Saturday, May 30, 2020

आपने कभी मेरे लिए किया ही क्या है

"आपके बेटे विपिन ने आपको थप्पड़ मार दिया "
"ये आप क्या कह रहे हैं चाचाजी "

फोन पर सतप्रकाश जी की बात सुनकर लगभग चीखते हुए कहा था मनु ने
उसका फोन उसके हाथ से छूटते -छूटते बचा था 
उधर दूसरी ओर फोन पर सतप्रकाश जी छोटे बच्चे की तरह लगातार रोये जा रहे थे 
पता नहीं वो मनु की कोई बात सुन-समझ भी रहे थे या नहीं 
मनु देर तक उनको सांत्वना देता रहा 
पर जब वो चुप हो ही नहीं रहे थे तो 

उसने -" अभी तो रात काफी हो गयी है 
              मैं कल सुबह आता हूँ चाचाजी "

धीरे से बस इतना कहकर ,
भरे मन से मनु ने फोन रख दिया था 

असल में सतप्रकाश जी , मनु की पत्नी नेहा के चाचा थे 
सतप्रकाश जी की पत्नी का देहांत हो चुका था 
और अब वो अपनी इन्कमटैक्स अफसर की पोस्ट से भी रिटायर हो चुके थे 
वैसे तो मनु का सतप्रकाश जी से कोई इतना पास का रिश्ता नहीं था
पर सतप्रकाश जी के स्वाभाव की सरलता कहिये या फिर 
उनका टैक्स मामलों का जानकार होना 
मनु पहली मुलाक़ात में ही उनसे बहुत प्रभावित हुआ था 
सतप्रकाश जी अक्सर मनु को फोन करते थे
और मनु को भी उनका फोन आना अच्छा लगता था 
क्योकि मनु को हमेशा कुछ नया सीखने को ही मिलता था
पर ये आज का फोन तो सचमुच में विचलित करने वाला था 
बिस्तर पे पड़े-पड़े मनु को अपना दिमाग घूमता सा लग रहा था 
बार-बार एक ही सोच उसके दिमाग में  थी की 
ये क्या अनहोनी है 
विपिन थोड़ा गुस्से वाला तो था पर अपने ही पिता पर हाथ उठाना ...
कैसे ......और क्यों ...
इसी उधेड़बुन में रात भर वो करवटें बदलता रहा 
क्या कारण होगा ?
ये सब क्यों हुआ होगा ?

किसी तरह रात कटी 
सुबह के आठ बजे ही मनु सतप्रकाश जी के घर पहुंच गया 
दरवाज़ा विपिन ने ही खोला था 

"नमस्ते जीजाजी "

विपिन ने आँखे चुराते हुए धीरे से बोला था 

"नमस्ते"

मनु ने उसे बुरी तरह घूरते हुए लगभग मुँह ही मुँह में बोला 
विपिन को इसका ठीक अंदाज़ा था 
इसीलिये वो आज मनु से आँखें ही नहीं मिला रहा था 
उस बैठक में नितांत खामोशी थी 
उन तीनो के अलावा बाकी हर आवाज़ साफ-साफ सुनाई दे रही थी
पंखे के घूमने की, अंदर किचन में बनती चाय का पानी उबलने की 
यहाँ तक की बाहर बालकनी में चहचहाती चिड़िया की भी  
एक तरफ मनु और सतप्रकाश जी बैठे थे 
और उन दोनों के बिलकुल सामने अपराधियों की तरह सर झुकाये , विपिन 
वो लगातार जमीन को ही देखे जा रहा था 
आखिरकार मनु को ही बोलना पड़ा 
वो काफी सख्त लहज़े में बोला था 

"ये मैं क्या सुन रहा हूँ विपिन "

कुछ देर की खामोशी के बाद विपिन ने धीरे-धीरे बोलना शुरू किया 

"आपने ठीक सुना है जीजाजी "
"पर मैं शर्मिन्दा नहीं हूँ "

मनु अवाक सा विपिन को देख रहा था 

वो गुस्से में कुछ बोलता इससे पहले ही विपिन ने फिर बोलना शुरू कर दिया 

"इस आदमी ने मेरी जिंदगी तबाह की है 
अरे बाप का फ़र्ज़ होता है अपने बेटे के लिए कुछ करना 
पर इस आदमी ने कभी बाप का फ़र्ज़ निभाया है ?
क्या दिया है इसने हमें पूरी जिंदगी 
झूठी ईमानदारी की खोखली जिंदगी 
अरे इसके ऑफिस के चपरासी भी आज पॉश कॉलोनियों में कोठियां बनाये बैठे है 
और हम इस स्लम में पचीस गज़ के मकान में सड़ रहे हैं 
आपको पता है मेरी माँ क्यों मर गयी ?
इसकी वजह से 
इसने मारा धीरे-धीरे उसके सपनों को 
उसकी इच्छाओं को 
इसको तो भगवान् बनना था ना 
तो ये बन गया 
मेरा इन्कमटैक्स में सिलेक्शन हो रहा था 
इसको बस एक फ़ोन करना था अपने ऑफिस में 
पर ये तो गांधी जी का अवतार है ना 
नहीं किया
अब दस साल से सड़ रहा हूँ अब एक पंद्रह हज़ार की प्राइवेट नौकरी में 
जीजाजी, मैंने सह लिया 
पर कल इसने मेरे बेटे के साथ भी वही किया 
दिल्ली स्कूल में प्री-नर्सरी  में एडमिशन कराना था आदि का
डोनेशन कहाँ है मेरे पास 
तो मैं प्रिंसिपल से मिला 
वो बोलीं के -"एक इन्कमटैक्स का छोटा सा प्रॉब्लम है हमारा 
आप करा दो,
मैं बगैर डोनेशन एडमिशन कर दूंगी "
अब वो लगभग चीखते हुए दांत पीसते हुए सतप्रकाश जी को घूरते हुए बोला 
"मैं अफसर से भी मिल आया ,वो इनका पुराना जूनियर 
वो बोला - "कोई दिक्कत ही नहीं है, आप बस सर से फोन करा दो "
"इस कमीने से इतना नहीं हुआ की बेटे का जीवन तो खराब किया 
कम से कम पोते के लिए तो कर देता 
इसने फिर नहीं किया " 
"हम दोनों मियां-बीवी ने कल रात इसके खूब हाथ जोड़े 
पैर पड़े 
पर मजाल है ये गांधी बाबा का चेला टस से मस भी हो जाए "
फिर जीजाजी मुझसे रहा नहीं गया और मेरा हाथ ..... "

(अब वो बहुत धीरे से मगर शांत, सधे स्वर में बोला था )

विपिन की आवाज़ में कोई पछतावा नहीं था 
ऐसा लग रहा था जैसे उसने कोई वर्षों से लंबित इन्साफ किया हो 
तभी पीछे से विपिन की पत्नी सुमन आयी 
वो चाय टेबल रखते हुए धीरे से बोली 

"जीजाजी अब हम थक गए है 
  पापाजी के आदर्शों के साथ अब सांस भी लेना हमारे लिए मुश्किल है 
मेरे भैया का बड़ा कारोबार है 
वो तो सालों से कह रहे थे की -
"जब प्राइवेट नौकरी ही करनी है तो मेरे यहाँ ही कर लो 
हम तो बाबूजी की वजह से नहीं जा रहे थे 
पर अब और नहीं 
भैया की फैक्ट्री में ही दो रूम का सेट बना हुआ है 
हम वहीँ रह लेंगे और ये फैक्ट्री सुपरवाइजर का काम देख लेंगे "

मनु ने मुड़कर सतप्रकाश जी की ओर देखा 
उन्होंने दोनों हाथों से अपने चेहरे को ढका हुआ था 
वो लगातार फूट-फूट कर रोये जा रहे थे 

मनु खुद कंफ्यूज हो गया था की 
यहाँ  कौन अपराधी है ?
और वो किसको क्या समझाये 

"चाचाजी .....मैं आपसे बाद में मिलता हूँ "

ये कहकर मनु धीरे से उस घर से बाहर निकल गया 
अपनी गाड़ी में बैठा वो खुद पता नहीं कितनी देर तक 
फूट-फूट कर रोता रहा 
उसके कानों में बार-बार अपने खुद के कहे शब्द गूँज रहे थे 
जो उसने कभी बरसों पहले अपने पापा को कहे थे 

"आपने कभी मेरे लिए किया ही क्या है 
  अरे बाप तो ऐसे होते हैं की ..........   "

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