Tuesday, April 23, 2024

मेरे ख्यालों में तुम एक परी थीं | HINDI KAVITA

मेरे ख्यालों में तुम एक परी थीं 

और मैं एक आम सा लड़का 

तुम्हारे ख्यालों में तुम एक परी थीं 

और मैं एक आम सा लड़का 

फिर हम दोनों के ना मिल पाने में गलती मेरी कैसे हुयी ?

मैं तो आम सा लड़का ही था हम दोनों ही के ख्यालों में 

गलती तो तुमसे हुयी 

ना तुम परी होकर भी खुद आम सी लड़की बन सकीं 

ना तुम परी होकर भी मुझे राजकुमार बना सकीं 


मेरे ख्यालों में तुम एक परी थीं 

और मैं एक आम सा लड़का । 


Friday, March 29, 2024

aapka rang | hindi kavita



 हज़ारों रंग बिखरे हुए हैं दुनिया में 

कोई रंग ऐसा कहाँ जो उनके रंग को व्यक्त करे 

उन आँखों में मदहोशी भी है और इन्द्रधनुषी सपने भी 

कोई कवि ऐसा कहाँ जो उनकी ख़ूबसूरती  को अभिव्यक्त करे।

( Poet - Manoj Gupta )

#man0707

Monday, March 25, 2024

रंग दीनो अपने ही रंग | HINDI KAVITA


 


" सखी री , भोर भये कान्हा मोहे , रंग दीनो अपने ही रंग

दूध दही माखन मोरा खायो , और पिलाई मोहे भांग

अब मोहे ना कोई सुधबुध , ना कोई रयो अब मोरे संग

सगरा जगत आये रहा , मोपे रंग डारन को

अब तू ही बता इ कैसे होई , क्योंकि

जोन होए श्याम रंग , ओपे चढ़े कौन रंग

और ओके लिये का सगरी दुनिया कौ धन

और का सगरी दुनिया को संग


सखी री , भोर भये कान्हा मोहे , रंग दीनो अपने ही रंग "

Friday, March 15, 2024

पत्ते | HINDI KAVITA


 

" पत्ते आज भी वहीँ बिखरे पड़े हैं

जिस राह पर कल हम साथ चले थे 

पत्ते पूछ रहे , क्यों आये हो तुम आज अकेले ?

मैं कैसे कहूँ  , अलग अलग राहों पे हम निकल चलें हैं 


पत्ते आज भी वहीँ बिखरे पड़े हैं

जिस राह पर कल हम साथ चले थे "

Tuesday, March 12, 2024

प्रेम पर अब मैं क्या लिखूं | HINDI KAVITA




प्रेम पर अब मैं क्या लिखूं 

प्रेम पर सब कुछ लिखा जा चुका 

अठारवीं सदी से लेकर आज तक 

करोड़ों सतहों को कुरेदा , उकेरा जा चुका 

तेरा .. मेरा .. उनका , हम सब का प्रेम है अपना अपना 

असल में प्रेम कुछ नहीं , बस है एक सुन्दर सलोना सपना 

पवित्र ह्रदय के मानव बनें हम , चाहिये बस इतना ही 

जैसा सलूक हम खुद से करें , दूसरों से भी वैसा ही 


प्रेम पर अब मैं क्या लिखूं 

प्रेम पर सब कुछ लिखा जा चुका 

अठारवीं सदी से लेकर आज तक 

करोड़ों सतहों को कुरेदा , उकेरा जा चुका .



Saturday, February 3, 2024

JUNGLE CAT | HINDI KAHANI | PART - 11


 नेहा , महीनों के बाद आज ब्यूटी पार्लर गयी थी 

वहाँ उसने " फर्स्ट नाईट स्पा पैकेज " लिया और ग्रूम होकर देर शाम तक होटल वापिस लौटी 

रात के नौ बजने वाले थे और वो तैयार होकर बेसब्री से मोहन के उसके कमरे में आने का इंतज़ार कर रही थी 


इधर मोहन को होटल का काम जल्दी से जल्दी निबटाते हुये भी रात के दस बज गए थे 

इस एक घंटे में इंतज़ार करते करते नेहा तब तक बिलकुल बेसब्र हो चुकी थी 

" कहिए नेहा जी , बताइये आपको मेरी क्या हेल्प चाहिए ? "

मोहन ने रूम के अंदर आते ही पूछा था ,

वो काफी थका हुआ और नेहा से बात करके जल्दी से जल्दी वापिस अपने कमरे में जाकर आराम करना चाहता था 

पर अगली लाइन कहने से पहले ही मोहन का ध्यान नेहा के कपड़ों और रूम की सजावट पर पड़ा ,

उसके सामने नेहा एक खूबसूरत गाउन में सजी खड़ी थी , उसके हाथ में उसका ड्रिंक गिलास था 

कमरे में हल्का हल्का रोमांटिक म्यूजिक चल रहा था ,

सामने टेबल पर मोहन की मनपसंद शराब और स्नैक्स सजा था 

मोहन को एहसास हुआ की यहां तो माज़रा कुछ और ही है 

मोहन अभी कुछ कहता की उससे पहले नेहा ही बोल पड़ी 

" मोहन जी , मैं किसी का उधार  नहीं रखती "

" मैं पिछले कई दिनों से एक घुटन सी महसूस कर रही हूँ "

" आप आज अपनी शर्त पूरी कर लीजिये "

" ताकि मैं फ्री हो जाऊ , और हम आगे के काम के बारे में बात कर सकें "


मोहन तो ऐसे ही बेध्यानी में बिना कुछ सोचे नेहा के बुलाएं पर उसके कमरे में आा गया था 

उसको तो पिछली बातों के बारे में बिलकुल ध्यान ही नहीं था 

उसने तो सोचा था की नेहा उससे नॉवल के बारे में कोई बात करना चाहती है 

ये रात बिताने वाली शर्त भी उसने ऐसे ही रख दी थी 

उसको लगा था की नेहा कभी उसकी इस शर्त को नहीं मानेगी , मना कर देगी 

वो बस नेहा को टालना चाहता था 

पर नेहा तो आखिर नेहा थी ,

उसने वो शर्त मान ली थी और आज उसे पूरा करने के लिए भी बिलकुल तैयार थी 


नेहा को ऐसे मादक रूप में अपने सामने देखकर , मोहन भी अब डबल माइंड हो गया था 

बरसों से वो स्त्री शरीर से दूर रहा था 

बरसों से रोज सुबह पांच बजे उसका दिन शुरू होता था , और आम तौर पर रात बारह बजे तक चलता था 

इसी बिजी जीवन में उसे कभी शरीर की भूख का ख्याल ही नहीं आया था 

पिछले इतने सालों में किसी औरत से उसका कभी कोई शारीरिक रिश्ता भी नहीं रहा था 

पर आज नेहा को उसके इस अवतार में देखकर मोहन जाने क्यों कमज़ोर पड़ता जा रहा था 

उसकी बरसों से दबी हुयी शरीर की भूख उसकी सोच पर हावी होती जा रही थी 

जो बात इतने बरसों में नहीं हुयी थी , वो आज जाने कैसे ? और क्यों हो रही थी ??

वो बरसों से होटल बिज़नेस में था , तरह तरह के टूरिस्ट्स आते थे 

ऐसा बीसियों बार हुआ था की उसके पास मौक़ा था किसी के साथ इंटिमेट होने का 

पर कुछ था , जो उसे हर बार रोक लेता था 

मगर आज उसका धैर्य जवाब दे रहा था , वो भी बहकता जा रहा था 


" तुम बाथ क्यों नहीं ले लेते ? "

अचानक नेहा ने मोहन को कहा 

मोहन को एहसास हुआ की वो आज सुबह से काम में ही था 

और उसने खुद भी महसूस हुआ की वो अच्छा स्मेल नहीं कर रहा है 

" ठीक है , मैं नहाकर आता हूँ "

इतना कहकर मोहन जाने के लिए मुड़ा तो नेहा ने उसे हाथ पकड़कर रोक लिया और बोली 

" आप यहीं नहा लीजिये ना "

और वो मोहन का हाथ पकड़ कर उसे अपने रूम के बाथरूम तक ले गयी


शावर के गर्म पानी में मोहन को ऐसा लग रहा था की जैसे वो आज बरसों बाद नहा रहा हो  

वो अपने शरीर को ऐसे रगड़ रहा था ,

जैसे जाने बरसों के जमे हुए ग़मों को आज एक ही दिन में अपने शरीर से खुरच खुरच कर छुड़ा देना चाहता हो 

पवित्र हो जाना चाहता हो 

कुछ देर बाद मोहन ने अभी अपना हाथ शावर को बंद करने के लिए बढ़ाया ही था ,

की एक खूबसूरत हाथ  ने उसे पीछे से आकर रोक लिया और शावर को चलने दिया 

और फिर वो खूबसूरत नग्न बदन उसके नग्न गीले बदन से लिपट गया 

गर्म पानी बरसता रहा 

और फिर वो जाने कबसे प्यासे दो बदन एक दूसरे की प्यास बुझाने लगे 


मोहन हड़बड़ाकर उठ बैठा 

उसने देखा की उसके बिलकुल सामने वाली खिड़की के बंद परदे से भी रौशनी छन्न कर आ रही थी 

सूरज चमक रहा था 

वो बिलकुल निर्वस्त्र बिस्तर पर था , उसके बिलकुल पास ही नेहा भी उसी हालत में सोइ हुयी थी 

मोहन का सर दर्द से फटा जा रहा था 

उसने टाइम देखने के लिए अपना मोबाइल ढूंढा तो वो उसे अपनी साइड टेबल पर ऑफ पड़ा मिला 

उसने झपट कर मोबाइल उठाया और ओंन किया 

उसने अपने कपड़े ढूंढे तो वो उसे कहीं नहीं दिखे ,

उसे याद आया की वो रात को नहाने गया था , तो उसने कपड़े वहीँ उतारे थे 

तो वो फटाफट बाथरूम में भागा , जल्दी जल्दी मुँह धोया , 

खुद को कुछ संयत किया , फटाफट कपड़े पहने और फिर मोबाइल लेकर उस कमरे से बाहर निकल गया 

उसका मोबाइल अब तक चालू हो गया था ,

उसने टाइम चेक किया तो सुबह के दस बज गए थे 


अपने रूम के जाकर , फटाफट नहाकर मोहन होटल लॉबी में आ गया 

लॉबी में टूरिस्ट्स की भीड़ लगी हुयी थी , सारा स्टाफ काम में जुटा था 

बहुत महीनों के बाद ऐसा हुआ था की मोहन इतनी लेट काम पर आया हो 

बल्कि वो तो रोज सुबह सबसे पहले काम पर आता था 

लॉबी में ही उसे रामदीन मिल गया 

रामदीन के चेहरे पर एक रहसयमयी मुस्कराहट थी 

मोहन का एहसास हो गया था की कुछ तो है जो इस धूर्त रामदीन को पता चल गया है 




JUNGLE CAT | HINDI KAHANI | PART - 10


 " तुम्हें मेरे साथ सोना पड़ेगा " , मोहन गुर्राया 

" डन "  नेहा ने एक पल भी सोचे बिना जवाब दिया और मुस्कुराने लगी 

उसकी ये मुस्कराहट मोहन के दिल में शूल की तरह चुभ रही थी 


मोहन वापिसी होटल की तरफ लौट रहा था 

रास्ते भर उसके दिमाग में बस यही सोच चल रही थी की क्या हो गया ये आजकल की लड़कियों को ?

इनके लिए किसी के भी सो जाना कोई अहमियत ही नहीं रखता 

क्या इनके लिए ये सब इतनी छोटी सी बात है 

बिलकुल मामूली सी 


नेहा हॉस्पिटल से डिस्चार्ज हो गयी थी 

पहले से बेहतर थी और वापिस होटल के रूम में ही शिफ्ट ह गयी थी 

सहगल साहब दिल्ली वापिस जा चुके थे 


" सर मुझे आपकी वो कहानी का एक रफ़ ड्राफ्ट आजकल में ही वेब टीम को अप्रूवल के लिए भेजना है "

" तो आज रात आप मेरे रूम में आ जाइये या मैं आपके रूम में आ जाती हूँ "

" ताकि आपकी वो शर्त ...... "

नेहा ने स्पष्ट शब्दों में मुस्कुराते हुए मोहन से कहा 

मोहन ने नेहा की बात को बीच में ही काट दिया और नज़रें चुराते हुए बोला 

" नहीं वो उसकी जल्दी नहीं है , पहले आपका अप्रूवल आ जाये "

" उसे हम फिर देख लेंगें "

इतना कहकर मोहन , नेहा से नज़रें चुराता हुआ उसके रूम से बाहर निकल गया 


अगले कुछ दिन नेहा दिन रात बस " जंगल कैट " पर ही काम करती रही 

जितना वो उस नॉवल को पढ़ती जा रही थी 

उतना ही वो मोहन की राइटिंग स्किल से प्रभावित होती जा रही थी 

उस नॉवल में एक ब्लॉक बस्टर मूवी के सारे एलिमेंट्स थे 

उसको पूरा विश्वास था की ये नॉवल तो वेब टीम हाथोंहाथ लेगी 

अगले सात दिनों की दिनरात की मेहनत के बाद आखिर नेहा ने उस नॉवल का एक ड्राफ्ट वेब टीम को भेज ही दिया 

और टीम का जवाब भी बस तीन दिनों में ही आ गया था 

वो बहुत खुश हुए थे और तुरंत कॉन्ट्रैक्ट साइन करना चाहते थे 


" सर वो वेब टीम का जवाब आ गया है "

" उन्हें कॉन्ट्रैक्ट साइन करना है और उससे पहले हमें भी अपना एक लीगल कॉन्ट्रैक्ट बनाना है "

" ताकि कोई फ्यूचर फसाद ना हो "

" तो सबसे पहले तो हम आज रात को आपकी पहली शर्त को पूरा कर लेते हैं "

" फिर आगे की बात कर लेते हैं "

नेहा के चेहरे पर एक शरारती मुस्कराहट थी 

" कल ही हम एक लीगल कॉन्ट्रैक्ट बना लेते हैं की अब से ये कहानी मेरी होगी 

इसपर आपका कोई राइट नहीं होगा "

" मैं इस कहानी को जैसे चाहूँ , जहाँ चाहूँ यूज़ कर सकती हूँ "

" आपको इसके बदले में पाँच लाख रूपये मिलेंगे "

इतना कहकर नेहा चुप हो गयी और मोहन के जवाब का इंतज़ार करने लगी 

" ठीक है आप कॉन्ट्रैक्ट ड्राफ्ट करा लीजिये "

और इतना कहकर मोहन फिर वहाँ से उठकर चला गया 

नेहा आश्चर्य से मोहन को जाते हुए देख रही थी , जैसे वो कोई अजूबा हो 

उसने मन ही मन सोचा " कैसा अजीब इंसान है यार ये ? "


आखिरकार अगले दो दिन बाद ही कॉन्ट्रैक्ट भी बन कर आ गया 

मोहन उस कॉन्ट्रैक्ट की एक एक लाइन को ध्यान से पढ़ रहा था 

ज्यादातर वहीँ आम सी लीगल बातें थी ,

जो गोल गोल घूम कर रिपीट हो रहीं थी की आज से इस नॉवल के सारे राइट्स नेहा के होंगें 

पर एक क्लोज पर आकर मोहन रुक गया 

उसमे लिखा था की अगले 2 महीनों तक रोजाना एक घंटा मोहन को नेहा के लिए देना होगा 

जिसमे नेहा नॉवल के बारे में उससे बात कर सके और उससे जानकारी ले सके 

" ये दो महीनों वाला क्लाज़ मुझे मंजूर नहीं है "

" मैं आपको अपने नॉवल के सारे राइट्स दे रहा हूँ "

" और क्या चाहिए आपको ? "

" या आपको एक खुद शब्द भी लिखना नहीं आता ?? "

" और बस नाम की ही राइटर हैं ??? "

इतना कहते कहते मोहन खुद काफी कड़वा हो गया था 

पर इसके विपरीत नेहा पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा 

वो शांत ही रही और संयत स्वर में बोली 

" नहीं लिखना तो मुझे भी आता है , पर ये नॉवल आपका बेबी है "

" तो जितना आप इस नॉवल को जानते हैं , उतना तो मैं कभी भी नहीं जान पाऊँगी "

" तो मेरी इस सक्सेस के लिए बहुत जरूरी है की आप मुझे अपना समय दें "

" वैसे चाहें तो आप अपने उस समय की कीमत भी मांग सकते हैं "

" एक घंटा रोज के बदले एक घंटा रोज़ "

" ठीक रहेगा ना ?? "

नेहा खिलखिलाकर हँस पड़ी और उसकी ये बात सुनकर मोहन जल - भुन  गया था 


मोहन ने नेहा का कॉन्ट्रैक्ट साइन कर दिया 

नेहा ने उसे एक पाँच लाख का PDC चेक दे दिया 

अब नेहा जुट गयी " JUNGLE CAT " की कहानी को लिखने के लिए 

वो उस कहानी में अपना रंग भरना चाहती थी , उस कहानी को अपने शब्दों में ढालना चाहती थी 

कहीं ना कहीं उसको मोहन की बात चुभ गयी थी 

" या आपको एक खुद शब्द भी लिखना नहीं आता ?? "

" और बस नाम की ही राइटर हैं ??? "

मोहन के ये शब्द उसको अपनी कमियों का एहसास दिला रहे थे 

पर वो जितना भी कहानी में बदलाव करना चाहती , वापिस वहीँ लौट आती 

उसको अपना किया बदलाव हर बार कहानी में पैबंद की तरह लग रहा था 

कई दिनों तक दिन- रात मेहनत करने के बाद भी वो कहानी में कुछ बदलाव नहीं कर पायी थी 


" सर आज रात मुझे आपकी हेल्प चाहिए होगी "

" कहानी कहीं अटक रही है , आपकी राइटिंग में काफी खामियां हैं "

" चलो वो तो मैं ठीक कर दूंगीं "

" पर उन्हें ठीक करने के लिए मुझे आपसे कुछ बात करना जरूरी है "

" आप रात नौ बजे आ जाइये "

नेहा इतनी इगोस्टिक थी की उसने मोहन को उलटा ये कहा की उसकी कहानी में गलतियां हैं 


नेहा महीनों बाद उस दिन ब्यूटी पार्लर गयी 

उसने " फर्स्ट नाईट पैकेज " लिया 

रात के नौ बजने वाले थे और वो बेसब्री से मोहन के आने का इंतज़ार करने लगी 





JUNGLE CAT | HINDI KAHANI | PART - 9

नेहा की बात सुनकर अब मोहन जी अपना आपा खो बैठे 

और चिल्लाकर बोले 

" यू प्लीज गेट आउट फ्रॉम माय केबिन "

और नेहा रोते हुए उनके केबिन से बाहर निकल गयी 


" सहगल सर आप तुरंत बिनसर आ जाइये "

मोहन ने सहगल साहब को फ़ोन मिलाकर तुरंत से बिनसर आने को कहा था 

असल में कल रात नेहा ने खूब सारी शराब के साथ नींद की गोलियाँ खा ली थी 

और सुबह जब रूम क्लीन करने के लिए क्लीनर उनके रूम पर गयी तो रूम का गेट खुला हुआ मिला

और नेहा अपने बिस्तर पर बेसुध पड़ी थी 

मोहन ने तुरंत उसे पास के हॉस्पिटल में शिफ्ट कराया और सहगल साहब को फोन कर दिया 


सात घंटे बाद ही सहगल साहब बिनसर में थे 

मोहन को हैरानी हुयी थी क्योंकि वो अपने ड्राइवर के साथ अकेले ही आये थे

जबकि उसने उन्हें बता दिया था की नेहा ने आत्महत्या की कोशिश की है 

फिर भी सहगल साहब का कोई और परिवार वाला यहाँ तक की नेहा का भाई या पति भी उनके साथ नहीं आये थे 

" मोहन जी , आपका बहुत बहुत शुक्रिया "

" वो पुलिस केस तो नहीं .....  "

सहगल साहब बार- बार मोहन जी का शुक्रिया कर रहे थे 

" सर यहाँ कुछ तो जान पहचान है ,

तो मैंने डॉक्टर सोनल को मना लिया की वो अगर वो suiside का नहीं बल्कि फ़ूड poisioning का केस बना सके "

" और इंस्पेक्टर प्रकाश ने भी अब तक कोई ऑफिसियल डॉक्यूमेंट नहीं बनाया है "

" पर अगर होश में आने के बाद नेहा ने कोई हरकत फिरसे की तो पुलिस केस जरूर बन ही जाएगा "

" आखिर डॉक्टर और पुलिस दोनों को भी अपनी पोजीशन को सेव करना है "

" और हाँ उन दोनों को ही कुछ तो कम्पनसेट करना पडेगा "

" आप तो जानते ही है की कैसे चलता है "


कुछ दिनों की भाग दौड़ के बाद सब सेटल हो गया था 

इंस्पेकटर प्रकाश को अपनी फी मिल गयी थी और डॉक्टर सोनल को उनके प्राइवेट हॉस्पिटल का मोटा बिल 

अब तक नेहा को भी होश आ चुका था 

सहगल साहब हर पल उसके साथ ही थे 

मोहन भी रोज हॉस्पिटल तो आता था पर नेहा से नहीं मिलता था , बाहर सहगल साहब से मिलकर ही चला जाता था 

पर एक दिन सहगल साहब ने ही मोहन को रिक्वेस्ट किया की नेहा उनसे मिलना चाहती है 

तब मोहन को ना चाहते हुए भी नेहा से मिलने जाना ही पड़ा 


" आपने मुझे याद किया था , नेहा जी "

मोहन ने मुस्कुराते हुए नेहा के कमरे में प्रवेश किया और साथ लाये खूबसूरत सफ़ेद फूलों का बुके उसकी ओर बढ़ा दिया 

" जी हाँ , मोहन सर , वो मुझे आपका शुक्रिया अदा करना था "

" आपने मेरी जान बचाई और मेरी इस बेवकूफी को छुपाया भी "

" thanks from bottom of my heart "

इतना कहकर नेहा ने वो मोहन का लाया सफ़ेद फूलों का बुके अपने सीने पर रख लिया था 

इसके बाद उन दोनों के बीच यहाँ वहाँ की बातें होती रही 

मोहन ने कई बार उठाने की कोशिश भी की थी 

पर नेहा ने हर बार कुछ न कुछ कहकर उसे रोक लिया था 

मोहन बार बार सोच रहा था की उसका फोन बजे , या कोई रूम में आये और वो वहाँ से निकले 

पर ऐसा कुछ नहीं हुआ 

आखिरकार मोहन के भाग्य से नर्स ने कमरे में प्रवेश किया 

वो नेहा को स्पॉन्ज देना चाहती थी 

पर नेहा ने उसको भी आधे घंटे बाद आने का कहकर टाल दिया था 

अब तक मोहन समझ गया था की कुछ है जो नेहा उससे कहना चाहती पर कह नहीं पा रही है 

" देखिये नेहा जी अगर आप कुछ कहना चाहती हैं तो साफ़ साफ़ कहिये "

" मुझे अब होटल जाना होगा , बहुत सारे काम पेंडिंग पड़े हैं "

अब तक मोहन का धैर्य जवाब दे चुका था 

" मैं आपका नॉवेल चाहती हूँ "

नेहा ने बगैर किसी लाग-लपेट के झटके से सीधा कहा 

नेहा की ये बात सुनकर मोहन सन्न रह गया 

पर कुछ क्षण शांत रहकर वो उठा और बगैर कुछ कहे बाहर जाने के लिए तेजी से गेट की तरफ बढ़ गया 

" सर आप ऐसे नहीं जा सकते 

आप जायेंगें , मैं पुलिस को बयान दे दूंगी की आपने मुझे आत्महत्या के लिए मज़बूर किया था "

नेहा की ये चीख सुनकर मोहन के कदम वहीँ जड़ हो गए 

घृणा से उसका चेहरा तमतमा गया , वो खड़ा खड़ा गुस्से से कांपने लगा था 

वो बहुत कुछ कहना चाहता था , पर चुप रह गया था 

उसे डर था की कहीं कोई गन्दी बात उसके मुँह से ना निकल जाये 

नेहा ही फिरसे बोलने लगी 

" मेरे पास कोई और रास्ता नहीं है सर 

मुझे ये करना ही पड़ेगा "

" या तो खुद मरना पड़ेगा या फिर जीने का एक चांस लेने के लिए आपको मजबूर करना पड़ेगा "

" अब आप ही बताओ आप क्या चुनते ??? "

" खुद की ज़िन्दगी को या मोरालिटी को "

भय , घृणा , क्रोध , मजबूरी , बेबसी 

ऐसे ही जाने कितने ही भाव लिए मोहन धीरे धीरे कदमों से चलता आया और फिरसे नेहा के सामने आकर बैठ गया 

वो गौर से देख रहा था उस लड़की को ,

जो इतनी एहसान फरामोश थी की अपनी ही जान बचाने वाले को झूठे केस में फँसाना चाहती थी 

जो इंसानियत और अच्छाई को बिलकुल भूल चुकी थी 

और इतनी स्वार्थी की बस अपने ही बारे में सोच रही थी 

अगले कुछ क्षण उस कमरे में एक मातम सा छा गया था , जैसे कोई मर गया हो 

" तुम्हे मेरी कहानी चाहिए ना "

" ले लो "

" पर मेरी एक शर्त ....  "

इतना बोलकर मोहन चुप हो गया था 

" आप कहिये मुझे आपकी हर शर्त मंजूर है "

नेहा ने मोहन का वाक्य ख़त्म भी नहीं होने दिया और बोल पड़ी 

मोहन कुछ क्षण तक शांत रहा और फिर उसने कहा 

" तुम्हें मेरे साथ सोना पड़ेगा " , मोहन गुर्राया 

" डन "  नेहा ने एक पल भी सोचे बिना जवाब दिया और मुस्कुराने लगी 

उसकी ये मुस्कराहट मोहन के दिल में शूल की तरह चुभ रही थी 




 

JUNGLE CAT | HINDI KAHANI | PART - 8

मोहन ने धड़कते मन से अपनी अलमारी की दराज़ खोली और अपनी डायरी निकालने के लिए हाथ बढ़ाया 

पर ... वहाँ कोई डायरी नहीं थी 

उसने बेचैन होकर पूरी ड्रावर ही खींचकर बाहर निकाल ली 

पर वहाँ कुछ होता तो मिलता 

मोहन ने घबराकर अपना सर पकड़ लिया और धम्म से बेड पर बैठ गया  


किर्रर्रर्रर्र .... किररररररररर 

दरवाजे पर लगातार बेल बज रही थी 

काफी देर के बाद भी जब बेल बजना बंद नहीं हुआ तो नेहा को मजबूरी में उठना ही पड़ा 

" गुड मॉर्निंग मैम " , सामने एक वेटर खड़ा था 

" सॉरी .... वो आपका फोन भी नहीं मिल रहा था तो देखने आना पड़ा की आप ठीक है ना "

" मैम ... वो मैनेजर साहब आपको बुला रहे थे "

" आप ब्रेकफास्ट के लिए लॉउन्ज में आ जाइये मैम "

" 12 बज रहें हैं मैम , फिर बुफे बंद हो जाएगा "


नेहा अभी भी नींद में ही थी ,

उसने वेटर की बात को सुना - अनसुना कर दिया और बिना कुछ जवाब दिये दरवाज़ा बंद कर लिया 

एक घंटे बाद गर्म पानी का एक लंबा शावर लेकर नेहा ब्रेकफास्ट लॉउन्ज में आ बैठी 

पूरा लॉउन्ज अब तक खाली हो चुका था , सब लोग ब्रेकफास्ट करके जा चुके थे 

उसको देखते ही एक वेटर उसकी तरफ लपका और उससे पूछकर उसका मनपसंद नाश्ता ला दिया 

अभी नेहा ने नाश्ता ख़त्म ही किया था ,

की वही वेटर जो सुबह उसके कमरे पर आया था , वो फिर से नेहा को बुलाने आ गया 

" की आपको सर बुला रहें हैं "

नेहा को अब जाकर ये एहसास हुआ की कुछ तो ख़ास बात जरूर है ,

जो मोहन उसे बार - बार बुला रहा है 


" आइये मैम , I HOPE YOU ENJOYED YOUR BREAKFAST "

मोहन ने अपनी व्यग्रता को छुपाते हुए खड़े होकर शिष्टाचारवश कहा 

नेहा चुपचाप मोहन के सामने वाली चेयर पर जाकर बैठ गयी और मोहन के कुछ कहने का इंतज़ार करने लगी 

" मैम , वो रूम नंबर 8 , जिसमे आप पहले थीं , उस रूम में अलमारी में मेरे कुछ पर्सनल कागज़ थे "

" पर अब वो वहाँ नहीं हैं "

" मैम , वो मेरे पर्सनल पेपर्स हैं , PLEASE GIVE THEM BACK TO ME "

नेहा ने नहीं सोचा था की मोहन इतना सीधे ही उससे पूछ लेगा 

नेहा कुछ क्षण चुपचाप बैठी रही और फिर उसे मानना ही पड़ा की 

मोहन जी के वो पेपर्स उसके पास ही है 

" मोहन सर , बस आपसे एक रिक्वेस्ट थी "

नेहा की ये बात सुनकर मोहन सतर्क हो गया की जाने ये लड़की अब क्या कहना चाहती है 

" मोहन सर , सबसे पहले तो मैं अपने कल रात के व्यवहार के लिए आपसे माफी चाहती हूँ "

इतना कहकर नेहा ने अपने दोनों हाथ जोड़ दिये और फिर आगे बोलने लगी 

" जैसा मैंने आपको कल ही बताया था की मैं एक राइटर हूँ 

काफी किताबें लिखी हैं 

पर इस वक्त बहुत परेशान हूँ 

एक वेब - सीरीज को लिखने का काम मिला है 

पर इस वक़्त मैं WRITERS BLOCK में फंस गयी हूँ , कुछ लिख नहीं पा रही हूँ 

मैं इसीलिए बिनसर आयी हूँ ताकि मोटिवेशन आये और मैं कुछ अच्छा लिख सकूँ "

" पर सब बेकार "

" माफी चाहती हूँ पर मैंने आपकी डायरी पढ़ी है 

आप सचमुच एक बहुत अच्छे राइटर हो 

मैं अपनी वेब सीरीज के लिए आपकी कहानी अडॉप्ट करना चाहती हूँ "

" मुझे इस काम के दस लाख रूपये मिलने थे 

पांच आपको मिल सकते हैं 

शर्त ये है की मैं आपकी कहानी JUNGLE CAT का एक रफ ड्राफ्ट चैनल को भेजूंगी 

उनका अप्रूवल आया , तो हमारी डील ऑन होगी 

नहीं आया तो कोई बात ही नहीं है 

बस एक चैलेंज है "

नेहा बेधड़क लगातार बोले जा रही थी 

पर अब कुछ रुक गयी थी और मोहन जी के चेहरे पर आये भावों को पढ़ रही थी 

" अब जब इतनी बातें की हैं तो ये चैलेंज क्या है वो भी बता दीजिये "

मोहन ने सरकास्टिक लहजे में पूछा 

" वो ... वो मोहन जी , आपको पैसे तो मिलेंगे बस क्रिएटिव क्रेडिट नहीं मिल पायेगा "

" वो कहानी मेरी होगी और मेरा ही नाम राइटर में आ पायेगा "

' हम एक लीगल डॉक्यूमेंट बना लेंगे "

नेहा ने धीरे से कहा और आँखे झुका कर बैठ गयी 


मोहन जी के केबिन में चुप्पी छा गयी थी 

कुछ देर के इंतज़ार के बाद खुद को संभाल कर मोहन जी बोले 

" देखिये नेहा जी एक तो आपने मेरी पर्सनल डायरी चुराई और फिर पढ़ी भी "

" और उसके बाद चोरी और सीनाजोरी ये है की आप मुझे ऐसी घटिया ऑफर दे रहीं हैं "

" आप कृपया करके मेरा सारा सामान मुझे अभी इसी वक़्त वापिस कीजिये "

" आप हमारे होटल की गेस्ट हैं , कोई और होता

और उसने ऐसी घटिया हरकत की होती तो जाने मैं उसके साथ क्या करता "

मोहन जी गुस्से में काँप रहे थे 

उनकी ऐसी हालत देखकर अब नेहा डर गयी थी 

वो मिमियाते हुए बोली 

" मोहन सर , मैं अभी आपके सारे पेपर्स और वो डायरी ला रही हूँ "

" आप प्लीज मुझे बस पाँच मिनिट दीजिये "

इतना कहकर नेहा अपने कमरे की तरफ भागी

और कुछ ही पलों बाद उसने वो डायरी और सारे पेपर्स लाकर मोहन जी के सामने रख दिये 

मोहन ने हड़बड़ाकर सारे पेपर्स और उस डायरी को चेक किया 

जैसे ठीक से जाँचना चाहते हों की कहीं कुछ नेहा ने छुपा तो नहीं लिया 

और फिर सारे कागज़ अपने ऑफिस केबिन की अलमारी में रखकर लॉक कर दिया 

और फिर बड़े रूखे स्वर में नेहा को वहाँ से चले जाने के कहा 

नेहा बेमन से उठकर केबिन के गेट तक गयी पर फिर लौट आयी और बोली 

" सर मैं अपनी इस हरकत के लिए आपसे फिर से माफ़ी मांगती हूँ "

" पर मैं बहुत मजबूर हूँ सर , मैं खुद जीवन के एक कठिन दौर में हूँ "

" मैं आपसे फिर से रिक्वेस्ट करुँगी की आप मेरी बात के बारे में सोचियेगा जरूर "

" ये मेरी ज़िन्दगी का सवाल है "

नेहा की बात सुनकर अब मोहन जी अपना आपा खो बैठे 

और चिल्लाकर बोले 

" यू प्लीज गेट आउट फ्रॉम माय केबिन "

और नेहा रोते हुए उनके केबिन से बाहर निकल गयी 


" सहगल सर आप तुरंत बिनसर आ जाइये "

अगली ही सुबह मोहन ने सहगल साहब को फ़ोन मिलाकर तुरंत से बिनसर आने को कहा था 

असल में कल रात ......


 

JUNGLE CAT | HINDI KAHANI | PART -7

तो अब उसने अपना मास्टरस्ट्रोक भी चल दिया 

" मैनेजर साहब आपके पास ब्रांडी होगी "

" मुझे ठण्ड लगती है ना , तो बस ब्रांडी से ही आराम आता है "

नेहा की बात सुनकर मोहन असहज हो गया था और बोला 

" मैम , ब्रांडी तो नहीं है , हाँ होटल बार में कुछ व्हिस्की ब्रांड्स होंगें ,

अगर आप को ठीक लगे तो "

" देखिये अगर आपके पास ब्लैक लेबल हो तो आप एक पेग मंगवा दीजिये "

नेहा ने ऐसे जताया ,

जैसे उसके पैरों के बिलकुल पास रखी ब्लैक लेबल की बोतल उसने देखी ही नहीं थी 

उसका ऐसा व्यवहार मोहन को और भी असहज कर रहा था 

उसे कहना ही पड़ा 

" मैम , ब्लैक लेबल तो यहाँ भी है 

पर आप अपने रूम में चलिए 

आपका स्नैक्स वहाँ पहुँच ही रहा होगा "

" मैं आपके लिए गर्म पानी में ब्लैक लेबल भी वहीँ भिजवाता हूँ "

" यहां तो आपको और भी ठण्ड लग जायेगी  "

अब तब नेहा वहाँ कम्फ़र्टेबल हो गयी थी , तो वो बोली 

" नहीं आप यहीं सर्व करवा दीजिये "

" और मेरा खाना भी यहीं मंगवा दीजिए "

" यहाँ ठण्ड तो है पर मुझे अच्छा लग रहा है "

नेहा ने अपने दोनों हाथो को आग में तापते हुए धीरे स कहा 

मोहन मरे मन से होटल बार और किचेन को walky talky पर निर्देश देने लगा 

कुछ ही देर में नेहा के लिए ड्रिंक और उसका स्नैक्स वहीँ सर्व हो गया 

उसके बाद मोहन वहाँ से जाने लगा तो नेहा ने उसे रोक लिया , वो बोली 

" मैनेजर साहब प्लीज एक मिनट और बैठिये 

मुझे आपसे कुछ जरूरी बात करनी थी "

मोहन को बेमन से फिर बैठना पड़ा और नेहा फिर से बोलने लगी 

" वैसे ये आपके होटल का नाम ..... JUNGLE CAT क्यों है ? "

नेहा ने एक ही सांस में पूरा गिलास शराब ख़त्म करते हुए कहा था 

मोहन हैरानी से उसकी इस हरकत को देखा 

" नहीं वैसे ही ख़याल आया था की आपके होटल का नाम ये JUNGLE CAT ..... 

कुछ अजीब नहीं है ? "

मोहन पहले तो नेहा की बात सुनकर कुछ चकराया , पर फिर संभल कर बोलने लगा 

" जी मैम वो यहां पहाड़ों में ये एक ख़ास तरह की बिल्ली पायी जाती है , जिसकी टाँगे काफी लम्बी होती हैं 

ये बहुत ही खतरनाक होती है , उसी को JUNGLE CAT कहते हैं "

" तो शायद होटल ओनर ने इसी लिए होटल का नाम JUNGLE CAT रख दिया होगा "

मोहन किसी भी तरह बस नेहा से पीछा छुड़ाना चाहता था 

" हूँ ...... बिल्ली के नाम पर , होटल का नाम "

" अचछा है ... बहुत अच्छा है "

इतना कहकर नेहा ने अब खुद ही नीचे रखी शराब की बोतल से ,

अपना गिलास आधा गिलास भर लिया और बाकी पानी मिला लिया 

मोहन उसकी इस हरकत से विचलित हो गया था 

पर नेहा तो जैसे अब इस स्तिथि का अब तक मज़ा लेने लगी थी 

उसने अपना एक हाथ तापते तापते फिर बोलना शुरू किया 

" आप भी पीजिये ना , देखिये वो ....... आपका गिलास टेढ़ा सा हो रहा है , गिर जायेगा "

नेहा अपनी ऊँगली से मोहन के गिलास की ओर इशारा करते हुए कहा 

मोहन ने आश्चर्य से अपनी चेयर के पीछे रखे ग्लास को देखा और फिर बेमन से उठा लिया 

" वैसे मैनेजर साहब एक बात बताइये 

ये बिनसर में ....... मुझे एक अच्छी कहानी कहाँ मिलेगी "

( नेहा तो ऐसे पूछ रही थी ,

जैसे किसी हेंडीक्राफ्ट आइटम के बारे में पूछ रही हो की वो पहाड़ की किस दुकान पर मिलेगी )

" अरे मैं तो आपको बताना ही भूल गयी 

इंट्रो भी नहीं दिया 

" I AM NEHA  ,   NEHA सहगल ,    THE WRITER "

नेहा ने हाथ मिलाने के लिए आगे बढ़ा दिया 

मोहन को भी मजबूरी में हाथ मिलाते हुए कहना ही पड़ा 

" जी मैं मोहन ... मोहन गुप्ता "

मोहन ने महसूस किया की नेहा के हाथ पर कुछ खाना लगा था , जो अब हाथ मिलाते हुए अब मोहन के हाथ पर भी लग गया था 

मोहन ने मुँह बनाते हुए टिशू से अपना हाथ पोंछा तो नेहा जोर जोर हँसने लगी 

" सॉरी ... सॉरी ... सॉरी मोहन जी "

" I AM REALLY वैरी सॉरी "

वो मैं हाथ से खाती हूँ ना , तो मेरा हाथ गंदा था , सॉरी मैंने ध्यान नहीं दिया "

" माफ़ कर दीजिये "

मोहन को " जी कोई बात नहीं "  कहना पड़ा 

" वैसे मैनेजर साहब मैं ना एक बड़ी राइटर हूँ "

" एक वेब सीरीज की कहानी लिख रही हूँ "

" इसी लिए आपके बिनसर में आयी हूँ "

" पर छे दिन हो गए हैं एक शब्द नहीं लिख पायी DAMMIT "

" आप कुछ आईडिया दीजिये , आप भी तो राइटर हैं ना "

" कुछ हेल्प कीजिये एक दूसरे राइटर की "

नेहा की ये "आप भी तो राइटर हो " वाली बात से मोहन जैसे हथ्थे से ही उखड़ गया 

वो एकदम स खड़ा हो गया और आवेश में बोलने लगा 

जी आपको किसी ने बिलकुल गलत कहा है ,

मैं कोई राइटर - वाइटर नहीं हूँ 

मैं तो बस बिनसर जैस एक टुच्चे से हिल स्टेशन के टुच्चे से होटल का टुच्चा सा मैनेजर हूँ "

" और दिखिए रात काफी हो गयी है , तो अब आप मुझे माफ़ कीजिये "

" और आप भी अब अपने रूम में जाकर आराम कीजिये  "

इतना कहकर मोहन बिना नेहा के किसी जवाब का इंतज़ार किये , तेज़ क़दमों से होटल के अंदर चला गया 

नेहा , मोहन के इस व्यवहार से बिलकुल विचलित नहीं हुयी और वहीँ बैठी रही 

उसने अपना तीसरा पेग भी सुकून से खत्म किया 

और फिर खाने का सामन और बची हुयी शराब की बोतल बगल में दबाये लड़खड़ाती हुयी अपने कमरे में आ गयी 


इधर मोहन परेशान सा अपने कमरे में चक्कर लगा रहा था 

जिस राज़ को इतने सालों तक उसने अपने सीने में छुपाये रखा था 

वो ये छे दिन से होटल में आयी एक अनजान टूरिस्ट नेहा को कैसे पता चल गया 

ये उसे बिलकुल समझ नहीं आ रहा था 


मोहन ने धड़कते मन से अपनी अलमारी की दराज़ खोली और अपनी डायरी निकालने के लिए हाथ बढ़ाया 

पर ... वहाँ कोई डायरी नहीं थी 



 

JUNGLE CAT | HINDI KAHANI | PART - 6


 अब नेहा का एक डर ये भी था की आज नहीं तो कल , मोहन को पता चल ही जाएगा 

की उसकी वो डायरी और बाकी पेपर उसके कमरे से गायब हैं 

और क्योंकि पिछले चार दिनों से वो रूम नेहा के पास था 

तो वो जल्द ही ये भी जान जायेगा की अब उसकी वो डायरी किसके पास होगी 


नेहा का आज का पूरा दिन ऐसे ही सोचते सोचते निकल गया था 

रात गहरी होती जा रही थी ,

और वो लगातार शराब पिये जा रही थी 

मोहन की डायरी और सारे फोटो ... पेपर्स ... लेटर्स बिस्तर पर बिखरे पढ़े थे 

नेहा खुद एक राइटर थी और दूसरों का लिखा भी बहुत पढ़ती थी 

उस स्टैण्डर्ड से परखे तो उस डायरी में लेखन का स्तर बहुत अच्छा था 

इधर वो खुद भी पिछले कुछ सालों से अपने निजी जीवन में एक तूफ़ान में घिरी हुयी थी 

नेहा को बचपन से लिखने का शौक था 

स्कूल कॉलेज में अक्सर उसका लिखा न्यूज़ पेपर्स और मैगज़ीन्स में छपता रहता था 

उसका लिखा पहला नॉवल भी काफी अच्छा रहा था ,

पर उसके लिखे पिछले 2 नॉवल की बहुत आलोचना हुयी थी 

कुछ क्रिटिक्स ने तो उसके उन दोनों नॉवल्स को रद्दी भी कहा था 

कुछ सालों पहले ही उसने अपने पिता सहगल साहब की मर्ज़ी के विरुद्ध रोहित से शादी की थी 

और फिर पापा से लड़ झगड़ कर जायजात में अपना हिस्सा भी ले लिया था 

पर उसकी और पति रोहित की शराब , गैंबलिंग और बेटिंग की आदत के चलते वो अब अपना सब कुछ गंवा चुकी थी 

ये सब हुआ तो रोहित और उसके बीच भी अब रोज झगडे रहने लगे थे 

तो आज वो रोहित से भी अलग होकर एक फ्लैट में किराये पर रहती है 

और अब वो फिर से रुपयों पैसों के लिए पापा सहगल साहब की दया की मोहताज़ हो गयी थी 

अब बड़ी मुश्किल से उसे सहगल साहब की सिफारिश पर उसे एक वेब सीरीज लिखने का काम मिला था 

वो पिछले एक महीने में चैनल को अपने लिखे कई रफ़ ड्राफ्ट्स भेज चुकी थी 

पर चैनल टीम को उसका लिखा कुछ भी पसंद नहीं आ रहा था 

ये काम भी उसके हाथ से बस निकलता सा ही लग रहा था 

चैनल ने तो दूसरे writers के साथ बात करना भी शुरू कर दिया था 

इसी insecurity के चलते उसकी शराब लगातार बढ़ती जा रही थी और तबियत गिरती जा रही थी 

उसका साइकोलॉजिस्ट भी उसे बार बार दिल्ली से दूर किसी हिल स्टेशन पर घूमने

और अपने माहौल को बदलने की बार बार सलाह दे रहा था 

इसी पशोपेश में उसने भी लास्ट मिनिट में फॅमिली के बिनसर घूमने के प्रोग्राम में खुद को डाल लिया था 

पापा सहगल साहब तो उसके साथ आने से खुश थे ,

पर भैया और भाभी मरे मन से ही उसके साथ बिनसर आये थे 

उनकी नेहा के साथ बिलकुल नहीं बनती थी 

पर सहगल साहब का विरोध करने की उनमे अभी हिम्मत नहीं आयी थी 

तो मन मारकर उन्हें नेहा को झेलना ही पड़ा 


नेहा आज रात काफी शराब पी चुकी थी 

अब तो रूम में शराब भी ख़त्म हो गयी थी 

उसने सोचा किसी वेटर को भेजकर मंगवा ले पर अब इतनी आधी रात को दस किलोमीटर कौन जायेगा 

उसने होटल बार में फोन किया तो शराब के रेट सुनकर ही उसकी हिम्मत जवाब दे गयी थी 

सहगल साहब उसका ट्रिप का बजट पहले ही बना गए थे 


शॉल लपेट कर नेहा होटल के पीछे वाले लॉन में चहलकदमी करने निकल आयी 

बाहर निकलते ही हड्डियों को काटने वाली सर्द हवा ने उसका स्वागत किया 

वो घबरा कर अपने कमरे की ओर वापिस मुड़ने ही वाली थी की 

लॉन में दूर दूसरी तरफ जल रहे अलाव पर उनकी निगाह पड़ी 

उस धुंध में भी एक निगाह में ही दो चीज़ें उसे साफ़ साफ़ दिख गयीं थी 

एक इंसान जो हाथ में शराब का गिलास लिए अलाव के बहुत नज़दीक बैठा था 

और एक ब्लैक लेबल की तीन चौथाई भरी बोतल जो अलाव के पास घास में शान से सीना तान कर खड़ी थी 

उस देखते ही नेहा के कदम खुद ही उस बोतल की तरफ खींचने लगे थे 


" मैनेजर साहब .. वो किचेन बंद हो गया है क्या ? "

नेहा ने अलाव के पास जाकर एक बहुत ही बेमतलब का सा सवाल किया था 

मोहन ने अचकचा कर नज़र उठा कर नेहा को देखा और फिर झटके से खड़ा हो गया और बोला 

" नो मैम , किचेन तो सारी रात चलता है "

" हाँ इस वक़्त मेनू लिमिटेड ही होता है "

" आप मुझे बताइये , मैं कोशिश करता हूँ "

" जो बोलेंगी कुछ मिनटों में आपके रूम में आ जायेगा "

नेहा के इस वक़्त वहाँ आने से मोहन असहज हो गया था 

वो किसी भी तरह नेहा को यहाँ से जल्दी से जल्दी भेजना चाहता था 

पर नेहा को शराब पीनी थी और वो बार में जाकर तो पि नहीं सकती थी 

" आप ऐसा कीजिये एक चिल्ली मशरूम और एक तंदूरी आलू करवा दीजिए प्लीज "

" और हाँ , आपको बुरा ना लगे तो मैं कुछ देर यहीं बैठ जाऊँ ? "

नेहा की बात सुनकर मोहन हैरान परेशान सा हो गया था 

वो कुछ जवाब देता पर उससे पहले ही उसने देखा की नेहा बगैर मोहन के जवाब का इंतज़ार किये ,

`सामने वाली कुर्सी पर बैठ गयी थी और अलाव पर हाथ तापने लगी थी 

मोहन ने बेमन से खड़े खड़े ही walky - talky पर किचेन में नेहा का आर्डर प्लेस किया 

और कुछ क्षण ऐसे ही चुपचाप खड़ा इंतज़ार करता रहा की नेहा अब उठकर चली जायेगी 

नेहा सब कुछ मह्सूस करके भी अनजान बन रही थी , बैठी रही 

कुछ क्षण के इंतज़ार के बाद मोहन भी बेमन से बैठ गया

और चुपके से उसने अपना शराब का गिलास अपनी कुर्सी के पीछे कर दिया था 

नेहा ने उसकी ये हरकत देख ली थी , पर उसने ऐसे जताया जैसे कुछ हुआ ही नहीं 

" आपका आर्डर आपके रूम में ही भिजवा दिया है मैम ? "

" आप अपने रूम में चलकर रेस्ट कीजिये , यहां ठण्ड बहुत है "

" आप बीमार हो जायेंगी "

मोहन ने फिर से नेहा को वहाँ से टरकाने की नाकाम कोशिश की थी 

 


JUNGLE CAT | HINDI KAHANI | PART - 5


ये लव लेटर किसी गुमनाम लड़की ने मोहन नाम के लड़के को लिखा था 

लेटर के आखिर में लिखा था 

" तुम्हारी , सिर्फ तुम्हारी

           JUNGLE CAT


उस सारी रात नेहा बस करवटें बदलती रही , वो सोचती रही 

उस डायरी में लिखे एक एक शब्द के बारे में ,

वो लव लेटर्स , वो फोटो .. किसके थे ... किसने लिखे ... और कब 

उन सारी चीज़ों का रहस्य नेहा को अपने रहस्य में घेरे जा रहा था 

वो कहानी का एक सिरा पकड़ती तो दूसरा उससे छूट जाता था 

वो अपने मन में उन सब चीज़ों को मिलाकर एक कहानी बुनती ... गढ़ती ,

तो दूसरे ही पल उसे कोई और बात याद आ जाती , जो उसकी बुनी हुयी कहानी में बिलकुल भी फिट नहीं बैठती थी 

ऐसे ही उदेड़बुन में वो कब सपनों के संसार में पहुँच गयी , उसे बिलकुल पता नहीं चला 

अपने सपनों में वो स्वयं को एक घने भयानक अँधेरे जंगल में अकेले पा रही थी 

जहाँ वो बदहवास सी एक कच्चे , पथरीले रास्ते पर बदहवास भागी चली जा रही थी 

वो रुकना चाहती थी पर रुक नहीं पा रही थी , ये जैसे उसके वश से बाहर था 

वो पगडडंडी इतनी छोटी सी थी और एक तेज़ ढलान थी , सो वो बस नीचे को लगातार गिरे जा रही थी 

आस पास उगे वो जंगली पेड़ और उनकी शाखाएँ उसके भागते हुए शरीर को लगातार लहुलहान कर रहे थे 

उसके कपड़े पूरे फट चुके थे और उसके शरीर का साथ छोड़ चुके थे 

नंगे पैरों से भी लगातार खून बह रहा था 

उसके चारों ओर बस अँधेरा था और दूर - पास से हर तरफ से जंगली जानवरों की डरावनी आवाज़ें आ रही थी

उसे दूर-दूर तक कोई रौशनी नहीं दिखाई दे रही थी 

की अचानक ....... 

अचानक उसका पैर कहीं अटका और उसने खुद को उसी ढलान पर लुड़कते हुए , गिरते हुए महसूस किया 

छपाक ...... 

और कुछ ही क्षणों में उसने खुद को गहरे पानी में डूबते हुए पाया 

उसने खुद को बचाने के लिए खूब हाथ पैर मारे पर ... पर वो लगातार गहरे और गहरे धँसती जा रही थी 

कोई शक्ति थी , जो उस नीचे और नीचे खींचे जा रही थी 

उसकी सांस लगातार टूट रही थी , वो जीने को छटपटा रही थी 

धड़ाम .......... एक तेज़ आवाज़ 

और फिर नेहा हड़बड़ा कर उठ बैठी , तो उसने खुद को बिस्तर से नीचे फर्श पर पाया 

इतनी सर्दी में भी वो पसीने में तरबतर थी 

वो आँखें फाड़े फाड़े यहाँ वहाँ हर तरफ देख रही थी 

अपने पूरे शरीर पर हाथ फिराकर खुद को महसूस कर रही थी , सब ठीक था 

उसने बारी बारी से अपने दोनों पैरों के तलुओं को पलट कर देखा , सब ठीक था 

सब ठीक था , सब अपनी जगह ठीक ... सही 

निसंदेह सपना था ... एक बुरा सपना 


गर्म पानी का एक लंबा शावर लेने के बाद नेहा अब कुछ बेहतर फील कर रही थी 

वो नीचे ब्रेकफ़ास्ट के लिए होटल लॉउन्ज में आयी 

और फिर जब शान्ति से बैठकर ठन्डे दिमाग से उसने सोचा तो उसे एक ही व्यक्ति समझ आया ,

जो उसकी जिज्ञासा को शांत कर सकता था , और वो थी 

सुरभि ... जी सुरभि नौटियाल , होटल रिसेप्शनिस्ट 


" सुरभि जी , ये रूम नंबर 8 में मुझसे पहले कौन कस्टमर रुके थे ? "

नेहा ने ये पूछ तो डाला पर उसको खुद समझ नहीं आ रहा था की वो ये क्या कर रही है 

सुरभि उसे क्यों बताएगी की उससे पहले उस रूम में कौन रुका था 

पर जब सुरभि ने बिना झिझक उसे बताया की ये रूम नंबर 8 तो होटल मैनेजर मोहन जी का पर्सनल रूम है 

और पहले कभी भी किसी और टूरिस्ट को नहीं दिया गया है और फिर और भी बाकी की सारी कहानी 

की किन परिस्तिथियों में वो रूम नेहा और उनकी कसिन को रहने को मिला 

सहगल साहब और मोहन जी का वो आर्गुमेंट ... और फिर वो मोहन जी का अपना रूम उनको दे देना 

इधर सुरभि लगातार सारी कहानी बताती जा रही थी ,

और उस कहानी को सुनते - सुनते नेहा अपने ही ख्यालों में खोई जा रही थी 

अब उसे मह्सूस हो रहा था की वो डायरी में जो लव लेटर उसे मिला था , उसका मोहन 

और इस होटल JUNGLE CAT का मैनेजर मोहन एक ही आदमी थे 

अचानक नेहा की निगाह दूर पार्किंग में खड़े मोहन पर पड़ी 

वो किसी टूरिस्ट से कुछ बात कर रहे थे 

मोहन का साधारण सा व्यक्तित्व था 

ना ज्यादा लम्बा कद , बल्कि देखने में वो थोड़ा सा मोटा ही था 

सांवला रंग ... खिचड़ी बाल 

ऐसा कुछ भी ख़ास नहीं था मोहन में , जो उस लव लेटर वाले मोहन से मेल खाता हो 

नेहा वहीँ रिसेप्शन काउंटर पर खड़ी दूर से मोहन को देखते हुए सोच रही थी की 

" क्यों कोई लड़की इस इंसान से ... इस बदसूरत इंसान से इतना प्यार कर सकती है ? "

" ऐसा है क्या इस आदमी में ???? "


आज का पूरा दिन नेहा इसी उदेड़बुन में रही थी 

काफी सोचने के बाद इतना तो उसे अब यकीन करना ही की पड़ा की वो लव लेटर वाला मोहन 

और ये होटल मैनेजर मोहन एक ही व्यक्ति हैं 

वो रूम नंबर 8 होटल मैनेजर मोहन का अपना रूम था 

उसको दिए जाने से पहले वो रूम साफ़ तो किया गया , पर वो डायरी गलती से वहीँ रह गयी थी 

और जो अब नेहा को मिल गयी 

सही तो यही होता के नेहा वो डायरी वहाँ से नहीं लेती 

पर नेहा ठहरी खुद एक राइटर , हमेशा नयी कहानियों की खोज में रहने वाली 

तो जिज्ञासावश उसने वो डायरी ले ली 

और अब चूँकि मोहन उस रूम में फिरसे शिफ्ट कर गया होगा 

तो अब नेहा ना तो वापिस उस रूम में फिरसे जा सकती थी 

तो वो वो डायरी भी वहाँ वापिस नहीं रख सकती थी 

उसपर अब नेहा का एक डर ये भी था की आज नहीं कल , मोहन को पता चल ही जाएगा 

की उसकी वो डायरी और बाकी पेपर गायब हैं 

और क्योंकि पिछले चार दिनों से वो रूम नेहा के पास था 

तो वो जल्द ही ये भी जान जायेगा की अब वो डायरी किसके पास होगी 







 

JUNGLE CAT | HINDI KAHANI | PART - 4


 

आखिरकार सहगल साहब के दिल्ली वापिस जाने का दिन भी आ ही गया 

ऐसे ही हँसते - खेलते , बिनसर घूमते घामते अगले चार दिन भी बीत गये 

उनकी फॅमिली ने यहां बिनसर में अच्छा वक़्त बिताया था , और वो सब बेहद खुश थे 

इस बीच सहगल साहब ने दो तीन बार मोहन से बात करने की कोशिश भी की 

पर हर बार मोहन ने व्यस्तता दिखाते हुए सम्मानपूर्वक माफ़ी मांग ली 

और उन्हें टाल दिया 


चेक आउट के टाइम सहगल साहब ने अपना फाइनल बिल देखा ,

उस बिल में रूम नंबर 8 का कोई चार्ज नहीं जुड़ा था 

तो वो रिसेप्शनिस्ट सुरभि से बोले 

" सुरभि बेटा आप मेरे बिल में वो रूम नंबर 8 का रूम चार्ज भी जोड़ दो "

" इस तरह बगैर बिल दिए .... मुझे ठीक नहीं लग रहा "

सहगल जी की बार सुनकर सुरभि मुस्कुरा दी और बोली 

" सर , रूम नंबर -8 तो मोहन सर का अपना पर्सनल रूम था "

" वो तो उस दिन जब आपके साथ मोहन सर का झगड़ा हो गया "

" अब मोहन सर आपको रूम नंबर 7 तो दे नहीं सकते थे "

" मजबूरी आयी तो मोहन सर ने आपको अपना खुद का पर्सनल रूम ही खाली करके आपको दे दिया "

" और पिछले चार दिनों वो खुद स्टाफ क्वार्टर में स्टाफ के साथ रह रहें हैं "

" मैंने आज सुबह आपका बिल बनाते हुए मोहन सर से पूछा भी था ,

की क्या आपके बिल में रूम नंबर 8 का कोई चार्ज जोड़ना है 

तो वो बोले थे की 

" वो रूम नंबर 8 मेरा पर्सनल रूम है , उसके पैसे लेने का तो सवाल ही नहीं उठता "


सुरभि की बात सुनकर सहगल साहब अब और भी चकरा गए 

वो सुरभि से बहुत कुछ पूछना चाहते थे , समझना चाहते थे 

पर अब कुछ भी समझने समझाने का समय नहीं बचा था 

सुरभि होटल रिसेप्शन पर उनके अलावा कई और टूरिस्ट्स का चेक आउट प्रोसेस कर रही थी 

और इधर उन्हें और उनके पूरे परिवार को भी वापिस दिल्ली के लिए निकलना था 

सारा सामान उनकी इन्नोवा में लोड हो गया था और ड्राइवर सुभाष उनके इंतज़ार में था 

सब जा रहे थे , केवल सहगल साहब की राइटर बेटी नेहा कुछ और दिनों के लिए बिनसर में ही रुक रही थी

नेहा को अपने नए नावेल के लिए कुछ रिसर्च करनी थी  


इसी बीच रिसेप्शनिस्ट सुरभि ने सहगल साहब का फाइनल बिल बना दिया 

" सर ये आपका आज तक का कम्पलीट बिल है "

" आप प्लीज अपना बिल ठीक से चेक कर लीजिये "

" आपकी बेटी नेहा के लिए आज से मैंने दूसरा रूम अलॉट कर दिया है "

" ताकि मोहन सर अब अपने रूम में फिरसे वापिस रह सकें "

" आप निश्चिन्त रहिएगा सर , नेहा जी यहाँ कोई तकलीफ नहीं होगी "


दिल्ली वापिस लौटते हुए सहगल साहब लगातार मोहन के बारे में ही सोच रहे थे 

उनको लग गया था की इस इंसान मोहन की कोई तो इंटरेस्टिंग कहानी है 


सहगल साहब की बेटी नेहा , रिसेप्शनिस्ट सुरभि से बात कर रही थी 

" सुरभि जी मेरा नया रूम कौनसा है ? "

" PLEASE GIVE ME MY NEW ROOM KEY "

" और हाँ , मैं एक बार रूम नंबर 8 में जाकर चेक कर रही हूँ "

" कहीं हमारा कोई सामान तो नहीं रह गया रूम में "

" मेरी कसिन सुमन बहुत लापरवाह है , हर ट्रिप पर कुछ ना कुछ भूल जाती है "

इतना कहकर नेहा खिलखिलाकर हँस दी 

और फिर सुरभि से अपने नए रूम की की लेकर वो रूम नंबर 8 की तरफ बढ़ गयी 


नेहा रूम नंबर 8 बहुत ध्यान से चेक कर रही थी  

उसे बेडसाइड की ड्रावर में सुमन का मोबाइल चार्जर मिला और बेड के नीचे उसकी नयीं स्लिपर्स 

और तो और बाथरूम में उसे सुमन की एक टी - शर्ट और मेकअप का कुछ सामान भी मिला 

नेहा मन ही मन गुस्से से बुदबुदा रही थी 

" कितनी लापरवाह लड़की है ये यार , ITS TOO BAD .. TOO TOO BAD "

आखिर में नेहा ने रूम की बड़ी अलमारी की ड्रावर को चेक करने के लिए ,

गुस्से में उसे झटके से पूरा ही बाहर निकाल लिया ,

तो पाया की उस ड्रावर में पीछे की तरफ ,

उसे एक बड़ी सी , पुरानी सी मोटी डायरी पड़ी थी ,

जिसके बीच में काफी सारे लूज़ कागज़ और मुड़े तुड़े से कुछ फोटो भी पड़े थे 

उस डायरी को देखकर नेहा आश्चर्य चकित रह गयी 

ये डायरी उसकी नहीं थी ,

और उसकी कसिन सुमन का तो लिखने - लिखाने से दूर - दूर तक कोई लेना - देना नहीं था 

तो ऐसी कोई भी डायरी सुमन की होना तो नामुमकिन सा था 

मगर जाने क्यों नेहा ने चुपचाप वो पुरानी डायरी अपने हैंडबैग में डाली 

और फटाफट रूम नंबर 8 से बाहर निकल गयी 


रात को अपने बिस्तर पर लेटे लेटे नेहा ने उस पुरानी सी डायरी का पहला पन्ना पलटा

पहले पेज पर बीचोबीच लिखा था " JUNGLE CAT " 

ये नाम पढ़कर नेहा थोड़ा चौंकी और मन ही मन हँसी 

" अरे कहीं इस डायरी में  " HOTEL JUNGLE CAT " का डेली का हिसाब - किताब तो नहीं लिखा है "

" और मैं इसे कोई सीक्रेट डायरी समझकर उठा लाई हूँ "

" और अंदर मुझे होटल का आते - दाल - चावल का हिसाब - किताब पढ़ने को मिले "

पर उस डायरी के दो - तीन पन्ने पढ़ते ही नेहा को ये एहसास हो गया की ,

ये डायरी तो किसी बेहतरीन राइटर का नायाब नॉवेल है 

नेहा जैसे जैसे उस नॉवेल को पढ़ रही थी ,

वैसे वैसे उसका आश्चर्य बढ़ता जा रहा था 

तभी डायरी के बीच से निकलकर एक पुराना मुड़ा तुड़ा सा पन्ना नेहा के बिस्तर पर फिसल गया 

नेह ने लपककर उस पन्ने को उठा लिया 

उस मुड़े तुड़े से पुराने पन्ने की पहली लाइन में एक नाम पढ़कर नेहा चौंक गयी " मोहन "

" मोहन ... मोहन .... मोहन ... "

नेहा सोच में पड़ गयी की ,

ये "मोहन" कहीं होटल का मैनेजर मोहन है या फिर ये केवल एक इत्तेफ़ाक़ है 

नेहा ने उत्सुकता में पूरा लेटर पढ़ डाला 

ये लव लेटर किसी गुमनाम लड़की ने मोहन नाम के लड़के को लिखा था 

लेटर के आखिर में लिखा था 

" तुम्हारी , सिर्फ तुम्हारी

           JUNGLE CAT "




JUNGLE CAT | HINDI KAHAANI | PART - 3


सहगल साहब चुपचाप आकर मोहन के बराबर वाली कुर्सी पर बैठ गये 

भयंकर सर्दी , हड्डियां कंपकंपा देनी वाली ठंडी तेज़ हवा , उसपर अलाव की तेज़ गर्म आंच 

और उसपर मोहन के फोन पर बज रही ग़ज़ल 

" अबके हम बिछड़े , तो शायद कभी ख्वाबों में मिलें 

जैसे सूखे हुए कुछ फूल किताबों में मिलें "

अहमद फ़राज़ SAAHAB की शायरी और मेहदी हसन साहब की मखमली आवाज़ 

सहगल साहब सख्त आदमी थे 

पर वहाँ उस माहौल में जाने क्या था की अचानक काफी भावुक हो गये 

उन्होंने पास बैठे मोहन के कंधे पर हाथ रखा और भीगे हुए स्वर में बोले 

" I AM SORRY

REALLY SORRY "

सहगल साहब ने मोहन से माफ़ी क्या मांगी , मोहन तो जैसे खुद पानी - पानी हो गया 

उसने मोबाइल पर बज रही ग़ज़ल की आवाज़ को धीमा किया और वो भर्राये गले से बोला

" सहगल साहब आप प्लीज माफ़ी ना मांगें , आप बड़े हैं ,

कुछ कड़वा कह भी दिया तो कोई बात नहीं "

" वैसे आपकी फॅमिली खुश है ना हमारे होटल में ? '

" कोई तकलीफ हो तो बताइयेगा "

" और हाँ आपको ऐसे ... इतनी सर्दी में बगैर शाल के बाहर नहीं आना चाहिए था ,

आप ये कम्बल ले लीजिये "

और इतना कहते हुए मोहन ने पास रखा एक कम्बल उठाया और उठकर खुद ही सहगल साहब को ओढ़ा दिया 

सहगल साहब सोच रहे थे की ये कैसा इंसान है ?

इसको मैंने इतना जलील किया पर इसने बुरा भी नहीं माना 

और उलटा इतना महँगा रूम फ्री में दे दिया और अब और सेवा पूछ रहा है 

ये इंसान आखिर है क्या ??

सहगल साहब अभी भी जैसे अपनी सोच में ग़ुम थे की मोहन फिर बोल पड़ा 

" सर आप ड्रिंक लेंगे ?? "

" वैसे सर्दी काफी ज्यादा है , तो ब्लैक लेबल ठीक रहेगा "

सहगल साहब ने हाँ में गर्दन हिला दी

और मोहन ने WALKY - TALKY पर अंदर होटल किचेन में शेफ को और गर्म स्नैक्स लाने के लिए बोल दिया 

और होटल बार को सहगल साहब के लिए ड्रिंक्स लाने के लिए 

" आप अच्छे इंसान हैं मोहन जी "

सहगल साहब की इस बात पर मोहन ने शरारती अंदाज़ में बस इतना कहा 

" जी मुझे मालूम है  "

मोहन के इतना कहने से ही जैसे उन दोनों के बीच की वो सर्द बर्फ पिघल गयी हो 

वो दोनों देर तक इस बात पर ठठ्ठा कर हँसते रहे 

और फिर ड्रिंक , गरमागरम स्नैक्स और बातों का वो दौर उस रात अगले दो घंटे चला 


अगले दिन सुबह सहगल साहब नाश्ते के बाद होटल लॉबी आकर बैठ गए थे 

पूरी लॉबी टूरिस्ट्स से खचाखच भरी हुयी थी 

कोई हनीमून कपल , तो कोई उनकी तरह के बूढ़े लोग 

कोई बहुत ही शांत लोग तो कोई एकदम लाऊड 

किसी का चेक इन , तो किसी का चेक आउट 

किसी का बिल पेमेंट , तो किसी का " मेरे बिल में एक रोटी के पैसे ज्यादा लगे हैं " वाला हसाउ आर्गुमेंट 

तो किसी का खुद आगे बढ़कर बताना की उनका बिल ज्यादा होना चाहिए , शायद कुछ जुड़ने से छूट गया है 

हर ग्रुप हर परिवार की अलग ही स्टोरी थी यहाँ 

उनकी खुद की पूरी फॅमिली आज ट्रैकिंग करने चली गयी थी 

पर वो खुद होटल में ही रुक गए थे 

पिछली सारी रात से लेकर अब तक वो यही सोचते रहे थे की इस इंसान मोहन की कोई तो कहानी है 

कुछ तो अलग हुआ है इसकी लाइफ में 

रात को ड्रिंक करते करते भी उसने घुमा - फिरा कर कई बार मोहन को कुरेदने की कोशिश की थी 

पर मोहन हर बात को मज़ाक में टालता रहा था 

तभी उन्हें ख़याल आया की रात को उनकी ड्रिंक का बिल उन्होंने साइन नहीं किया है 

तो जैसे ही होटल काउंटर कुछ खाली हुआ तो वो काउंटर पर पहुँच गये और बोले 

" देखिये मेरा कल रात का 4 लार्ज ब्लैक लेबल ड्रिंक्स और स्नैक्स का बिल होगा "

" दे दीजिये साइन कर देता हूँ "

काउंटर पर कड़ी एक नौजवान लड़की ने अपने कंप्यूटर पर कुछ चेक किया और बोली 

" सर आप सहगल सर हैं क्या ? "

सहगल साहब ने मुस्कुराकर हां में गर्दन हिलाई 

" अरे सर आपके इस बिल के चक्कर में आज सुबह सुबह बहुत डाँट खाई मैंने "

इतना कहकर वो लड़की खुलकर मुस्कुराई 

" नहीं बेटे आपको डाँट क्यों पड़ेगी , कल रात काफी हो गयी थी "

" किसी ने मुझे बिल दिया भी नहीं , वरना मैं तो रात को ही साइन कर देता "

" और चलो अब तो मैं आ ही गया हूँ , आप अभी साइन करा लो "

सहगल साहब ने इतना कहा तो अब तो वो रिसेप्शनिस्ट लड़की और तेज हॅसने लगी 

" अरे नहीं सर , आप गलत समझ रहें हैं "

" डाँट तो मुझे सुबह पड़ चुकी 

पर बिल साइन ना कराने के लिए नहीं , बल्कि आपका बिल बनाने के लिए "

" मैं तो रोज सुबह आती हूँ तो बार का हिसाब चेक करती हूँ और बिल बनाती हूँ "

" आज आते ही मैंने आपका बिल बनाया और आपसे साइन कराने बस अभी वेटर को भेज ही रही थी 

की सर आ गए "

" और फिर वो जो चिल्लाये हैं मुझपर ... " 

" गज़ब ...

दो सालों से यहाँ " JUNGLE CAT " में काम कर रही हूँ ,

मैंने तो आज सुबह पहली बार सर को इतने गुस्से में देखा है "

" कहने लगे -

उन्होंने मेरे साथ ड्रिंक किया है ना , तो वो मेरे मेहमान हुए ना  ,

तो तुमने उनके नाम में बिल क्यों बनाया , तुम उनका बिल भी मेरे अकाउंट में लिखो "

" मैंने कहा भी - सर 4800 /- का बिल है , आप क्यों अपने अकाउंट में लेते हो ..... "

इतना कहते कहते अब वो रिसेप्शनिस्ट रुक गयी 

शायद उसे लगा की वो कुछ ज्यादा बोल गयी है और उसे कहीं और डाँट ना पड़ जाये 

" सर आपके लिए कुछ चाय - कॉफ़ी मँगवाऊं ? "

वो फिर धीरे से बोली 

सहगल साहब ने उस रिसेप्शनिस्ट का नेमटेग देखा " सुरभि नौटियाल "

" थैंक्स सुरभि "

और वो फिर आकर होटल लॉबी के उसी सोफे पर बैठ गये और आते जाते टूरिस्ट्स को ताकने लगे 


 

Friday, January 26, 2024

तुम आज भी उतनी ही हसीन हो | HINDI KAVITA

 


" मुझको मालूम है ,

तुम आज भी उतनी ही हसीन हो


ये तो मेरी नज़र है जो धुंधलाई है

समय बदलता है पर भला

चाँद,   तारे,   नज़ारे भी कभी बदले है 

मैं इंसान हूँ ,सो बदला हूँ

ये मेरी बौनाई है 


मुझको मालूम है 

तुम आज भी उतनी ही हसीन हो "

( मनोज गुप्ता )

#man0707

manojgupta0707.blogspot.com



JUNGLE CAT | HINDI KAHANI | PART - 2


एक घंटे बाद तो नहीं पर शाम की चाय तक सहगल फॅमिली को उनको तीसरा रूम भी मिल गया था 

तब कहीं जाकर सहगल साहब ने चैन की सांस ली 

उन्होंने अपनी बेटी नेहा और भतीजी सुमन को उस नए मिले रूम में चेक इन करा दिया 

पर जब वो दोनों बच्चियों से मिलने उनके रूम पर गए तो हैरान रह गए की ये वो रूम नहीं था ,

जो उन्होंने सुबह देखा था 

उन्होंने मन ही मन मोहन को एक और मोटी गाली दी 

" साला , भेंचो कितना झूठा है 

ये तो रूम नंबर -8 है , मैं तो सुबह इसके सामने वाला रूम नंबर -7 देखा था 

इसका मतलब सुबह दो रूम खाली थे और ये इतना नाटक कर रहा था

की जैसे  सारा होटल ही फुल है "

उन्होंने चेक किया तो पाया की रूम नंबर -7 अब बंद पड़ा था 

"साले ने उस रूम को बेच दिया होगा दुगने - तिगने दामों में किसी और को "

पर फिर उन्हें ये समझ नहीं आ रहा था ,

की अगर ऐसा था तो फिर मोहन ने उन्हें तीसरा रूम ON THE HOUSE ( फ्री  ) में क्यों दिया ?

वो उनको भी रूम ज्यादा पैसे लेकर दे सकता था 

उन्होंने कौनसा रूम फ्री में माँगा था , वो तो ज्यादा पैसे देने को तैयार थे 

" अजीब पागल आदमी है साला ये मोहन "

सहगल साहब मन ही मन बुदबुदाये 


रात को डिनर लाउन्ज में सहगल साहब ने मोहन को दूर से देखा था 

वो अब सामान्य लग रहा था और डिनर कर रहे टूरिस्ट्स से बात कर रहा था 

सहगल साहब से नज़र मिलते ही मोहन असहज सा हो गया

उसने फीकी मुस्कान के साथ सर झुका कर सहगल साहब को विश किया

और पास खड़े स्टाफ को काम समझा कर तेजी से लाउन्ज से बाहर गार्डन में निकल गया 

ये पहेली क्या है , सहगल साहब को कुछ समझ नहीं आ रहा था 

तभी उन्हें दूर वेटर रामदीन दूसरे टूरिस्ट्स को खाना सर्व करते दिखा 

उन्होंने इशारे से रामदीन को लाउन्ज के एक कोने में बुलाया 

" रूम ठीक है ना सर ? "

रामदीन खुशामती स्वर में बोल रहा था 

" रूम तो ठीक है , पर ये वो रूम तो नहीं है , जो तुमने सुबह दिखाया था "

" वो तो रूम नंबर 7 था , हमें तो रूम नंबर 8 मिला है "

सहगल साहब ने 500 का नोट रामदीन की ऊपर वाली जेब में ठूँसते हुए पूछा 

" सर क्या 7 नंबर क्या 8 नंबर , आपको रूम चाहिए था , मिल गया ना "

" आज आपका काम करने के चक्कर में मैंने अपनी नौकरी दाँव पर लगाईं है "

" तो 500 के एक नोट से काम नहीं चलेगा कम से कम 5000 रूपये दीजिये सर 

वैसे भी आपको तो 30 - 35 हजार का फायदा हो गया 

चार दिन के लिए सुइट रूम फ्री में ... आपकी तो चांदी हो गयी सर "

सहगल साहब ने घूरकर रामदीन को देखा

और फिर रूककर कुछ सोचते हुए 500 के 3 और नोट निकाले और रामदीन की जेब में ठूँस दिये 

और बोले " ज्यादा लालच अच्छा नहीं होता , अब भागो यहाँ से "

सहगल साहब का कड़ा स्वर सुनकर रामदीन का मुँह बन गया था 

पर वो मरता क्या न करता , अब उसके हाथ में था भी क्या 

तो वो बुरा सा मुँह बनाते हुए जाने लगा 

" अच्छा सुनो वो रूम नंबर 7 कितने में चढ़ा ?? "

सहगल साहब से जब रहा ना गया तो आखिरकार उन्होंने दूर जाते रामदीन से पूछ ही लिया 

" सर वो रूम नंबर 7 तो अब भी खाली है , वो तो हमेशा ही खाली रहता है "

" अब मैं जाता हूँ सर , कहीं मोहन सर ने मुझे आपके साथ देख लिया तो मेरी नौकरी तो जानी ही जानी है "

रामदीन को पता था की सहगल साहब अब खाली पीली कुछ ना कुछ पूछते ही रहेंगे 

पर उसका अपना काम तो हो चुका था 

अब किसी दूसरे टूरिस्ट् की जीहजूरी की जाये तो कुछ और पैसे बनें 

इसलिए रामदीन वापिस डिनर लाउन्ज में लौट आया 


डिनर करने के दौरान भी सहगल साहब असमंजस में ही रहे 

परिवार के बाकी सदस्य बीच बीच में कुछ पूछ लेते तो वो हां ना में जवाब दे देते 

पर मन उनका बार - बार इसी पहेली में था की मोहन ने ऐसा किया क्यों ?

ऊपर से रामदीन का ये कहना " सर वो रूम नंबर 7 तो अब भी खाली है , वो तो हमेशा ही खाली रहता है "

उनको और भी हैरान कर रहा था 

" आखिर क्यों कोई होटल अपना सबसे महँगा सुइट पूरे साल खाली रखेगा ? "

" आज की दुनिया में जहाँ हर वस्तु हर साधन को ज्यादा से ज्यादा निचोड़ कर

उसकी आखिरी बूँद तक निकाल लेने की होड़ लगी है , ऐसी बेवकूफी ??? "

" क्यों ?? "


आज रात सहगल साहब को नींद नहीं आ रही थी 

वो अपने रूम में में अकेले करवटें बदल रहे थे 

जाने क्या सोचकर वो बाहर होटल गार्डन में निकल आये 

आधी रात में बिनसर , हड्डियों को गला देने की हद तक सर्द हो चुका था 

ऊपर से आज तो जानलेवा हवा भी चल रही थी 

वो वापिस रूम की तरफ वापिस जा ही रहे थे की उन्हें गार्डन के दूसरे कोने में एक अलाव जलता दिखाई दिया 

" ये कौन है , जो इतनी सर्दी में .... "

गौर से देखने पर उन्होंने पहचान लिया था की अलाव की आग के सामने गिलास हाथ में लिए बैठा वो साया मोहन ही था 

दूर से मोहन का चेहरा जैसे आग का एक गोला लग रहा था 

सहगल साहब के कदम अपने आप ही सम्मोहित से उस ओर चल दिये 


" गुड इवनिंग मोहन जी "

सहगल जी ने अचानक मोहन के पास जाकर धीरे से विश किया था 

उनको अचानक अपने पास पाकर मोहन अचकचा कर खड़ा हो गया था 

जैसे किसी ने उसे चोरी करते पकड़ लिया हो 

मोहन को हड़बड़ाते देख सहगल साहब भी कुछ विचलित से हो गए और बोले 

" मोहन जी आप प्लीज बैठे रहिये , मैं तो जा रहा हूँ "

" दूर से आपको देखा तो सोचा आपसे माफ़ी मांग लूँ "

--------------------------------------------------------------

 

Thursday, January 25, 2024

JUNGLE CAT | HINDI KAHANI | PART - 1


 " Love Peace Happiness "

------------------------------------------

" मैनेजर साहब , आप तो बिलकुल ही झूठे इंसान हैं , यार "

" ऊपर इतना बड़ा रूम खाली है और आप कह रहें हैं की लॉन्ज में कोई रूम खाली नहीं है 

अरे आपको एक्स्ट्रा रूम के ज्यादा पैसे चाहिए तो मांग लीजिये ,

हमारी मजबूरी हैं , हम दे देंगें "

" पर इतना झूठ तो मत बोलो आप "

" मेरे परिवार के सामने मेरी बेइज़्ज़ती तो मत कराओ "

" कितने लोगों को भेजा है मैंने आपके होटल में पहले भी "

" पर आप तो बिलकुल ही पैसे के यार निकले "

इतना कहते कहते ही वो बुजुर्ग सज्जन सहगल साहब गुस्से में कांपते हुए अब हांफ रहे थे 

उनकी ऐसी हालत देखकर मोहन ने तुरंत सहगल साहब को सहारा देकर पास ही सोफे पर बैठाया

और एक वेटर को उनके लिए पानी लाने भेजा 

पानी पी कर अब सहगल साहब ने जब चैन की कुछ साँसें ली तो ,

मोहन ने नज़रें झुकाये , जैसे मन ही मन बुदबुदाते हुए उनसे कहा था 

" सहगल सर , मैं आपसे माफ़ी चाहता हूँ

आप मुझे एक घंटा दीजिये ,

मैं कैसे भी करके आपके लिए एक रूम का इंतज़ाम करता हूँ "

" तब तक आप अपनी फॅमिली के साथ अपने दो रूम में ही चेक इन कीजिये "

" फ्रेश होइए , बुफे लंच लगने वाला है , उसे एन्जॉय कीजिये "

" आपके तीसरे रूम की चिंता आप मुझ पर छोड़ दीजिये "

" एक घंटे में आपके फॅमिली मेंबर्स को तीसरा रूम मिल जाएगा " 

" इस तीसरे रूम का आपको कोई भी चार्ज नहीं देना है , आल फैसिलिटीज विल बी सेम अस पर योर बुकिंग्स "

मोहन की ये बात सुनकर अब सहगल साहब ने चैन की सांस ली और वो सुकून में सोफे पर जैसे ढह गये 

होटल लॉबी में खड़े बाकी टूरिस्ट्स , होटल स्टाफ भी ,

जो अब तक इस तेज आवाज़ में हो रही बातचीत से वहीँ बुत से बने खड़े रह गए थे ,

अपने अपने कामों में फिरसे बिजी हो गए 


मोहन , बड़े शहरों के शोरोगुल से दूर ,

इस छोटे से हिल स्टेशन बिनसर में  " लव पीस हैप्पीनेस " नाम का एक टूरिस्ट होटल चलाता हैं 

और ऐसा बरसों में कभीकभार ही ऐसा होता है की कोई टूरिस्ट उनसे इतनी बदतमीज़ी से बात करे 

टूरिस्ट तो अक्सर मोहन की खातिरदारी और इंसानियत से इतने प्रभावित होते हैं की बार - बार बिनसर आकर " लव पीस हैप्पीनेस " में ही रुकते हैं 

और अपने मित्रों को बिनसर में आकर सिर्फ लव पीस हैप्पीनेस में ही रुकने को कहते हैं 

किसी टूरिस्ट का कोई कीमती सामन वापिसी में होटल में छूट गया हो 

किसी टूरिस्ट के पास बिल में कोई पैसे कम पड़ जाएँ ,

किसी टूरिस्ट ने होटल का कोई नुक्सान कर दिया हो 

चाहे कोई भी बात हो , किसी भी परिस्तिथि में मोहन ने कभी पैसे को तो अहमियत दी ही नहीं 

हर बिगड़े काम को ठीक से निबटाना उनकी खासियत है 

इसीलिए बिनसर में जब नॉन- सीजन में बड़े बड़े होटल खाली होते है " लव पीस हैप्पीनेस " तब भी अक्सर भरा रहता है 

और आज ... आज एक टूरिस्ट ने मोहन को झूठा , बेईमान कहा 

वो भी सबके सामने , टूरिस्टों से भरी लॉबी में 

मोहन को तो जैसे काटो तो खून नहीं 

हालांकि गलती आज भी दिल्ली से आये हुए टूरिस्ट सहगल साहब की ही थी

उनके " लव पीस हैप्पीनेस " में आज से अगले चार दिनों के लिए दो रूम बुक थे ,

पर लास्ट मोमेंट पर उन्होंने आज सुबह दिल्ली से बिनसर के लिए रवाना होते हुए मोहन को फोन किया

और एक एक्स्ट्रा रूम माँगा  ,

शायद उनके कुछ फॅमिली मेंबर जो पहले नहीं आरहे थे वो भी अब बिनसर आना चाहते थे 

मोहन ने तो सुबह ही सहगल साहब को फोन पर साफ़ मना कर दिया था की पीक सीजन है ,

सारे रूम पहले से बुक हैं 

और एक एक्स्ट्रा रूम बिलकुल नहीं हो पायेगा 

पर सहगल साहब ने शायद मोहन की बात को हलके में लिया था ,

उन्होंने सोचा होगा की हमेशा की तरह मोहन कुछ ना कुछ इंतज़ाम तो कर ही देगा 

"हमेशा सबके बिगड़े काम बगैर शिकायत , ठीक कर देने का एक नुक्सान ये भी होता है

की लोग ना को भी हाँ ही सुनते हैं  "

और बिलकुल यही आज हुआ मोहन  की ना के बावजूद भी सहगल साहब ने खुद ही अपने मन में मान लिया की

मोहन है तो मुमकिन है

वो कुछ न कुछ जुगाड़ कर ही देगा 

और बिनसर पहुंचकर जब उन्हें पता चला की होटल फुल है , कोई रूम खाली नहीं है

और अब उनको अपने परिवार के लोगों के सामने शर्मिन्दा होना पड़ेगा , तो फिर ये हंगामा हो गया 


" सर ... मोहन सर .. इस बार मेरी गलती नहीं है "

" वो .. रूम नम्बर - 7 की सफाई चल रही थी और जाने कैसे वो सहगल साहब वहीँ धमक गए "

" और फिर ... और फिर ... "

वेटर रामदीन की ये बात सुनकर मोहन ने घूरकर रामदीन को देखा और बोला 

" आधे घंटे में रूम नंबर - 8  क्लीन करवाओ और सहगल साहब की फॅमिली को चेक इन करा दो "

" सर रूम नंबर -8 तो आपका पर्सनल रूम है ... वो क्यों ? "

" और फिर आप ... आप कहाँ ....  ??????? "

रामदीन घिघियाते हुआ बोला 

मोहन की बात सुनकर रामदीन जैसा घाघ वेटर भी चकरा गया था 

" जैसा कह रहा हूँ , वैसा ही करो , ज्यादा सोचो मत "


मोहन को अच्छे से मालूम था की आज ये जो सब हुआ ,ये सब रामदीन का ही किया हुआ है 

रामदीन को बार - बार इतना समझाने के बाद भी हर साल दो साल में ऐसा होता ही था 

पीक सीजन में जब भी कोई बड़ा ग्रुप लॉन्ज में अपने बुक रूम्स से ज्यादा रूम की डिमांड करता था 

तब तब रामदीन बड़े टिप के लालच में खुद ही ' उस रूम ' के खाली होने की खबर क्लाइंट को दे देता था 

अब मोहन किसी को क्या बताता की

क्यों होटल का वो ऊपर वाला रूम नंबर - 7 , हमेशा खाली रहता है ?

और होटल के फुल होने पर भी क्यों वो रूम कभी किसी को रहने के लिए नहीं दिया जाता ?

( लेखक - मनोज गुप्ता  )


Wednesday, January 24, 2024

आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं


 


यह कविता नोबेल पुरस्कार विजेता स्पेनिश कवि 'पाब्लो नेरुदा (Pablo Neruda)' की कविता

"You Start Dying Slowly" का हिन्दी और इंग्लिश में अनुवाद है.

" आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं, अगर आप 
करते नहीं कोई यात्रा ,
पढ़ते नहीं कोई किताब ,
सुनते नहीं जीवन की ध्वनियाँ को ,
करते नहीं किसी की तारीफ़ . 

आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं, जब आप 
मार डालते हैं अपना स्वाभिमान ,
नहीं करने देते मदद अपनी और न ही करते हैं मदद दूसरों की . 

आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं, अगर आप ,
बन जाते हैं गुलाम अपनी आदतों के ,
चलते हैं रोज़ उन्हीं रोज़ वाले रास्तों पे ,
नहीं बदलते हैं अपना दैनिक नियम व्यवहार ,
नहीं पहनते हैं अलग-अलग रंग , या
आप नहीं बात करते उनसे जो हैं अजनबी अनजान . 

आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं, अगर आप ,
नहीं महसूस करना चाहते आवेगों को ,

और उनसे जुड़ी अशांत भावनाओं को ,

वे जिनसे नम होती हों आपकी आँखें ,

और करती हों तेज़ आपकी धड़कनों को. 

आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं, अगर आप ,
नहीं बदलते अपनी ज़िन्दगी को,

जब हों आप असंतुष्ट अपने प्रेम - जीवन से , अपने काम से ,
अग़र आप अनिश्चित के लिए नहीं छोड़ सकते हों निश्चित को ,
अगर आप नहीं करते हों पीछा किसी स्वप्न का ,
अगर आप नहीं देते हों इजाज़त खुद को ,

अपने जीवन में कम से कम एक बार,

किसी समझदार सलाह से दूर भाग जाने की .
तब आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं  "

English version of Pablo Neruda's Poem "You Start Dying Slowly"

1) You start dying slowly if you do not travel ,if you do not read, If you do not listen to the sounds of life, If you do not appreciate yourself.

2) You start dying slowly When you kill your self esteem; When you do not let others help you.
3) You start dying slowly If you become a slave of your habits, Walking everyday on the same paths…If you do not change your routine, If you do not wear different colors Or you do not speak to those you don’t know.
4) You start dying slowly If you avoid to feel passion And their turbulent emotions; Those which make your eyes glisten And your heart beat fast.
5) You start dying slowly If you do not change your life when you are not satisfied with your job, or with your love, If you do not risk what is safe for the uncertain, If you do not go after a dream, If you do not allow yourself, At least once in your lifetime,

To run away from sensible advice.

-------------------------------------------------------------------------------------

राइटर - पाब्लो नेरुदा 


Tuesday, January 23, 2024

थको ... रुको ... आराम करो



थको ... रुको ... आराम करो

और फिरसे उड़ो 

जीवन बहने का नाम है 

ना पत्थर बन , तुम पड़ो 


पत्थर बनोगे तो

चारों ओर खरपतवार उग जायेगी 

धंसते जाओगे और भी गहरे 

नियति तुम्हारा स्वाभिमान भी ले जायेगी 


फिर एक दिन ऐसा भी आएगा 

के लोग सिक्का फेंकतें आगे बढ़ जायेंगे 

और तुम यूँहीं आँखें मूंदे पड़े रहोगे 

इंसान से कीड़ा बन जाओगे 


माना के पंख टूट गयें हैं 

और मन भी दरक गया है 

जिनको कभी अपने पंखों पर उठाये उड़े थे 

वो उड़ना सीखते ही विपरीत दिशा में सरक गया है 


मगर तुम फिर भी उठो 

टूटे पंखों को अपने पसीने से सीलो 

सांतवा नहीं तो पहला आसमान ही सही 

उड़ चलो और नये पंछियों से मिलो 


थको ... रुको ... आराम करो

और फिरसे उड़ो 

जीवन बहने का नाम है 

ना पत्थर बन , तुम पड़ो 

( लेखक - मनोज गुप्ता )

#hindipoetry #hindiquotes #poetry #hindi #shayari #hindishayari #love #urdupoetry #shayri #lovequotes #shayar #writersofinstagram #quotes #hindipoem #poetrycommunity #hindikavita #hindiwriting #shayarilover #gulzar #instagram #writer #urdu #hindilines #mohabbat #hindipoems #urdushayari #sadshayari #hindiwriter #ishq #man0707 


 

Monday, January 22, 2024

फूल आज भी खिल रहें हैं



" फूल आज भी खिल रहें हैं 

चाँद भी रोज़ आता है 

मतलब के तुम खुश हो कहीं

चहकना अब भी तुम को भाता है 


मगर ये जो हवा में हलकी सी नमी है 

तो डर लगता है के कहीं 

के कुछ है , जो तुम्हारे दिल में 

आज भी उदासी लाता है 


फूल आज भी खिल रहें हैं 

चाँद भी रोज़ आता है 

मतलब के तुम खुश हो कहीं

चहकना अब भी तुम को भाता है "

( लेखक - मनोज गुप्ता )

#man0707

manojgupta0707.blogspot.com



 

Saturday, January 20, 2024

अच्छे हो , सच्चे हो .. तो क्या?


 


" आप अच्छे हो , सच्चे हो .. तो क्या?

दुनिया में आये हो ना  ?

तो दुनियादारी निभाते रहना "


यहाँ अच्छा होने से भी बोहोत ज्यादा जरूरी है

अपने को बार-बार,लगातार अच्छा दिखाते रहना

अपने व्यवहार की लापरवाही को छोड़

ख़ास को ख़ास ,आम को आम जताते रहना


बेहद जरुरी है फिर से उबर आना

किसी भी जानलेवा हादसे के बाद

और खुद को

अपनी ही नज़रो में उठाते रहना


दिल के उस कोने को

कोई खास जहाँ रहता हो

उस कोने को हमेशा पाक..

और पाक बनाते रहना


साधू सा जीवन

अंदर ही जियो तो अच्छा है

बाहर तो लम्बी गाड़ी ,

महँगा मोबाइल , अच्छी सूरत होना

अच्छा कहलाने को बोहोत जरुरी है

तो खुद को हर हाल में चमकाओ और

दुनिया को दिखाते रहना


 " आप अच्छे हो सच्चे हो .. तो क्या ?

दुनिया में आये हो न?

तो दुनियादारी निभाते रहना "

#man0707

manojgupta707.blogspot.com  

ना जाने क्यों | HINDI KAVITA


 


" ना जाने क्यों

आज भी ये यकीन है मुझे 

के किसी ना किसी रोज़

तुम जरूर वापिस आओगी , 


और तब जी उठेगा वो प्रौढ़ हो चुका फूल , 

जो कभी तुमने मुझे दिया था 

और जो आज भी तुम्हारे इंतज़ार में ,

मेरी डायरी के बीच मृतप्राय सा पड़ा है 


जाग उठ्ठेंगे , खिल उठ्ठेंगें 

वो पूरे - अधूरे से स्केच तुम्हारे . 

जो कभी मेरी कल्पना से उब्जे थे 

और जो बरसों बाद

आज भी मेरी स्केच-बुक में बिखरे पड़ें हैं 

बरसों से उनीदें से हैं ....

उदास हैं , सोयें पड़ें हैं

 

और हाँ , तुम्हारा वो रूमाल भी फिर ,

फिर से महक उठेगा

जिसके एक कोने पर तुम्हारे नाम का पहला अक्षर टंका है 

जो कभी मैंने चुरा लिया था 

और जो आज भी करीने से

मेरे दिल के एक कोने में सजा है .. महक रहा है 


वो बेरंग हो चुकी सिनेमा की दो टिकटें भी

फिर से रंगदार हो जायेंगी 

जो बरसों से मुड़ी-तुड़ी सी पड़ी हैं 

ये गवाह हैं की क़भी हम भी अकेले सिनेमा गये थे 

पॉप कॉर्न खाये थे और एक ही स्ट्रॉ से थम्सअप पी थी 


ना जाने क्यों

आज भी ये यकीन है मुझे 

के किसी ना किसी रोज़

तुम जरूर वापिस आओगी 


और तब .........  "

( मनोज गुप्ता )

#man0707

manojgupta0707.blogspot.com





Thursday, January 18, 2024

तुमसे बिछड़ के बरसों में



 " तुमसे बिछड़ के बरसों में ,

थोड़ा - थोड़ा सा हर रोज़ मरा हूँ  मैं . 

लम्हा - लम्हा मरते - मरते भी ,

कहाँ अपने मन का कुछ कर पाया , कभी मैं


कभी संस्कारों ने मुझे रोका ,

तो कभी दुनियादारी ने ,

और कभी जीवन की आपाधापी में

मैं ही तुम्हें भूल गया था , खुद मैं . 


आज जब मौत ने

आँखों में आँखें डालकर कहा ,

" ये तेरा आखिरी मौका है ' जीने का ' " ,

नहीं पायेगा दोबारा ना तू  , ना ही मैं  . 


बहुत हुआ ,

मैं अब और सोचना नहीं चाहता ,

किसी और के बारे में तो बिलकुल ही नहीं , 

अब और नहीं , कभी नहीं सोचूँगा अब मैं . 


इस जहान के बियोंड  , और उस जहान से परे  , एक मधुबन है शून्य में 

जहाँ  ना कुछ सही होता है , ना गलत  , ना कुछ पाप होता है , ना पुण्य 

" वहीँ मिलूँगा तुम्हे , कभी मैं . "


तुमसे बिछड़ के बरसों में ,

थोड़ा-थोड़ा सा हर रोज़ मरा हूँ  मैं . 

लम्हा - लम्हा मरते - मरते भी ,

कहाँ अपने मन का कुछ कर पाया , कभी मैं "

( मनोज गुप्ता )

#man0707

manojgupta0707.blogspot.com


तेरी आँखों में एक तूफ़ानी नदी


 " तेरी आँखों में एक तूफ़ानी नदी दिखती है,

जैसे कही दौड़ के जाने की उफन सी है

तू कहाँ देखता है , किसी दूसरे के चेहरे को

लगता है कहीं अपने ही चेहरे से नफ़रत सी है

माथे की वो शिकनें तो , वाबस्ता लकीरें बन ही चुकी

हर पल की तेरी सोच , इन्हें और पकाती सी है

एकटक तेरा देखते रहना बस अपने ही मोबाइल में

जाने किस बुरी ख़बर के आने की हड़बड़ी सी है


तेरी आँखों में एक तूफ़ानी नदी दिखती है,

जैसे कही दौड़ के जाने की उफन सी है


ढूँढते रहना हमेशा ही , किसी अनजाने-अनजानी को

वो जो तुझे ताक रहा हँस हँस कर , फिर उसका क्या है ?

उठ..चल..हाथ बढ़ा..एक मुस्कुराहट तो पहन

तेरे सब बन जाएँगे , तू ज़रा तो उम्मीद में हो मगन

ज़्यादा ना सोच..बस इस पल में जी..जो पल बस अभी बीत रहा

इस पल ही में जीवन है , इसके सिवा तो कुछ भी नहीं

तू जैसा है ...जहाँ है ..वही से आगे तू निकल

तू ना जीत सके , इतना अजेय तो कुछ भी नहीं

तू ना जीत सके , इतना अजेय तो कुछ भी नहीं


तेरी आँखों में एक तूफ़ानी नदी दिखती है

जैसे कही दौड़ के जाने की उफन सी है "

( मनोज गुप्ता )

#man0707     

Wednesday, January 17, 2024

नीमबाज़ आँखें






 "  कुछ तो रहम कीजे

एक पल को मूँद लीजिये

इन नीमबाज़ आँखों को
इन शराब से भरे सांचों को

के कुछ तो होश आये
चाहे फिर एक पल को ही सही
ज़रा सांस तो आये
चाहे रुकी-रुकी सी ही सही

मैं तो बस आपकी ,
इन आँखों की शराब में डूबा जाता हूँ
लोग कहते हैं की रिन्द है, मयकश है
या खुदा मैं तो छूता भी नहीं,
सो हँसा जाता हूँ


कुछ तो रहम कीजे ,
एक पल को मूँद लीजिये
इन नीमबाज़ आँखों को
इन शराब से भरे सांचों को "

(मनोज गुप्ता )

#man0707