Thursday, May 28, 2020

मनु की कॉलोनी का सलमान खान

मनु, इस संभ्रांत कॉलोनी में करीब 28 साल पहले 1992 में रहने आया था
इस कॉलोनी में आकर वो भाँती-भाँती प्रकार के लोगों से मिला
अच्छे-बुरे
झूठे-सच्चे
शांत -भयंकर गुस्से वाले लड़ाकू
साम्प्रदायिक-लिबरल
कुछ अपने मुँह खुद मिया मिठ्ठू बनने वाले
कुछ विभीषण टाइप
कुछ जयचंद सरीखे भी :)

पर राम उनमें सबसे अलग
किसी और ही मिटटी का बना हुआ इंसान था
राम, मनु के बिलकुल सामने वाले घर में रहता था
तो चाहे-अनचाहे अक्सर दोनों की मुलाकात हो जाती थी
राम का व्यक्तित्व इतने कमाल का के मनु ने राम को

" हमारी कॉलोनी का सलमान खान "  नाम दे दिया :)

उसने ये नाम कोई इसलिए नहीं दिया था की मनु
सलमान खान को कोई बहुत बढ़िया इंसान मानता था
या उसका फैन था
बल्कि इसलिए की 55 साल की उम्र में भी सलमान खान ने जिस तरह
अपने आप को इतना फिट और हैंडसम बनाये रखा है
वो मज़ाक थोड़े ही है :)
पर हमारा राम तो सलमान खान से भी चार कदम आगे था
सलमान खान जो काम अपनी 50 लोगों की टीम की मदद से
लाखों रूपये महीने खर्च करके करता है
हमारी कॉलोनी का सलमान खान ,राम आज साठ साल की उम्र में भी
अपने आप को उससे भी अच्छा मेन्टेन कर लेता था
वो भी बिना किसी स्टाफ या ज्यादा महँगे खर्चे के
वो जब अपने लम्बे कसरती शरीर पर बेहतरीन कपडे, उम्दा सनग्लास,
चमकते हुए पॉलिशड जूते, गले में स्कार्फ़, चिकनी शेव पर साउथ इंडियन हीरो स्टाइल भारी मूंछे
के साथ खुद अपनी इन्नोवा कार चलाते हुए निकलता
तो कॉलोनी का हरेक बन्दा कहने पे मज़बूर हो जाता की

"राम तो हमारी कॉलोनी का सलमान खान है "

राम यारों का यार था
सबसे मेल-जॉल रखना
घर आये व्यक्ति को जितना राम सम्मान देता था,
आवभगत करता था, कम ही लोग कर पाते हैं
किसी विवाद में हमेशा सही मगर कमज़ोर इंसान का पक्ष लेना
और फिर उसे पूरा संरक्षण भी देना
यहाँ तक की कॉलोनी के आधे आवारा कुत्तों को भी
दूध, खाना,दवाई देने का काम भी वही किया करता
वैसे तो वो हमेशा हँसता हुआ, शांत रहता था
लड़ाई-झगडे की नौबत कभी आने ही नहीं देता था पर
एक बार एक लड़ाई हो ही गयी तो उसने
एक थप्पड़ क्या मारा के सामने वाला व्यक्ति २ कदम दूर जाकर गिरा था :)
तो ऐसा मल्टीटैलेंटेड ,हरफन मौला था हमारा राम

वैसे राम पीछे से श्रीनगर से था
वो वहीं श्रीनगर में करीब 1960 में पैदा हुआ था
और अपने जीवन के शुरुआती पच्चीस साल भी उसने वहीं गुज़ारे थे
उसका परिवार दिल्ली और श्रीनगर दोनों ही शहरों में किराने के सामान के बड़े डिस्ट्रीब्यूटर में था
आर्मी कैंटीन में भी वो मेन सप्लायर थे
इसलिए राम का अपने युवा दिनों में आर्मी कन्टोन्मेंट एरिया में भी बेरोकटोक आनाजाना था
इस दौर में श्रीनगर में कोई हिन्दू-मुस्लिम टेंशन था नहीं
तो राम  के अनेकोनेक मुस्लिम दोस्त भी थे
तो उस समय के कश्मीर की हिन्दू-मुस्लिम-सिख
तीनों धर्मों की की मिली-जुली तहजीब को पूरा लुत्फ़ राम ने लिया
सोमवार से शनिवार तक अपनी दूकान पर जमकर काम करना
और संडे को जीन्स की पैंट-जैकेट में अपनी बुलेट पे सवार होकर
सुबह राधास्वामी सत्संग और दोपहर निरंकारी संत्संग में शिरकत करना
उसके बाद शाम होते ही लोकल बार में बैठकर बियर पीना
ये उसका हर सन्डे का फिक्स रूटीन था
वैसे उसका ये हर हफ्ते सत्संग में जाना राम के घरवालों को अखरता था
अब राम किसी को क्या बताता की उसे सत्संगों में रूहानी ज्ञान तो मिलता ही था साथ में
श्रीनगर की सबसे खूबसूरत कन्यायों के दर्शनों और संग का लाभ भी :)

उस समय ये जीन्स की जैकेट-पैंट भारत में कहाँ मिलती थी
तो वो अपने ये मनपसंद कपडे कश्मीर घूमने आने वाले हिप्पी टूरिस्ट्स से खरीद लेता था
बुलेट चलाने का बड़ा शौक़ीन था राम
श्रीनगर-लद्दाख का खतरनाक रास्ता कई बार नाप चुका था
उसकी ज़िंदगी बिंदास चल रही थी
की अचानक राम के सयुक्त परिवार में बॅटवारा हो गया
बॅटवारे में जाने क्या हुआ
पर राम के पापा के हिस्से में जो आया
वो एक आरामदायक जीवनशैली के लिए नाकाफी था
पच्चीस साल के नवयुवक राम को परिवार समेत श्रीनगर छोड़ दिल्ली आना पड़ा
और एक नए वातावरण में दोबारा से कड़ी मेहनत से शुरुआत करनी पडी
सदर की छोटी सी दुकान से चीन निर्मित माल के इम्पोर्ट तक
लंबा सफर था
कड़ी मेहनत थी
कुछ वर्षों के बाद उसे एक पार्टनर हरीश  का साथ मिल गया था
हरीश सारे एकाउंट्स देखता था और राम सारे काम की भाग-दौड़
राम का काम था चीन के गांव-गांव में घूम-घूम कर
कम से कम कीमत पर नयी-नयी तरह का वो सामान आयात करना,
जो उसकी सदर बाजार की दूकान पर तुरंत अच्छे मुनाफे पे बिक सके
हरीश का काम था सारे पैसे और लेन-देन को संभालना
बच्चे सा साफ़,पारदर्शी दिल था राम का
राम और हरीश की पार्टनरशिप को बीस साल हो चुके थे
राम ने ना कभी हरीश से हिसाब माँगा
ना कभी हरीश ने दिया

जब राम की बेटी की शादी तय हुयी
तो राम ने हरीश को कहा-
" हरीश जी ,एक बार हिसाब मिला लेते है
मुझे बेटी की शादी के लिए 3 महीने बाद कोई पचास लाख रुपयों की आवश्यकता होगी
हिसाब हो जाएगा तो इंतज़ाम करने में आसानी रहेगी "
इधर हरीश ने कहा- "राम भाई व्यापार में तो इतना पैसा है ही नहीं "
राम चौंक गया
सारी माल की खरीद वो करता था
सारी बेच भी वो खुद करता था
तो उसे मालूम था की माल किस रेट पे खरीद के किस रेट पे बेचा जा रहा है
तो कितना मुनाफ़ा हुआ
हाँ ,पेमेंट सारी हरीश के पास ही आती थी
और सारा लेन-देन और सारे बैंक एकाउंट्स भी हरीश ही चलाता था
राम के पाँवों के नीचे से जमीन निकल गयी
इन पिछले 20 वर्षों में उसने केवल घर खर्च के पैसे ही बिज़नेस से लिए थे
और कोई बड़ा खर्चा जीवन में आया नहीं तो
उसने बिज़नेस से फ़ालतू पैसा लिया भी नहीं
हाँ उसने हरीश से कभी हिसाब नहीं माँगा था
और यही उसके जीवन की सबसे बड़ी भूल हो गयी थी
उसकी बेटी की शादी आगे तीन महीने में थी
और  .....

अगले कई हफ़्तों तक मीटिंगों का दौर चलता रहा
राम ने हरीश को खूब समझाया
जब बात नहीं बनी तो फिर कुछ कॉमन दोस्तों को भी मीटिंग में बिठाया गया
पर जिसने बेईमानी करनी होती है वो उसकी तैयारी भी साथ-साथ करता रहता है
हरीश ने यही किया था
वो वर्षों से ही एकाउंट्स में हेरा-फेरी करता रहा था
और उसने बिज़नेस का सांझा पैसा निकाल कर बाहर इन्वेस्ट कर दिया था
कोई भी दवाब ज्यादा काम नहीं आया
हरीश बस तीस लाख रूपये देने को तैयार हुआ था
जबकि राम के अनुमान से वो कम से कम दस करोड़ रूपये की रकम थी
उलटा सब लोगों ने राम की ही गलती बताई थी
की क्यों उसने बीस साल तक ना हिसाब देखा और ना ही अपना हिस्सा निकाला
राम को आज अपने स्वर्गीय पिता की सीख बार-बार याद आ रही थी-
" बेटा, हिसाब तो बाप-बेटे का भी समय से होना चाहिए "
पर अब चिड़िया खेत चुग कर उड़ चुकी थी

राम की बेटी की शादी तो ठीक से हो गयी
पर वो उदास रहने लगा था
जब कोई अनजान धोखा देता है ना ,तो गुस्सा आता है
पर जब कोई अपना नज़दीकी,
अपना दोस्त धोखा देता है तो ...
इंसानियत से... दोस्ती से
और तो और अपने खुद के ऊपर से भी विश्वास उठ जाता है
आदमी टूट जाता है

राम की उदासी मनु ने महसूस तो की थी
पर ज्यादा तवज्जो नहीं दी थी
पर एक दिन सुबह जब उसने राम को बढ़ी हुयी दाढ़ी
और उतरे चेहरे के साथ काम के लिए निकलते देखा
तो उसे लगा कुछ तो बड़ी परेशानी है
वरना राम तो कभी ऐसा बिखरा हुआ नहीं था
इतने सालों में कभी भी मनु ने राम को ऐसे नहीं देखा था
वो तो हमेशा वैल मंटेन्टेड ,स्टाइलिश रहने वाला इंसान था
शाम को मनु ,राम के घर पहुंचा
पहले तो राम हिचका
पर फिर सारी बात विस्तार से मनु को बतायी
मनु भी बहुत दुखी हुआ
इन दिनों मनु खुद भी ऐसी ही एक कैफियत से गुज़र रहा था
जितना मनु सांत्वना दे सकता था,उसने दिया
और अपने घर वापिस आ गया

इस घटना के 4 -5 दिन बाद एक सुबह
मनु अपने मकान की पहली मंज़िल पर खड़ा था
उसमे नीचे देखा राम आज फिर काम के लिए निकल रहा है
अपने उसी पुराने सलमान खान अवतार में
वही बेहतरीन कपडे, उम्दा सनग्लास,
चमकते हुए पॉलिशड जूते, गले में स्कार्फ़,
चिकनी शेव पर साउथ इंडियन हीरो स्टाइल भारी मूंछे
मनु ने ऊपर से ही आवाज़ लगाईं-
"राम भाई आज तो आप फिर से सलमान खान लग रहे हो "
राम बोला - " औ मनु जी क्या कहते हो
हम तो मज़दूर आदमी हैं
कहाँ ज्यादा दिन सोग मना सकते हैं
चलें हैं फिर से मज़दूरी करने
बाकी वो ऊपर वाला ..... अल्लाह हाफ़िज़ "
राम ने दोनों हाथो और सर को ऊपर उठाते हुए कहा था
(इतने साल कश्मीर में रहने से राम अक्सर अल्लाह हाफिज़ ही कहा करता था  :) )
मनु ने देखा
राम  पहले की ही तरह हँसते मुस्कुराते हुए
अपनी इन्नोवा खुद ड्राइव करते हुए काम पर निकल गया

" वो सचमुच का हीरो था , अपनों से धोखा खाया , सबक लिया ,
   रुका नहीं , उठा और फिर से निकल पड़ा अपनी मंज़िल की ओर  
   नए उत्साह और उमंग के साथ 

   हमारी कॉलोनी का , हमारा अपना सलमान खान "

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