" पत्ते आज भी वहीँ बिखरे पड़े हैं
जिस राह पर कल हम साथ चले थे
पत्ते पूछ रहे , क्यों आये हो तुम आज अकेले ?
मैं कैसे कहूँ , अलग अलग राहों पे हम निकल चलें हैं
पत्ते आज भी वहीँ बिखरे पड़े हैं
जिस राह पर कल हम साथ चले थे "
No comments:
Post a Comment