Saturday, July 18, 2020

मेरा द्वन्द स्वयं से है

अक्सर हम कहते हैं की
"आगे बढ़ना है "
" नए शिखर छूने हैं "
" चलना ही जीवन है और रुकना मौत "
और ऐसी ही कुछ बहुत सारी बातें :)

बढ़ना है,
जीतना है
ये सबको पता है
पर मुझे किस और बढ़ना है ?
मुझे किसको जीतना है ?
क्या सही में हमको ये पता है
जबकि यही पता करना तो सबसे ज्यादा जरूरी है

अन्य सभी लोगों की तरह
जीवन में मैंने भी लोगों से खूब इर्षा की है
लोगों को आगे बढ़ते देख,
खूब पैसा कमाते देख
मैं भी जला हूँ, कुढ़ा हूँ :)
(और इस जलन और कुढ़न की एक बहुत बुरी बात ये है की
अक्सर ये अपने आस-पास के लोगों से ही सबसे ज्यादा होती है
जैसे दोस्त, नज़दीकी रिश्तेदार, पड़ोसी आदि आदि
अब मुझे या आपको मुकेश अम्बानी से तो जलन नहीं होती ना :) )

मेरे साथ भी जीवन में ऐसा कम से कम दो बार तो हुआ है
जब अपने ही किसी बहुत पास के व्यक्ति से मुझे ये ईर्ष्या हुयी ही है
एक शख्स से तो मेरे पापा मुझे कम्पेयर करते थे
और बार-बार याद दिलाते थे
की वो कितना कामयाब है और मैं कितना नाकामयाब :)
दुसरे शख्स से मैं खुद ही अपने आप को कम्पेयर करने लगा
और उसकी कामयाबी देखकर परेशान रहने लगा

वो पापा के एक गहरे दोस्त का बेटा था
पापा और उनके वो दोस्त रोज़ शाम को मिलकर ताश खेला करते
और घर-परिवार की , दीन-दुनिया की बातें कर अपना समय बिताते
जब भी मुझे सुबह-सुबह तलब कर ये समझाया जाता की मैं कितना नाकारा हूँ
मैं समझ जाता की पापा के दोस्त के उस बेटे ने फिर कोई नयी तरक्की की है
जिसका दुःख और जलन पापा के मन में है
और उस दुःख की छाया में
मेरा मन , मेरा आत्मविश्वास , मेरा स्वाभिमान
सब बिखर जाता और मैं पापा को कभी ये समझा नहीं पाता की
मैं भी कोशिश कर रहा हूँ, अपनी पूरी क्षमता के साथ

आज पापा के दोस्त का वो बेटा दुर्भाग्य से इस दुनिया में नहीं है
अभी कुछ ही साल पहले उसने स्वयं अपना जीवन ख़त्म कर लिया था
ये दुखभरा कदम लेने से पहले शायद उसने अति-आत्मविश्वास में कुछ ऐसे काम भी किये की
अपने परिवार की पूरी जायदाद से भी दो गुना क़र्ज़ मरते समय उसके सर पर था
जिसे चुकाना उसे असंभव लगा
और उसने अपना जीवन समाप्त कर लिया

दूसरे केस में मैंने खुद अपने को अपने एक पुराने स्कूल सहपाठी से कम्पेयर करना शुरू कर दिया
मेरा वो सहपाठी स्कूल के दिनों में पढ़ाई में मुझसे कोसों पीछे था
पर अब मेरे ही बिज़नेस में , मुझसे मीलों आगे
वो जब-जब मुझसे बिज़नेस मीटिंग्स में मिलता
तो उसकी तरक्की और उड़ान देखकर मुझे हमेशा ईर्ष्या होती
मुझे हमेशा लगता की जब मैं पढ़ाई में उससे इतना आगे था तो ,
आज भी मैं आगे क्यों नहीं हूँ ?
जब मैं पढ़ाई आगे था तो मतलब मेरा दिमाग उससे ज्यादा है
तो फिर आज मैं पीछे क्यों हूँ ?
दुःख की बात है की आज वो सहपाठी भी इस दुनिया में नहीं है
अभी कोरोना काल में उसका देहांत हुआ
कोई कहता है कोरोना से देहांत हुआ ,
कोई कहता है ज्यादा शराब पीने से लिवर पहले ही खराब था
कारण कुछ भी रहा हो पर सचाई ये है की उसके जीवन की दौड़ का अंत हो गया


इस दोनों घटनाओं को बताने का तात्पर्य केवल इतना सा है की
हम किसी दूसरे की सफलता देख कर उस व्यक्ति से अपनी तुलना करने लगते हैं
हमें नहीं पता के उस व्यक्ति सफलता जो दिख रही है ,
उसकी नीव कितनी मजबूत है
उस व्यक्ति ने उस सफलता को पाने के लिए जीवन की क्या कीमत दी है
शायद अपना स्वास्थय ,
शायद अपना पारिवारिक सुख-शांति ,
या फिर शायद अपना चरित्र ही
हो सकता है उसकी ये चमक-दमक दिखावा हो
या हो सकता है
सच में उस व्यक्ति ने हमसे ज्यादा शारीरिक और मानसिक श्रम किया हो
और वाकई वो हमसे बेहतर जीवन का का योग्य पात्र हो

हम इस सब में से कुछ भी तो नहीं जानते
और इन सब बातों पर हमारा कण्ट्रोल भी कहाँ है ?
हमारा कण्ट्रोल तो बस हमारे स्वयं के आचरण पर है
सच कहें तो
हमारे हाथ में केवल हमारा कर्म है
और उसका फल भी हमारे वश में नहीं है
फल मिलेगा
कब मिलेगा , कितना मिलेगा , या मिलेगा भी या नहीं
कौन जानता है
आने वाले कल में क्या छुपा है हमें नहीं पता
और हम बेवजह किसी दूसरे के जीवन से अपना जीवन कम्पेयर कर-कर के
अपनी जान हलकान करते रहते हैं
जबकि हमें उस दूसरे व्यक्ति के जीवन,
उसके जीवन-संघर्ष के बारे में कुछ भी नहीं पता
मुझे तो लगता है की

मेरे हाथ में सिर्फ मेरा कर्म है , और कुछ भी नहीं 
तो मेरा द्वन्द भी सिर्फ खुद से है और किसी से नहीं 
मुझे हर आने वाले दिन में स्वयं को , जो मैं आज हूँ उससे बेहतर बनाना है ,
हर रोज़ 
" मेरा द्वन्द भी सिर्फ खुद से है "
यही जीवन-मंत्र है

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Monday, July 13, 2020

मनु और सूसू

दोस्ती और इश्क़
एक जैसे होते हैं :)
कभी तो ये पहली नज़र में ही हो जाते हैं
और कभी इसे होने में बरसों लग जाते हैं :)
मनु और सुशील की मुलाकात तो कोई 30 साल पुरानी है
पर उनकी दोस्ती भी कोई पहली बार में ही मिलते ही नहीं हुयी
दोनों की दोस्ती होने में भी सालों लगे :)


असल में गलती मनु की ही थी
मनु था ही इतना नकचढ़ा
और हमेशा दूसरों में कमियां निकलने वाला
मनु पढ़ने में थोड़ा अच्छा था
दिखता भी अच्छा था
तो मनु अपने सामने कहाँ किसी को कुछ समझता था ?
वहीँ सुशिल उस समय
थोड़ा मोटू-गब्दू और मोटा चश्मा लगाने वाला लड़का था
पर हमेशा हसने-हँसाने वाला
और गज़ब का हाजिरजवाब :)

मनु और सुशिल को
मनु के पड़ोस के दोस्त भारत ने मिलवाया
सुशिल और भारत एक ही स्कूल में पढ़ते थे
तो सुशिल अक्सर कभी भारत से वैसे ही मिलने ,
कभी क्रिकेट खेलने मनु और भारत की गली में आता रहता था

सुशिल अक्सर कोशिश करता मनु से बात करने की
पर मनु जाने किन हवाओं में रहता था
वो सुशिल से बात तो करता
पर गहरी दोस्ती जैसा कोई व्यवहार कहाँ करता था ?

मनु बहुत हैरान हुआ था
जब सुशिल ने मनु को अपने जन्मदिन पर अपने घर बुलाया
उस पार्टी में मनु को छोड़कर सारे बस सुशिल के स्कूल के दोस्त थे
उसी दिन सुशिल को घर में अपना अलग से एक कमरा भी मिला था
सुशिल बहुत खुश था
उसने कमरे को सजाया था
( यहाँ में ये बता दूँ की मनु और सुशिल में एक चीज़ थी
जो COMMON थी
वो थी "पूजा भट्ट "
मनु और सुशिल दोनों की फिल्म स्टार "पूजा भट्ट " के लिए दीवानगी :) )
पूजा भट्ट 1991 में अपनी मूवी "दिल है के मानता नहीं " के बाद
उस समय की सबसे मशहूर स्टार थी )


अपने 18 th जन्मदिन पर सुशिल ने अपने कमरे में
" पूजा भट्ट " का एक पोस्टर लगाया था
और आश्चर्यजनक रूप से उस पोस्टर का इनोग्रेशन कराया मनु से
सारे दोस्त हैरान थे :)
खुद मनु भी :)
क्युकी तब तक ना तो मनु और सुशिल में कोई गहरी दोस्ती थी
और उस पार्टी में सुशिल के बहुत पुराने और गहरे कई दोस्त मौजूद थे
इस बात से मनु को खुशी तो हुयी
पर तब भी मनु ने कोई ख़ास इंटरेस्ट नहीं दिखाया सुशिल से दोस्ती बढ़ाने में

समय बीता
कोइन्सिडेंट था की मनु और सुशिल को एक ही कॉलेज सत्यवती में दाखिला मिला
जहाँ सुशिल ने कोम्मेर्से में अच्छे मार्क्स लिए थे
वहीँ मनु ने साइंस में बहुत बुरे मार्क्स :)
तो मनु को साइंस में कहीं दाखिला नहीं मिला तो
मनु को भी कॉलेज में कॉमर्स ही लेना पड़ा
और अब अलग-अलग स्कूल
और अलग-अलग सब्जेक्ट पढ़ने वाले ये दोनों बन्दे
मनु और सुशिल
एक ही कॉलेज के एक ही कोर्स में
और यहाँ तक की एक ही सेक्शन में थे
यहाँ भी दोनों में दोस्ती तो थी
पर फिर वही बात
इतनी गहरी दोस्ती अब भी ना थी :)

मनु को फर्स्ट ईयर कॉलेज में भी खुद पे बहुत दम्भ था
उसे लगता था ये कॉलेज उसके लायक नहीं है
और इस कॉलेज के लड़के-लड़कियां तो बिलकुल उसके स्टैण्डर्ड के नहीं हैं
यहाँ तक की जब एक अच्छी, खूबसूरत लड़की ने
खुद मनु को आगे से प्रोपोज़ किया
पर वो भी मनु को अपने स्तर की नहीं लगी :)
और उसने मन कर दिया था :)
इतना बड़ा भोंदू था मनु :)
और अपनी झूठी शान में घिरा :)

पर वैसे कुछ भी कहें मनु थोड़ा शार्प तो था
तो पहले कभी भी कोम्मेर्से,अकाउंट्स
ना पढ़े होने के बावजूद मनु ने फर्स्ट ईयर में बहुत अच्छे मार्क्स लाये
यहाँ तक की " हिंदी " में उसने कॉलेज टॉप किया
और सेकंड ईयर में मनु का माइग्रेशन
मनु के मनपसंद शिवाजी कॉलेज में हो गया :)
अरे पर ये क्या सुशिल भी अच्छे मार्क्स लाया था
और सुशिल का माइग्रेशन भी शिवाजी कॉलेज में हो गया था :)

अब शिवाजी कॉलेज में
मनु और सुशिल की दोस्ती ढंग से शुरू हुयी
अब मनु ने जाना के
सुशिल आखिर बन्दा क्या है :)
सुशिल इतना हाज़िरजवाब ,
हसने-हसाने वाला
शरारती इतना के एक बार शर्त लगने पर
चलती हुयी क्लास में ,
जहाँ प्रोफेसर पढ़ा रहे थे
उसने धड़ाम से गेट खोला और एक सिक्का प्रोफेसर को खींच के मारा
वो सिक्का दो मिनिट तक फर्श चूमता हुआ आवाज़ करता रहा
और प्रोफेसर हैरान के ये क्या हुआ :)
और सारे स्टूडेंट्स का हँस-हँस के बुरा हाल :)

और दूसरी घटना में
मनु और सुशिल की क्लास की लड़कियों ने
एक खाली पड़ी क्लासरूम को ही अपना गर्ल्स अड्डा बना लिया था
वो रोज़ आती और उस क्लासरूम में अंदर जाकर अंदर से कुंडी लगा लेती
कई दिन ऐसे ही बीत गए
मनु,सुशिल और कई लड़के परेशान
के भाई ऐसे हम इन लड़कियों से कैसे बात करेंगें ,
दोस्ती करेंगें ,
और कैसे पटायेंगें :)
अगर ये रोज़ ऐसे ही एक कमरे के अंदर बंद रहेंगी तो :)
अब इसका भी तोड़ निकाला सुशिल ने ही :)
अगले दिन लड़कियां कॉलेज आईं
उस कमरे के अंदर गयीं
हैरान :)
कमरा बंद कैसे करें :)
क्युँकी किसी ने पूरा दरवाज़ा ही उतार कर गायब कर दिया था :)
ये भी शरारती सुशिल का काम था
लड़कियों ने हँस-हँस कर इस कारनामे की पूछताछ की :)
और इसी बातचीत में अब शिवाजी कॉलेज की सारी खूबसूरत लड़कियां
सुशिल और मनु के ग्रुप में थी
अब अच्छी दोस्त बन गयीं :)
( यहां तक की आज तक अच्छी दोस्त हैं :) )

साहसी भी गज़ब था सुशिल :)
एक बार
कॉलेज के दो गुंडों ने सुशिल को भरे कॉलेज में सीढ़ियों में रोका
एक ख़ास लड़की का नाम लेकर धमकाया
" तू आज के बाद उस लड़की से मिला तो ......      "
पर सुशिल तो आखिर सुशिल था :)
अगले दिन फिर सुशिल "अमेरिकनों रेस्त्रो " में उसी लड़की से मिलने गया :)
उसके साथ कॉफ़ी पी
वो दोनों गुंडे वहां आये
उन्होंने सुशिल को फिर धमकाया
पर सुशिल भाई तो फिर सुशिल भाई है :)
वो फिर भी तस से मस नहीं हुआ :)
गज़ब का हिम्मती, गज़ब का हसोड़ :)

कब कैसे मनु का गहरा दोस्त बनता चला गया था सुशिल
मनु को पता ही नहीं चला
दोनों साथ हँसे
कभी-कभी साथ दुखी भी हुए :)
अब तो बस जैसे-जैसे समय बीतता जा रहा है
और मनु और सुशिल की दोस्ती बढ़ती जा रही है
मनु को आज भी ये कहने में शर्म नहीं की इसका सारा श्रेय
सुशिल को जाता है
क्युकी मनु तो आज भी नहीं बदला
वैसा ही है
दम्भी और एरोगेंट :)


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Saturday, July 11, 2020

अंडा-करी


बात यूहीं कोई 1992 की है 
जी हाँ यही कोई बस 28 साल पहले की
पर मनु को आज भी याद है
मनु ने तभी नया-नया शिवाजी कॉलेज में सेकंड ईयर में एडमिशन लिया था
वैसे माइग्रेशन लिया था कहें ,
तो ज्यादा ठीक होगा  :)

अब उन दिनों कॉलेज में माइग्रेशन वाले स्टूडेंट्स को दूसरे दर्जे का समझा जाता था
जो स्टूडेंट्स पहले से कॉलेज में होते थे वो
इन माइग्रेशन वाले स्टूडेंट्स से ना तो बात करते थे
ना ही उन्हें अपने ग्रुप में एंट्री देते थे
मनु और उसके तीन दोस्तों ने एक साथ शिवाजी कॉलेज में माइग्रेशन लिया था
पर अब वो चारों कॉलेज में खुद को बड़ा आउट ऑफ़ प्लेस महसूस कर रहे थे
बहुत कोशिश करने के बाद भी
उनकी पुराने बने ग्रुप्स में कोई एंट्री ही नहीं हो पा रही थी
कई तिकड़म लगाए पर सब फ़ैल
बड़ी मुश्किल से अभी दो दिन पहले
भारती नाम की एक लड़की से बस सतही सी बातचीत हुयी थी

और मनु को हैरानी तब हुयी जब भारती ने अपने जन्मदिन (26 नवंबर ) के लिए
मनु और मनु के तीनों दोस्तों सुशिल,जीतू और महेश को अपने घर इन्वाइट कर लिया
इन चारों का तो खुशी और आश्चर्य से बुरा हाल था
पाँव ही धरती पर नहीं पड़ रहे थे
पहली बार कॉलेज की किसी लड़की ने उन्हें इस काबिल समझा था की
अपने घर ,
अपनी जन्मदिन की पार्टी में बुलाया था
भारती के घर जाने से पहले दिन चारों की एक स्पेशल मीटिंग हुयी
अजेंडा था-
पार्टी में क्या पहना जाएगा ,?
क्या गिफ्ट लेकर जाना है  ?
कौन किसको पिक करेगा ?

खैर तय समय धड़कता दिल लिए
अपने बेस्ट कपडे पहनकर
मनु और उसके तीनों दोस्त भारती के घर पहुँच गए थे
वहाँ भारती ही नहीं बल्कि
भारती की मम्मी, भाई और बहन ने
जब वहाँ चारों को अच्छे से अटेंड किया
तब जाकर मनु की जान में जान आयी
वरना तो एक डर ये भी था की कहीं ये उन चारों को नीचा दिखाने का कोई प्रैंक ना हो :)

बर्थडे पार्टी वास् जस्ट फैंटास्टिक :)
भारती ने अपने और भी कई दोस्तों को बुलाया हुआ था
कुछ कॉलेज के
कुछ स्कूल से
कुछ मोहल्ले से
ये मनु के लिए बिलकुल ही नया सा अनुभव था
किसी लड़की दोस्त के घर जाने का
और एक बर्थडे पार्टी अटेंड करने का
पार्टी ,म्यूजिक ,हँसी ,बेतकल्लुफ मौहोल
उससे भी अच्छा था वो प्यार
वो अपनापन
जिस तरह भारती ने मनु को उस पार्टी में ट्रीट किया :)

खाना वास् जस्ट ओसम :)
खासकर अंडा-करी :)
अब वेज फॅमिली से आनेवाले मनु ने पहली बार कोई नॉनवेज डिश खाई थी 
और भी इतनी टेस्टी की आज 28 साल बाद भी स्वाद याद है 
पता नहीं मनु ने कितनी बार अंडा-करी ली और खाई 


इतने साल बीत गए
मनु ने चौथाई दुनिया घूम ली
इतने इंटरनेशनल कुज़ीन खाये पर
वो अंडा-करी आज भी याद आती है
पता नहीं उस खाने में कुछ ख़ास था या
भारती और उसके प्यार-व्यवहार में

भारती आज भी ऐसी ही है
सॉफ्ट, बेतकल्लुफ, बेहतरीन इंसान
बेहतरीन दोस्त 
और अपनी अंडा-करी की तरह
अपने ऑर्बिट में आये हर व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक स्वाद और महक घोलती हुयी :)

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Tuesday, July 7, 2020

जीवन नदी में अक्सर

जीवन नदी में अक्सर
मुश्किल लहरें भी आती है
पर गौरतलब है आखिरकार
ये भी तो लौट जाती हैं

इन्हे शिद्दत से महसूस करना
कुछ घायल हो जाना
कुछ उदास भी शायद
और बस जाने देना इन लहरों को

इनसे दिल लगाना तो
इनके साथ बह जाना होगा
और जो बह जाते हैं
वो फिर कभी किनारे कहाँ पाते हैं?
वो तो फिर गहरे और गहरे
समंदर में डूबे जाते हैं  

जीवन नदी में अक्सर
मुश्किल लहरें भी आती है
पर गौरतलब है आखिरकार
ये भी तो लौट जाती हैं।

#मन7
#लाइफ #जीवन #life #jeewan  manojgupta0707.blogspot.com
(ये कविता सनी ,जो खुद एक बेहतरीन पोएट हैं ,के एक सन्देश से जन्मी है
तो इस कविता का सारा श्रेय मेरे दोस्त और बेटे "सनी गोयल" को :) )