Saturday, December 23, 2023

नहीं जरुरत अब


 

नहीं जरुरत अब हमें दोस्तों , घरवालों के व्याख्यानों की 

अलार्म , कैलकुलेटर , टॉर्च , कैमरे जैसे सामानों की 

अब हमने अपने बच्चों को भी एक आनव दे दिया है

पैदा होते ही उनके हाथों में मोबाइल-दानव दे दिया है 


बच्चे अब नहीं खेलते गलियों , पार्कों , मैदानों में 

नहीं मज़ा उन्हें अब , माँ के हाथ से बने खानों में 

अब तो बस मोबाइल संग जीना और बाज़ार से खाना मंगवाना है 

स्विगी (दूसरी माँ ) और जोमोटो (मौसी) का अब हर कोई दीवाना है 


नहीं बात करनी अब किसी को बैठकर आमने सामने 

पास बैठे भी हों तो बात होगी व्हाट्सअप के बहाने 

एप्पल लील गया हैं , हमारी कमाई का एक बड़ा हिस्सा 

जल्द वो दिन आएगा , हम टेस्ला में बैठकर मांगेंगे भिक्षा 


नहीं जरुरत अब हमें दोस्तों , घरवालों के व्याख्यानों की 

अलार्म , कैलकुलेटर , टॉर्च , कैमरे जैसे सामानों की 

अब हमने अपने बच्चों को भी एक आनव दे दिया है

पैदा होते ही उनके हाथों में मोबाइल-दानव दे दिया है 


( लेखक - मनोज गुप्ता )

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Friday, December 22, 2023

एक रुपया ज़िंदगानी | HINDI KAVITA



एक रुपया मिला था , ज़िंदगानी में 

तीन चौथाई .. बीत गया बेध्यानी में 

और पच्चीस पैसे जो बाकी रहा ,

वो भी तो अन्धकार में है 

शुगर और बीपी के करार में है 


तन हो याके मन हो , याके रूह मेरी ,

सब के सब जख्मी हैं , शॉक में हैं 

शर्माता हूँ .. कैसे कहूँ

के कगार पे हैं 


मुड़ के देखता हूँ

तो पता चलता है 

बस कुछ कागज़ , कुछ ईट कंक्रीट कमाये 

बाकी सब तो उलटा है 


संगी - साथी पीछे छूट गए 

दूर छूट गया कहीं मन मेरा  

अब तो मैं भी नहीं , वो भी नहीं और ये भी नहीं 

कुछ नहीं बचा अपना .. मेरा 


काश कुछ तो रहता , कुछ तो बचता 

जो होता मेरा अपना 

काश मै वही करता 

जो कभी था मेरा सपना 


एक रुपया मिला था , ज़िंदगानी में 

तीन चौथाई .. बीत गया बेध्यानी में 

( लेखक - मनोज गुप्ता )

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Thursday, December 21, 2023

पहला चुम्बन , वो ..

पहला चुम्बन 

वो छुअन 

वो साँसों का साँसों में मिल जाना 

जीवन शहद का , अधरों के रास्ते 

आत्मा में घुल जाना 

कभी लग रहा था के जैसे ..

जैसे भर रहे हों

रिक्त सांचे अधरों के 

और कभी लग रहा था के जैसे 

जैसे भर रहें हों 

रिक्त खांचे स्वर्गों के 

पहला चुम्बन 

वो छुअन 

वो साँसों का .....

( लेखक - मनोज गुप्ता )

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साँवरे की सखी हो.. फिर भी


 साँवरे की सखी हो तुम 

फिर भी ताउम्र ...भट्टे  में तपती हो  

जन्म लेने को भी एक युद्ध लड़ना पड़ता है 

तब कहीं जाकर , बच - बचाकर बचती हो तुम  


क्या अपने क्या बेगाने

हरेक नोचता - खसोटता है तुमको 

कभी चुप रहती हो , कभी क्षीण प्रतिरोध करती हो  

और कभी हलाहल (जहर) पी लेती हो तुम


कभी अपह्रत (kidnap) की जाती हो 

और कभी निर्वस्त्र जंघा पर बिठाई जाती हो 

सब आँखें सेंकते रहते हैं  

सांवरे के आने से बचती हो तुम 


पर और कब तक तुम सांवरे के भरोसे रहोगी ?

निरीह अश्रु नेत्रों से बस प्रार्थना करोगी 

अगर कभी सांवरा भी बदल गया तो ?

वो भी बस एक आम पुरुष बन गया तो ? 

तब क्या तुम अपने को यूँही नग्न होने दोगी 

अपने पंखों को नुचवाओगी और पड़ी रहोगी 

सोचो , आखिर कब तब तक लम्हा लम्हा मरोगी तुम ??


साँवरे की सखी हो तुम 

फिर भी ताउम्र ...भट्टे  में तपती हो  

जन्म लेने को भी एक युद्ध लड़ना पड़ता है 

तब कहीं जाकर , बच - बचाकर बचती हो तुम । 



Wednesday, December 20, 2023

नदी | HINDI KAVITA




( प्रेमी को अचानक उसकी पूर्व प्रेमिका किस महफ़िल में दिख जाती है , फिर ...)

" नदी मेरे सामने कलकल बह रही थी 

मगर मैं जड़वत खड़ा रहने को मजबूर था 

मेरे कदम धरा में धंस गए थे 

और मेरी आत्मा सुलगती रही थी  


गैरों ने ,अपनों ने ,सबने पिया

और खूब पिया जीवन अमृत 

नदी ने कनखियों से मुझे देखा भी 

मगर मै नज़रें चुराए यूँहीं जड़ खड़ा रहा 


मैं कैसे कहता और किससे कहता 

क्या किया , जो मैंने किया था 

जीवन अमृत को ठुकराकर 

क्या चुना , जो मैंने जो चुना था 


नदी मेरे सामने कलकल बह रही थी 

मगर मैं जड़वत खड़ा रहने को मजबूर था 

मेरे कदम धरा में धंस गए थे 

और मेरी आत्मा सुलगती रही थी  "