हज़ारों रंग बिखरे हुए हैं दुनिया में
कोई रंग ऐसा कहाँ जो उनके रंग को व्यक्त करे
उन आँखों में मदहोशी भी है और इन्द्रधनुषी सपने भी
कोई कवि ऐसा कहाँ जो उनकी ख़ूबसूरती को अभिव्यक्त करे।
( Poet - Manoj Gupta )
#man0707
हज़ारों रंग बिखरे हुए हैं दुनिया में
कोई रंग ऐसा कहाँ जो उनके रंग को व्यक्त करे
उन आँखों में मदहोशी भी है और इन्द्रधनुषी सपने भी
कोई कवि ऐसा कहाँ जो उनकी ख़ूबसूरती को अभिव्यक्त करे।
( Poet - Manoj Gupta )
#man0707
" सखी री , भोर भये कान्हा मोहे , रंग दीनो अपने ही रंग
दूध दही माखन मोरा खायो , और पिलाई मोहे भांग
अब मोहे ना कोई सुधबुध , ना कोई रयो अब मोरे संग
सगरा जगत आये रहा , मोपे रंग डारन को
अब तू ही बता इ कैसे होई , क्योंकि
जोन होए श्याम रंग , ओपे चढ़े कौन रंग
और ओके लिये का सगरी दुनिया कौ धन
और का सगरी दुनिया को संग
सखी री , भोर भये कान्हा मोहे , रंग दीनो अपने ही रंग "
" पत्ते आज भी वहीँ बिखरे पड़े हैं
जिस राह पर कल हम साथ चले थे
पत्ते पूछ रहे , क्यों आये हो तुम आज अकेले ?
मैं कैसे कहूँ , अलग अलग राहों पे हम निकल चलें हैं
पत्ते आज भी वहीँ बिखरे पड़े हैं
जिस राह पर कल हम साथ चले थे "
प्रेम पर अब मैं क्या लिखूं
प्रेम पर सब कुछ लिखा जा चुका
अठारवीं सदी से लेकर आज तक
करोड़ों सतहों को कुरेदा , उकेरा जा चुका
तेरा .. मेरा .. उनका , हम सब का प्रेम है अपना अपना
असल में प्रेम कुछ नहीं , बस है एक सुन्दर सलोना सपना
पवित्र ह्रदय के मानव बनें हम , चाहिये बस इतना ही
जैसा सलूक हम खुद से करें , दूसरों से भी वैसा ही
प्रेम पर अब मैं क्या लिखूं
प्रेम पर सब कुछ लिखा जा चुका
अठारवीं सदी से लेकर आज तक
करोड़ों सतहों को कुरेदा , उकेरा जा चुका .