ये कहानी मनु नाम के एक लड़के की है
( मनु की कहानी का "सर" मूवी और पूजा भट्ट से क्या रिश्ता है ये आपको कहानी के दौरान ही पता चलेगा:)
थोड़ा सस्पेंस भी तो रहना चाहिए ना :)
मनु बचपन से ही एक हकलाने वाला बच्चा था
ये कब शुरू हुआ
कैसे शुरू हुआ
इसका कोई पक्का पक्का पता तो नहीं है फिर भी...
मनु जब बच्चा था तो गलती से अपने पापा के कुछ बेहद जरूरी पेपर शायद फाड़ दिए
पापा एक मेहनतकश इंसान थे
शायद उनके लिए उन पेपर का फटना बहुत बड़े पैसों का नुक्सान रहा होगा
खुद को रोक ना सके और मनु को एक थप्पड़ ...
शायद तभी से ये हकलाना......
सबसे पहला वाक्या जो मनु को अपने हकलाने का याद है वो बहुत बचपन के समय का है
वो शायद 6-7 साल का रहा होगा
माँ ने पास की दूकान से कुछ सामान लेने भेजा था
वो चुपचाप दूकान से थोड़ा सा दूर ही खड़ा हो गया था
ताकि दूकान पे तब जाये जब और कोई ग्राहक वहाँ ना हो
कोई उसे हकलाते ना सुन सके
सबके जाने के बाद वो गया और 5 का नोट दिया ,बोला - "ची -ची -ची -चीनी....
दुकानवाले के चेहरे पे हँसी थी ,उसने ठीक से सुन लिया था फिर भी बोला-
" फिर से बोल "
मनु- "ची -ची -ची -चीनी दे दो "
उसने पहले से भी ज्यादा हकलाते हुए बोला था
निगाहें नीचे थी
स्वर रुआंसा
और आँखों में पानी...
ऐसे अपमान के मौके मनु के जीवन में बार-बार आते रहे
अनजान लोग ही नहीं ,बल्कि जाने-अनजाने में कभी-कभी दोस्त,रिश्तेदार भी...
कोई भी अछूता नहीं था
जिसको जहा मौक़ा मिलता उसका मज़ाक उड़ाया जाता
उसके लिए अनजान लोगों से बात करना सबसे ज्यादा मुश्किल था
और फोन पर किसी से बात करना ,रास्ता पूछना तो बहुत बहुत मुश्किल
(क्या करें तब गूगल भी नहीं था ना :) )
स्कूल में मेधावी होने के बावजूद क्लास में सबसे पीछे बैठना
ताकि टीचर से छुप सके
कहीं टीचर मनु से कोई सवाल न पूछ ले
और अगर कहीं पूछ लिया तो मनु चुप रहता ,
जैसे कुछ आता ही ना हो
हालांकि जवाब उसे सारे आते थे :)
सारी टीचर रिजल्ट देखकर हमेशा हैरान होती -
"ये मनु इतने अच्छे नंबर लाता कैसे है ?
क्लास में तो कुछ बोलता नहीं
शायद नक़ल करता होगा :)"
टीचर उसे चाहे जो समझे पर मनु एक शार्प बच्चा था
हर साल फाइनल एग्जाम होते ही ,रिजल्ट आने से पहले ही अगली क्लास की बुक्स वो ले आता था
और कई चैप्टर स्कूल में नयी क्लासेज शुरू होने से पहले ही वो पढ़ चुका होता था
पढ़ाई तो बढ़िया हो रही थी पर स्कूल में स्टेज पे वो कभी नहीं गया :)
जो बच्चा साधारण बातचीत में हकलाता हो वो स्टेज पे स्पीच कैसे..
हर व्यक्ति उसे ठीक होने की नयी-नयी तरकीबें बताता था
"कबूतर का झूठा पानी पियो"
"गरम पानी से गरारे करो"
"ठंडी चीज़ें खाना/पीना छोड़ दो"
मनु ने घर में सबसे छुप के पूना से वीपीपी से एक ऑडियो कोर्स भी मंगाया
जो दावा करता था की ये कोर्स उसका हकलाना ठीक कर देगा
उस भले जमाने में वो 500 रुपए का कोर्स था
(मनु ने इसमें अपनी कई महीने की जमा जेबखर्ची लगा दी थी )
मगर सब बेकार
पापा ने एक बार हॉस्पिटल में दिखाया था तो डॉक्टर ने -
- "गले में टॉन्सिल है" कहकर आपरेशन कर दिया :)
पर मनु को इसमें बहुत मज़ा आया
क्यूकि ओपरेशन के बाद उसे भर-भर के आइस क्रीम और कोल्ड ड्रिंक खाने-पीने मिलीं:)
(टॉन्सिल के ओप्रशन में गले में कुछ सर्जरी होती है तो कुछ दिन केवल ठंडी चीज़े ही खानी-पीनी होती हैं)
ऐसे ही दिन-महीने-साल बीतते रहे
1993 में जब "सर" मूवी आयी तब मनु 20 साल का था, कॉलेज में पढ़ रहा था
(उस समय भी वो सबसे झूठ बोलकर स्पीच थेरेपी की क्लास लेने डॉक्टर सुजाथा के पास जाया करता था
वो अपने दोस्तों को भी नहीं बताता था की कहाँ जा रहा है
हालाँकि मनु को कोई फायदा होता नहीं दिख रहा था )
एक बार सब दोस्तों का प्रोग्राम बना था "सर" मूवी देखने का
उस मूवी में पूजा भट्ट ने एक ऐसी लड़की का किरदाई निभाया था- "जो हकलाती थी"
फिल्म देखने के समय और बाहर आने के बाद दोस्त खूब हसें थे
एक दोस्त डिम्पल (लड़का था :) ) ने कहा -
"मनु तू तो यार बिलकुल सर मूवी की पूजा भट्ट है :) "
बाद में भी डिम्पल जब भी मिलता था ,हमेशा ऐसे ही कहता था
बड़ी अजीब सी फीलिंग थी ये मनु के लिए
कैसी थी ये बयान करना मुश्किल है
बस समझिये एक अंधा कुआँ था और दूर-दूर तक रोशनी कहीं दिखती ही ना थी
बहुत बाद में करीब 27 साल की उम्र में शायद किसी न्यूज़पेपर में या याद नहीं कहाँ से
उसे एक PERSONALITY DEVELOPMENT कोर्स का पता चला
तब जाके जीवन में पहली बार उसने जाना के
ये समस्या शरीर की नहीं बल्कि मन के आत्मविश्वास से जुडी है
उस कोर्स में वो सब कुछ होता था जो आत्मविश्वास बढ़ाता था
"स्पीच,
मिरर स्पीच,
स्टेज स्पीच,
एक्टिंग,
प्रोत्साहन,गलती पर भी शाबासी"
वहां वो सब कुछ होता था जो ,अगर अंदर मन में कुछ टूटा हो तो उसको जोड़ देता है
वहां मनु ने 20 लोगों की क्लास के सामने बोलने से शुरू किया
हर दिन के साथ चीज़े आसान होती गयीं
आत्मविश्वास बढ़ता गया
अवसाद के बादल छटने लगे
और लगभग 2 साल बाद मनु 1000 लोगों की सभा में भी बोला और
अच्छा बोला
शायद वो वहाँ धाराप्रवाह ना बोला हो
शायद बीच में कहीं हकलाया भी हो
पर ये महत्वहीन हो गया था उसके लिए तब
तब वो ये समझ चुका था की
" क्या बोला जा रहा है वो महत्वपूर्ण है
कैसे... कितना धाराप्रवाह...
ये इतना कुछ महत्वपूर्ण नहीं होता "
ये समझ आते ही कुछ बहुत मन का टूटा हुआ जुड़ गया था
उसके मन के अंदर :)
अब ये समस्या उसके साथ है भी या नहीं भी है
पर हाँ उसके लिए दुःख का कारण नहीं थी :)
वो अँधेरे कुँए से बाहर निकल आया था ,और बहुत खुश था :)
अब मनु घर में ,
परिवार में,
दोस्तों में
कहीं भी किसी बच्चे को बोलने में हिचकते देखता
तो बस जुट जाता था उसका आत्मविश्वास बढ़ाने में
बच्चो के अपने बहुत छोटे-छोटे डर, परेशानियां होती हैं
हकलाना, तुतलाना, बिस्तर में पेशाब करना ...इत्यादि
उन्हें बस बहुत सा प्यार, थोड़ा सा समय, अपनापन ,प्रोत्साहन चाहिए होता है
मनु का सोचना है की और अब कोई बच्चा इस भंवर में नहीं घिरना चाहिए
उसे मालून है ये कैसा अंधा कुआँ है
जितना इसमें गिरते जाते है ,अँधेरा बढ़ता जाता है
रोशनी दूर और दूर होती जाती है
सुनहरी सुबह पर हर बच्चे का सामान हक़ है और ये उसे मिलना ही चाहिए
नटशेल में बात ये है की अब कोई भी और बच्चा
कभी "सर" मूवी की पूजा भट्ट नहीं बनना चाहिए :))
(वैसे अब आपको बता ही दूँ की ये मनु कोई और नहीं आपका अपना नाचीज़ दोस्त यानि की मैं खुद हूँ :) )
#बचपन #BACHPAN
manojgupta0707.blogspot.com
( मनु की कहानी का "सर" मूवी और पूजा भट्ट से क्या रिश्ता है ये आपको कहानी के दौरान ही पता चलेगा:)
थोड़ा सस्पेंस भी तो रहना चाहिए ना :)
मनु बचपन से ही एक हकलाने वाला बच्चा था
ये कब शुरू हुआ
कैसे शुरू हुआ
इसका कोई पक्का पक्का पता तो नहीं है फिर भी...
मनु जब बच्चा था तो गलती से अपने पापा के कुछ बेहद जरूरी पेपर शायद फाड़ दिए
पापा एक मेहनतकश इंसान थे
शायद उनके लिए उन पेपर का फटना बहुत बड़े पैसों का नुक्सान रहा होगा
खुद को रोक ना सके और मनु को एक थप्पड़ ...
शायद तभी से ये हकलाना......
सबसे पहला वाक्या जो मनु को अपने हकलाने का याद है वो बहुत बचपन के समय का है
वो शायद 6-7 साल का रहा होगा
माँ ने पास की दूकान से कुछ सामान लेने भेजा था
वो चुपचाप दूकान से थोड़ा सा दूर ही खड़ा हो गया था
ताकि दूकान पे तब जाये जब और कोई ग्राहक वहाँ ना हो
कोई उसे हकलाते ना सुन सके
सबके जाने के बाद वो गया और 5 का नोट दिया ,बोला - "ची -ची -ची -चीनी....
दुकानवाले के चेहरे पे हँसी थी ,उसने ठीक से सुन लिया था फिर भी बोला-
" फिर से बोल "
मनु- "ची -ची -ची -चीनी दे दो "
उसने पहले से भी ज्यादा हकलाते हुए बोला था
निगाहें नीचे थी
स्वर रुआंसा
और आँखों में पानी...
ऐसे अपमान के मौके मनु के जीवन में बार-बार आते रहे
अनजान लोग ही नहीं ,बल्कि जाने-अनजाने में कभी-कभी दोस्त,रिश्तेदार भी...
कोई भी अछूता नहीं था
जिसको जहा मौक़ा मिलता उसका मज़ाक उड़ाया जाता
उसके लिए अनजान लोगों से बात करना सबसे ज्यादा मुश्किल था
और फोन पर किसी से बात करना ,रास्ता पूछना तो बहुत बहुत मुश्किल
(क्या करें तब गूगल भी नहीं था ना :) )
स्कूल में मेधावी होने के बावजूद क्लास में सबसे पीछे बैठना
ताकि टीचर से छुप सके
कहीं टीचर मनु से कोई सवाल न पूछ ले
और अगर कहीं पूछ लिया तो मनु चुप रहता ,
जैसे कुछ आता ही ना हो
हालांकि जवाब उसे सारे आते थे :)
सारी टीचर रिजल्ट देखकर हमेशा हैरान होती -
"ये मनु इतने अच्छे नंबर लाता कैसे है ?
क्लास में तो कुछ बोलता नहीं
शायद नक़ल करता होगा :)"
टीचर उसे चाहे जो समझे पर मनु एक शार्प बच्चा था
हर साल फाइनल एग्जाम होते ही ,रिजल्ट आने से पहले ही अगली क्लास की बुक्स वो ले आता था
और कई चैप्टर स्कूल में नयी क्लासेज शुरू होने से पहले ही वो पढ़ चुका होता था
पढ़ाई तो बढ़िया हो रही थी पर स्कूल में स्टेज पे वो कभी नहीं गया :)
जो बच्चा साधारण बातचीत में हकलाता हो वो स्टेज पे स्पीच कैसे..
ये उसकी चाय का कप नहीं था , I MEANT ,THIS WAS NOT HIS CUP OF TEA :)
हर व्यक्ति उसे ठीक होने की नयी-नयी तरकीबें बताता था
"कबूतर का झूठा पानी पियो"
"गरम पानी से गरारे करो"
"ठंडी चीज़ें खाना/पीना छोड़ दो"
मनु ने घर में सबसे छुप के पूना से वीपीपी से एक ऑडियो कोर्स भी मंगाया
जो दावा करता था की ये कोर्स उसका हकलाना ठीक कर देगा
उस भले जमाने में वो 500 रुपए का कोर्स था
(मनु ने इसमें अपनी कई महीने की जमा जेबखर्ची लगा दी थी )
मगर सब बेकार
पापा ने एक बार हॉस्पिटल में दिखाया था तो डॉक्टर ने -
- "गले में टॉन्सिल है" कहकर आपरेशन कर दिया :)
पर मनु को इसमें बहुत मज़ा आया
क्यूकि ओपरेशन के बाद उसे भर-भर के आइस क्रीम और कोल्ड ड्रिंक खाने-पीने मिलीं:)
(टॉन्सिल के ओप्रशन में गले में कुछ सर्जरी होती है तो कुछ दिन केवल ठंडी चीज़े ही खानी-पीनी होती हैं)
ऐसे ही दिन-महीने-साल बीतते रहे
1993 में जब "सर" मूवी आयी तब मनु 20 साल का था, कॉलेज में पढ़ रहा था
(उस समय भी वो सबसे झूठ बोलकर स्पीच थेरेपी की क्लास लेने डॉक्टर सुजाथा के पास जाया करता था
वो अपने दोस्तों को भी नहीं बताता था की कहाँ जा रहा है
हालाँकि मनु को कोई फायदा होता नहीं दिख रहा था )
एक बार सब दोस्तों का प्रोग्राम बना था "सर" मूवी देखने का
उस मूवी में पूजा भट्ट ने एक ऐसी लड़की का किरदाई निभाया था- "जो हकलाती थी"
फिल्म देखने के समय और बाहर आने के बाद दोस्त खूब हसें थे
एक दोस्त डिम्पल (लड़का था :) ) ने कहा -
"मनु तू तो यार बिलकुल सर मूवी की पूजा भट्ट है :) "
बाद में भी डिम्पल जब भी मिलता था ,हमेशा ऐसे ही कहता था
बड़ी अजीब सी फीलिंग थी ये मनु के लिए
कैसी थी ये बयान करना मुश्किल है
बस समझिये एक अंधा कुआँ था और दूर-दूर तक रोशनी कहीं दिखती ही ना थी
बहुत बाद में करीब 27 साल की उम्र में शायद किसी न्यूज़पेपर में या याद नहीं कहाँ से
उसे एक PERSONALITY DEVELOPMENT कोर्स का पता चला
तब जाके जीवन में पहली बार उसने जाना के
ये समस्या शरीर की नहीं बल्कि मन के आत्मविश्वास से जुडी है
उस कोर्स में वो सब कुछ होता था जो आत्मविश्वास बढ़ाता था
"स्पीच,
मिरर स्पीच,
स्टेज स्पीच,
एक्टिंग,
प्रोत्साहन,गलती पर भी शाबासी"
वहां वो सब कुछ होता था जो ,अगर अंदर मन में कुछ टूटा हो तो उसको जोड़ देता है
वहां मनु ने 20 लोगों की क्लास के सामने बोलने से शुरू किया
हर दिन के साथ चीज़े आसान होती गयीं
आत्मविश्वास बढ़ता गया
अवसाद के बादल छटने लगे
और लगभग 2 साल बाद मनु 1000 लोगों की सभा में भी बोला और
अच्छा बोला
शायद वो वहाँ धाराप्रवाह ना बोला हो
शायद बीच में कहीं हकलाया भी हो
पर ये महत्वहीन हो गया था उसके लिए तब
तब वो ये समझ चुका था की
" क्या बोला जा रहा है वो महत्वपूर्ण है
कैसे... कितना धाराप्रवाह...
ये इतना कुछ महत्वपूर्ण नहीं होता "
ये समझ आते ही कुछ बहुत मन का टूटा हुआ जुड़ गया था
उसके मन के अंदर :)
अब ये समस्या उसके साथ है भी या नहीं भी है
पर हाँ उसके लिए दुःख का कारण नहीं थी :)
वो अँधेरे कुँए से बाहर निकल आया था ,और बहुत खुश था :)
अब मनु घर में ,
परिवार में,
दोस्तों में
कहीं भी किसी बच्चे को बोलने में हिचकते देखता
तो बस जुट जाता था उसका आत्मविश्वास बढ़ाने में
बच्चो के अपने बहुत छोटे-छोटे डर, परेशानियां होती हैं
हकलाना, तुतलाना, बिस्तर में पेशाब करना ...इत्यादि
उन्हें बस बहुत सा प्यार, थोड़ा सा समय, अपनापन ,प्रोत्साहन चाहिए होता है
मनु का सोचना है की और अब कोई बच्चा इस भंवर में नहीं घिरना चाहिए
उसे मालून है ये कैसा अंधा कुआँ है
जितना इसमें गिरते जाते है ,अँधेरा बढ़ता जाता है
रोशनी दूर और दूर होती जाती है
सुनहरी सुबह पर हर बच्चे का सामान हक़ है और ये उसे मिलना ही चाहिए
नटशेल में बात ये है की अब कोई भी और बच्चा
कभी "सर" मूवी की पूजा भट्ट नहीं बनना चाहिए :))
(वैसे अब आपको बता ही दूँ की ये मनु कोई और नहीं आपका अपना नाचीज़ दोस्त यानि की मैं खुद हूँ :) )
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