ज़माने का हूँ 


पूर्णिमा के हसीन चाँद में मुझे आज भी ... बस तुम ही दिखती हो 

हँसती हुयी , मुस्कुराती हुयी , 

तुम हमेशा की तरह आज भी मुझसे दूर , बहुत दूर 

महकती हुयी , दमकती हुयी और आज भी दीखता है तुम्हारा ..

तुम्हारा वो चिरपरिचित गुरुर 


हाँ तुम बिलकुल सच कहती हो , के मैं 

मैं बहुत पुराने ... गुज़रे बीते ज़माने का हूँ 


तुम्हारे वो खत , वो रूमाल , वो फोटो सब के सब मैंने 

मैंने वो सब आज भी अपने दिल से लगा रखा है

मेरी पुरानी अलमारी में उनकी जगह अक्सर बदलती रहती है 

पर मेरे दिल में .. मेरे दिल में वो सब आज भी वहीँ है 

उसी बागीचे में , जहाँ एक दिन तुम और मैं मिले थे .. साथ हँसें थे 

महके थे ... और फिर बिछड़ गए थे 



हाँ तुम बिलकुल सच कहती हो , के मैं 

मैं बहुत पुराने ... गुज़रे बीते ज़माने का हूँ 


मुझे आज भी बस ... रफ़ी और किशोर के गाने अच्छे लगतें हैं 

मैं आज भी जब अताउल्ला खान साहब , नुसरत फ़तेह अली खान साहब , मेहदी हसन साहब को सुनता हूँ ,

तो जज्बाती हो जाता हूँ ... होश खो देता हूँ 

और तुम्हे याद करके आज भी ... रोने लगता हूँ "

( मनोज गुप्ता )

#man0707   

manojgupta0707.blogspot.com

Monday, January 15, 2024

पुरुष की अभिशप्तता


"  हाँ , मैं भी डरता हूँ 

मैं डरता हूँ की कहीं 

उनको , जिनके लिए मैं डर रहा हूँ 

ये पता ना चल जाए की ,

मैं डर गया हूँ 


डर जाने का ये सुख पुरुष को कहाँ ?

तो मैं डरता तो हूँ 

पर मैं डरता नहीं हूँ 

क्योंकि पुरुष होकर मैं ये स्वीकार नहीं कर पाता 

मैं अक्सर डरा हुआ रहता हूँ 

और यही मेरे पुरुष होने की अभिशप्तता है "

( मनोज गुप्ता )

#man0707     manojgupta0707.blogspot.com

Sunday, January 14, 2024

बोतल में बंद हूँ


 



" बोतल में बंद हूँ 

आजादी चाहता हूँ 

एक अदना सा इंसान हूँ 

आसमान चाहता हूँ 


साँस घुट रही है 

सर दीवारों से टकरा रहा है  

फिर खून भी ना निकले 

ऐसा सर चाहता हूँ 


समंदर में हूँ मगर 

पानी से कोसों दूर हूँ 

भर आत्मा पानी , मैं भी 

पीना चाहता हूँ  "

( मनोज गुप्ता )   #man0707

बीज




 "  किसी गहरे ,  बहुत गहरे पाताल में हूँ शायद ,

कोई नहीं साथ मेरे , ना संगी - साथी , ना कोई बांधव

चहुँ ओर बस मिटटी है , और है घनघोर अँधेरा ,
दूर दूर तक ना कोई रौशनी  , ना कोई सवेरा


चिन्नी सी एक बूँद मिली , तो नम हो पाया है तन मेरा
पर अंतर को सींच सके,  ऐसा कहाँ मिला कोई मेरा ?

अब तो आत्मा की शक्ति से जोर लगाना होगा ,
सूरज से मिलने को , ऊपर को शीश उठाना होगा


कुछ तो फूटेगा मेरे अंतर से , जो होगा मेरा अपना
एक नयी सुबह का देखा है , अब मैंने सपना


एक अंगड़ाई ज़रा जोर से जो लगाई मैंने ,
वो सूर्य - किरण भी मुझे देखकर मुस्कुराई जैसे


हंसकर बोली- "आया ही गया लल्ला मेरा " ,

अब बोल क्या है मन में तेरे , क्या है इरादा तेरा
हवा, बारिश, धूप ,कीट-पतंगें , जीव-जंतु , अब है तुझे सबसे खतरा ,
जीने का बस एक और मरने के हैं बहाने सतरा

मैं ( बीज ) बोला -

"माँ , मैं सबसे लडूंगा " ,

आया हूँ तो अपनी आखिरी सांस तक भिढ़ूँगा
पहले डराएंगे फिर दोस्त बन जाएंगे येसब ,
इनको भी तो चाहिए होगा , एक साथी चौकस

एक दिन ये हवा , मेरे ही पत्तो से छनकर बहेगी ,
बारिश मुझपर रुककर , आराम कर मोती बनेगी

पंछी भी आयेंगे , चहचहायेंगे , फल खायेंगे , घर बनायेंगे 

गिलहरी भागेगी - दौड़ेगी , बन्दर कूदते-फाँदते खिलखिलायेंगे 

ये धूप भी कुछ देर रोज़ अंगड़ाई लेगी , मेरी शाखों पर ,

ये सब रोज़ आएंगे जाएंगे पर मैं रहूंगा सदा , इस धरा पर

कमज़ोर का कहाँ कोई होता है , अपना इस जग में ,
साबित तो करना होगा मुझको , खुद को इस रण में
हवा, धूप, बारिश ना बन पाया तो क्या , पेड़ तो बन पाउँगा ,
प्रकृति-संतुलन पूरा किया तो ही , कृष्ण-प्रिय कहलाउँगा 

मैं किसी गहरे , बहुत गहरे पाताल में हूँ शायद
कोई नहीं पास मेरे , ना संगी - साथी , ना कोई बांधव।

( manoj gupta )

Friday, January 12, 2024

जीवन का एक और बरस बीत गया


" जीवन का एक और बरस बीत गया 

चुपके से यही कहते कहते 

कब तलक इंतज़ार करूँ मैं तेरा 

निरुद्देश्यीय यूहीं बहते बहते 

ऐसा तो नहीं है की कोई और नहीं मिला मुझको

बीतें बरसों में बीसियों मिले , दसियों दिल को भी लगे ,

एक - दो तो थक गये इकरार .. मुझसे करते करते 


पर क्या करूँ ? मेरी रूह तो बेसाख्ता अब भी 

बस तुझसे ही लिपटी रहती है 

मैं कितना भी चाहूँ  , पर ये तो बस 

तुझ तक ही सिमटी रहती है 

कई बार कोशिश भी की मैंने की मैं 

खींचकर अलग कर दूँ इसको .. तुझसे 

पर हर बार मेरी ही रूह उधड़ जाती है 

मरने लगता हूँ मैं , कोशिश यही करते करते 


अब तो लगता है की यही नियति है मेरी 

की मैं यूहीं त्रिशंकु रहूँ .. झूलता रहूँ 

धरती और अम्बर के बीच में कहीं

लटका रहूँ ..  उड़ता रहूँ 

ना जिऊ ना मरुँ ,

बस यूहीं अटका रहूँ 

प्यार के बिना यूँही रूखा सूखा , रसहीन 

जीता रहूँ .. सड़ता रहूँ 


जीवन का एक और बरस बीत गया 

चुपके से यही कहते कहते 

कब तलक इंतज़ार करूँ मैं तेरा 

निरुद्देश्यीय यूहीं बहते बहते "

( मनोज गुप्ता )

#man0707

पेड़ ना बन सका


 


" पेड़ ना बन सका

तो मैं घास बना
कुचला गया तो
बारिश तक इंतज़ार किया
और मैं फिर से तना


जिस-जिस ने मुझे कुचला ,

उनका शुक्रिया 

अग्नि मेरे ह्रदय बसी थी ,

सूर्य ने मुझे जीवन-ताप दिया ,

तो चंद्रमाँ  ने शीतलता ,

धरा ने अंक (गोद) में लिया   ,         

पवन ने सहलाया ,

तो बादल ने नहलाया ,

और मैं फिर से तना


पेड़ ना बन सका
तो मैं घास बना
कुचला गया तो
बारिश तक इंतज़ार किया
और मैं फिर से तना "

( मनोज गुप्ता )

#man0707

Wednesday, January 10, 2024

मैं इतना भारी बनूँ


अगर कभी भगवान् स्वयं मिल जाएँ
और अचानक पूछ लें
 " बोल सखा क्या चाहता है ,जल्दी बोल
जो भी तू तुरंत अभी बोलेगा ,वही पूरा हो जाएगा "

तो मैंने सोचा, कान्हा कभी ना कभी तो मुझे मिलेगें ही , तो मैं उनसे क्या कहूंगा,

सोचकर आज ही लिख ही लेता हूँ :)

तो ये कविता लिख डाली

प्यार से पढ़िये ,आशा है आपको अच्छी लगेगी :)
-----------------------------

" मैं इतना भारी बनूँ के ,
"हनु" से भी ना हिल पाऊँ
और इतना हल्का भी के ,
पंछी संग मैं उड़ जाऊं

इतना गहरा हो जाऊँ के ,
शीर-सागर भी कम पड़ जाये
और इतना उथला भी के ,
बालक तैर के पार निकल जाये

इतना ऊँचा हो जाऊँ के ,
सातवाँ आसमान छू लू तर्जनी उंगली से
और इतना बौना भी के ,
बच्चों संग कंचे खेलूँ गली में

इतना विस्तृत बनूँ.. नाप दूँ ,
पूरी धरा एक ही पग में
और इतना सीमित भी के ,
चैन की नींद सोऊ अपनी छोटी सी कुटिया में

इतना चपल-सुन्दर मैं हो जाऊं ,
बन जाऊं स्वर्ण मृग मैं
सीता-हरण में भागी बनकर ,
नवजीवन पाऊँ राम बाण में

ओ रे कान्हा मैं तुझसे
बस इतना ही चाहूँ
बस इतना सा ही की

मैं इतना भारी बनूँ के ,
"हनु" से भी ना हिल पाऊँ
और इतना हल्का भी के ,
पंछी संग मैं उड़ जाऊं  .
----------------------------
हनु = हनुमान
शीर-सागर = विष्णु भगवान् का वास स्थान
उथला - बहुत ही कम गहरा 

( मनोज गुप्ता )

#man0707

manojgupta0707.blogspot.com


 

Tuesday, January 9, 2024

हम मुक्त रहें


" हम मुक्त रहें 

उन्मुक्त रहें 

जीवन में ना कभी 

सुस्त रहें 

जीवन की आपा-धापी में 

व्यस्त रहें पर 

चुस्त रहें 


जीवन है सुन्दर 

है सुशील ये 

लोहा भी है ये 

मोम भी है ये


लोहा जिस्म मे 

मोम सा दिल लिए

और आत्मा 

ईश्वरीय धुन लिए

सबसे मिलें हम 

सात्विक मन लिए

पवित्र बनें हम 

पवित्र जियें हम 


हम मुक्त रहें 

उन्मुक्त रहें 

जीवन में ना कभी 

सुस्त रहें 

जीवन की आपा-धापी में 

व्यस्त रहें पर 

चुस्त रहें। "

#man0707

manojgupta0707.blogspot.com 

Sunday, January 7, 2024

अंतर मन में जल रहा हूँ


"  अंतर मन में जल रहा हूँ 

थका टूटा सा चल रहा हूँ 

आग में घिरता जा रहा हूँ 

फिर भी वहीँ बिचल रहा हूँ 


किसको समझाऊँ और कैसे समझाऊँ

अंतर की टूटन किसको दिखलाऊँ 

तन .. मन .. आत्मा सब सुलग रहें है 

मरहम का फाहा किससे लगवाऊँ  


सब अपनी खुद की आगों में घिरें हैं 

हसरत से मुझको ताक रहें हैं 

उनको लगता है मैं निकालूँगा उन्हें 

तो अब मैं .. खुद को किससे निकलवाऊँ 


अंतर मन में जल रहा हूँ 

थका टूटा सा चल रहा हूँ 

आग में घिरता जा रहा हूँ 

फिर भी वहीँ बिचल रहा हूँ  "

( लेखक - मनोज गुप्ता )

#man0707

manojgupta0707.blogspot.com





 

सूरज जैसा धरती को करता है







 

" सूरज जैसा धरती को करता है ,

वैसे वाला प्यार . 

ना कोई आशा..ना अपेक्षा.. ,

ना ही इंतज़ार.. ,

वैसे वाला प्यार . 


करोड़ों सालो से 

हर पल.. हर क्षण 

जलते रहना ,

और धरती को

ऊष्मा..प्रकाश.. जीवन देते रहना ,

वैसे वाला प्यार . 


जानते हुए भी की धरती निष्ठुर है ,

और निर्मम भी और बेपरवाह . 

फिर भी अपनी ही धुन में मग्न

एकतरफा प्रेम - मय रहना , 

वैसे वाला प्यार . 


सूरज जैसा धरती को करता है , 

वैसे वाला प्यार . 

ना कोई आशा.. ना अपेक्षा..

ना ही इंतज़ार , 

वैसे वाला प्यार "

( लेखक - मनोज गुप्ता )

#man0707

manojgupta0707.blogspot.com


Saturday, January 6, 2024

कैसे कहूँ , कितना बदल गया हूँ मैं


 




" कैसे कहूँ , कितना बदल गया हूँ मैं 

समय के साथ , कुछ ज्यादा ही संभल गया हूँ मैं 

कहाँ कभी कुछ भी सोचता नहीं था मैं 

कहाँ आज सोच सोच कर , रुक गया हूँ मैं 


खुशियाँ तो आज भी आवाज़ देती हैं मुझको 

पर अब मैं बस दूर खड़ा जमा-भाग करता रहता हूँ 

दूसरों की नज़रों में उठा रहने की चाहत में 

अपने ही झूठों के नीचे दब सा गया हूँ मैं 


कैसे कहूँ , कितना बदल गया हूँ मैं 

समय के साथ , कुछ  ज्यादा संभल गया हूँ मैं "

( लेखक - मनोज गुप्ता )

#man0707

manojgupta0707.blogspot.com


Friday, January 5, 2024

बीती बातें


 


"  बीती बातें  , अतीत की यादें  

अक्सर घेर लेतीं हैं मुझे , शाम आते आते 


कुछ पुराने दुःख , कॉफ़ी की भाप में उड़ने को बेताब रहतें हैं 

कुछ पुराने दर्द , आरामकुर्सी के पैरों में आबाद रहतें हैं 


मेरा वो गुलाब , मेरी पुरानी सी किताब में आज भी रखा है 

तेरा वो रूमाल , मेरी अधफंसी दराज में आज भी सजा है 


हर सुबह सोचता हूँ , आज फेंक दूँगा ये सब , अलाव के पास 

पर शाम होते होते भूल जाता हूँ , बचा लेता हूँ  ये झूठी आस ?


 बीती बातें  , अतीत की यादें  

अक्सर घेर लेतीं हैं मुझे , शाम आते आते  "

( लेखक - मनोज गुप्ता )

#man0707

manojgupta0707.blogspot.com

( इस कविता के शब्द मित्र 'छवि' के हैं , मैंने बस उन्हें पिरोने का काम किया है :) )




तुमसे फिरसे मिलने से पहले



 

" तुमसे फिर मिलने से पहले , 

मैं पहला सा हो जाना चाहता हूँ 

ख़ूबसूरत , वाचाल ,

शरारती , जंजाल 

हर पल बैचैन ,

बिखरा हुआ , आवारा नैन  

उड़ता सा चलने वाला ,

बहता सा रहने वाला 

तुम पर मरता हुआ ,

दिन - रात तुम्हारी कल्पनायें करता हुआ 

अपने ही संसार में खोया सा ,

तुम्हारी आग में रोया सा 

तुमको पाने का आकांक्षी ,

हद्द दर्जे का महत्वाकांक्षी 

ना ज्यादा सोचने वाला ,

ना ज्यादा करने वाला 

बस हरपल को जीने वाला ,

हर रात हरदिन को खोने वाला 

तेरे प्यार में पागल ,

तेरे तस्सव्वुर में घायल 

बस कैसे भी ..... किसी भी तरकीब से ,


तुमसे फिरसे मिलने से पहले , 

मैं हूबहू पहला सा हो जाना चाहता हूँ । "

( लेेखक - मनोज गुप्ता )

#man0707

manojgupta0707.blogspot.com

Thursday, January 4, 2024

कुछ ऐसा लिख पाऊं मैं



 


" कुछ ऐसा लिख पाऊं मैं 

इस पल दो पल के जीवन में 

इस जीवन की तख्ती पे 

के रह जाऊं मैं याद तुम्हें 

जाने के भी बाद मेरे 

इस जीवन की गंगा में 

काश मैं सचमुच कुछ तो ऐसा लिख पाऊँ "

(लेखक - मनोज गुप्ता )

#man0707 

manojgupta0707.blogspot.com

जब तक जीवन है



 



जब तक जीवन है

पक्षी स्व्छंद उड़ेगा , गायेगा

भँवरा रस चूसेगा , गुनगुनाएगा


क्यों रोकें बावरे दिल को

दिल की बात कहने से

जब तक दिल धड़क रहा है 

धड़क रहा है 

हम चाहें या ना चाहें

एक दिन ये रुक जाएगा


जब तक जीवन है

पक्षी स्व्छंद उड़ेगा , गायेगा

भँवरा रस चूसेगा , गुनगुनाएगा  "

( लेखक - मनोज गुप्ता )

#man0707

manojgupta0707.blogspot.com


Wednesday, January 3, 2024

शब्द ही तो हैं जिनसे


 


"  शब्द ही तो हैं जिनसे ,

मैंने जाना तुझे .. तूने मुझे 

वरना तो इतने अजनबी हैं हम के अगर

SERENDIPITY से कभी टकरा भी गये 

तो झगड़ बैठेंगें ये कहकर 

" हिम्मत कैसे हुयी ? के छुआ तूने मुझे :) "


क्योंकि अभी तक केवल

शब्दों के पुल के जरिये ही ,

मैंने जाना तुझे .. तूने मुझे । "

( लेखक - मनोज गुप्ता )

#man0707 

manojgupta0707.blogspot.com



एक बेबस की चीत्कार

 






" एक बेबस की चीत्कार ,

जब कोई समाज नहीं सुनता है 

बस उसी क्षण में समाज

अपना खुद का कफ़न बुनता है  "

- मनोज गुप्ता 

#man0707 

manojgupta0707.blogspot.com

Tuesday, January 2, 2024

हम मुक्त रहें उन्मुक्त रहें



 

" हम मुक्त रहें 

उन्मुक्त रहें 

जीवन में ना कभी 

सुस्त रहें 

जीवन की आपा-धापी में 

व्यस्त रहें पर 

चुस्त रहें 


जीवन है सुन्दर 

है सुशील ये 

लोहा भी है ये 

मोम भी है ये


लोहा जिस्म मे 

मोम सा दिल लिए

और आत्मा 

ईश्वरीय धुन लिए

सबसे मिलें हम 

सात्विक मन लिए

पवित्र बनें हम 

पवित्र जियें हम 


हम मुक्त रहें 

उन्मुक्त रहें 

जीवन में ना कभी 

सुस्त रहें 

जीवन की आपा-धापी में 

व्यस्त रहें पर 

चुस्त रहें। "

#man0707

manojgupta0707.blogspot.com 

आप हमेशा यूहीं महकती रहिये



 


"  आप

हमेशा यूहीं महकती रहिये

हमेशा यूहीं चहकती रहिये

हमसे मिलिए

ना मिलिए

ये कोई जरूरी बात नहीं


पर मौसमों से,

हवाओं से,

फूलों से,

सर्वस्व प्रकृति से,

जरूर से मिलती रहिये


गोया उनको आपका स्पर्श चाहिए

स्वयं जीने के लिए

सम्पूर्ण कायनात को

जीवन देने के लिए  "

( लेखक - मनोज गुप्ता )

#man0707

Monday, January 1, 2024

ANIMAL ( POEM )



 

" सोचता था की बहुत महान हूँ मैं 

अपनी इस सोच में ही परेशान हूँ मैं 

जिनसे ज़िन्दगी गुलज़ार है मेरी 

आज उनसे ही पशेमान (सॉरी ) हूँ मैं 


उम्र भर फूल बिछाये जिसने , मेरी राहों में 

रात दिन का सुकून पाया मैंने , जिनके सायों में 

जिनको पलकों पर सजाना था मुझको 

उनको ही हर बार गिराया है मैंने 


तुमने नाहक ही इंसान समझा था मुझको 

इंसान नहीं " एनिमल " हूँ मैं 

आज पशेमान (सॉरी ) हूँ कल फिर बदल जाऊंगा 

इंसान नहीं " एनिमल " हूँ .. शैतान हूँ मैं 


सोचता था की बहुत महान हूँ मैं 

अपनी इस सोच में ही परेशान हूँ मैं 

जिनसे ज़िन्दगी गुलज़ार है मेरी 

आज उनसे ही पशेमान (सॉरी ) हूँ मैं "


लेखक - मनोज गुप्ता 

#man0707