Friday, March 27, 2020

इंसान

भगवान ने इंसान बनाया था मुझको
पर मैं हिंदू ..मैं सिख..मैं मुसलमान बना
इतने पर भी रुकता तो भी ग़ज़ब ना था
मैं निर्भया हत्यारा.मैं कसाब.मैं सतवंत-बेअंत बना।

Thursday, March 19, 2020

पहली मुलाकात



ये एक खूबसूरत इत्तेफ़ाक़ ही तो था की
वो भी उसी कॉलेज में बीकॉम पास सेकंड ईयर में माइग्रेशन लेकर आयी थी
जिसमे मनु आया था
वर्ना तो पूरे 52 कॉलेज थे दिल्ली में
वो कहीं और भी तो जा सकती थी ना  :)

दिखने में बहुत सुन्दर थी वो
(पर उसका मन तो और भी ज्यादा सुन्दर है ये मनु को समय के साथ पता चलता गया था )
कुछ ख़ास था उसमे
जो अनायास ही अपनी और आकर्षित करता था
पतला लम्बा कद,छोटे स्टाइलिश बाल और उसपे एक बालों की लट,
जो बार बार उसके गाल पर आ जाती थी
और फिर उस लट को फिर से कान के पीछे करने की जहमत ,
उसे उठानी पड़ती थी

उसका औरा ऐसा था की
उससे सीधे-सीधे इंट्रो करने की हिम्मत मनु की नहीं हुयी
अब पहला चैलेंज था उसका नाम पता करने का
सो किसी और लड़की से पता लगवाया गया
खबर मिली की उसका नाम " नाज़ डिसूजा " है
अब ये उसके नाम की वजह से था या फिर उस चेन की वजह से ,
जो वो हर रोज़ गले में पहनती थी
जिसमें क्रॉस जैसा कुछ पैंडेंट रहता था
मनु को लगा की वो क्रिस्चियन है
पर बाद में पता चला की वो कोई क्रिस्टियन नहीं है
और उसका सरनेम भी डिसूजा नहीं है
हां नाम ठीक "नाज़ " ही था :)
वैसे धर्म या जाति वाली तो कोई बात कभी नहीं थी
ये तो ये बताना था की
जब किसी से सामने से बात नहीं की जाती ,
और पूरे जहाँ से उसके बारे में पूछ-ताछ की जाती है तो
किस-किस तरह की गलतफहमियां हो सकती है,
(अब इधर-उधर से माँगी हुयी इन्फो तो चंडूखाने से ही आएगी ना :) )

कॉलेज में ग्रुप बातचीत के दौरान वो अक्सर चुप ही रहती थी
कुछ ज्यादा ही कम बोलती थी वो
लगता था जैसे सबको बहुत ध्यान से सुन रही हो और
सबकुछ अच्छे से अपने मन की गहराइयों में उतारती जा रही है
और किसी महान दिन उस ज्ञान के सागर में से कुछ मोती छांट कर
हम सब को प्रसाद में देगी :)
वैसे उन ग्रुप चर्चाओं में उसने एक बार भी मनु की और नहीं देखा था ,
ऐसा मनु को लगा था
और एक मनु था ,जो उसके मोहपाश में निरंतर बंधता जा रहा था

वैसे मनु में वैसा कुछ ख़ास था भी नहीं शायद
जो किसी लड़की को पहली नज़र में ही आकर्षित कर लेता है
वो एक औसत कद का ,औसत लुकिंग लड़का था
अब से पहले जीवन में अब तक कुल 1 ही बार ऐसा हुआ था की
किसी लड़की ने मनु को अच्छे से देखा हो
और उस बार भी मनु कोई कमाल नहीं कर पाया था :)

वैसे उन दिनों मनु का आत्मविश्वास भी कुछ अच्छा खासा सा ही डाँवाडोल था
एक स्टम्मेरेर साइंस स्टूडेंट ,जिसने 12 वीं में बहुत बुरे मार्क्स लिए थे
जिसके लिए ग्यारवी और बाहरवीं के वो 2 साल भयानक सपने जैसे थे
और जो फर्स्ट ईयर में एक बदनाम से इवनिंग कॉलेज में बीकॉम पास में एडमिशन मिलने पर भी
सुकून में था
 और अब जाकर जब उसे इस ठीक-ठाक से कॉलेज में सेकंड ईयर में माइग्रेशन मिला था,
तो सातवें आसमान पे था

मनु के जीवन में पहली बार कुछ ऐसा हो रहा था जो
मनु को एक क्रिएटिव इंसान बना रहा था
वो मनु के ख्यालो पर इस कदर छा गयी थी की कॉलेज से घर आते ही
उसकी कोई छवि कागज़ पर उकेरना
जैसे उसका कर्त्वय बन गया था
हालांकि जीवन में इससे पहले कभी भी किसी का स्केच उसने बनाया हो ,
उसे याद नहीं था
पर नाज़ के सामने अपनी भावनाओं का इज़हार करना मनु के लिए असंभव सा था
 मनु को लगता था की नाज़ कोई ऐसी शै है
जो उसके मयार से बहुत ऊपर है
पर एक दिन पता नहीं वो क्या था जो मनु को इतनी शक्ति दे गया की
कॉलेज ख़त्म होने के बाद बस स्टैंड पे
मनु अचानक नाज़ के सामने पहुँच गया था
(जबकि उससे पहले कभी मनु ने नाज़ को सामने से ठीक से हेलो भी नहीं किया था )

मनु के हाथ में सुर्ख गुलाब और एक ग्रीटिंग कार्ड था
नाज़ ने आश्चर्य से मनु की और देखा
मनु सकपकाया
कार्ड और गुलाब उसकी और बढ़ाते हुए बस इतना ही कह पाया
"मुझसे दोस्ती करोगी "
नाज़ बोली "मैं तो आपको जानती भी नहीं "
"मैं म....  आपकी ही क्लॉस में तो हूँ "
वो हसी, बोली "पता है ,मेरा मतलब था की मैं आपको अच्छे से नहीं जानती "
"पर मैं तो आपसे दोस्ती करना चाहता हूँ " मनु मिमिआया
अब वो थोड़ा और जोर से हसी, "दोस्त तो हम है ही ,एक ही क्लास में पढ़ते हैं "
अब मन में कुछ सुकून हुआ
मनु ने गुलाब और कार्ड उसकी और बढ़ाया
"ये मैं नहीं ले सकती ,कम से कम अभी तो नहीं "-
नाज़ मुस्कुराते हुए बोली थी
मनु को ऐसा लगा जैसे वो कहीं सातवे आसमान पे है
नाज़ के शब्द "कम से कम अभी तो नहीं" से
एक नन्ही सी उम्मीद उग आयी थी
मनु के मन में
तभी नाज़ की बस आ गयी
नाज़ ने मनु की तरफ एक छोटी सी मुस्कान उछाली
और बस में चढ़ गयी
और मनु मंत्रमुग्ध सा देर तक
नाज़ की बस को जाते हुए देखता रहा।







Monday, March 16, 2020

सब तरफ आग है

सब तरफ आग है.... शोर है
रोको- पूछो - छोड़ो -मारो
दीवानों समय अभी भी शेष है
क्यों नहीं तुम सोचो-जागो

जिसको छोड़ा वो भाई था ना
पर जिसको मारा फिर वो था कौन?
जिसको जलाया वो
मंदिर-मस्जिद थे किसके
जिसको बाँध के इतराये फिरते हो
वो कलावे  वो तावीज दोनों थे "उसके"

जिनके स्कूल जलाकर तुमने समझा
तुम रोक लोगो उनकी उड़ान
उन बच्चो की चीख कभी निकलेगी
और हिला देगी  उठ्ठेगा तूफ़ान

सब तरफ आग है.... शोर है
रोको- पूछो - छोड़ो -मारो
दीवानों समय अभी भी शेष है
क्यों नहीं तुम सोचो-जागो

(ये कविता मैंने दिल्ली दंगे 2020 के दौरान लिखी थी)




Sunday, March 15, 2020

भारत देश अपना

अजब बात है हम भारतियों कीं
नहीं करते अपने ही देश का सम्मान
नहीं चुनते ईमानदारी से अपनी सरकार
नहीं करते एक स्वच्छ राजनीति की शुरुआत
स्वच्छ राजनीति होगी शुरू हमारे अपने भीतर से
जब हम जाति -धर्म के नाम पर नहीं
चरित्र देख कर देंगे वोट
तभी भ्रष्टाचार पर लगेगी एक गहरी
कभी ना मिटने वाली चोट
जब होंगे हमारे राजनेता ईमानदार
तभी होगा भारत का सपना साकार 
जब होगा हर तन पर कपड़ा
हर पेट में रोटी
हर सर पर छत
तब जाकर पूरा होगा
बापू का वो रामराज्य का सुनहरा सपना
और बनेगा
सबसे सुंदर
सबसे निर्मल
भारत देश अपना।

कान्हा की पाती पारुल के लिए

कान्हा की पाती पारुल के लिए
-------------------
तू मेरी बेटी है
तू बस इतना ही समझ..
तू रह यूँही
"बेफ़िक्र"
"निश्चल"
"निर्मल"
"कोमल"
पर "निर्भय"
और एक पल के लिए भी
तू चिंता ना कर
क्यूँकि ..

...मैं हूँ ना ...

जीवन की मस्त बहारों के बीच
ये जो उदासी का सबब आया है
मेरी ही मर्ज़ी है
इसलिए ये पल भी आया है

फ़ूल फिर से खिलेंगे
और उनकी ख़ुशबू से महकेगा आँचल तेरा
क्यूँकि ख़ुशबू तो तेरे अन्तर की है
जिसने पूरे घर परिवार को महकाया है

तू मेरी बेटी है
तो बस इतना ही समझ..
तू रह यूँही
"बेफ़िक्र"
"निश्चल"
"निर्मल"
"कोमल"
पर "निर्भय"
और एक पल के लिए
तू चिंता ना कर
क्यूँकि ..

...मैं हूँ ना ...

-मन🌙🌹

अपनी दीवानगी का आलम कुछ यूँ है



अपनी दीवानगी का आलम कुछ यूँ है

के सजदा कर लेता हूँ 
हर मंदिर में , हर मस्जिद में

राम जाने किस खुदा की क़लम में
तेरा अखत्यार बँधा पायें।

अरविंद भाई

बस कुछ 2 -3 साल पहले की बात है
बापू की आत्मा बहुत व्यथित हो चली थी
ख़ुद को भारतीय दिलों पर नहीं
केवल करेन्सी नोटो पर उकेरा देखकर

ग्लानि से उनका बुरा हाल था
हर तरफ़ अंधकार था
सत्ता का अहंकार था
रिश्वतख़ोरी का राज था
बेइमानो के सर पर ताज था

मन भारत से कही दूर चले जाने को था

यकायक
भारत के आसमान पे एक सूरज दमका
अरविंद नाम का एक फूल महका
अब सारी कायनात बदलने लगी है
कारवाँ बनने लगा है
और ईमानदारी फलने फूलने लगी है
अब बापू यह प्रसन्न है
अब भारत पर बापू का आशीर्वाद है
और अरविंद भाई का हम सब के दिल पे राज है


इंतज़ार...

जहाँ मुझे यूँही छोड़कर  तुम ..
वहीं ....बस वहीं
अब तक मैं...
इंतज़ार...
मुद्दतो से ...
कयामत तक। 

दीपावली

क्या हमको याद है के ,
दीपावली और राम का क्या नाता है ?

अब तो बस चायनीज़ लाइटें ,
जबरन मेवे ठूँसी बासी मिठाइयाँ ,
रोड पे रेंगता - झींकता ट्रैफ़िक ,
दीपावली बोनस की एक्स्पेक्टेशन ,
और मायूस फ़्रस्ट्रेटेड चेहरों पे टेंशन ,
ही दीपावली नज़र आता है 


ऑनलाइन कम्पनियों की झूठी सेल है ,
रिश्वत लेने-देने का बेशर्म मेल है ,
दमघोंटू सारा आलम बन गया है गैस चैम्बर ,
एक एक साँस के लिये हो रही है जद्दोजहद ,
अगली दीपावली तक बचेंगें या मरेंगें 
दीपावली पे यही समझ नहीं आता है।


बहुत हुआ आओ अब , चैन-सुकून की साँस लें ,
पटाखों , ट्रैफिक ,बाज़ारू मिठाइयों को गुड बाय कहें , 
अपनी जेब देखे , फिर कुछ खर्च करें 
भागमभाग की बजाये ठहर कर आराम करें 
दिये जलायें  , परिवार के साथ वक़्त बिताएं ,
बच्चों को अपनी संस्कृति की अहमियत समझायें 
दोस्तों - रिश्तेदारों को शुभकामनायें दें ,
पर व्यर्थ के उपहार आडम्बर से बचें 
राम को जाने , रामराज्य को जाने 
जहाँ सब सुख से जीते हैं , दूसरों को निर्लिप्त भाव से प्रेम करते हैं 
दूसरे धर्म को मानने वालों का भी सम्मान सत्कार करते हैं ,
उनको अपने से छोटा या बड़ा नहीं , समान समझते हैं 

जैसे राम दीपावली पर घर लौट आये थे 
आओ हम भी लौट आये सुकून के राज्य में 
अपने राम के पास , अपने राम की मर्यादा में ,
रामराज्य में। 


हवा यूँही



ज़रूर तुम ही ने कहीं धीरे से छुआ होगा
हवा यूँही तो नहीं महक गयी है इस पल मे 

वो बेमुर्रवत सा



वो बेमुर्रवत सा इंसान , मैं 
जो तेरी यादों में हूँ 
फ़क़त उतना ही नहीं रहा मैं 
थोड़ा सा कहीं ज्यादा बना हूँ मैं

मेरी अपनी एक जमीं 
अपना एक अदद आसमान
इससे भी कही ज़्यादा 
और ज्यादा 
विस्तृत बना हूँ मैं 

तेरा प्यार ना मिला तो मैं 
प्यार का सागर बन गया 
जो-जो मिला उसे मोती दिए और 
खुद निर्मल सीप बना हूँ मै 

वो बेमुर्रवत सा इंसान , मैं 
जो तेरी यादों में हूँ 
फ़क़त उतना ही नहीं रहा मैं 
थोड़ा सा कहीं ज्यादा बना हूँ मैं 


मैं एक दीपक



मैं फ़क़त एक दीपक
जलता रहूँगा..हर क्षण 
तू चंचल पवन...अनछूयी
यूँही छूकर गुजरती रहना। 

राम को तो अब आना है




राम को तो अब आना है
वो आयेंगे
पर उनको कब-कैसे आना है
क्या हम उनको बतलाएँगे 😊





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काश


काश
तुम इतनी दिलकश ना होती...
तो मैं ...
इसरार कर पाता
काश
तुम इतनी मग़रूर ना दिखतीं 
तो मैं ...
इजहार कर पाता

दिलकश-मगरूर होके भी फिर ..
तुमको-मुझको क्या मिला

तुम एक शब्द “हाँ” कह देतीं..
तो मैं ये 
जीवन जी जाता

काश
तुम इतनी दिलकश ना होती..

#hindipoetry 
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प्रिय मित्रों ,

मैं आपका ह्रदय से आभारी हूँ की

आपका स्नेह मुझे लगातार मिल रहा है 😇

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"दीप" सी रोशन रहना तुम

"दीपसी रोशन रहना तुम.. यूँही
और दुनिया भर की "आकांक्षाबन जाना
तुम अपने किरदार को,ख़ुद से भी ज़्यादा ख़ूबसूरत ब ना
धरा से अम्बर तक विस्तृत हो जाना
तुम माडर्न और कोंटेम्प्रेरी का मिश्रण बनना
सोच से माडर्न,पर संस्कारो से कंटेम्परेरी होकर रह जाना तुम
तुम अपनी राह ख़ुद चुनना सदा
और जीवन में निर्भय,निर्विकार आगे चलती जाना तुम।

"जीवन में निर्भय,निर्विकार आगे चलती जाना तुम💐


कभी दिल से लिखा



कभी दिल से लिखा 
कभी दिमाग़ से भी
और अब तो ये आलम है की 
मेरी रूह भी कुछ कुछ कह रही
अब तू ही बता के मैं कैसे लिखुँ
जो मेरी रूह से निकले
तो तेरे रूह तलक जाए.... 




एक चूका हुआ प्रेमी हूँ



हाँ, स्वीकार मुझे के मैं 
एक चूका हुआ प्रेमी हूँ,

प्रेम-सम्प्रेषण को चाह थी
एक विशिष्ट भाषाशैली की 
और मेरा शब्दकोश रहा 
सर्वदा सीमित , और 
चातुर्य वाक शैली में मरुस्थलीय सूखा
सो मेरे प्रेम में भी तुम्हें 
केवल शुष्कता ही दिखी 

एक बूँद मीठे पानी को 
जैसे चातक ताकता है
वैसे ही ताकता था मैं तुम्हें 
बारिश की पहली बूँद की मानिंद 

हाँ, तुम मेरे लिए तुम 
बारिश की पहली बून्द ही थी
लेकिन उस बून्द ओर मेरी प्यास में 
एक जनम की दूरी थी
चाहकर भी उस दूरी पर मैं 
प्रेम सेतु ना बना पाया
और आज तक उसी सूखे मरुस्थल में 
चातक बन तलाशता रहता हूँ
उसी प्रेम की पहली बूँद को

हाँ, स्वीकार मुझे के मैं 
एक चूका हुआ प्रेमी हूँ,
पर कहीं तुम भी तो चूक गयी थीं 
जो शब्दोँ की साधारणता से रिसती 
आत्मिक खूबसूरती को देख ही नहीं पायीं 

हम दोनों ही चूक गए 
हाँ हम दोनों ही। 





मलिका हो तुम



मलिका हो तुम
खुदा करे तुम्हारा 
हुस्न-ओ-जमाल 
और बढ़े

मेरा क्या.?
मेरा क्या है 
मैं तो एक युग से प्यासा हूँ
तो शायद  ऐसा ही मरूँ 
तुम जिसे चाहो
उसे अमृत ही मिले , और प्यास 
और बढे  

दिन बोहोत ख़ास है आज 
और बोहोत दूर हूँ मैं
जो पास है तुम्हारे दिल के 
उनसे तुम्हारा 
तारुफ़-ओ-राब्ता ,मेल-ओ-मुलाक़ात 
और बढे

मलिका हो तुम
खुदा करे तुम्हारा 
हुस्न-ओ-जमाल 
और बढ़े। 






रगं दीनों मोहे कान्हा



सखी री....रगं दीनों मोहे कान्हा
बस अपने ही रंग 

अब मोहे
ना नींद ना सुधबुध
सगरा जगत दौड़ रहा
मोपे रगं डारन को
अब तू ही बता
जौन होए श्याम रगं
ओपे कौन रगं चढ़े
और का सगरी दुनिया

सखी री....
रगं दीनों मोहे कान्हा
बस अपने ही रंग 

-मअन्🌙🌹-



कृष्ण..प्रेम एक ही..



कृष्ण..प्रेम एक ही..
प्रेम है तो कृष्ण है
प्रेम बिना तो कृष्ण भी कुछ नहीं

राधा हो के मीरा
“मन” हो या सुदामा
सबको बस एक ही आस 
सबकी बस एक ही प्यास 
सबको बस कृष्ण में विलीन होना है
अपना आप खो देना है 

सच है ना
प्रेम-पारस ने ही छूकर 
एक गवाले को कृष्ण बना दिया
एक कतरा था , समंदर बना दिया 

कृष्ण..प्रेम एक ही..
प्रेम है तो कृष्ण है
प्रेम बिना तो कृष्ण भी कुछ नहीं।