घर-परिवार के ,आसपास के
सभी लोग हैरान थे
ये रज्जन जी का अचानक यूँ चले जाना ....कैसे ?
ना वो बीमार थे
ना कभी कोई दवाइयाँ खाने की उनको कभी जरुरत पडी
अरे वो तो ऐसे व्यक्ति थे जो बुखार होने पर भी ये कहते थे की -
"ये बुखार वायरल होता है 3 -4 दिन तो रहेगा ही
दवाई खाओ या ना खाओ 3 -4 दिन दिन में खुद ठीक हो जाएगा "
और वो हमेशा 3 -4 दिन बाद ठीक हो भी जाते थे
फिर अचानक ऐसा क्या हुआ ?
फिर सावी ने पूरे घर को बताया की
वो क्या दुःख था जो रज्जन जी को अंदर ही अंदर खा रहा था
ये पिछले साल 2006 की बात थी
अपने सामजिक कार्यो के दौरान रज्जन जी एक सामजिक संस्था से जुड़े जो
"मुफ्त आँखों का कैंप" लगवाने में सहायता करती थी।
उन्होंने सोचा के उनके गांव जहांगीरपुर को तो इस कैंप की बहुत जरुरत है
तो क्यों ना ये कैंप अपने गांव जहांगीरपुर में लगाया जाए
(गांव-देहात में जहाँ लोग जीवन की साधारण जरुरतों को ही ठीक से पूरा नहीं कर पाते , तो आँखों का चेकअप कैसे करा पाएंगे ,इन कैम्पों में गरीब लोगो की आखों का मुफ्त चेकअप किया जाता है और जिसको दवाई या चश्मे की जरुरत होती है उनको वो मुफ्त वितरित किये जाते है , जिसको किसी भी तरह के ओप्रशन की जरुरत होती है ,उन्हें गांव से बस से दिल्ली लाना ,उनका दिल्ली के किसी बड़े हस्पताल में मुफ्त ओप्रशन करवाना और फिर गांव तक छुड़वाना होता है, ये सारा कुछ मरीज़ के लिए मुफ्त होता है )
बहुत सालों से एक और बात रज्जन जी के मन में चल रही थी
अपने लाला (पिता) का एक सम्मान समारोह आयोजित करने की
तो रज्जन जी ने सितम्बर 2006 में एक भव्य सम्मान समारोह अपने गांव जहांगीरपुर में आयोजित किया
"लाला परमेश्वरी दयाल सम्मान समारोह "
इस समारोह में आस-पास के सभी गावो से
80 वर्ष या अधिक आयु के 100 बुजुर्गों को ससम्मान आमंत्रित किया गया
लालाजी समेत सभी 100 बुजुर्गों को मंच पर बुलाकर फूलों के हार पहनाये गए
और एक सम्मान चिन्ह, कपडे और कुछ नकद रूपये देकर उन्हें सम्मानित किया गया
(निश्चित ही वो दिन उन सभी बुजुर्गों के लिए एक यादगार सम्मान का पल लाया होगा
क्युकी सोच के देखिये क्या हम अपने बुजुर्गों को आम जीवन में
अपना उतना समय ,प्यार और सम्मान दे पाते हैं ,जिसके वो हक़दार हैं )
इस समारोह में क्षेत्र के मेंबर पार्लियामेंट ,मिनिस्टर,विधायक, DC , DCP समेत आसपास के गावों के करीब 20000 गांव वालों ने शिरकत की
विभिन्न तरह के सांस्कृतिक कार्यक्रम हुए
कई तरह का खाना-पीना इत्यादि
"मुफ्त आँखों का कैंप" भी लगाया गया
जिसमे करीब 2000 ग्रामीण लोगों का मुफ्त चेकअप हुआ
लगभग हर व्यक्ति को ही कोई ना कोई छोटी-बड़ी समस्या पाई गयी
तो जिनको दवाई चाहिए थी ,दवाई,
जिनको चश्मे की जरुरत थी उन्हें चश्मे मुफ्त मिले
और करीब 700 आँखों के ओप्रशन के केस चिन्हित किये गए
(ये सब ओप्रशन अगले 2 महीने में सफलतापूर्वक हो गए )
ये समारोह जहांगीरपुर गांव के इतिहास का सबसे भव्यतम समारोह था
अब प्र्शन ये उठता है की रज्जन जी ने आखिर ये सब तामझाम क्यों किया ?
परोपकार के लिए ?
मैं ये नहीं मानता
मुझे लगता इसके पीछे भी बाल रज्जन की वही कसम थी
"मेरे लाला जमींदार थे और मुझे अपने लाला को फिर जमींदार बनाना है "
इस भव्यतम समारोह के द्वारा रज्जन ने केवल अपने गांव ही नहीं आसपास के सभी गावों में ,
पूरे प्रशासन मेँ ये सन्देश साफ़ कर दिया था की
इस क्षेत्र में बस एक ही जमींदार है
और वो हैं मेरे लाला "लाला परमेश्वरि दयाल "
2006 में इस सम्मान समारोह के दिन लालाजी की उम्र 96 वर्ष थी
पूरे 6 फ़ीट लम्बे लालाजी पूर्णतः स्वस्थ थे
बीपी,शुगर,दिल की किसी बीमारी से कोसों दूर
रोज़ सुबह पैदल अपने खेत तक जाना और वापिसी में
कोई साग ,सब्जी ,गन्ने , खेत से काट के लेते आना
उनका रोज का नित्य कर्म था
(ये आना-जाना रोज करीब 10 किलोमीटर पड़ता था :) )
और फिर पूरा दिन अपनी गांव की कपडे की दूकान पर बैठकर
अखवार और सामजिक और राजनैतिक पत्रिकाएँ पढ़ना
और दूकान पे आने वाले ग्राहकों को राजनीती की,
देश-दुनिया के अद्बुध स्थानों और घटनाओ के बारे में बताना
लालाजी कभी विदेश नहीं गए थे
पर विश्व की ऐसी कोई भी जगह नहीं थी जिसका पूरा इतिहास लालाजी न जानते हों
पोते-पोती या कोई भी जब कहता की लालाजी इन छुट्टियों में हम फलाने देश घूमने जा रहे हैं
तो लालाजी पूरी डिटेल बता देते की कौन-कौन जी जगह उन्हें जरूर देखनी चाहिए :) )
इस भव्यतम समारोह के ठीक 13 दिन बाद अचानक एक सुबह
लालाजी को पता नहीं क्या भान हुआ
वो छोटे बेटे केशव से बोले-
"केशो अब मैं पूरा हो रहा हूँ ,
मोए बस रज्जन से मिलनो है ,
मोऐ रज्जन माई दिल्ली ले चल "
केशव ने लालाजी को गाड़ी में बिठाया
गाड़ी गांव से दिल्ली के सेंट स्टेफेन हॉस्पिटल की और दौड़ पडी
रास्ते से केशव ने भैय्या रज्जन को फोन किया
इधर रज्जन अपने दिल्ली के घर से हॉस्पिटल भागा
हॉस्पिटल में लालाजी ने रज्जन का हाथ अपने हाथ में लेकर बस इतना ही कहा
"बड़ा जिद्दी है रे तू रज्जन
आखिकार तूने मोए फिर जमींदार बना ही दियो "
(अब रज्जन ने जाना
केवल बड़ी जमीन खरीद होने भर से ही कोई जमींदार नहीं बन जाता
ये तो आम लोगों के मन में जब किसी व्यक्ति के प्रति अगाध आदर और सम्मान जागता है
तो वो व्यक्ति सही मायनो में "जमींदार" बनता है
और अब जाकर लाला जी ने वो भाव
आसपास गावों से आये हज़ारों लोगों की आखों में अपने लिए महसूस कर लिया था )
और बेटे रज्जन की गोद में एक अबोध बालक की तरह सर रखकर
लालाजी हमेशा के लिए सो गए
रज्जन के अलावा ना तो कभी किसी को ये घटना समझ आयी
और ना ही रज्जन और उसके लाला का आपसी अगाध प्रेम
लालाजी की अंतिम यात्रा में उनके दर्शन के लिए आसपास गावों के हज़ारों लोग शामिल हुए
उनके दाह-संस्कार के अगले दिन जब रज्जन और बाकी परिवार के लोग
लालाजी फूल (अस्थियां) चुनने पहुंचे
तो उन्हें कुछ 2 -4 ही फूल मिले
शमशान के पंडित जी ने बताया की
कल से ही आसपास के गावों के सैकड़ों लोग आते गए
और लालाजी का एक फूल अपने पूजाघर के लिए लेते गए
( हमारे क्षेत्र में ये विश्वास है की अगर कोई जन किसी महान व्यक्ति का फूल (अस्थिया)
अपने पूजाघर में रखता है तो उस घर में सुख और समृद्धि का वास होता है )
आज जाने कितने घरों के पूजाघरों में वो "जमींदार" अपनी सल्तनत बना चुका है
लालाजी के जाने के बाद रज्जन जी चुप-चुप रहने लगे थे
लालाजी के जाने से वो टूट गए थे
या फिर हो सकता है "लक्ष्य" पूरा हो गया था तो
रज्जन जी खुद को निरर्थक समझने लगे हो
घर में सब लोग अपने-अपने जीवन में मस्त थे
किसी को कोई भान नहीं था ,रज्जन जी की मनस्तिथी का
बस सावी को अनुमान था की
रज्जन जी किस दुःख से गुजर रहे है
और लालाजी के जाने के 6 महीने बाद 2007 में
65 साल की उम्र में ,
वो प्रवासी
रज्जन भी ....
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सभी लोग हैरान थे
ये रज्जन जी का अचानक यूँ चले जाना ....कैसे ?
ना वो बीमार थे
ना कभी कोई दवाइयाँ खाने की उनको कभी जरुरत पडी
अरे वो तो ऐसे व्यक्ति थे जो बुखार होने पर भी ये कहते थे की -
"ये बुखार वायरल होता है 3 -4 दिन तो रहेगा ही
दवाई खाओ या ना खाओ 3 -4 दिन दिन में खुद ठीक हो जाएगा "
और वो हमेशा 3 -4 दिन बाद ठीक हो भी जाते थे
फिर अचानक ऐसा क्या हुआ ?
फिर सावी ने पूरे घर को बताया की
वो क्या दुःख था जो रज्जन जी को अंदर ही अंदर खा रहा था
ये पिछले साल 2006 की बात थी
अपने सामजिक कार्यो के दौरान रज्जन जी एक सामजिक संस्था से जुड़े जो
"मुफ्त आँखों का कैंप" लगवाने में सहायता करती थी।
उन्होंने सोचा के उनके गांव जहांगीरपुर को तो इस कैंप की बहुत जरुरत है
तो क्यों ना ये कैंप अपने गांव जहांगीरपुर में लगाया जाए
(गांव-देहात में जहाँ लोग जीवन की साधारण जरुरतों को ही ठीक से पूरा नहीं कर पाते , तो आँखों का चेकअप कैसे करा पाएंगे ,इन कैम्पों में गरीब लोगो की आखों का मुफ्त चेकअप किया जाता है और जिसको दवाई या चश्मे की जरुरत होती है उनको वो मुफ्त वितरित किये जाते है , जिसको किसी भी तरह के ओप्रशन की जरुरत होती है ,उन्हें गांव से बस से दिल्ली लाना ,उनका दिल्ली के किसी बड़े हस्पताल में मुफ्त ओप्रशन करवाना और फिर गांव तक छुड़वाना होता है, ये सारा कुछ मरीज़ के लिए मुफ्त होता है )
बहुत सालों से एक और बात रज्जन जी के मन में चल रही थी
अपने लाला (पिता) का एक सम्मान समारोह आयोजित करने की
तो रज्जन जी ने सितम्बर 2006 में एक भव्य सम्मान समारोह अपने गांव जहांगीरपुर में आयोजित किया
"लाला परमेश्वरी दयाल सम्मान समारोह "
इस समारोह में आस-पास के सभी गावो से
80 वर्ष या अधिक आयु के 100 बुजुर्गों को ससम्मान आमंत्रित किया गया
लालाजी समेत सभी 100 बुजुर्गों को मंच पर बुलाकर फूलों के हार पहनाये गए
और एक सम्मान चिन्ह, कपडे और कुछ नकद रूपये देकर उन्हें सम्मानित किया गया
(निश्चित ही वो दिन उन सभी बुजुर्गों के लिए एक यादगार सम्मान का पल लाया होगा
क्युकी सोच के देखिये क्या हम अपने बुजुर्गों को आम जीवन में
अपना उतना समय ,प्यार और सम्मान दे पाते हैं ,जिसके वो हक़दार हैं )
इस समारोह में क्षेत्र के मेंबर पार्लियामेंट ,मिनिस्टर,विधायक, DC , DCP समेत आसपास के गावों के करीब 20000 गांव वालों ने शिरकत की
विभिन्न तरह के सांस्कृतिक कार्यक्रम हुए
कई तरह का खाना-पीना इत्यादि
"मुफ्त आँखों का कैंप" भी लगाया गया
जिसमे करीब 2000 ग्रामीण लोगों का मुफ्त चेकअप हुआ
लगभग हर व्यक्ति को ही कोई ना कोई छोटी-बड़ी समस्या पाई गयी
तो जिनको दवाई चाहिए थी ,दवाई,
जिनको चश्मे की जरुरत थी उन्हें चश्मे मुफ्त मिले
और करीब 700 आँखों के ओप्रशन के केस चिन्हित किये गए
(ये सब ओप्रशन अगले 2 महीने में सफलतापूर्वक हो गए )
ये समारोह जहांगीरपुर गांव के इतिहास का सबसे भव्यतम समारोह था
अब प्र्शन ये उठता है की रज्जन जी ने आखिर ये सब तामझाम क्यों किया ?
परोपकार के लिए ?
मैं ये नहीं मानता
मुझे लगता इसके पीछे भी बाल रज्जन की वही कसम थी
"मेरे लाला जमींदार थे और मुझे अपने लाला को फिर जमींदार बनाना है "
इस भव्यतम समारोह के द्वारा रज्जन ने केवल अपने गांव ही नहीं आसपास के सभी गावों में ,
पूरे प्रशासन मेँ ये सन्देश साफ़ कर दिया था की
इस क्षेत्र में बस एक ही जमींदार है
और वो हैं मेरे लाला "लाला परमेश्वरि दयाल "
2006 में इस सम्मान समारोह के दिन लालाजी की उम्र 96 वर्ष थी
पूरे 6 फ़ीट लम्बे लालाजी पूर्णतः स्वस्थ थे
बीपी,शुगर,दिल की किसी बीमारी से कोसों दूर
रोज़ सुबह पैदल अपने खेत तक जाना और वापिसी में
कोई साग ,सब्जी ,गन्ने , खेत से काट के लेते आना
उनका रोज का नित्य कर्म था
(ये आना-जाना रोज करीब 10 किलोमीटर पड़ता था :) )
और फिर पूरा दिन अपनी गांव की कपडे की दूकान पर बैठकर
अखवार और सामजिक और राजनैतिक पत्रिकाएँ पढ़ना
और दूकान पे आने वाले ग्राहकों को राजनीती की,
देश-दुनिया के अद्बुध स्थानों और घटनाओ के बारे में बताना
लालाजी कभी विदेश नहीं गए थे
पर विश्व की ऐसी कोई भी जगह नहीं थी जिसका पूरा इतिहास लालाजी न जानते हों
पोते-पोती या कोई भी जब कहता की लालाजी इन छुट्टियों में हम फलाने देश घूमने जा रहे हैं
तो लालाजी पूरी डिटेल बता देते की कौन-कौन जी जगह उन्हें जरूर देखनी चाहिए :) )
इस भव्यतम समारोह के ठीक 13 दिन बाद अचानक एक सुबह
लालाजी को पता नहीं क्या भान हुआ
वो छोटे बेटे केशव से बोले-
"केशो अब मैं पूरा हो रहा हूँ ,
मोए बस रज्जन से मिलनो है ,
मोऐ रज्जन माई दिल्ली ले चल "
केशव ने लालाजी को गाड़ी में बिठाया
गाड़ी गांव से दिल्ली के सेंट स्टेफेन हॉस्पिटल की और दौड़ पडी
रास्ते से केशव ने भैय्या रज्जन को फोन किया
इधर रज्जन अपने दिल्ली के घर से हॉस्पिटल भागा
हॉस्पिटल में लालाजी ने रज्जन का हाथ अपने हाथ में लेकर बस इतना ही कहा
"बड़ा जिद्दी है रे तू रज्जन
आखिकार तूने मोए फिर जमींदार बना ही दियो "
(अब रज्जन ने जाना
केवल बड़ी जमीन खरीद होने भर से ही कोई जमींदार नहीं बन जाता
ये तो आम लोगों के मन में जब किसी व्यक्ति के प्रति अगाध आदर और सम्मान जागता है
तो वो व्यक्ति सही मायनो में "जमींदार" बनता है
और अब जाकर लाला जी ने वो भाव
आसपास गावों से आये हज़ारों लोगों की आखों में अपने लिए महसूस कर लिया था )
और बेटे रज्जन की गोद में एक अबोध बालक की तरह सर रखकर
लालाजी हमेशा के लिए सो गए
रज्जन के अलावा ना तो कभी किसी को ये घटना समझ आयी
और ना ही रज्जन और उसके लाला का आपसी अगाध प्रेम
लालाजी की अंतिम यात्रा में उनके दर्शन के लिए आसपास गावों के हज़ारों लोग शामिल हुए
उनके दाह-संस्कार के अगले दिन जब रज्जन और बाकी परिवार के लोग
लालाजी फूल (अस्थियां) चुनने पहुंचे
तो उन्हें कुछ 2 -4 ही फूल मिले
शमशान के पंडित जी ने बताया की
कल से ही आसपास के गावों के सैकड़ों लोग आते गए
और लालाजी का एक फूल अपने पूजाघर के लिए लेते गए
( हमारे क्षेत्र में ये विश्वास है की अगर कोई जन किसी महान व्यक्ति का फूल (अस्थिया)
अपने पूजाघर में रखता है तो उस घर में सुख और समृद्धि का वास होता है )
आज जाने कितने घरों के पूजाघरों में वो "जमींदार" अपनी सल्तनत बना चुका है
लालाजी के जाने के बाद रज्जन जी चुप-चुप रहने लगे थे
लालाजी के जाने से वो टूट गए थे
या फिर हो सकता है "लक्ष्य" पूरा हो गया था तो
रज्जन जी खुद को निरर्थक समझने लगे हो
घर में सब लोग अपने-अपने जीवन में मस्त थे
किसी को कोई भान नहीं था ,रज्जन जी की मनस्तिथी का
बस सावी को अनुमान था की
रज्जन जी किस दुःख से गुजर रहे है
और लालाजी के जाने के 6 महीने बाद 2007 में
65 साल की उम्र में ,
वो प्रवासी
रज्जन भी ....
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