Sunday, May 17, 2020

मनु का जन्मदिन और चाची का स्नेह-पंखा :)

वो मनु का 40वां जन्मदिन था


मनु कोई ख़ास उत्साहित तो नहीं था
(अब सच में कितने लोग होते है जिनको 40 की उम्र में सही में,
सच में जन्मदिन का उत्साह होता है)
पर जीवन में ये संख्याये जैसे 30 ,40 ,50 किसी माइलस्टोन किसी पड़ाव का सा अहसास कराती हैं
( हालाँकि उम्र की बात करे तो अक्सर ये माइलस्टोन डराते ही ज्यादा हैं )
मनु अपने इस जन्मदिन को यादगार बनाना चाहता था
अपने ख़ास दोस्तों के साथ ये दिन बिताने का मन था उसका
एक अद्बुध विचार उसके मन में आया
तो मनु ने सरप्राइज रखा -
जन्मदिन पे दोस्तों को अपने घर सुबह 8 बजे बुलाया
पर कहाँ जा रहे हैं ,बताया नहीं
इतना बोला- "पूरे दिन का कार्यक्रम है तो बाकी मुझपे छोड़ दो"
सब टाइम पे आ गए थे
सब दोस्त मन ही मन अनुमान लगा रहे थे-
"शानदार पार्टी होगी
शायद कोई रिसोर्ट,
या फिर कोई फार्म या फिर कोई होटल या ,,,,,,,
पता नहीं क्या क्या....अरे चलो यार पार्टी तो पक्की हुयी "


7 दोस्त ,इन्नोवा कार ,ताज एक्सप्रेसवे, दिल्ली से 105 किलोमीटर दूर
और केवल 90 मिनिट में मनु का अपना गांव जहांगीरपुर आ गया
कार रुकी गांव के बाहर बने चामुंडा मंदिर पे



( माँ चामुंडा मनु के परिवार की कुल देवी हैं ,
चामुंडा मंदिर मनु के पूर्वजो का बनाया करीब 150 साल पुराना मंदिर है,
जो समय के साथ जैसे-जैसे मनु के दादाजी की जमींदारी गयी 
तो ये मंदिर भी जीर्ण होता चला गया
पर अभी कोई २० साल पहले मनु के पापा राजेंद्र गुप्ता जी ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया 
और आज राजेंद्र जी की मृत्युपरांत 
उनकी समाधी "राजेंद्र पार्क" भी चामुंडा मंदिर प्रांगण में ही स्थापित है )

मनु के लिए तो हमेशा ही गांव आना,चामुंडा मंदिर आना ऐसा होता था
जैसे पापा वहीँ रहते हैं और वो मिलने आया है

इधर मंदिर पहुंचते ही दोस्तों के सपने बिखरने लगे थे :)
वो बेचारे तो किसी फैंसी मॉल या रिसोर्ट का सपना देखते हुए आये थे और पहुंचे गांव के एक साधारण से मंदिर पे
उनकी निराशा-हताशा छुपाये नहीं छुप रही थी :)
सब दोस्त ठहरे निरे शहरी
किसी का भी अपने खुद के या किसी भी गांव से कोई सीधा सम्बन्ध नहीं था
ज्यादा किया तो साल दो साल में चले गए प्रतापगढ़ फार्म और सोचने लगे के यही गांव का जीवन है
अब यहाँ जुलाई की भरी गर्मी में वो सब सचमुच के एक छोटे से गांव में थे
फंस गए थे बेचारे
बेमन से कार से उतरे
आपस में खुसर-पुसर चल रही थी
उन्होंने बेमन से मंदिर देखा, फोटो खिचाई
चाय-नाश्ता किया,
तो कुछ जान में जान आयी
पर भयंकर गर्मी थी
मनु भांप गया की शहरी बच्चे परेशान हैं
मनु के चचेरे भाई मनोज ने बोला-"भाई आम के बाग़ में चलते हैं "
(ये मनु के चचरे भाई का नाम भी मनोज है,छोटा मनोज। अब ये दोनों चचेरे भाइयो का नाम एक सा मनोज ही क्यों है,इसकी भी एक दिलचस्प कहानी है, तो वो कहानी फिर कभी :) )



तो कार फिर हुयी स्टार्ट और कच्चे रास्ते से गांव के काफी अंदर, पहुंच गए आम के बाग़ में
( ये बाग़ गांव के एक बड़े किसान का था जो मनु के चाचाजी के मित्र थे  )
उनका वहां खूब स्वागत हुआ
पूरा बाग़ उनके हवाले कर दिया गया
( आमतौर पे ही गांव के लोग बड़े विशाल ह्रदय होते हैं और खासकर किसी दोस्त के मेहमानो को तो वो ऐसे ट्रीट करते हैं जैसे कोई देवता पधारे हो :) )
वो करीब 50 एकड़ भूभाग में फैला आम का विशाल बाग़ था
आमों से पेड़ लदे हुए थे, भार से झुके जा रहे थे
ये शहरी बच्चे तो वहां पहुंचकर जैसे पागल ही हो गए
(अरे कंफ्यूज ना होना थे ये सातों 40 -41 उम्र के ही हैं  ,
बच्चा इसलिए कह रहा हूँ क्युकी उस दिन वो सब बर्ताव 10 -12 साल के बच्चो सा कर रहे थे :)
कोई आम के पेड़ पे चढ़ा
किसी ने कटरीना कैफ के माज़ा वाले विज्ञापन को RECREATE किया
किसी ने आम तोड़े ज्यादा ,खाये कम
कोई इधर दौड़े ,कोई उधर
बाग़ में काम कर रहे किसान इस 7 बच्चो को देख देख खूब हॅसे
करीब दो घंटे की इस भाग-दौड़ और आम खाने की प्रकिर्या में सब
थकान और पसीने में तरबतर पर बेतहाशा खुश थे
मनु ने तो कभी इन सब दोस्तों को इतना खुश नहीं देखा था :)

अब इसके बाद छोटे मनोज के दिमाग का अगला आईडिया भी तैयार था
वो मनु और सारे दोस्तों को ले गया मंगला जी के फार्म-हाउस पे ,
जहाँ ट्यूबवेल लगा था


(ये मंगला जी गांव के सम्मानीय चेयरमैन हैं और मनु के चाचाजी के घनिष्ट मित्र हैं )
अब तो जो वो सारे कूदे है ,ट्यूबवेल के हौद में
जुलाई के गर्मी और ट्यूबवेल का जबरदस्त ठंडा पानी
और अगले 2 घंटे जो नहाना,कूद-फांद, हँसी-मज़ाक, बियर, कोल्ड ड्रिंक
उस पलों में वहां केवल बचपन था, दोस्त थे, मस्ती थी और प्यार भरी चुहलबाज़ी
गर्मी, पेट में आम ही आम, नहाने से हुयी जबरदस्त थकान,
और कुछ बियर की मदहोशी भी
और ना जाने बचपन के कौन-कौन से दबे हुए इमोशन थे  ,जो साकार दर्शित हो रहे थे

इधर चाचा जी का घर से बार-बार फोन आ रहा था-
"अरे भाई खाना ठंडा हो रहा है
आके पहले खाना खा लो"
सब बड़ी मुश्किल से पानी से निकले
(मनु के चाचा-चाची गांव में ही रहते है,उन के २ बेटे मनोज और विकास हैं
दोनों परिवार की खेती भी संभालते हैं और वहीँ गांव में ही रेडीमेड कपडो की दूकान भी चलाते है  )
सातों बच्चे चाचा जी के घर पहुंचते ही खाट पे, कुर्सी पे, बेड पे
मतलब जिसको जहाँ जगह मिली वो वही लंबलेट हो गया
खाना तो कब से तैयार था और अब ये सब बढ़िया से भूखे भी थे
तो बस सब टूट पड़े थे खाने पे
उस समय मनु के गांव वाले घर पे AC नहीं था ,
पंखे-कूलर थे ,पर गर्मी तो फिर भी बहुत थी
तो सब खाना खा रहे थे और
चाची हाथ का पंखा लेकर सबको हवा कर रहीं थी
उनका ये प्यार भरा व्यवहार और आग्रह करके एक-एक चीज़ खिलाना सब का दिल छू गया
मेहमान सुविधाओं का नहीं मेजबान के प्यार का भूखा होता है
(सब दोस्त आज भी चाची का वो ममतामय अवतार याद कर भावुक हो जाए हैं )
खाने के बाद चला "खुरचन" का ठंडा जादू
और उसके साथ गुलाब जामुन का गर्म तहलका
जो ख़ास खुर्जा से मनवाया था चाचा जी ने
खुरचन ,खुर्जा शहर की एक स्पेशल मिठाई है जो बहुत मीठी और ठंडी होती है,

(खुर्जा शहर मनु के गांव के पास का एक शहर है जो अपने बॉन-चाइना के बर्तनों के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है )

खाना खाके कोई सो गया
कोई लेट गया
तो कोई चाचा-चाची से गांव के बारे में बाते कर रहा था

मनु उन सबको बतियाते देखता रहा
मनु के लिए ये जन्मदिन बहुत ख़ास हो गया था
जिसमे बचपन था,,
दोस्त थे,
पापा थे, (शारीरिक तरीके से चाहे ना हों पर हमेशा पास ही होते हैं :)

चाची का वो स्नेह-पंखा था
आम,खुरचन,गुलाब जामुन का मीठापन था
तो बियर का खारापन भी
और ट्यूबवेल के पानी का सौंधापन भी
(जीवन भी ऐसा ही है ना ,तरह-तरह के रंग-स्वाद लेकर आता रहता है )

शाम हो रही थी
सबको फिर उसी दुनिया में वापिस जाना था
आना तो था ही तो मनु सबको वापिस ले आया था
जहाँ जहरीला पोलुशन है , जानलेवा ट्रैफिक है
रोज़ की ट्रेडमिल भागदौड़ थी
(मैं इसे ट्रेडमिल भागदौड़ इसलिए कहता हूँ क्युकी जैसे ट्रेडमिल पे हम दौड़ते तो है पर वही उसी जगह पर ही रहते है कहीं आगे नहीं जा पाते,उसी तरह का ये RAT-RACE जीवन है ,दौड़े,और दौड़े और अचानक ख़त्म,सब ख़त्म :) )
यहाँ गाम्भीर्य हमारा बचपन छीन लेता है, जवानी में ही बूढ़ा बना देता है."

मनु के दोस्त आज भी बात करते हैं की वो
"अपना कुछ वहीँ आम के बाग़ में, ट्यूबवेल के ठन्डे पानी में, खुरचन की मिठास में या फिर चाची के स्नेह-पंखे में बाँध रख आये थे "

उस जन्मदिन को अब 7 साल होने वाले हैं
मनु तो हर महीने दो महीने में अपने गांव अब भी जाता है ,अपने पापा से मिलने
पर दोस्त ..... एक साथ फिर कभी नहीं चल पायें

मनु दोस्तों से आज भी कहता है -
"चलो हम एक और दिन के लिए बच्चे बने रह सकते हैं
कभी महीने दो महीने में ही सही एक दिन के लिए तो गांव का सादा जीवन भी जी सकते है
रुक कर ताज़ी सांस ले सकते हैं
ये शहर जोंक की तरह होते है ,जब तक शरीर का सारा खून ख़त्म नहीं होता
ये छोड़ता ही नहीं

बस एक ही रास्ता है

"जहाँ जहाँ ये चिपका हो थोड़ा सा शरीर का हिस्सा काट के इससे आज़ाद हो जाओ "

पर हिम्मत चाहिए
बहुत हिम्मत :)

#बचपन #bachpan   manojgupta0707.blogspot.com










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