Saturday, May 23, 2020

प्रवासी,भाग-6 (RIVISED) PLZ READ AGAIN :)

रज्जन ,हॉस्पिटल में डॉक्टर शालिनी के कमरे में ,
उनके सामने खड़ा था
उन्हें धन्यवाद देने के लिए वो हस्पताल के बाहर से ही कुछ फल खरीद लाया था
डॉक्टर शालिनी सर झुकाये अपनी डायरी में जल्दी-जल्दी कुछ लिख रही थी 
वो बहुत परेशान ...बदहवास सी लग रही थी
डॉक्टर शालिनी ने रज्जन को बैठने का इशारा किया
पर कुछ बोली नहीं,  बस रज्जन को देख रहीं थी
उनका ऐसा व्यवहार रज्जन के दिल में आशंकाये पैदा कर रहा था
आखिर रज्जन ही बोल पड़ा -" डॉक्टर साब सब ठीक है ना ?"
फिर कुछ सेकण्ड की खामोशी के बाद
डॉक्टर शालिनी ने धीरे से बोलना शुरू किया-

"मिस्टर गुप्ता I AM REALLY VERY SORRY
  आपका एक बच्चा बच नहीं पाया
 उसकी जिम्मेदार मैं हूँ ,
 ओप्रशन के वक़्त गलती से मुझसे ही उस बच्चे की गर्दन पे नाइफ लग गया था "

ये कह के वो चुप हो गयी थी
वो रो रहीं थी
रज्जन हतप्रथ रह गया
एक झटके से वो कुर्सी से खड़ा हुआ
फल उसके हाथ से छूटकर नीचे गिर गए थे
रज्जन गुस्से में कांप रहा था
वो चीख कर बोला- "डॉक्टर आप अगर महिला ना होती ,तो मैं आपका खून कर देता
पर मैं आपको भी छोडूंगा नहीं
मैं आप पे केस करूँगा
बर्बाद कर दूंगा मैं आपको "

और वो भागता सा जाने क्या  बकता हुआ
तेजी से कमरे से बाहर निकल आया
पीछे से डॉक्टर शालिनी आवाज़ लगाती रह गयी-
"मिस्टर गुप्ता,आप मेरी बात तो सुनिए, I AM SORRY मिस्टर गुप्ता "

रज्जन भागता हुआ हस्पताल से बाहर ही आकर ही रुका
वो फुटपाथ पे बैठ के जोर-जोर से रोने लगा 
अनगिनत ख़याल,
अच्छे, बुरे, बदले के,
वो वही अकेले बैठे-बैठे मुँह ही मुँह में डॉक्टर शालिनी को गंदी-गंदी गालियां दे रहा था 
हज़ार तरह की आशंकाये उसके दिलो-दिमाग पर हावी हो रही थी
एक भावना आ रही थी तो
एक जा रही थी
गुस्सा, दर्द, विवशता ,
वो सोच रहा था की काश
वो सावी को किसी प्राइवेट हस्पताल में लेजा सका होता तो
आज उसका बच्चा ज़िंदा होता
इधर उसे अपने पेट में तेज दर्द सा महसूस हुआ ,तो ध्यान आया
वो सुबह का घर से सूखी चाय पी के निकला था
सोचा था की सदर बाजार में कुछ खा लेगा
पर पूरे दिन काम की भागमभाग रही
और फिर सावी की खबर सुनते ही वो हस्पताल भागा और .....

कुछ देर बाद वो उठा ,पास के नल पे अच्छे से मुँह-हाथ धोया
रिक्शा पकड़ा
कनॉट प्लेस आया
उसने भरपेट खाना खाया
फिर चाय भी पी
फिर कुछ और देर शांत वहीं ऐसे ही बैठा रहा

अब जब शांत मन से सोचा तो ख़याल आया-
"मैं तो डॉक्टर शालिनी को धन्यवाद देने आया था
 अगर वो खुद अपनी गलती नहीं बताती तो
क्या मुझे कभी पता चलता ?
मानो कहीं से पता चल भी जाता
तो भी क्या डॉक्टर शालिनी की मुझसे कोई दुश्मनी थी ?
क्या उन्होंने जान-बूझ कर ये गलती की है ?
वो तो अपना फ़र्ज़ ही निभा रहीं थीं ना
और क्या ये उनकी भलमनसाहत नहीं की वो
कम से कम वो अपनी गलती पे शर्मिन्दा हैं ?
कितने लोग होते जो अपनी गलती मानते हैं
और शर्मिंदा होते हैं,
माफी मांगते हैं ?

फिर एक बार, पेट की आग शांत होते ही
रज्जन का मन भी शांत हो चला था
उसके दिल और दिमाग ने एक साथ संयम से काम करना शुरू कर दिया था
वो वापिस हस्पताल की और चल पड़ा
डॉक्टर शालिनी से मिलने
उसने उन्हें देने के लिए फिरसे फल खरीदे थे

डॉक्टर शालिनी उसे आया देखकर चौंकी थी
वो कुछ बोलती इससे पहले ही रज्जन बोल उठा-

"थैंक यू डॉक्टर ,
आप परेशान ना हों
आप अपना मन शांत रखें
मुझे आपसे कोई शिकायत नहीं है
जो हुआ वो मेरा भाग्य था
आप कृपया मेरी बीवी और बच्चे का ख़याल रखियेगा "

डॉक्टर शालिनी की सूनी आँखों में मुस्कराहट आ गयी थी
उन्होंने भी सर नीचे कर सिर्फ इतना कहा - "SURE "

अब रज्जन हर रोज़ सुबह और शाम हस्पताल  जाता था
सावी की तबियत तो संभल गयी थी
पर नवजात बेटा अभी भी सावी से अलग "नर्सरी चाइल्ड ऑब्जरवेशन सेल" में था
रज्जन हर रोज़ डॉक्टर शालिनी से पूछता की कोई दवाई ,कोई ऐसी चीज़
जो उसके बच्चे के लिए चाहिए और हस्पताल में ना हो तो बतायें
उसके बार-बार पूछने पे डॉक्टर शालिनी बोली-
"मिस्टर गुप्ता जो दवाइयां आपके बेटे को चाहिए वो तो हमारे पास हैं
पर कुछ दवाइयाँ  दूसरे कुछ बच्चों को चाहिए ,वो हमारे स्टॉक में नहीं हैं ,
और उन बच्चों के माँ-बाप इतने गरीब हैं ,वो खरीद के ला नहीं पा रहे ,
अगर आप चाहें तो आप इनमें से कुछ ..........
(डॉक्टर शालिनी ने एक लिस्ट रज्जन को थमाते हुए हुए कहा )
रज्जन ने वो लिस्ट ले ली
वो अपनी मार्किट सदर बाजार गया ,
आज पेमेंट मिलनी थी  ,
वही से "भगीरथ पैलेस मार्किट" गया
(तब 1977 में भी ये पुरानी दिल्ली में दवाइयों की सबसे बड़ी होलसेल मार्किट है )
लिस्ट में लिखी सारी दवाइयां और दूसरी चीज़े ली
शाम को वो एक बड़ा सा कार्टन लिए डॉक्टर शालिनी के सामने खड़ा था
और डॉक्टर शालिनी हैरानी और अविश्वास से कभी रज्जन को कभी उस कार्टन को देख रही थी
वो बस इतना ही बोली-
"मिस्टर गुप्ता आप क्या पूरी लिस्ट का सारा सामान ही ...
  मिस्टर गुप्ता आप जैसा आदमी मैंने आज तक नहीं देखा " :)
वो बेहद खुशी और नम आँखों से रज्जन को देख रहीं थी
रज्जन ,कार्टन एक कोने में रखकर ,
मुस्कुराटा हुआ सावी के कमरे की ओर बढ़ गया

(इस घटना के बारे में जब रज्जन मुझे बता रहें थे
की वो कोई दो हज़ार रूपये की दवाइयाँ थीं ,तो मैं बोला था-
"1977 मेँ दो हज़ार ,आज के तो दो लाख के बराबर होंगे और आप तो उस वक़्त खुद गरीब ....
वो हँस कर बोले थे -"मैंने हमेशा दिल की सुनी ,दिमाग व्यापार में तो लगाया पर जहाँ भावना से सोचना था वहां कभी दिमाग से नहीं सोचा,उस दिन ,उस क्षण जब मैंने वो दवाइयां ली तो बस एक ही बात मेरे दिल में थी ,
"अगर मेरा बच्चा इन दवाइयों के बिना मर रहा होता तो ... "
उनके जवाब से मैं निरुत्तर हो गया था )

सात-आठ दिन के बाद रज्जन,सावी और अपने नवजात बेटे को घर ले आया
बाद में इस बच्चे का नाम मुकेश रखा गया।

----------------------------------------------------------------------------------------------------------



No comments:

Post a Comment