Sunday, May 31, 2020

वो बड़ के पेड़ वाली चुड़ैल,-3

वो रात बड़ी क़यामत की रात थी अरुण के लिए

दिल्ली आने से पहले
घरवालों ने  कितना समझाया था अरुण को 
खूब मना किया था उसे 

"पटना में ही पढ़ ले 
कैसे रहेगा अकेला
 कोई है तेरा दिल्ली में  "

पर अरुण ने किसी की ना सुनी
उसे तो धुन थी दिल्ली में पढ़ने की 
और फिर यहीं अपना करियर बनाने की 
वो आ गया दिल्ली 
जितने पैसे थे उसमें उसे बस यही कमरा मिल सकता था 
एक लोअर मिडिल क्लास कॉलोनी के एक छोटे से घर की चौथी मंजिल पे बनी बरसाती 
इस कमरे की परेशानी ये थी की 
रोज़ आने-जाने के लिए चार मंज़िल सीढ़ियां उतरना-चढ़ना पड़ता था
पर यही इस कमरे की खासियत भी थी की 
इतना ऊपर चढ़ के कोई आता नहीं था 
तो पूरी प्राइवेसी थी 
और क्युकी बरसाती के आगे खाली छत थी 
तो वहां बैठकर सनराइज और सनसेट देखना 
बारिश में भीगने का आनंद भी मिल सकता था 

आज वो मजीद उदास था तो 
अपना फोल्डिंग पलंग खुले में ले आया था 
आसमान साफ़ था ,
आज थोड़ी बारिश हुयी थी तो 
तारे चमकते दिख रहे थे 
पर उसे कुछ अच्छा नहीं लग रहा था 
वो देर तक लेटा हुआ आसमान में यूही तारों को ताकता रहा 
और जाने कब सो गया 

सुबह अलार्म से उसकी आँख खुली 
और वो कल का "ये कॉलेज छोड़ दूंगा "
वाला प्रण उसे याद भी ना आया 
जल्दी से तैयार हुआ 
और अपनी पहली क्लास के टाइम से पहले ही वो 
कॉलेज के अंदर था 

कॉलेज के गेट से अंदर घुसते ही जो पहली आवाज़ अरुण को आयी 
"हे फ़्रेशी। ... इधर "
फिरसे वही थी 
अरुण ने मुँह ही मुँह में बोला 
"ये साली चुड़ैल ...... "
 उसने देखा आज भी गार्डन में फ़्रेशी लोगों की रैगिंग हो रही थी 
"रोनी, एडी तुम इन सब की रैगिंग लो 
  इस फ़्रेशी की रैगिंग आज मैं लूंगी "
उसने अरुण की तरफ बढ़ते हुए अपने दोस्तों से कहा था 
वो पास आकर बोली 

"तुमने मुझे चुड़ैल कहा था ना अभी"
अरुण हैरान था ,उसने तो मुँह में ही बोला था 
ये चुड़ैल क्या मन भी पढ़ लेती है 

"नहीं ,...... पर आप मेरे पीछे क्यों पडी हैं 
 मैं तो एक .. .... "
अरुण की बात बीच में ही काटते हुयी वो बोली थी 
"हाँ  हाँ  ठीक है अब ये ज्यादा सिम्पैथी मत ले 
 गाड़ी चलानी आती है ? "
"जी "-अरुण बोला 
" ले चला "
उसने उसकी ओर चाबी उछाली 
"मगर मेरी तो आज पहली क्लास है अभी "- अरुण बोला 
"अबे रोंदू अभी रैगिंग डेज हैं ,क्लासेज अगले हफ्ते से शुरू होंगी "- वो फिर हंसी थी 
रास्ते भर वो कुछ ना कुछ बोलती ही रही 
और रास्ता भी बताती रही 
गाड़ी रुकी " विम्पी " के सामने 
अंदर आकर उसी ने आर्डर दिया और पैसे भी 
दोनों अब आमने सामने बैठे थे 
वो अब कुछ संजीदा सी चुप सी लग रही थी ,
अचानक उसने धीरे से अरुण का एक हाथ अपने दोनों हाथों में लिया 
अरुण ने घबरा कर इधर-उधर देखा 
वो बड़ी संजीदगी से बोली थी -

" अरुण मैं कल के लिए माफी माँगती हूँ 
   क्या करुँ यार मैं ऐसी ही हूँ 
   पर तुम शायद कल ज्यादा ही फील कर गए  
   रियली सॉरी यार 
   फ्रेंड्स ......  ?  "

उसने बच्चो जैसी मासूम मुस्कान के साथ उसका हाथ छोड़कर 
अब अपना हाथ अरुण की ओर बढ़ाया था 
और अरुण तो उसकी उस मुस्कान में 
उसकी बातों में 
या जाने उसका क्या जादू था 
अरुण का मन बंध गया था 

अरुण ने भी अपना हाथ आगे बढ़ाया 
उसने तीन-चार बार अरुण का हाथ जोर से हिलाने के बाद 
"फ्रेंड्स फॉर लाइफ " कहकर हँसते हुए उसका हाथ छोड़ दिया था 

अरुण को ऐसा लगा के उसका खूबसूरत वजूद अभी भी उसके हाथ पर 
उसके दिल में ठहर गया है 

वो अब मज़े से अपनी आइस-क्रीम खाये जा रही थी 
और लगातार जाने क्या-क्या कॉलेज की ,
दुनिया जहान की बातें भी किये जा रही थी  ,
इधर अरुण की आइस-क्रीम भी पिघलती जा रही थी 
और अरुण का दिल भी 
वो चुपचाप 
एकटक 
बस उसे बातें करते हुए देखे जा रहा था। 


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