अब रज्जन जी का जीवन एक शांत झील जैसा हो गया था
उसका 1987 से 1994 तक कोई डेली
काम पे जाने वाला एक्टिव बिज़नेस नहीं था
तो वो कभी थोड़ा सा शेयर्स में इन्वेस्टमेंट
कभी किसी प्लॉट में
कभी किसी भी और तरह का इन्वेस्टमेंट
तो रज्जन जी कई तरह के कामों में अपना पैसा और समय लगा रहे थे
करीब 7 साल ऐसा ही ,कभी सीधा कभी टेढ़ा चला
जब तक 1994 में उसके बड़े बेटे मनु ने कॉलेज ख़त्म नहीं कर लिया
रज्जन जी चाहते थे की मनु आगे पढ़ाई करके पीएचडी करले और
किसी कॉलेज में प्रोफेसर बन जाए
जबकि मनु के मन पर तो पैसा कमाने का भूत सवार था
मनु बिज़नेस करना चाहता था
रज्जन जी ने बेटे मनु को बहुत समझाने की कोशिश की ,वो अक्सर कहते -
"बेटा बिज़नेस लाइफ में बिलकुल सुकून नहीं है ,
तू इंटेलीजेंट है ,पीएचडी करके कहीं प्रोफेसर हो जा
पैसे की फिक्र ना कर ,हमारे पास है
कॉलेज के पहले ही दिन तू लम्बी गाड़ी लेकर कॉलेज बच्चों को पढ़ाने जाएगा
मज़े की लाइफ जियेगा ,
सुबह 10 बजे जा, शाम को 5 बजे वापिस
फिर कोई चिंता नहीं, अपने लिए टाइम ही टाइम "
पर रज्जन जी की कोई भी बात मनु के पल्ले नहीं पड़ रही थी
उसके मनपर बस एक ही धुन सवार थी -
बिज़नेस -पैसा , बिज़नेस- पैसा ,
रज्जन जी के दोस्त नरेंद्र पेपर ट्रडिंग बिज़नेस में थे
और सावी के कजन भाई भी एक नामी पेपर मिल मालिक थे
तो रज्जन जी ने मनु को पेपर ट्रेडिंग का काम शुरू करवा दिया
मनु पेपर ट्रेडिंग का काम कर तो रहा था पर
कहीं ना कहीं मनु का मन फुटवियर बिज़नेस में ही था
क्युकी सारे रिश्तेदार तो फुटवियर मैन्युफैक्चरिंग में ही थे
तो जब भी कोई सोशल मीट होती तो बातें बस फुटवियर की ही होती
इधर पेपर बिज़नेस में भी कुछ ख़ास नहीं हो पा रहा था तो
मनु जिद करने लगा की वो तो फुटवियर फैक्ट्री ही लगाना चाहता है
पर रज्जन जी ....वो मनु के इस फैसले के सख्त खिलाफ था
असल में ,
रज्जन जी के मन में फुटवियर बिज़नेस को लेकर कई भावनायें प्रवाहित हो रहीं थी
एक तो 10 साल पहले 1987 में रज्जन जी बड़ी ठसक से ये कहकर फुटवियर लाइन छोड़कर आये थे की -
"फुटवियर लाइन अच्छी लाइन नहीं है ,
इसमें बहुत एयर पोलुशन है और दिन का चैन और रात की नींद नहीं है
इसलिए मैं ये लाइन छोड़ रहा हूँ "
दूसरे ,जब उन्होंने 1987 में लाइन छोड़ी थी तब वो सबसे बड़े कुछ फैक्ट्री वालों में शुमार थे
आज 10 सालों के बाद 1997 में एक बहुत बड़ी फैक्ट्री लगाने के लिए जो पूंजी चाहिए थी,
वो शायद उनके पास आज नहीं थी
और अगर आज उनका बेटा मनु किसी छोटे लेवल से काम शुरू करता है तो इसमें,
रज्जन जी की जगहसाई थी
की देखो बंगाल फुटवियर वालों के बेटे मनु ने कितनी छोटी सी फैक्ट्री लगाईं है :)
बाप बेटे में खूब तकरार हुयी
पर मनु फिर भी नहीं माना
और आख़िरकार बंगाल फुटवियर वालों के बेटे मनु ने
40 गज की छोटी सी
किराये की बेसमेंट में
केवल 2 वर्टीकल मशीनो के साथ
फुटवियर फैक्ट्री शुरू कर ही दी
रज्जन जी फैक्ट्री के मुहूर्त पर भी नहीं गए।
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उसका 1987 से 1994 तक कोई डेली
काम पे जाने वाला एक्टिव बिज़नेस नहीं था
तो वो कभी थोड़ा सा शेयर्स में इन्वेस्टमेंट
कभी किसी प्लॉट में
कभी किसी भी और तरह का इन्वेस्टमेंट
तो रज्जन जी कई तरह के कामों में अपना पैसा और समय लगा रहे थे
करीब 7 साल ऐसा ही ,कभी सीधा कभी टेढ़ा चला
जब तक 1994 में उसके बड़े बेटे मनु ने कॉलेज ख़त्म नहीं कर लिया
रज्जन जी चाहते थे की मनु आगे पढ़ाई करके पीएचडी करले और
किसी कॉलेज में प्रोफेसर बन जाए
जबकि मनु के मन पर तो पैसा कमाने का भूत सवार था
मनु बिज़नेस करना चाहता था
रज्जन जी ने बेटे मनु को बहुत समझाने की कोशिश की ,वो अक्सर कहते -
"बेटा बिज़नेस लाइफ में बिलकुल सुकून नहीं है ,
तू इंटेलीजेंट है ,पीएचडी करके कहीं प्रोफेसर हो जा
पैसे की फिक्र ना कर ,हमारे पास है
कॉलेज के पहले ही दिन तू लम्बी गाड़ी लेकर कॉलेज बच्चों को पढ़ाने जाएगा
मज़े की लाइफ जियेगा ,
सुबह 10 बजे जा, शाम को 5 बजे वापिस
फिर कोई चिंता नहीं, अपने लिए टाइम ही टाइम "
पर रज्जन जी की कोई भी बात मनु के पल्ले नहीं पड़ रही थी
उसके मनपर बस एक ही धुन सवार थी -
बिज़नेस -पैसा , बिज़नेस- पैसा ,
रज्जन जी के दोस्त नरेंद्र पेपर ट्रडिंग बिज़नेस में थे
और सावी के कजन भाई भी एक नामी पेपर मिल मालिक थे
तो रज्जन जी ने मनु को पेपर ट्रेडिंग का काम शुरू करवा दिया
मनु पेपर ट्रेडिंग का काम कर तो रहा था पर
कहीं ना कहीं मनु का मन फुटवियर बिज़नेस में ही था
क्युकी सारे रिश्तेदार तो फुटवियर मैन्युफैक्चरिंग में ही थे
तो जब भी कोई सोशल मीट होती तो बातें बस फुटवियर की ही होती
इधर पेपर बिज़नेस में भी कुछ ख़ास नहीं हो पा रहा था तो
मनु जिद करने लगा की वो तो फुटवियर फैक्ट्री ही लगाना चाहता है
पर रज्जन जी ....वो मनु के इस फैसले के सख्त खिलाफ था
असल में ,
रज्जन जी के मन में फुटवियर बिज़नेस को लेकर कई भावनायें प्रवाहित हो रहीं थी
एक तो 10 साल पहले 1987 में रज्जन जी बड़ी ठसक से ये कहकर फुटवियर लाइन छोड़कर आये थे की -
"फुटवियर लाइन अच्छी लाइन नहीं है ,
इसमें बहुत एयर पोलुशन है और दिन का चैन और रात की नींद नहीं है
इसलिए मैं ये लाइन छोड़ रहा हूँ "
दूसरे ,जब उन्होंने 1987 में लाइन छोड़ी थी तब वो सबसे बड़े कुछ फैक्ट्री वालों में शुमार थे
आज 10 सालों के बाद 1997 में एक बहुत बड़ी फैक्ट्री लगाने के लिए जो पूंजी चाहिए थी,
वो शायद उनके पास आज नहीं थी
और अगर आज उनका बेटा मनु किसी छोटे लेवल से काम शुरू करता है तो इसमें,
रज्जन जी की जगहसाई थी
की देखो बंगाल फुटवियर वालों के बेटे मनु ने कितनी छोटी सी फैक्ट्री लगाईं है :)
बाप बेटे में खूब तकरार हुयी
पर मनु फिर भी नहीं माना
और आख़िरकार बंगाल फुटवियर वालों के बेटे मनु ने
40 गज की छोटी सी
किराये की बेसमेंट में
केवल 2 वर्टीकल मशीनो के साथ
फुटवियर फैक्ट्री शुरू कर ही दी
रज्जन जी फैक्ट्री के मुहूर्त पर भी नहीं गए।
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